अपनी नवरात्रि की साधना को प्रखर करे
जीवन में साधना, स्वाध्याय, संयम एवं सेवा के सूत्रों के समग्र समावेश का एक न्यूनतम कार्यक्रम बनाना चाहिए, जिसमें कि आत्म निर्माण के साथ परिवार एवं सामाजिक उत्तरदायित्वों के भी बखूबी निर्वाह की समग्र रूपरेखा निर्मित हो। यदि इस तरह भावी जीवन की एक स्पष्ट एवं परिष्कृत रूपरेखा बन सकी और उसे व्यवहार में उतारने का साहस जग सका तो समझना चाहिए कि उतने ही परिमाण में गायत्री माता का प्रसाद तत्काल मिल गया। यह सुनिश्चित मानकर चलना चाहिए कि श्रेष्ठ गतिविधियों को अपनाते हुए ही हम अपनी श्रेष्ठ सम्भावनाओं को साकार कर सकते हैं और ईश्वरीय अनुग्रह के सुपात्र-अधिकारी बन सकते हैं।
अपनी नवरात्रि की साधना को प्रखर करने के लिए कुछ साधना सूत्रों का कड़ाई से पालन करना चाहिए। इनमें प्रमुख है-उपवास, ब्रह्मचर्य, कठोर बिछौने पर शयन करना, किसी से सेवा न लेना एवं दिनचर्या को पूर्णतया नियमित एवं अनुशासित रखना।
इसके साथ मानसिक धरातल पर दिन भर उपासना के क्षणों के भावप्रवाह को बनाये रखने का प्रयास करें। अपने दैनिक कर्तव्य-दायित्व में संलग्न रहते हुए अधिक से अधिक अपने ईष्ट चिंतन में निमग्न रहें। ईर्ष्या-द्वेष, परिचर्चा-निन्दा आदि से दूर ही रहें। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना मानसिक संतुलन बनाये रखें। विपरीत परिस्थितियों को आदिशक्ति जगज्जननी माँ गायत्री व परम कृपालु गुरुदेव का कृपा प्रसाद मानकर प्रसन्न रहने का प्रयास करें।
सबके प्रति आत्मीयतापूर्ण सद्भाव रखें। सृष्टि के सभी प्राणी जगन्माता गायत्री की संतानें हैं। सबमें माँ ही समाई है, ऐसी भावानुभूति में जीने का प्रयास करें। स्वयं संयम, स्वाध्याय, साधना एवं सेवा के सत्मार्ग पर बढ़ें, दूसरों को भी इस पर बढ़ने के लिए प्रेरित करें। अपने स्तर पर सत्पात्र की सहायता करें।
इस भावभूमि में उपरोक्त सूत्रों के साथ सम्पन्न नवरात्रि की साधना निश्चित रूप से साधक पर गायत्री महाशक्ति एवं गुरुसत्ता के अजस्र अनुदानों को बरसाने वाली सिद्ध होगी और साधक अभीष्ट सिद्धि के साथ अनुष्ठान को सम्पन्न होते देखेगा। पूर्णाहुति के दिन साधक हवन में अवश्य भाग ले। प्रत्येक आहुति के साथ भाव करे कि देव परिवार के सदस्यों के सामूहिक साधनात्मक पुरुषार्थ से चहुँओर संव्याप्त विषम प्रवाह छँट रहा है और उज्ज्वल भविष्य की सुखद सम्भावनाएँ साकार हो रही हैं।
~अखण्ड ज्योति मार्च 2004
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