अन्जान रास्ते में मिले आत्मीय बंधु
घटना उस समय की है जब मैं पटन्डा ब्लाँक के देहात बोडाम में को- ऑपरेटिव एक्सटेन्शन अफसर था। मैं टाटानगर से रोज आना- जाना करता था। उस दिन शाम चार बजे बोडाम से अपनी राजदूत मोटर साइकिल से टाटा जा रहा था।
रास्ते में पहाड़ी है, सड़क काफी टूटी हुई थी। सड़क की मरम्मत का कार्य चल रहा था। मैं किसी तरह से रोड क्रास कर रहा था फिर भी करीब आधा फर्लांग रह गया जिसे मैं पार नहीं कर सका। मैंने देखा कि दूर से सामने साईड से एक जीप भी आ रही थी। उसे भी वही अड़चन थी। रास्ता क्रास करने के प्रयास में वे लोग भी थे। कुछ देर बाद मैंने देखा कि उसने अपनी जीप वहीं से वापस मोड़ ली। मैं सोच में पड़ गया कि क्या करूँ? जाना तो था ही। साहस नहीं हो रहा था कि आगे रास्ता मिल पाएगा कि नहीं। मैं घर कैसे पहुँचूँगा। चिन्ता की रेखाएँ मन मस्तिष्क पर छा गईं। अतः मैंने भी मन ही मन गुरुदेव को याद करते हुए अपनी बाइक खेतों के रास्ते की ओर बढ़ा दी।
खेतों की मेढ़ों के ऊपर चल रहा था। मुझे बहुत घबराहट हो रही थी। दिमाग कुछ सोचने करने की स्थिति में नहीं था। उसी हड़बड़ाहट की स्थिति में मेरा दिमाग से कण्ट्रोल हट गया। गेयर लगाना चाहिए था, पर गलती से न्यूट्रल लग गया। नीचे गहरी खाई थी। मैं खाई में गिर गया। उसके पश्चात् मेरे ऊपर मोटर साइकिल गिर गई। उस समय वहाँ पर कोई नहीं था। मैंने पूरी तरह सोच लिया कि आज मेरा अन्त निश्चित है। जब व्यक्ति चारों तरफ से हताश एवं निराश होता है इस समय केवल भगवान को याद करता है। मैं मन ही मन अपने आराध्य गुरुदेव से प्रार्थना करने लगा।
इतने में मेरा ध्यान टूटा। मुझे जीप की आवाज सुनाई दी। मुझे लगा गुरुदेव ने मेरी प्रार्थना सुन ली। जीप में बैठे सारे लोग बाहर निकल आए और मुझे देखा। वे खाई में उतरे और पूछा ‘आपको निकाल दें खाई से?’ मेरे लिए उनके ये शब्द किसी वरदान से कम न थे। मैंने बिना समय गँवाये झट से हाँ कर दी। वे चार लोग थे, चारों ने मिलकर पहले मोटर साइकिल उठाई और किनारे कर दी फिर मुझे सहारा देकर उठा कर ऊपर लाए। मैं अपने आप उठ गया, लगा कि मुझे अधिक चोट नहीं आई है। मैंने देखा कि मैं ठीक हूँ। मैंने उन लोगों को धन्यवाद दिया।
उन लोगों ने कहा- कोई बात नहीं भाई साहब। हम लोग भी आपकी तरह रास्ता ढूँढ़ते इधर आए हैं। चलिए, आपको घर तक छोड़ देते हैं। मुझे लगा गुरुदेव ने इन लोगों को हमारे लिए ही भेजा है नहीं तो आजकल सहायता माँगने पर लोग अनसुना करके चले जाते हैं, ये लोग बिना कहे- सुने इस वीरान सुनसान स्थान पर मेरी रक्षा करने आ पहुँचे।
मैंने कहा ‘मैं खुद ही चला जाऊँगा’ तब उन लोगों ने कहा ‘पहले गाड़ी स्टार्ट करके तो देखिए’। मुझे भी लगा शायद ये लोग सही कह रहे हैं। मैंने गाड़ी स्टार्ट किया तो गाड़ी स्टार्ट हो गई। उन लोगों ने फिर कहा कि भाई साहब आपको चोट लगी होगी, जीप में चलिए। मैंने धन्यवाद करते हुए स्वयं चले जाने की बात कही। उसके बावजूद उन लोगों ने कहा- अच्छा आप बाइक से चलिए हम आपके पीछे चलते हैं।
इस प्रकार उन लोगों ने मुझे समीप के एक गाँव बहादुर- डीह तक पहुँचाया। जब उन्होंने देख लिया मैं ठीक तरीके से जा रहा हूँ, वे अपनी दिशा में वापस लौट गए। मैं गुरुसत्ता की असीम कृपा से अन्दर ही अन्दर प्रफुल्लित हो रहा था कि अनजान व्यक्तियों ने परिवार से अधिक आत्मीयता दिखाई एवं खाई से निकालकर एक गाँव तक सकुशल पहुँचाया। आज के समय में यह शायद संभव नहीं। मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि गुरुदेव ने दूत भेजकर मेरे जीवन को संकट से मुक्त कराया। अगर गुरुदेव की कृपा नहीं होती तो मेरी जीवन रक्षा न हो पाती। यह सोचकर आज भी मैं रोमांचित हो उठता हूँ।
सिद्धेश्वर प्रसाद राँची (झारखण्ड)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
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