
शीर्षासन का महत्व
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(ले.-श्रीमती गंगा देवी अस्थाना, प्रधानाध्यापिका गर्ल्स स्कूल)
आसनों का महत्व साधारण व्यायाम से बहुत अधिक है। तभी तो योग के आठ अंगों में उन्हें स्थान दिया गया है। यदि उनमें विशेषता न होती तो कोई भी व्यायाम योग का अंग बन जाता। कारण यह है कि निर्बल शरीर वाले, बुद्धि जीवी, रोगी, बालक, स्त्रियाँ, बुड्ढे सभी के लिए आसनों का व्यायाम ऐसा है जो बिना किसी प्रकार की अनावश्यक शक्ति हरण किये शरीर के मन्द हुए कल पुर्जों को आसानी से चला देता है। साधारण व्यायाम में यह बात नहीं है। डंड बैठक करने के बाद आदमी थक जाता है और सुस्ती आती है किन्तु आसनों के बाद प्रफुल्लता और फुर्ती का उदय होता है।
मेरे अनुभव में जितने आसन आये हैं उनमें दिमागी काम करने वालों के लिए शीर्षासन सब से श्रेष्ठ है। योग शास्त्रों में इसकी बड़ी महिमा बताई गई है और इसे आसनों का राजा कहा गया है। अपने और दूसरों के अनुभव के आधार पर मैं भी इसकी श्रेष्ठता स्वीकार करती हूँ। किन्तु बीस वर्ष से कम उम्र वालों, प्रसूता, गर्भवती और रजस्वला स्त्रियों को मैं इसकी सलाह नहीं दे सकती क्योंकि उन्हें तो इससे उलटी हानि पहुँच सकती है।
आरम्भ में शीर्षासन की साधना कठिन है। बिना किसी सहारे के एक दम सिर नीचे को और पैर ऊपर को करके कुछ देर खड़े रहने का अभ्यास नहीं हो सकता। इसलिए दीवार या दूसरे साथी की सहायता लेनी चाहिए। शीर्षासन करते समय कोई गुदगुदा बिछौना बिछा लेना चाहिए। और दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में मिला कर उन्हें सिर के पीछे के भाग में लगा कर उल्टा होने की कोशिश करनी चाहिए। हाथों पर सिर रखने की जरूरत नहीं है। आसानी के लिहाज से एक चौकोर छोटा तकिया सिर के नीचे रखा जा सकता है। गरदन को बिल्कुल सीधा रखना चाहिए उसे टेड़ी−मेड़ी करने या इधर उधर हिलाने से गरदन में मोच वगैरह आने का अन्देशा रहता है।
दीवार का सहारा लेना ठीक है। यह जरूरी नहीं कि शरीर बिल्कुल सीधी लाइन में ही उल्टा हो। पहले पहल तिरछा रख कर काम चलाया जा सकता है। सिर दीवार से एक, डेढ़ फुट अलग रहे और पाँव ऊपर जा कर दीवार से सट जाएं, धीरे धीरे सिर को दीवार के पास लाने का अभ्यास करना चाहिए। कुछ दिनों में बिल्कुल सीधी तरह उल्टे होने का अभ्यास हो जायगा और फिर बिना सहारे भी उल्टा हुआ जा सकेगा। शुरू के चार पाँच दिन पन्द्रह सेकिण्ड ही उल्टा होना चाहिए और फिर प्रति दिन दो-तीन सेकिंड के हिसाब से क्रम बढ़ाना चाहिए। साल दो साल के अभ्यास के बाद जब पूरी तरह साधन होने लगे तब स्त्रियों को पन्द्रह-बीस मिनट और पुरुषों को आधा घण्टा यह आसन करना काफी होगा। इस आसन को करते समय साँस नाक द्वारा शान्ति पूर्वक लेनी चाहिए।
खून पतली चीज है और पतली चीजों का स्वभाव होता है कि वे नीचे को बहें। जब शीर्षासन किया जाता है तो खून की गति नीचे की ओर अर्थात् मस्तिष्क की ओर अधिक हो जाती है। जिस प्रकार काफी पानी मिलने से सूखे हुए पौधे भी हरे हो जाते हैं इसी प्रकार काफी रक्त मिलने से मस्तिष्क के जीवन कोष तरोताजा हो जाते हैं और उनकी शक्ति बढ़ती है। निर्बल मानसिक शक्तियाँ सबल होती हैं और स्मरण शक्ति, कल्पना शक्ति, तर्क शक्ति आदि शक्तियाँ जाग उठती हैं। सब प्रकार की दिमागी कमजोरी दूर होती है।
अभ्यास के आरम्भ में कुछ साधकों को खुश्की बढ़ जाने की शिकायत हो जाती है। इसके लिए घी दूध खूब खाना चाहिए और कानों में तेल डालना चाहिए। मैं पिछले सात साल से नित्य प्रातः काल शीर्षासन करती हूँ अपना खोया हुआ स्वास्थ्य इसी के द्वारा मैंने पुनः प्राप्त कर लिया है। इस पैंतालीस वर्ष की उम्र में भी मेरे सिर के सब बाल काले बने हुए हैं और पायोरिया की शिकायत से बिलकुल छुटकारा मिल गया है।