
उपसंहार
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युग-निर्माण योजना का उद्देश्य व्यक्ति, परिवार और समाज की ऐसी अभिनव रचना करना है जिसमें मानवीय आदर्शों का अनुसरण करते हुए सब लोग प्रगति, समृद्धि और शान्ति की ओर अग्रसर हो सकें। मानव-जीवन को वैयक्तिक एवं सामूहिक रूप में दुर्भावना एवं दुष्प्रवृत्तियों ने ही नरकमय बना रखा है। इस स्थिति को बदलना होगा और ऐसा प्रयत्न करना होगा कि इस अन्धकार के स्थान पर नया प्रकाश प्रतिष्ठित हो सके। सद्-भावनाएं और सत्प्रवृत्तियों की अभिवृद्धि ही उज्ज्वल भविष्य की सम्भावनाएं प्रशस्त कर सकती है। इसलिए हमें इन दोनों को बढ़ाने के लिए सभी सम्भव उपायों का अवलम्बन करना चाहिये। हम गुण, कर्म, स्वभाव की दृष्टि से उत्कृष्ट एवं आदर्श मानव बन सकें तो ही वे परिस्थितियां उत्पन्न होंगी जिन में अपनी और दूसरों की सुख शान्ति की सुरक्षा सम्भव हो सके।
दूसरे क्षेत्रों में आर्थिक राजनैतिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक एवं अन्यान्य प्रगतियों के लिये विविध प्रयत्न किये जाते हैं, वे स्वागत योग्य हैं। पर व्यक्तियों के दृष्टिकोण को आदर्शवादिता की ओर उन्मुख करने के लिये नहीं के बराबर ध्यान दिया जा रहा है। जो हो रहा है उसमें दिखावा अधिक और तथ्य कम है। आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य को आदर्शवादिता को अपनाने के लिये—सदाचार, संयम, उदारता, सज्जनता जैसे सद्गुणों का विकास करने के लिये—लोक मंगल के लिए, त्याग बलिदान का आदर्श प्रस्तुत करने के लिए ऐसी प्रेरणा दी जाय जिससे उसकी वर्तमान हेय मनोदशा में आमूलचूल परिवर्तन हो सके।
इसी प्रयास का आरम्भ ‘अखण्ड-ज्योति परिवार’ के सदस्यों ने अपने छोटे क्षेत्र से कर दिया है। बड़े लोगों की बड़ी योजनायें इस दिशा में बनें और वे व्यापक रूप से कार्यान्वित की जायें, आवश्यकता तो इसी बात की है। पर जब तक समाज के कर्णधारों एवं शक्तिशाली पुरुषों की अभिरुचि इस ओर उत्पन्न नहीं होती तब तक भावनाशील लोगों के लिए निष्क्रिय बैठे रहना उचित न होता। इससे हम लोगों ने अपने छोटे से परिवार से यह कार्यक्रम आरम्भ कर दिया है। यह पंक्तियां लिखे जाते समय इस परिवार के प्रमुख और सहायक सदस्यों को मिला कर तीन लाख के लगभग संख्या हो जाती है। इतनी जन-संख्या अपने वैयक्तिक एवं सामूहिक जीवन में नव-निर्माण की रचनात्मक योजना अपना ले तो उसका कुछ न कुछ प्रभाव शेष समाज पर भी पड़ेगा। इसी आशा से शत-सूत्री युग-निर्माण योजना प्रस्तुत की गई है। प्रसन्नता की बात है कि यह आशा-जनक गति से उत्साहवर्धक प्रगति करती चली जा रही है। मानव-समाज के पुनरुत्थान में यह छोटा-सा प्रयत्न कुछ उपयोगी सिद्ध हो सके ऐसी परमात्मा से प्रार्थना है।
दूसरे क्षेत्रों में आर्थिक राजनैतिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक एवं अन्यान्य प्रगतियों के लिये विविध प्रयत्न किये जाते हैं, वे स्वागत योग्य हैं। पर व्यक्तियों के दृष्टिकोण को आदर्शवादिता की ओर उन्मुख करने के लिये नहीं के बराबर ध्यान दिया जा रहा है। जो हो रहा है उसमें दिखावा अधिक और तथ्य कम है। आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य को आदर्शवादिता को अपनाने के लिये—सदाचार, संयम, उदारता, सज्जनता जैसे सद्गुणों का विकास करने के लिये—लोक मंगल के लिए, त्याग बलिदान का आदर्श प्रस्तुत करने के लिए ऐसी प्रेरणा दी जाय जिससे उसकी वर्तमान हेय मनोदशा में आमूलचूल परिवर्तन हो सके।
इसी प्रयास का आरम्भ ‘अखण्ड-ज्योति परिवार’ के सदस्यों ने अपने छोटे क्षेत्र से कर दिया है। बड़े लोगों की बड़ी योजनायें इस दिशा में बनें और वे व्यापक रूप से कार्यान्वित की जायें, आवश्यकता तो इसी बात की है। पर जब तक समाज के कर्णधारों एवं शक्तिशाली पुरुषों की अभिरुचि इस ओर उत्पन्न नहीं होती तब तक भावनाशील लोगों के लिए निष्क्रिय बैठे रहना उचित न होता। इससे हम लोगों ने अपने छोटे से परिवार से यह कार्यक्रम आरम्भ कर दिया है। यह पंक्तियां लिखे जाते समय इस परिवार के प्रमुख और सहायक सदस्यों को मिला कर तीन लाख के लगभग संख्या हो जाती है। इतनी जन-संख्या अपने वैयक्तिक एवं सामूहिक जीवन में नव-निर्माण की रचनात्मक योजना अपना ले तो उसका कुछ न कुछ प्रभाव शेष समाज पर भी पड़ेगा। इसी आशा से शत-सूत्री युग-निर्माण योजना प्रस्तुत की गई है। प्रसन्नता की बात है कि यह आशा-जनक गति से उत्साहवर्धक प्रगति करती चली जा रही है। मानव-समाज के पुनरुत्थान में यह छोटा-सा प्रयत्न कुछ उपयोगी सिद्ध हो सके ऐसी परमात्मा से प्रार्थना है।