खण्डित होने से बचा समयदान का संकल्प
बात सन् 1990 ई. की है। पूज्य गुरुदेव ने महाप्रयाण से कुछ दिन पूर्व अपने नैष्ठिक साधकों को बुलाकर कहा था कि बेटे, हमें अब मिशन का कार्य तीव्र गति से करना है और ऐसे में हमारा स्थूल शरीर अधिक उपयुक्त नहीं जान पड़ता है, अतः अब हम इस स्थूल काया को छोड़ना चाहते हैं। तब साधकों ने कहा-गुरुजी, जब आप शरीर से नहीं रहेंगे तो इस मिशन को गति कौन प्रदान करेगा। मिशन का कार्य कैसे होगा? तब गुरुजी ने कहा-बेटे हम सूक्ष्म शरीर से कार्य करेंगे। स्थूल शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म शरीर के द्वारा हम मिशन के कार्य को और अधिक तीव्र गति से कर पाएँगे।
यह प्रसंग अखण्ड ज्योति पत्रिका में प्रकाशित एक लेख का है। इस लेख को पढ़कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि पूज्य गुरुदेव अपने सूक्ष्म शरीर से कैसे कार्य करते होंगे। लेकिन जब मेरे जीवन में एक अविस्मरणीय घटना घटी, तो यह बात समझ में आ गई कि किस प्रकार गुरुदेव सूक्ष्म शरीर से तरह-तरह के काम किया करते हैं।
सन् 2009 में मैं पहली बार शान्तिकुञ्ज आया था। यहाँ की आध्यात्मिक ऊँचाइयों से प्रभावित मैंने मन ही मन संकल्प लिया कि अपने क्षेत्र में भी पाँच कुण्डीय गायत्री महायज्ञ करवाऊँगा। पंचकुण्डीय यज्ञ में पू. गुरुदेव कदम-कदम पर सूक्ष्म रूप से सहायता करते रहे। अगले वर्ष पुनः शान्तिकुञ्ज आकर नौ दिवसीय साधना सत्र करने के बाद एक मासीय युग शिल्पी सत्र पूरा किया और लगे हाथों यहाँ की डिस्पेन्सरी में तीन माह के लिए समयदान करना शुरू कर दिया। अभी समयदान की अवधि पूरी भी नहीं हुई थी कि एक विकट समस्या खड़ी हो गयी। वह रविवार का दिन था। तारीख थी 23 अक्टूबर 2010। रात के लगभग दस बजे मेरे घर से फोन आया कि पिताजी के बाएँ हाथ में पैरालाइसिस हो गया है। यह सुनकर मैं सकते में आ गया। अपने-आपको जैसे तैसे सहज करके मैंने यह जानने की कोशिश की कि अचानक यह अटैक कैसे हो गया। माँ ने बताया कि शाम के लगभग ४ बजे जब पिताजी गेहूँ की बोरी उठाने लगे, तो उन्हें लगा कि उनका बायाँ हाथ पूरी तरह से सुन्न हो गया है। उन्होंने माताजी को बुलाकर कहा कि उनका बायाँ हाथ काम नहीं कर रहा है। यह सुनकर माताजी घबरा उठीं। उन्होंने पिताजी का हाथ पकड़कर धीरे-धीरे दबाना और झटकना शुरू किया। लेकिन इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ा।
घर के सभी सदस्य अपना-अपना काम छोड़कर पिताजी के पास इकट्ठे हो गए। आपस में विचार करके सबने यही तय किया कि तुरंत किसी डॉक्टर को दिखाया जाए। थोड़ी देर बाद ही उन्हें मुजावरपुर के डॉ. श्री नृपाल सिंह सिगड़ोरे के पास ले जाया गया। जाँच करने पर पता चला कि पिताजी का ब्लडप्रेशर नार्मल से बहुत ही कम हो चुका है। डॉक्टर साहब ने बताया कि लो ब्लडप्रेशर ही पैरालाइसिस की वजह है। उन्होंने यह भी कहा कि बाँए अंग का पैरालाइसिस बहुत ही गंभीर होता है। लम्बे इलाज के बाद भी यह बड़ी मुश्किल से ठीक हो पाता है। दवा देकर डॉक्टर ने कुछ दिनों तक बेड रेस्ट का सुझाव दिया।
