पूज्यवर का अनुरोध एवं आश्वासन
हमें अनेक जन्मों का स्मरण है। लोगों को नहीं जिनके साथ पूर्व जन्मों से सघन संबंध रहे हैं, उन्हें संयोगवश या प्रयत्न पूर्वक हमने परिजनों के रूप में एकत्रित कर लिया है और जिस- तिस कारण हमारे इर्द- गिर्द जमा हो गए हैं।
बच्चों को प्रज्ञा परिजनों के संबंध में चलते- चलाते हमारा इतना ही आश्वासन है कि वे यदि अपने भाव- संवेदना क्षेत्र को थोड़ा और परिष्कृत कर लें तो निकटता अब की अपेक्षा और भी अधिक गहरी अनुभव करने लगेंगे।
कठिनाइयों में सहयता करने और बालकों को ऊँचा उठाने, आगे बढ़ाने की हमारी प्रकृति में राई- रत्ती भी अन्तर नहीं होने जा रहा है। वह लाभ पहले की अपेक्षा और भी अधिक मिलता रह सकता है।
जो अपनी भाव- संवेदना बढ़ा सकेंगे वे भविष्य में हमारी निकटता अपेक्षाकृत और भी अच्छी तरह अनुभव करते रहेंगे।
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