नवरात्रि पर्व और गायत्री की विशेष तप−साधना
गायत्री का विज्ञान और भी अधिक महत्वपूर्ण है उसके शब्दों का गुँथन स्वर शास्त्र के अनुसार सूक्ष्म विज्ञान के रहस्यमय तथ्यों के आधार पर हुआ है। इसका जप ऐसे शब्द कंपन उत्पन्न करता है जो उपासक की सत्ता में उपयोगी हलचलें उत्पन्न करे−प्रसुप्त दिव्य शक्तियों को जगाये और सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने की उमंग उत्पन्न करे। गायत्री जप के कम्पन साधक के शरीर से निसृत जाकर समस्त वातावरण में ऐसी हलचलें उत्पन्न करते हैं जिनके आधार पर संसार में सुख−शान्ति की परिस्थितियां उत्पन्न हो सकें।
भारतीय धर्म की उपासना में प्रातः सायं की जाने वाली ‘संध्या विधि’ मुख्य है। संख्या कृत्य यों सम्प्रदाय मद में कई प्रकार किये जाते हैं, पर उन सब में गायत्री का समावेश अनिवार्य रूप से होता है। गायत्री को साथ लिए बिना संध्या सम्पन्न नहीं हो सकती। गायत्री को गुरु मन्त्र कहा गया है। यज्ञोपवीत धारण करते समय गुरु मन्त्र देने का विधान है। देव मन्त्र कितने ही हैं। सम्प्रदाय भेद से कई प्रकार के मन्त्रों के उपासना विधान हैं पर जहाँ तक गुरु मन्त्र शब्द का सम्बन्ध है वह गायत्री के साथ ही जुड़ा हुआ है। कोई गुरु किसी अन्य मन्त्र की साधना सिखाये तो उसे गुरु का दिया मन्त्र तो कहा जा सकता है, पर जब भी गुरु मन्त्र शब्द को शास्त्रीय परंपरा के अनुसार प्रयुक्त किया जायगा तो उसका तात्पर्य गायत्री मन्त्र से ही होगा। इस्लाम धर्म में कलमा का −ईसाई धर्म में बपतिस्मा का जो अर्थ है वही हिन्दू धर्म में अनादि गुरु मंत्र गायत्री को प्राप्त है।
साधना की दृष्टि से गायत्री को सर्वांगपूर्ण एवं सर्व समर्थ कहा गया है। अमृत, पारस, कल्प−वृक्ष और कामधेनु के रूप में इसी महाशक्ति की चर्चा हुई है। पुराणों में ऐसे अनेकानेक कथा प्रसंग भरे पड़े हैं जिनमें गायत्री उपासना द्वारा भौतिक ऋद्धियाँ एवं आत्मिक सिद्धियाँ प्राप्त करने का उल्लेख है। साधना विज्ञान में गायत्री उपासना को सर्वोपरि माना जाता रहा है। उसके माहात्म्यों का वर्णन सर्वसिद्धिप्रद कहा गया है और लिखा है कि तराजू के एक पलड़े पर गायत्री को और दूसरे पर समस्त अन्य उपासनाओं को रखकर तोला जाय तो गायत्री ही भारी बैठती है। राम, कृष्ण आदि अवतारों की−देवताओं और ऋषियों की उपासना पद्धति गायत्री ही रही है। उसे सर्वसाधारण के लिए उपासना अनुशासन माना गया है और उसकी उपेक्षा करने वाली की कटु शब्दों में भर्त्सना हुई है।
सामान्य दैनिक उपासनात्मक नित्यकर्म से लेकर विशिष्ट प्रयोजनों के लिए की जाने वाली तपश्चर्याओं तक में गायत्री को समान रूप से महत्व मिला है। गायत्री, गंगा, गीता, गौ और गोविन्द हिन्दू धर्म के पाँच प्रधान आधार माने गये हैं, इनमें गायत्री प्रथम है। बाल्मीक रामायण और श्रीमद्भागवत में एक−एक शब्द का सम्पुट लगा हुआ है। इन दोनों ग्रन्थों में वर्णित रामचरित्र और कृष्णचरित्र को गायत्री का कथा प्रसंगात्मक वर्णन बताया जाता है इन सब कथनोपकथनों का निष्कर्ष यही निकलता है कि गायत्री मन्त्र के लिए भारतीय धर्म में निर्विवाद रूप से सर्वोपरि मान्यता मिली है।
उसमें जिन तथ्यों का समावेश है उन्हें देखते हुए निकट भविष्य में मानव जाति का सार्वभौम मन्त्र माने जाने की पूरी−पूरी सम्भावना है। देश धर्म, जाति समाज और भाषा की सीमाओं से ऊपर उसे सर्वजनीय उपासना कहा जा सकता है। जब कभी मानवी एकता से सूत्रों को चुना जाय तो आशा की जानी चाहिए गायत्री को महामन्त्र के रूप में स्वीकारा जायगा। हिन्दू धर्म के वर्तमान बिखराव को समेटकर उसके केन्द्रीकरण की एक रूपता की बात सोची जाय तो उपासना क्षेत्र में गायत्री को ही प्रमुखता देनी होगी।
~पं श्रीराम शर्मा आचार्य
~अखण्ड ज्योति फरवरी 1976
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