ऋषियुग्म से मिला अभयदान
मेरा जन्म स्थान झारखण्ड प्रांत के पूर्वी सिंहभूम जिले के ग्राम चाकुलिया में है। रोजी- रोटी के सिलसिले में मैं अपने बच्चों के साथ कटक (उड़ीसा) में बस गया। मुझे अपने चाचा श्री कैलाश चन्द्र जी, जो युग निर्माण मिशन के समर्पित कार्यकर्ता हैं, की प्रेरणा से पू.गुरुदेव से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
वर्ष २०११ के जनवरी- फरवरी के महीने में मेरे दाहिने पैर में अचानक असह्य वेदना शुरू हो गयी। इधर- उधर बहुत सारे चिकित्सकों से इलाज कराने के क्रम में चिकित्सकों द्वारा शल्य चिकित्सा की सलाह दी गयी, जिसका खर्च लगभग तीन लाख था। यह मेरे लिए दुष्कर ही नहीं, असंभव था। आशा की एकमात्र किरण पू.गुरुदेव ही थे।
मैं जहाँ काम करता था वहाँ के लोगों से बात की। उन्होंने सुझाव दिया कि ई.एस.आई. को लिखने पर आपकी समस्या का समाधान हो सकता है। ई.एस.आई. को पत्र लिखा गया और गुरुदेव की कृपा से मेरे ऑपरेशन के लिए आदित्य केयर हॉस्पिटल में व्यवस्था हो गयी। दिनांक १३ जुलाई को ऑपरेशन की तारीख रखी गयी। मुझे ऑपरेशन के नाम से ही डर लगता था। हमारे घर के सभी लोग बहुत घबड़ाये हुए थे। मैं भी ऑपरेशन के नाम से बहुत भयभीत था।
ऑपरेशन के एक दिन पहले घर के सभी परिजन बहुत परेशान थे। क्या होगा? कैसे होगा? मेरे चाचाजी ने रात्रि ८ बजे शांतिकुंज में आदरणीय विनय बाजपेयी जी भाई साहब से फोन पर मेरे ऑपरेशन की बात बताई और आध्यात्मिक उपचार हेतु प्रार्थना की। भाई साहब ने तुरन्त आश्वासन दिया कि जैसा आप चाहते है मैं व्यवस्था कर रहा हूँ। आप परेशान न हों, हम गुरुसत्ता से प्रार्थना करेंगे। उनके आश्वासन पर हम सभी को बहुत राहत मिली। लग रहा था, सचमुच गुरुदेव का ही संरक्षण मिल रहा है, अब कुछ अनिष्ट नहीं होगा। १३ जुलाई को मुझे एडमिट कर लिया गया। एडमिट होते ही डॉक्टर ने कहा कि पेशेन्ट के ग्रुप का २ बोतल खून चाहिए। मेरे जामाता एवं मेरे एक मित्र के खून का ग्रुप मुझसे मिलता था। दोनों लोगों को खून देने के लिए समय पर हॉस्पिटल पहुँचना था। लेकिन दुर्भाग्यवश मित्र महोदय समय पर नहीं पहुँचने के कारण उनके आने की राह देख रहे थे।
सभी चिन्तित थे और सभी मन ही मन गुरुदेव से प्रार्थना कर रहे थे। अचानक एक अपरिचित सज्जन हम सबके बीच आये और कहने लगे कि आप लोग परेशान न हों मैं खून दूँगा। मेरे खून का ग्रुप इनके खून से मैच करता है। इनके इतना कहते ही जिन मित्र महोदय का खून लेना था वे भी वहाँ पहुँच गये। सभी लोग उनके देर होने आदि के सम्बन्ध में बातचीत करने लगे। जब हम उस अपरिचित सज्जन को धन्यवाद देने के लिए पीछे मुड़े तो देखा, उनका कहीं कोई पता नहीं था। सभी ने पता करने की कोशिश की, मगर वे नहीं मिले। बाद में अनुभव हुआ कि हम जिस समर्थ सत्ता से जुड़े हैं वे हमारी कष्ट कठिनाइयाँ देख नहीं सकते, वे किसी न किसी रूप में सहायता कर ही देते हैं।
इस घटना से हम सभी के मन में गुरुदेव के प्रति श्रद्धा और विश्वास बढ़ गया कि अब हमें परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जिसके ऊपर महाकाल की छत्रछाया हो उसका काल क्या बिगाड़ेगा?
