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Magazine - Year 1957 - Version 2

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हिंदू संस्कृति का आदर्श

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First 4 6 Last
(आचार्य श्री अक्षय कुमार बन्ध्योपाध्याय एम. ए.)

अथर्व वेद के ऋषि की आशीर्वाणी में हिंदू संस्कृति का आदर्श तथा साम्य-वादियों के साम्य का आदर्श कैसी सुन्दरता के साथ चित्रित किया गया है, वह देखने ही योग्य है।

सहृदयं साँमनस्यमविद्वेषं कृणोमि वः।

अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिवाध्न्या ॥1॥

अनुव्रतः पितु; पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः

जाया पत्ये मधुमती वाचं वदतु शान्तिवाम् ॥2॥

मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारयुत स्वसा

सम्यच्चः सव्रता भूम्वा वाचं वदत भद्रया ॥3॥

येन देवा न वियन्ति नो च विद्विष मिथः ।

तत्कृण्मो ब्रह्म वो गृहे संज्ञानं पुरुषेभ्यः ॥4॥

ज्यायरवंतश्चित्रिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः। अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सघ्रीभीनान् वः संयम न स्कृणोमि ॥5॥

समानी प्रया सह वोयन्नभागः समाने योक्त्रे सह वो भुनज्मि। सम्यच्चोयग्निं सपर्यतारा नाभिमिवाभितः ॥6॥

सध्रीचीनान् वः संमनसस्कृणोम्येक श्नुष्टीन्त्संवननेन सर्वान्।

देवा श्वामृतं रक्षमाणाः सायं प्रातः सौमनसो वो अस्तु ॥7॥

मानव समाज की सारी जातियों के, समस्त वर्गों के नर-नारियों को लक्ष्य करके महर्षि कहते हैं कि मैं इस प्रकार परम अग्नि (विश्व देवता) की सेवा करता हूँ, जिससे तुम सबके हृदय में सम्यक् मिलन हो, मनों में सम्यक् मिलन हो और द्वेष-भाव दूर हो जाय। गाय जिस प्रकार अपने नवजात बछड़े के प्रति आकृष्ट होती है, तुम भी उसी प्रकार एक दूसरे के प्रति आनंदपूर्वक आकृष्ट हो जाओ ॥1॥

पुत्र पिता के कल्याण-व्रत का अनुसरण करे, माता के साथ एकमना हो जाय, स्त्री मधुमती वाक् के द्वारा स्वामी के चित्त को शाँतिमय करे ॥2॥

भाई-भाई से द्वेष न करे, बहिन-बहिन से द्वेष न करे, सब के सब एक लक्ष्य साधन में, एक व्रत-पालन में सम्मिलित होकर सुभद्र वाक्य से परस्पर सम्भाषण करें ॥3॥

जिस प्रकार ब्रह्म या ईश्वर- भावना के बल से देवगण परस्पर विच्छिन्न नहीं होते, कोई किसी से विद्वेष नहीं करते, सारे मनुष्यों के लिए उसी प्रकार एक-मति का सम्पादन करने वाले सम्यक् ज्ञान को उत्पन्न करने वाली ब्रह्म भावना की विधि प्रणयन करके मैं तुम्हारे घर-घर में प्रतिष्ठित करता हूँ ॥4॥

एकमना होकर ज्येष्ठ-कनिष्ठ नियम के अनुसार एक लक्ष्य साधन के उद्देश्य से प्रत्येक मनुष्य अपने-अपने कार्य भार को वहन करे। परस्पर विच्छिन्न न होओ, परस्पर प्रिय सम्भाषण करते-करते अग्रसर होओ। मैं तुम लोगों को एक लक्ष्य में निबद्ध दृष्टि तथा एकमना होने के लिए आह्वान करता हूँ ॥5॥

एक ही पौसले में तुम जल पियो, एक ही अन्न सत्र में भाग करके अन्न-भोग करो। मैं तुम सबको एक ही स्नेह-रज्जु में एकत्र सम्बन्धित करता हूँ। एक ही लक्ष्य से आबद्ध होकर तुम सब अग्नि देव (यज्ञ) की परिचर्या करो। रथ-चक्र के अरे जिस प्रकार एक ही धुरी को केन्द्रित करके अपना-अपना कार्य करते, तुम सब भी अपने-अपने व्रतों का सम्पादन करते हुए उनकी सेवा करो ॥6॥

एक ही संवनन अर्थात् साम्य साधक स्त्रोत के द्वारा मैं तुम सबको एक लक्ष्य के साधन एकमना करता हूँ। सब एकत्र भोजी बनो । स्वर्ग के अमृत की रक्षा में जिस प्रकार सारे देवता एकमना होते हैं उसी प्रकार अखण्ड मानवता के आदर्श की रक्षा में तुम सब में रात-दिन निरन्तर ऐकमत्य प्रतिष्ठित रहे ॥7॥

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