• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • परमात्म-प्रेम से सम्पन्न जीवन ही धन्य है।
    • भगवान आपके अन्दर सोया है, उसे जगाइये
    • अमर हो तुम, अमरत्व को पहचानो
    • सेवा ही सच्ची भगवद्भक्ति है।
    • गाथा इस देश की, गाई विदेशियों ने
    • ब्राह्मणत्व जागेगा तो राष्ट्र जागेगा
    • मनुष्य जीवन की विभूति श्रद्धा
    • मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
    • अनासक्ति कर्म योग का तत्वज्ञान
    • दुख से डरिये नहीं उसका सामना कीजिये
    • धर्म का स्वरूप और उपयोग
    • Quotation
    • मधु-संचय
    • मधु-संचय (Kavita)
    • उठो, उठो (Kavita)
    • भौतिक जग के सुख (Kavita)
    • कलि में छिपा पराग (Kavita)
    • चेतनता के संस्पर्शों (Kavita)
    • जीवन का यह ध्येय नहीं है (Kavita)
    • तुम जगाते रहे हो (Kavita)
    • असन्तुष्ट रहें न विक्षुब्ध; जिन्दगी हँस-हँस कर जियें
    • Quotation
    • मन स्वस्थ तो शरीर स्वस्थ
    • शुभ कर्म दिखावे के लिये नहीं, अन्तः प्रेरणा से करें
    • समय का सदुपयोग करिये, यह अमूल्य है।
    • बड़ों के सम्मान में भूल न करें
    • छोटी-सी बुराई से भी सावधान रहें
    • आरोग्य रक्षा के तीन प्रहरी
    • बालकों का विकास इस तरह होगा।
    • मानव समाज को अखण्ड-ज्योति परिवार का अभिनव उपहार
    • समय दान सब के लिए अति सरल है।
    • एक घंटा समय और एक आना नित्य हमें देना ही चाहिए
    • आश्विन का शिविर एवं अभ्यास-सत्र
    • शाखा सम्मेलन और हमारा दौरा
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • परमात्म-प्रेम से सम्पन्न जीवन ही धन्य है।
    • भगवान आपके अन्दर सोया है, उसे जगाइये
    • अमर हो तुम, अमरत्व को पहचानो
    • सेवा ही सच्ची भगवद्भक्ति है।
    • गाथा इस देश की, गाई विदेशियों ने
    • ब्राह्मणत्व जागेगा तो राष्ट्र जागेगा
    • मनुष्य जीवन की विभूति श्रद्धा
    • मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
    • अनासक्ति कर्म योग का तत्वज्ञान
    • दुख से डरिये नहीं उसका सामना कीजिये
    • धर्म का स्वरूप और उपयोग
    • Quotation
    • मधु-संचय
    • मधु-संचय (Kavita)
    • उठो, उठो (Kavita)
    • भौतिक जग के सुख (Kavita)
    • कलि में छिपा पराग (Kavita)
    • चेतनता के संस्पर्शों (Kavita)
    • जीवन का यह ध्येय नहीं है (Kavita)
    • तुम जगाते रहे हो (Kavita)
    • असन्तुष्ट रहें न विक्षुब्ध; जिन्दगी हँस-हँस कर जियें
    • Quotation
    • मन स्वस्थ तो शरीर स्वस्थ
    • शुभ कर्म दिखावे के लिये नहीं, अन्तः प्रेरणा से करें
    • समय का सदुपयोग करिये, यह अमूल्य है।
    • बड़ों के सम्मान में भूल न करें
    • छोटी-सी बुराई से भी सावधान रहें
    • आरोग्य रक्षा के तीन प्रहरी
    • बालकों का विकास इस तरह होगा।
    • मानव समाज को अखण्ड-ज्योति परिवार का अभिनव उपहार
    • समय दान सब के लिए अति सरल है।
    • एक घंटा समय और एक आना नित्य हमें देना ही चाहिए
    • आश्विन का शिविर एवं अभ्यास-सत्र
    • शाखा सम्मेलन और हमारा दौरा
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1965 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


शुभ कर्म दिखावे के लिये नहीं, अन्तः प्रेरणा से करें

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 23 25 Last
दुष्कर्मों से मनुष्य के अन्तःकरण में अशान्ति असंतोष एवं विक्षोभ पैदा होता है। अनेक सफलताओं के बावजूद भी आत्मग्लानि के कारण उसे आन्तरिक सुख नहीं मिलता। बाहर से व्यक्ति को सफल माना जाता है पर वस्तुतः उसकी आन्तरिक स्थिति असफल और दुःखी ही बनी रहती है। इसलिये दुष्कर्मों से चाहे कितनी ही बड़ी सफलता क्यों न मिलती हो उन्हें घृणास्पद मानना चाहिये। बुरे कर्मों के फल कभी भी सुखकारी नहीं हो सकते।

शुभ कर्मों में वह शक्ति है जिससे मनुष्य अल्प साधनों में भी सुख, शान्ति और संतोषपूर्वक जीवन का आनन्द भोग सके। साँसारिक सफलतायें भले ही न मिलें पर उस व्यक्ति का मनोबल, आत्मबल इतना ऊँचा होगा कि उसे किसी बात का अभाव महसूस न होगा। उसके जीवन में मस्ती होगी। वह निर्भय होगा। स्वावलम्बी होगा अनेकों औरों का मार्ग दर्शन कर रहा होगा।

