..और आखिर गुरुदेव ने सुनी उनकी बात
नवयुग के निर्माण के लिये युग शिल्पियों की जो विशाल सेना युगऋषि पं० श्रीराम शर्मा आचार्य ने खड़ी की है, उसके एक सजग और समर्पित सेनानी हैं श्री विजय शर्मा। वे गया में उप कृषि निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। जुलाई, २०१० के तीसरे सप्ताह में श्री शर्मा की तबीयत अचानक खराब हो गई। वह भी इस हद तक कि घर में कोहराम मच गया। उन्हें तुरन्त ही शहर के एक बड़े क्लीनिक में ले जाया गया। सघन जाँच हुई और ई.सी.जी. तथा टीएमटी की रिपोर्ट से इसके स्पष्ट संकेत प्राप्त हुए कि श्री शर्मा कॉरोनरी आर्टरी डिजीज़ के मरीज हैं। स्थिति इसलिए भी खतरनाक मानी गई कि यह उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह के पुराने रोगी हैं।
दिनांक २३ जुलाई को श्री शर्मा जी का एन्जियोग्राफी मेट्रो हार्ट इंस्टीट्यूट, फरीदाबाद में डॉ. नीरज जैन, डी.एम., कॉर्डियोलॉजिस्ट के द्वारा किया गया। श्री शर्मा एन्जियोग्राफी के तीन- चार दिन पहले से ही इस बात को लेकर चिंतित थे कि यदि एन्जियोप्लास्टी अथवा बाईपास सर्जरी कराना पड़ा, तो इसका व्यय भार वहन करना उनके लिए कहीं से भी सम्भव नहीं हो पायेगा। दूसरा संकट यह भी था कि इतनी लम्बी छुट्टी विभाग से कैसे मिलेगी। चिन्ता जब चरम पर पहुँच गई, तो उन्होंने परम पूज्य गुरुदेव की सुपुत्री स्नेहसलिला शैलबाला पण्ड्या से फोन पर सम्पर्क करके अपनी परेशानी बताई, तो आदरणीया शैल जीजी ने कहा- आप चिन्ता मत करिए। गुरुजी सब सम्हाल लेंगे। सब कुछ नॉर्मल होगा।
उसी रात सोने से पहले ध्यान लगाकर उन्होंने पूज्य गुरुदेव से द्रवित मन से प्रार्थना की। उन्होंने कहा - गुरुदेव! इतने महँगे इलाज के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं, दफ्तर से छुट्टी भी नहीं मिलेगी। मैं बहुत मुश्किल में हूँ। कुछ ऐसा कीजिए, गुरुदेव! कि सिर्फ एक ही दिन में मेरी चिकित्सा पूरी हो जाय और इलाज में अधिक से अधिक ३०,००० रुपये खर्च हों।
.... और सचमुच परम पूज्य गुरुदेव ने उनकी बात सुन ली। इलाज एक ही दिन में हो गया और खर्च हुए मात्र २३,००० रुपये। २३ जुलाई, २०१० को जब शर्मा भाई साहब ने एन्जियोग्राफी करवाया, तो रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य निकला। मेट्रो हार्ट इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट शत- प्रतिशत सामान्य पाई गई। दिनांक ७ सितम्बर को श्री शर्मा जी ने जब आदरणीया जीजी से हरिद्वार आकर मुलाकात की, तो जीजी ने आतुरता से उनकी कुशल- क्षेम पूछी। जाँच की रिपोर्ट के बारे में जानने के बाद उन्होंने गहरी साँस लेते हुए सिर्फ इतना कहा कि यह सब गुरुदेव की लीला है, पर उनकी आँखें साफ बोल रही थीं कि गुरुदेव अपने अंग अवयवों की रक्षा में संसार की सीमाओं को भी लांघ जाते हैं।
नीरज तिवारी पूर्वजोन, शांतिकुंज, हरिद्वार(उत्तराखण्ड)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
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