‼ चिन्तन ‼
संसार क्षणभंगुर है, संसार में चारों ओर देखो यहां, वहां, जहां, तहां देखो जितने भी पदार्थ इन चर्म चक्षुओं के एवं पांच इंद्रियों के अनुभव में आने वाले पदार्थ है, सभी पदार्थ नश्वर, क्षणभंगुर है, जिन नाशवान पदार्थों को यह मानव अपना मान बैठता है, चाहे वह मां हो, चाहे पिता हो, चाहे भाई-बहन हो, चाहे कुटुंब-परिवार हो चाहे गाड़ी, घोड़ा मकान, दुकान हो चाहे जमीन, जायदाद हो चाहे धन, रुपया, पैसा हो चाहे पत्नी, पुत्र हो यह सब नाशवान है, और जब इन नाशवान पदार्थों के प्रति यह मानव मेरा-मेरा करके उसके प्रति गाड़ा मोह कर लेता है, यह मोह इस भव को ही नहीं भव-भावन्तर को भी बिगाड़ने में समर्थ हो जाता है, यह मानव प्राणी इन पदार्थों को वर्तमान में अपना मानता ही है, अगले भव क्या भव-भवान्तर के लिए भी अपना मानने को तैयार है, लेकिन आप देखो आपके सामने से ही जब आपके मां-बाप, दादा-दादी आदि पदार्थ जिन्हें आप अपना मान लेते है, जब नाश को प्राप्त होते हैं, मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उस समय आपको कितना कष्ट होता है, और आप कुछ समय के लिए नहीं भव-भवान्तर के लिए कर्मों का बंद कर लिया करते हैं, इसी प्रकार से संसार असार है, नाशवान है, क्षण-भंगुर है, संसार में रहकर भी प्राणी अपनी बुद्धि-विवेक का प्रयोग कर सत मार्ग को स्वीकार कर देव, शास्त्र, गुरु की भक्ति करते हुए, आराधना करते हुए अपने आत्म तत्व को पहचाने, वह नाशवान नहीं है, ऐसी अमर आत्मा को, अपनी आत्मा को जानने का पहचानने का प्रयास करें यही मनुष्य पर्याय का सार है।
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