आस्था से मिली संकट से मुक्ति
मेरे बेटे को अक्सर पेट में दर्द रहता था। थोड़ी बहुत इधर- उधर की दवाइयों से वह ठीक भी हो जाता। किसी ने सुझाया- डॉक्टर को दिखा दो, ताकि अच्छे से इलाज हो जाए। कई बार ऐसी लापरवाही से अन्दर ही अन्दर गम्भीर बीमारी पकड़ लेती है। मैंने भी सोचा दिखा ही दूँ, पर बात टलती गई। एक दिन इतना असहनीय दर्द शुरू हुआ कि वह छटपटाने और रोने चिल्लाने लगा। रविवार का दिन था। अधिकतर क्लीनिक और दवा की दुकानें बंद थीं। मजबूरन मुझे दोपहर की उस कड़ी धूप में उसे साइकिल पर बैठाकर डॉक्टर की खोज में निकलना पड़ा।
डॉ० जी० एल० कुशवाहा जो अभी नये डॉक्टर थे, मेडिकल कॉलेज से हाल ही में पढ़ाई करके आए थे, उन्होंने उसे सामान्य तौर पर देखकर दवा दे दी। जब बच्चा दवा खाता तो थोड़ी देर के लिए दर्द कम हो जाता। एक हफ्ते तक ऐसा ही चलता रहा। अगले हफ्ते जब डॉक्टर को जाकर यह बात बताई तो उन्होंने दवा बदल दी; पर इससे भी कोई लाभ नहीं हुआ। इसी तरह दवा बदलते हुए लगभग एक महीना बीत गया लेकिन कोई राहत नहीं मिली। डॉ० साहब ने चिन्ता जताते हुए उसे किसी नर्सिंग होम में ले जाने की बात कही और इसके लिए एक सीनियर डॉक्टर के पास भेजा। बच्चे का इलाज यहाँ एक महीने तक चला, लेकिन बच्चे के स्वास्थ्य में किसी प्रकार का कोई सुधार नहीं हुआ। वाराणसी के डॉ० रोहित गुप्ता ने बच्चे के विषय में रिपोर्ट दी कि बच्चे की आँत में कोई गड़बड़ी आ गई है। बच्चे का इन्डोस्कोपी कराया गया, जिसकी रिपोर्ट करीब १५ दिन के बाद मिलनी थी। बीच- बीच में बच्चे की हालत काफी नाजुक हो जाती, कभी पेट में दर्द होता, कभी सिर में दर्द होता। शरीर सूखकर कंकाल की तरह हो गया था। हम सभी बच्चे का दर्द देखकर बहुत परेशान थे। बच्चे के इलाज में काफी पैसे लग चुके थे। ढाई महीने बीत जाने के बाद भी स्वास्थ्य में कोई परिवर्तन नहीं आया। बार- बार ऑफिस से छुट्टी लेने के कारण परेशानी और बढ़ गई। आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गई थी। मन- मस्तिष्क भी थकने लगे थे।
संयोग से इन्हीं दिनों किसी सज्जन से मुझे ‘‘गायत्री साधना के प्रत्यक्ष चमत्कार’’ पुस्तक मिली। परिस्थितियों से मैं बहुत परेशान था। ध्यान हटाने के लिए एवं मन को श्रेष्ठ चिन्तन में लगाने के लिए मैं पुस्तक का अध्ययन करने लगा। उसमें मैंने बहुत से लोगों के बारे में पढ़ा, जिन्हें गायत्री साधना से प्रत्यक्ष लाभ मिला था। मैंने भी अनुष्ठान करने के बारे में सोचा। यदि सभी को कुछ न कुछ लाभ मिला है, तो हमें भी अवश्य मिलेगा। मैंने अनुष्ठान आरंभ कर दिया। बच्चे के स्वास्थ्य में थोड़ा बहुत सुधार भी हो रहा था। रिपोर्ट में आया कि बच्चे की आँत में घाव हो गया है।
इस नाजुक परिस्थिति में हमें कुछ सूझ नहीं रहा था। इसी बीच हमारा शांतिकुंज जाना हुआ। वहाँ जाकर हमने डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर साहब ने ऑपरेशन की सलाह दी और कहा कि कल आप ९.३० बजे ऑपरेशन के लिए आ जाइये। मैं बुरी तरह से डर गया था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ! मन ही मन गुरु देव से प्रार्थना कर रहा था। हमें गुरु देव का संरक्षण मिल रहा था, किन्तु उस समय इसका आभास नहीं हो रहा था। हुआ यह कि जब बच्चे को ऑपरेशन थियेटर में ले जाया जा रहा था तब वह इतना कमजोर था कि ऑपरेशन नहीं हो सकता। उसी वक्त खून चढ़ाया जाना था। मैंने अपना खून दे दिया। खून चढ़ते ही बच्चे को बुखार आ गया और बच्चे का ऑपरेशन नहीं हो सका।
लेकिन अगले दिन देखा गया कि बच्चा धीरे- धीरे स्वस्थ हो रहा है, तो डॉक्टर साहब ने कहा कि अब बच्चे को कोई दवा नहीं दी जायेगी। ऐसा क्यों कहा उस समय पता नहीं था। वास्तव में गुरु देव की चेतना सूक्ष्म रूप से बच्चे का इलाज कर रही थी। धीरे- धीरे बच्चा स्वस्थ हो गया। घर की परिस्थिति भी सामान्य हो गई। हमारी जिन्दगी दुबारा फिर अच्छे तरीके से चलने लगी।
यह कोई कहानी नहीं बल्कि हमारी जिन्दगी की प्रत्यक्ष घटना है। इस घटना ने गायत्री और गुरु देव के प्रति मेरे मन में गहरी आस्था और विश्वास का भाव जगा दिया।
श्यामबाबू पटेल, बादलपुर (उत्तरप्रदेश)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
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