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प्राण प्रत्यावर्तन अर्थात् प्राण चेतना का आदानप्रदान । यह आदान-प्रदान किसके साथ ? इसका उत्तर यही हो सकता है-लघु का महान के साथ-आत्मा का परमात्मा के साथ-प्राण का महाप्राण के साथ ।
आत्मा वस्तुतः महान परमात्मा का एक छोटा घटक है। बीज रूप से उसमें वे समस्त संभावनाएं और क्षमताएं विद्यमान हैं जो उसकी मूल सत्ता में हैं। वृक्ष की समस्त विशेषताएं बीज में भरी रहती हैं-छोटे से दाने के अन्दर पूरे पेड़ का स्वरूप और क्रिया-कलाप अन्तहित रहता है । अवसर पाते ही यह बीज विकासोन्मुख होता है और उसकी विभूतियाँ अव्यक्त से व्यक्त होती हैं। यों देखने में बीज की सत्ता और वृक्ष की स्वरूप सत्ता एक दूसरे से सर्वथा भिन्न स्तर की मालूम पड़ती हैं। बीज का मूल्य कानी कौड़ी और पेड़ की कीमत मुहर, अशर्फी होती है, अन्तर स्पष्ट है। पर कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण क्षण ऐसे भी आते हैं जब बीज. के भीतर एक विचित्र हलचल उत्पन्न होती है वह अपना दाने जैसा अकिंचन स्वरूप खोता है और गल बदल कर अंकुर-फिर पौधा फिर वृक्ष बनने के लिए विचित्र प्रकार के क्रिया-कलाप अपनाता है । यह परिवर्तन का काल थोड़ा ही होता है । बीज को डालने और अंकुर का रूप धारण करने की काया-कल्प जैसी प्रक्रिया कुछ ही दिनों की होती है । इसके बाद बीज की सत्ता समाप्त हो जाती है और वृक्ष का अस्तित्व अपने ढङ्ग से काम करने लगता है। इसी हलचल भरी उथल-पुथल को प्रत्यावर्तन कह सकते हैं ।
प्राण उस इकाई का नाम है जो मनुष्य के काय कलेवर के अन्तर्गत काम करती है और चेतना की किया का रूप धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका सम्पादित करती है । जीव सता चेतना युक्त है उसमें प्रेरणाओं का आलोक ज्योतिर्मय है। मस्तिष्क सहित शरीर काय कलेवर की संरचना इस प्रकार हुई है कि वह निर्धारित
आत्मा वस्तुतः महान परमात्मा का एक छोटा घटक है। बीज रूप से उसमें वे समस्त संभावनाएं और क्षमताएं विद्यमान हैं जो उसकी मूल सत्ता में हैं। वृक्ष की समस्त विशेषताएं बीज में भरी रहती हैं-छोटे से दाने के अन्दर पूरे पेड़ का स्वरूप और क्रिया-कलाप अन्तहित रहता है । अवसर पाते ही यह बीज विकासोन्मुख होता है और उसकी विभूतियाँ अव्यक्त से व्यक्त होती हैं। यों देखने में बीज की सत्ता और वृक्ष की स्वरूप सत्ता एक दूसरे से सर्वथा भिन्न स्तर की मालूम पड़ती हैं। बीज का मूल्य कानी कौड़ी और पेड़ की कीमत मुहर, अशर्फी होती है, अन्तर स्पष्ट है। पर कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण क्षण ऐसे भी आते हैं जब बीज. के भीतर एक विचित्र हलचल उत्पन्न होती है वह अपना दाने जैसा अकिंचन स्वरूप खोता है और गल बदल कर अंकुर-फिर पौधा फिर वृक्ष बनने के लिए विचित्र प्रकार के क्रिया-कलाप अपनाता है । यह परिवर्तन का काल थोड़ा ही होता है । बीज को डालने और अंकुर का रूप धारण करने की काया-कल्प जैसी प्रक्रिया कुछ ही दिनों की होती है । इसके बाद बीज की सत्ता समाप्त हो जाती है और वृक्ष का अस्तित्व अपने ढङ्ग से काम करने लगता है। इसी हलचल भरी उथल-पुथल को प्रत्यावर्तन कह सकते हैं ।
प्राण उस इकाई का नाम है जो मनुष्य के काय कलेवर के अन्तर्गत काम करती है और चेतना की किया का रूप धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका सम्पादित करती है । जीव सता चेतना युक्त है उसमें प्रेरणाओं का आलोक ज्योतिर्मय है। मस्तिष्क सहित शरीर काय कलेवर की संरचना इस प्रकार हुई है कि वह निर्धारित