जीवन दान मिला
दिनांक 2 दिसम्बर 2000 को मैं बीमार पड़ा। टाटा मेन अस्पताल में मुझे उपचार हेतु भर्ती किया गया। लगभग बारह दिनों तक इलाज चला किन्तु हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ता चली गई। मेरे पुत्र सुनील कुमार ने टाटा मेन अस्पताल के डॉक्टरों से लड़- झगड़ कर मेरी छुट्टी करा ली। 14 दिसम्बर को टाटा के एक प्रसिद्ध डॉक्टर ए.के.दत्ता को दिखाया। डॉक्टर दत्ता ने खून और पेशाब की जाँच कराने के बाद बताया कि मेरी जिन्दगी मात्र सात दिनों की है। मेरी किडनी बिल्कुल खराब हो गयी है। मुझे तुरन्त वैलूर ले जाना होगा। मेरा लड़का घबरा गया। वैलूर का रेलवे टिकट बनवाया परन्तु बर्थ नहीं मिली। वह घबरा कर गायत्री शक्तिपीठ टाटानगर गया। वहाँ श्री कमल देव भगत को सारी बातें बताई। कमलदेव भगत जी के अथक प्रयास से किसी तरह दो बर्थ मिलीं।
गायत्री परिवार के अनेक परिजनों को मेरी बीमारी की जानकारी श्री भगत जी द्वारा मिल गई थी। अगले दिन वैलूर जाने की गाड़ी शाम को 2:40 मिनट में थी। लगभग ग्यारह बजे दिन में कमलदेव भगत जी, परिव्राजक श्री मुन्ना पाण्डे के साथ मेरे निवास स्थान पर आए और मेरे सामने एक प्रस्ताव रखा कि शायद मेरे जीवन का यह अंतिम समय है; अतः मैं अपने- आपको पूज्य गुरुदेव को दान दे दूँ। पहले तो मैं समझा नहीं। फिर कमलदेव बाबू ने बताया कि अगर गुरुदेव आप से युग निर्माण का काम लेना चाहें तो वे आप को जीवनदान दे सकते हैं। चूँकि जीवन का वह समय गुरुदेव का अनुदान होगा, इसलिए वह समय आप सिर्फ युग निर्माण के कार्य में लगाएँगे। मैं उनकी बात से सहमत हो गया। तब परिव्राजक मुन्ना पांडे जी ने मुझे जीवन अर्पण का संकल्प कराया। मेरी हालत काफी बिगड़ चुकी थी। पेट में हमेशा भयंकर दर्द रहता था और उल्टी होती थी। एक महीने में मैंने अन्न का एक दाना नहीं खाया था। अपने से करवट बदलने की भी शक्ति शरीर में नहीं थी।
निश्चित समय पर हम लोग रेलवे स्टेशन पहुँचे। स्टेशन पर गायत्री परिवार के सैकड़ों परिजन मुझे विदाई देने आए थे। स्टेशन पहुँचने तक मेरे पेट का दर्द आधा हो गया। मुख्य ट्रस्टी श्री दौलत राम चाचरा और ट्रस्टी श्री इन्दु भूषण झा जी मुझे सहारा देकर रेलगाड़ी के डिब्बे तक ले आए। पता नहीं मुझमें कहाँ से शक्ति आ गई कि मैं पैदल चल सका। श्री चाचरा साहब बार- बार मुझे हिम्मत देते रहे और कहते रहे कि आप पूज्य गुरुदेव पर विश्वास रखें और हिम्मत नहीं हारें। आप अवश्य ही गुरुदेव के आशीर्वाद से स्वस्थ होकर लौटेंगे तथा पुनः शक्तिपीठ में समय देंगे। ट्रेन में बैठते ही उल्टी बन्द हो गए।
18 तारीख को सायं पाँच बजे मुझे वैलूर अस्पताल के नेफरो वार्ड में भर्ती करा दिया गया। मेरी हालत देखकर वैलूर के डॉक्टर भी गंभीर हो गए। लगातार सात दिनों तक तरह- तरह की जाँच होती रही। इस बीच मुझे कोई दवा नहीं दी गए। सिर्फ भोजन की कमी को दूर करने के लिए एक सुई दी गई। नौवें दिन २६ तारीख को मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई और मैं लाज में आ गया। लगभग पाँच दिनों के बाद डॉक्टर से मिलने और अंतिम रिपोर्ट प्राप्त करने का समय निश्चित हुआ। मेरी पत्नी श्रीमती सरोजिनी देवी मेरे साथ रहती थी। वह नित्य ब्रह्ममुहूर्त में होटल की छत पर जाकर चौबीस माला गायत्री महामंत्र का जप करती थी।
