
सामाजिक नव निर्माण के लिए
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युग-निर्माण योजना—लौकिक दृष्टि से प्रस्तुत योजना सामाजिक क्रान्ति एवं बौद्धिक क्रान्ति की आवश्यकता पूरी करती है। आज की सबसे बड़ी आवश्यकताएं यही दो हैं। हमारी विचारणा और सामाजिकता इतनी दुर्बल हो गई है कि इसे बदला जाना आवश्यक है। राजनैतिक क्रान्ति हो चुकी। स्वराज्य प्राप्ति के द्वारा हमें अपने मानस को बनाने बिगाड़ने का अधिकार मात्र मिला है। स्वराज्य की—प्रजातन्त्र की सार्थकता तभी है जब प्रजातन्त्र सामाजिक एवं मानसिक दृष्टि से परिपुष्टि हो। पिछले दो हजार वर्षों के अज्ञानान्धकार से हमारी नस-नस को पराधीनता पाश से जकड़ रखा है। बौद्धिक दृष्टि से अभी भी हम पाश्चात्य बौद्धिकवाद के गुलाम हैं। आसुरी संस्कृति हमारे रोम-रोम में बसी हुई है। हर व्यक्ति पाशविक जीवन जीने की लालसा लिए हुए श्मशान वासी प्रेत पिशाच की तरह उद्विग्न फिर रहा है। सामाजिकता के मूल्य नष्ट हो रहे हैं और लोग अपने आत्मीय जनों से भी स्वार्थ सिद्धि का ही प्रयोजन रहे हैं। फलस्वरूप समाज एवं कुटुम्बों का सारा ढांचा बुरी तरह लड़खड़ाने लगा है।
इन विपन्न परिस्थितियों का बदला जाना आवश्यक है। बौद्धिक एवं सामाजिक क्रान्ति आज के युग की सब से बड़ी आवश्यकता है। इन्हें पूरा किए बिना हमारा आर्थिक विकास का प्रयोजन भी पूरा न होगा। कमाई यदि बढ़ भी जाय तो वह सामाजिक कुरीतियों दुर्व्यसनों में खर्च हो जायगी और मनुष्य फिर गरीब का गरीब, अभावग्रस्त का अभावग्रस्त रह जायगा। इसलिए आर्थिक योजनाओं से भी पहले सामाजिक एवं बौद्धिक युग-निर्माण को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
युग-निर्माण योजना इस प्रयोजन को पूरा करने के लिए केवल विचार ही नहीं देती वरन् कार्यक्रम भी प्रस्तुत करती है। कोई प्रयोजन तभी पूरा होता है जब उसे कार्य रूप में परिणत होने का अवसर मिले। आज हिंदू-समाज में सबसे बड़ी सामाजिक कुरीति—विवाह शादियों से होने वाला अपव्यय है। इन कार्यों में इसकी कमाई का प्रायः एक तिहाई भाग खर्च हो जाता है। कई बार तो उसे इन ही प्रयोजनों की पूर्ति के लिए बेईमानी द्वारा पैसा कमाने के अतिरिक्त और कोई चारा ही शेष नहीं रहता। नैतिक आचरण के मार्ग में यह एक बहुत बड़ी बाधा है। सामाजिक क्रान्ति का आरम्भ इस अत्यधिक खटकने वाली बुराई से लड़ने की मुहीम ठानने के रूप में कर देना चाहिए। अखण्ड ज्योति परिवार के तीस हजार सदस्य अपने दायरे से इस प्रक्रिया को कार्यान्वित करना आरम्भ करदें तो अन्य लोगों को भी उसके अनुसरण का साहस पैदा हो जाए और युग की एक बहुत बड़ी आवश्यकता पूरी हो सके।
आदर्श विवाहों की एक रूपरेखा नीचे प्रस्तुत की जा रही है—इसके जितने अंश जहां पूरे किये जा सकें वहां उसके लिये पूरा-पूरा प्रयत्न होना चाहिए।
इन विपन्न परिस्थितियों का बदला जाना आवश्यक है। बौद्धिक एवं सामाजिक क्रान्ति आज के युग की सब से बड़ी आवश्यकता है। इन्हें पूरा किए बिना हमारा आर्थिक विकास का प्रयोजन भी पूरा न होगा। कमाई यदि बढ़ भी जाय तो वह सामाजिक कुरीतियों दुर्व्यसनों में खर्च हो जायगी और मनुष्य फिर गरीब का गरीब, अभावग्रस्त का अभावग्रस्त रह जायगा। इसलिए आर्थिक योजनाओं से भी पहले सामाजिक एवं बौद्धिक युग-निर्माण को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
युग-निर्माण योजना इस प्रयोजन को पूरा करने के लिए केवल विचार ही नहीं देती वरन् कार्यक्रम भी प्रस्तुत करती है। कोई प्रयोजन तभी पूरा होता है जब उसे कार्य रूप में परिणत होने का अवसर मिले। आज हिंदू-समाज में सबसे बड़ी सामाजिक कुरीति—विवाह शादियों से होने वाला अपव्यय है। इन कार्यों में इसकी कमाई का प्रायः एक तिहाई भाग खर्च हो जाता है। कई बार तो उसे इन ही प्रयोजनों की पूर्ति के लिए बेईमानी द्वारा पैसा कमाने के अतिरिक्त और कोई चारा ही शेष नहीं रहता। नैतिक आचरण के मार्ग में यह एक बहुत बड़ी बाधा है। सामाजिक क्रान्ति का आरम्भ इस अत्यधिक खटकने वाली बुराई से लड़ने की मुहीम ठानने के रूप में कर देना चाहिए। अखण्ड ज्योति परिवार के तीस हजार सदस्य अपने दायरे से इस प्रक्रिया को कार्यान्वित करना आरम्भ करदें तो अन्य लोगों को भी उसके अनुसरण का साहस पैदा हो जाए और युग की एक बहुत बड़ी आवश्यकता पूरी हो सके।
आदर्श विवाहों की एक रूपरेखा नीचे प्रस्तुत की जा रही है—इसके जितने अंश जहां पूरे किये जा सकें वहां उसके लिये पूरा-पूरा प्रयत्न होना चाहिए।