ऑपरेशन की सारी व्यवस्थाएँ हो चुकी थीं। मैं और मेरे परिवार के सभी लोग केवल गुरुदेव को मन ही मन स्मरण कर रहे थे। मेरा विश्वास इतना सघन हो गया था कि ऑपरेशन थियेटर में जाते समय मेरा भय समाप्त सा हो गया था। मेरा ऑपरेशन सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया। मुझे दो दिन तक गहन चिकित्सा कक्ष में रखा गया। उसके पश्चात् मुझे जनरल वार्ड वी.के.सी. बेड पर स्थान दिया गया। मुझे यहाँ कुछ असुविधा हो रही थी। मैं तीन- चार दिन जनरल वार्ड में रहा। इसके पश्चात् मैंने अपनी सुविधा हेतु अपना स्थानान्तरण बेड सं. ए में करवा लिया। लेकिन यहाँ पर मेरा सोचना गलत था। यहाँ स्थान सुविधा की दृष्टि से तो अच्छा था, किन्तु यहाँ पर आने के पश्चात् मेरे साथ अजीबोगरीब घटनाएँ होने लगीं, जो असामान्य थी।
मुझे चौबीसों घण्टे बेचैनी छाई रहती। नींद बिल्कुल नहीं आती थी। मैं एक मिनट के लिए भी सो नहीं पाता था। रात्रि तो मेरे लिए काल बन कर आती थी। मैं सुबह होने का इन्तजार करता। रात्रि के आते ही मेरी परेशानी बढ़ने लगती। लगता था, कमरे के सारे परदे अपने आप हिल रहे हों। लगता कोई मेरा गला दबा रहा हो। मैं बोलने का प्रयास करता तो मेरा कण्ठ अवरुद्ध हो जाता। मैंने अपनी धर्मपत्नी से यह बात कही तो उसने कहा ऐसा कुछ नहीं है। मेरी धर्मपत्नी ऑपरेशन के समय से ही मेरे साथ थीं और मेरी देखभाल करती थीं। मैं असहाय था और मेरी परेशानी का हल किसी के पास नहीं था। पत्नी ने दिलासा दिया ताकि मैं घबरा न जाऊँ।
घबराहट की ऐसी मनोदशा में मुझे भय और निराशा के विचारों ने बुरी तरह घेर लिया। अवसादजन्य भावना से वशीभूत होकर मेरे अंदर बुरी आत्मा के चंगुल में आ जाने और अपना अंत होने का आभास होने लगा। लेकिन इस क्षण मुझे गायत्री मंत्र का आश्रय और गुरुदेव की कृपा अनन्य रूप से एक मात्र सहायक और संबल प्रतीत हुआ। पूरी व्याकुलता के साथ मैं पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र जपने लगा। जप करते- करते लगभग चार बजे ब्राह्ममुहूर्त में क्षणिक निद्रा में मुझे गुरुदेव- माताजी के दिव्य दर्शन हुए। मैंने देखा उनके चरण कमलों में नतमस्तक हो चरण स्पर्श कर रहा हूँ एवं वे मुझे आशीर्वाद के साथ अभयदान दे रहे हैं। मुझे अनुभव हो रहा था कि अब मेरे सारे कष्ट दूर हो गए हैं।
चेतना आने पर मैंने अपनी धर्मपत्नी से इस बात को बताया कि मुझे ऐसा स्वप्न हुआ है। आज मुझे यहाँ से छुट्टी मिल जाएगी। जबकि सच तो यह था कि उस दिन छुट्टी मिलने का प्रश्र ही नहीं था। डॉक्टर ने पहले ही कह दिया था कि २९ जुलाई से पूर्व आपको रिलीज नहीं किया जा सकता।
लेकिन मुझे गुरु के ऊपर विश्वास था कि आज मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी। २७ तारीख को जब डॉक्टर विजिट में आए तो मैंने उनसे रिलीज कर देने के लिए आग्रह किया। वे कुछ देर तक मौन रहे और बाद में अनुमति दे दी। मैं उसी दिन रात्रि ७ बजे रिलीज होकर अपने घर आ गया। मेरे गुरुदेव ने मुझे उस अतृप्त आत्मा से बचाकर नया जीवन दिया। अगर मैं वैसी विषम स्थिति में दो दिन और रह जाता तो मेरी मौत निश्चित थी।
पवन कुमार शर्मा कटक (उड़ीसा)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
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