जिस दिन रिपोर्ट मिलने वाली थी, उस दिन मेरी पत्नी जप उपासना कर मेरे पास आई तो बड़ी प्रसन्न दिखाई पड़ी। प्रसन्नता का कारण पूछा तो कहने लगी- आज उपासना के समय पूज्य गुरुदेव और वंदनीया माता जी आए थे, उन्होंने ध्यान में दर्शन दिए। अचानक मेरे मुँह से निकल गया कि आज अंतिम रिपोर्ट मिलने वाली है। अतः ऋषियुग्म हम दोनों को आशीर्वाद देने आए थे। रिपोर्ट अवश्य ही अच्छी होगी। गुरुदेव का स्मरण कर हम दोनों की आँखें डबडबा गईं। दोपहर तीन बजे जब हम लोग डॉक्टर से मिलने गए तो मुझे देख कर डॉक्टर मुस्कुरा दिए। डॉक्टर के मुख से पहला वाक्य निकला मिस्टर भगत यु आर लक्की। आपकी किडनी बिलकुल ठीक है। आपको कोई बड़ी बीमारी नहीं है। सिर्फ पुराना इन्फेक्शन है। कुछ दिनों के इलाज से ठीक हो जाएगा। आज भी मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ। गायत्री शक्तिपीठ टाटानगर के साहित्य केन्द्र में नियमित समय देता हूँ।
कामिनी मोहन भगत जमशेदपुर (झारखण्ड)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
Recent Post
आत्मचिंतन के क्षण
आत्म निरीक्षण और विचार पद्धति का कार्य उसी प्रकार चलाना चाहिए जिस प्रकार साहूकार अपनी आय और व्यय का ठीक-ठीक खाता रखते हैं। हमारी दुर्बलताओं और कुचेष्टाओं का खर्च-खाता भी हो और विवेक सत्याचरण तथा आत...
आत्मचिंतन के क्षण
आत्म-निर्माण के कार्य में सत्संग निःसन्देह सहायक होता है किन्तु आज की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में जो विडंबना फैली है, उससे लाभ के स्थान पर हानि अधिक है। सड़े-गले, औंधे-सीधे, रूढ़िवादी, भाग्यवाद...
आत्मचिंतन के क्षण
मनुष्य अपनी वरिष्ठता का कारण अपने वैभव- पुरुषार्थ, बुद्धिबल- धनबल को मानता है, जबकि यह मान्यता नितान्त मिथ्या है। व्यक्तित्व का निर्धारण तो अपना ही स्व- अन्त:करण करता है। निर्णय, निर्धारण यहाँ...
आत्मचिंतन के क्षण
ईश्वर उपासना मानव जीवन की अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकता है। आत्मिक स्तर को सुविकसित, सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखने के लिए हमारी मनोभूमि में ईश्वर के लिए समुचित स्थान रहना चाहिए और यह तभी संभव है जब उसक...
आत्मचिंतन के क्षण
जो अपनी पैतृक सम्पत्ति को जान लेता है, अपने वंश के गुण, ऐश्वर्य, शक्ति,सामर्थ्य आदि से पूर्ण परिचित हो जाता है, वह उसी उच्च परम्परा के अनुसार कार्य करता है, वैसा ही शुभ व्यवहार करता ...
रचनात्मक आन्दोलनों के प्रति जन-जन में उत्साह जगाए
यह यज्ञभाव को जनजीवन में उतारने का चुनौतीपूर्ण समय है
विगत आश्विन नवरात्र के बाद से अब तक का समय विचार क्रान्ति ...
मनुष्य अनन्त शक्तियों का भाण्डागार है
मनुष्य अनन्त शक्तियों का भाण्डागार है। ये शक्तियाँ ही जीवन के उत्कर्ष का आधार हैं। शारीरिक, मानसिक, आत्मिक क्षमताओं का विकास, सफलता, सिद्धि, सुख और आनन्द की प्राप्ति सब इन्हीं आत्मशक्तियों के जागरण...
आत्मचिंतन के क्षण
जीवन का लक्ष्य खाओ पीओ मौज करो के अतिरिक्त कुछ और ही रहा होगा यदि हमने अपना अवतरण ईश्वर के सहायक सहयोगी के रूप में उसकी सृष्टि को सुन्दर समुन्नत बनाने के लिए हुआ अनुभव किया होता पर किया क्या जाय बु...
आत्मचिंतन के क्षण
एकाँगी उपासना का क्षेत्र विकसित कर अपना अहंकार बढ़ाने वाले व्यक्ति , ईश्वर के सच्चे भक्त नहीं कहे जा सकते। परमात्मा सर्व न्यायकारी है। वह, ऐसे भक्त को जो अपना सुख, अपना ही स्वार्थ सिद्ध करना च...
आत्मचिंतन के क्षण
किसी एक समुदाय के विचार किसी दूसरे समुदाय के विरुद्ध हो सकते हैं। किसी एक वर्ग का आहार -विहार दूसरे वर्ग के विपरीत पड़ सकता है। एक की भावनायें, मान्यतायें आदि दूसरे से टकरा सकती हैं। इसी विविधता, व...