घर वापस आने के बाद पिताजी ने सारी बात फोन पर बताकर मुझे शांतिकुंज से तुरंत घर वापस आने को कहा। पिताजी के बारे में जानकर मेरा मन चिंता से भर उठा था। सुबह की ट्रेन से ही मेरा वापस जाना जरूरी था, लेकिन समयदान का संकल्प खंडित हो जाने का भय मुझे खाए जा रहा था। समझ में नहीं आ रहा था कि करूँ तो क्या करूँ। ऊपर से विभागीय अनुमति मिलने की भी संभावना नहीं दिख रही थी क्योंकि प्रभारी डॉक्टर गायत्री शर्मा पिछले कुछ दिनों से शांतिकुंज में नहीं थीं। गाँव वापस जाने को लेकर अनिश्चय की स्थिति में ही मैंने घर फोन मिलाकर माँ-पिताजी को कहा कि वे आज से ही घर में दीपक जलाकर नित्य कम से कम तीन माला गायत्री मंत्र का जप शुरू कर दें। मैंने उन्हें भरोसा दिलाते हुए कहा कि आप लोग चिन्ता मत कीजिए। पूज्य गुरुदेव की कृपा से सब ठीक हो जाएगा। पिताजी के स्वास्थ्य लाभ के लिए माताजी ने उसी दिन से गायत्री महामंत्र का जप आरम्भ कर दिया। इधर मैंने भी अपनी प्रातःकालीन साधना के दौरान माता गायत्री से पिताजी को शीघ्र स्वस्थ कर देने की प्रार्थना की। फिर मैं पूज्य गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी के समाधि स्थल पर सिर टिकाकर उनसे प्रार्थना करने लगा कि वे मेरी इतनी कठिन परीक्षा न लें। यदि मेरा यह समयदान का संकल्प पूरा नहीं हुआ तो मेरी आत्मा मुझे हमेशा धिक्कारती रहेगी। किन्तु यदि मेरे पिताजी की बीमारी इसी प्रकार बनी रहती है तो आत्मा पर बोझ रखकर भी मुझे वापस जाना ही पड़ेगा। अब इस दुविधा से मुझे आप ही उबार सकते हैं।
अब मेरे डिस्पेन्सरी जाने का समय हो चुका था। वहाँ जाकर दिन भर तो मरीजों के दुःख बाँटने मेंं लगा रहा लेकिन शाम को आवास पर वापस आते ही एक बार फिर से चिन्तातुर हो गया। पूरा ध्यान घर की परिस्थितियों पर ही लगा था। तभी शाम को साढ़े पाँच बजे घर से पिताजी का फोन आया। उनकी आवाज प्रसन्नता से भरी हुई थी। उन्होंने बताया कि उन्होंने मेरे कहे अनुसार दीप जलाकर गायत्री मंत्र की तीन माला का जप पूरा कर लिया है और जप के पूरा होते-होते उन्हें लगभग 80 प्रतिशत आराम मिल चुका है।
यह सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पिताजी से सुनकर भी सहज ही विश्वास नहीं हो रहा था कि सिर्फ तीन माला गायत्री जप से ही पैरालाइसिस जैसी घातक बीमारी लगभग 80 प्रतिशत ठीक हो गई। गुरुसत्ता की इस असीम अनुकम्पा से मेरी आँखें भर आईं। मैं अपने-आप से कहने लगा-गुरुसत्ता ने अपने परिजनों को ठीक ही यह आश्वासन दिया है कि तुम मेरा काम करो और मैं तुम्हारा काम करूँगा। एक हफ्ते बाद ही घर से पिताजी का दूसरा फोन आया कि अब उनका हाथ पूरी तरह से काम करने लगा है और मेरे गाँव आने की आवश्यकता नहीं रह गई है। पावन गुरुसत्ता की इस असीम कृपा के लिए हमारा शत-शत नमन।
डॉ. राजेश कुमार चौरिया, चारगाँव, छिन्दवाड़ा (म. प्र.)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
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