
शंका डायन मनसा भूत
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शंका डायन मनसा भूत ले. श्री शिवरतन लाल जी ओझा इस छोटे से लेख में मैं यह सिद्ध करने नहीं चला कि मरने के बाद कोई प्रेत योनि नहीं होती। इस बारे में विस्तृत विवेचन किसी अगले अंक में करूँगा। इस लेख में मुझे यह कहना है कि वास्तविक भूतों के अतिरिक्त मानसिक भूत भी होते हैं। यदि यह कहा जाय तो अनुचित न होगा कि वास्तविक भूतों की अपेक्षा मानसिक भूत अधिक दुष्ट एवं भयानक होते हैं। उनसे पीछा छुड़ाना कठिन है क्योंकि यह कोई बाहर की चीज तो होती नहीं। मन के साथ आशंका रहती है इसलिये छाया की भाँति भय का भूत भी हर समय पीछे ही पीछे फिरता है। यह एक पुरानी कहावत है कि शंका डायन, मनसा भूत सचमुच ही जब मन में किसी बात के ऊपर शंका, सन्देह, चिन्ता, भय उत्पन्न हो जाता है तो एक प्रकार की डायन साथ हो लेती है। सब जानते हैं कि चिन्ता, चिता की छोटी बहिन है किन्तु शंका चिन्ता की बड़ी बहिन है। जिसे यह डर लग जाता है कि मेरे पीछे भूत पड़ा हुआ है, उसके लिए घड़ा भी भूत बन जाता है। भूतों के उत्पन्न होने का स्थान मन है। मन में भूतों की कल्पना उठी कि पेट में चूहे लोटे। शाम को भूतों की कहानी सुनी कि रात को स्वप्न में मसान छाती पर चढ़ा। भ्रमवश रस्सी को सर्प समझने का उदाहरण वेदान्ती बार- बार दोहराते हैं। अशिक्षित जातियों में भूत प्रेतों पर अधिक विश्वास होता है, उन पर आये दिन जिन्न सवार रहते हैं। जो उन्हें नहीं मानते उनसे वे भी डरते हैं। डरपोक आदमियों के मन में यह विश्वास जमा रहता है कि अमुक घर, पेड़, मरघट, तालाब पर भूतों का डेरा है। वे उन स्थानों में रात बिरात अकेले नहीं जा सकते। यदि जावें तो समझते है कि सचमुच भूत उन्हें दिखाई दें और वे बीमार पड़ जाय। किन्तु ऐसे भी किसान आदि होते हैं जो उन्हीं कठिन भुतही जगहों में अँधेरी रातों में रहते हैं उनका कोई कुछ नहीं बिगड़ता। मेरे एक मित्र अपनी आँखों देखी घटना सुनाते थे, वे कहते थे अमुक गाँव में दो आदमियों ने आपस में शर्त बदी। एक ने कहा यदि तू अमुक मरघट में रात को बारह बजे एक कील गाड़ आवे तो तुझे अपनी भैंस दे दूं। उस स्थान के बारे में प्रसिद्ध था कि वहाँ बड़े भूत रहते हैं। दूसरा आदमी तैयार हो गया। वह नियत समय पर कील गाड़ने गया। रास्ते में उसके मन में डर पैदा होने लगा। जैसे तैसे वहाँ पहुँचा और कील गाड़ने लगा। रात अंधेरी थी। जल्दी में उसने अपनी धोती के एक कोने सहित मसान में कील गाड़ दी। जब उठने लगा तो धोती खिंचने लगी। बिना कुछ देखे भाले उसने विश्वास कर लिया कि मुझे भूत ने पकड़ लिया। वह भागा तो धोती और खिंची। आखिर धोती खुल गई और वह चीखता, चिल्लाता, नंग- धड़ंग घर भागा। घर तक पहुँचते- पहुँचते डर के मारे वह मर गया। बाद को लोगों ने जाकर देखा तो पता चला कि धोती में कील गड़ जाने से उसे भ्रम हुआ। वह भय का भूत बन गया और उसकी जान ले ली। इससे मिलती जुलती छोटी- बड़ी घटनायें सब जगह होती रहती हैं और उससे लोग दुख उठाते हैं। मैं यह नहीं कहता कि भूत होते ही नहीं। वे होते हैं अवश्य और लोगों को समयानुसार हानि लाभ भी पहुँचाते हैं परन्तु भूतों के आक्रमण की जितनी घटनायें होती हैं। उनमें से अधिकांश में शंका डायन और मनसा भूत का हाथ होता है। यदि लोग निर्भय बनें और मिथ्या भ्रम को मन में से निकाल दें तो एक भारी मानसिक कष्ट दूर हो जाय। मनुष्य समाज में उपस्थित इस समस्या की उपेक्षा करना भूल होगी, क्योंकि भय का भूत इतना भयंकर होता है कि अनेक व्यक्तियों की जिन्दगी खराब हो गई और अनेक पागल बन गये तथा मृत्यु के मुख में चले गये। कभी- कभी सचमुच ही कुछ दुष्ट प्रेतात्मायें मनुष्य के पीछे पड़ जाती हैं और ऐसी आश्चर्यजनक करतूतें दिखाती हैं कि रोगी के पास रहने वालों को भी भय लगता है और वे भी बीमार पड़ जाते हैं। शंका डायन मनसा भूत तथा सचमुच की दुष्ट प्रेतात्माओं से हम किस प्रकार बच सकते हैं और यदि पीड़ित हैं तो किस प्रकार छुटकारा पा सकते हैं इसके सम्बन्ध में यदि जानकार लोग कुछ प्रकाश डालें तो जनता का बड़ा उपकार हो सकता है।