शुभ कर्मों का शुभ फल अनिवार्य है पर यदि उनका सम्पादन आत्म प्रशंसा के लिये हुआ तो फल में वह स्वच्छता स्थिर न रहेगी जिससे आन्तरिक शान्ति और संतोष प्राप्त होता है। यह बुराई अब सामान्य सी हो गई है। अच्छे कर्म अब केवल दिखावे के लिये ही होते हैं। एक तो उनका अभाव ही मनुष्य जीवन को छल रहा है उस पर जहाँ-जहाँ जो थोड़ी सी प्रवृत्तियाँ काम कर भी रही हैं उन में भी दिखावे की भावना इस तेजी से बढ़ रही है कि शुभ कर्मों से आत्मोत्कर्ष तथा लोक-कल्याण की आवश्यकतायें पूरी नहीं हो पा रहीं। उल्टे अच्छे कामों के प्रति लोगों में अश्रद्धा उत्पन्न होती जार ही है। यह गम्भीर बात है कि लोग काम थोड़ा करें और दिखावा अधिक। हृदय की प्रेरणा वहाँ काम करती हुई नहीं दिखाई देती। इससे उन्हें सच्ची प्रशंसा भी नहीं मिल पाती। इससे उसके फल में भी कमी होना स्वाभाविक है।

शुभ कर्मों के साथ-साथ शुद्ध भावना का होना भी नितान्त आवश्यक है। ऐसा न हुआ तो वह सत्कर्म भी अवसर मिलते ही, कुकर्म में परिवर्तित हो जायेगा और इस तरह भले कार्यों के प्रति लोगों के दिलों की निष्ठा नष्ट हो जायेगी। धर्मशालायें, अनाथालय, गौशालाएं आदि अनेकों प्रवृत्तियों के पीछे लोगों की स्वार्थ पूर्ण भावनायें काम किया करती हैं। बाहर से लोक-कल्याण का दिखावा मात्र होता है पर भीतर ही भीतर उन्हें आर्थिक-साधन समझा जाता है और उन्हें यही लाभ प्राप्त करने का माध्यम मानकर काम किया जाता है। फलस्वरूप लोक-कल्याण की सच्ची-प्रवृत्तियों का भी स्वरूप लोगों को नकली-सा दिखाई दे रहा है। यह शुभ कर्मों के नाम पर सद्प्रवृत्तियों को लज्जित करना है। इन का ठोस लाभ नहीं मिल सकता।

शुभ कर्मों का आडम्बर करने से कोई लाभ नहीं। इन्हें विचार और कार्यों में भली प्रकार स्थान देने वाला ही वास्तव में धर्मात्मा माना जाता है। ऐसे सुदृढ़ आधार पर ही जीवन को इमारत का निर्माण करना चाहिये। शुभ कर्मों की प्रतिक्रिया अन्तःकरण से उठनी चाहिये और यही आदर्श लेकर उसे लक्ष्य तक पहुँचाना चाहिये, चाहे इस में अपनी आत्माहुति ही क्यों न देनी पड़े। ऐसी सच्ची निष्ठा यदि संसार में एक व्यक्ति की भी हो जाती है तो वह समग्र विश्व में हलचल मचा देता है और बिना कहे हुये बहुतों की सेवा करता हुआ चिरकाल तक जीवित बना रहता है।

हरिश्चन्द्र के हृदय में जो सत्य की निष्ठा जागृत हुई थी वह आत्म प्रेरणा से प्रभावित थी तभी वे अनेक कठिनाइयों से भी नहीं झुके। जगद्गुरु शंकराचार्य ने अनेकों कष्ट सहे पर आध्यात्मिक-प्रशस्ति का पथ न छोड़ा क्योंकि उनका आध्यात्म-प्रेम आन्तरिक था। महात्मा गान्धी ने आजादी की माँग स्वार्थ वश नहीं की थी। हजारों लोगों की मुक्ति का प्रश्न ही उनके हृदय में जागृत हुआ था तब उनमें वह शक्ति आई जिससे गोराशाही के मृत्यु-तुल्य कष्टों को वह हँसते-हँसते झेल गये। शुभ-कर्मों के प्रति आत्म-निष्ठा हो तो उनकी पूर्ति का बल अपने आप आता है। साधन भी बनते हैं और परिस्थितियाँ भी साथ देती हैं। किन्तु बिना परिश्रम। बिना कष्ट झेले बाहरी दिखावे से “वाह-वाह” की इच्छा की जाती है तो दुर्बल हृदय मनुष्य उसमें देर तक खड़ा नहीं रह पाता और उसे अपयश और अनादर ही मिलता है। इससे न केवल औरों को हानि होती है वरन् स्वयं की भी खिन्नता और परेशानी बढ़ती है। ढोंग या मायाचार के कारण आध्यात्मिक पतन ही होता है।

फल तो मनुष्य को भावना के अनुसार मिलता फिर दिखावे का कोई लाभ नहीं। बाह्य आडम्बरों से कभी आन्तरिक शुद्धि नहीं हो सकती। इसलिये अच्छी प्रवृत्तियों को जीवन में धारण करने के पूर्व आपको यह विचार कर लेना होगा कि आप अन्त तक उस में स्थिर बने रहेंगे। दूसरों को अधर्माचरण से लाभ उठाते देखकर उनकी नकल करने को न ललचाओ। काँटे में लिपटा हुआ आटे का टुकड़ा खाकर मछली की जो दशा होती है, जाल के नीचे फैलाये हुये अन्न के दानों को खाकर चिड़िया की जो गति होती है, माँस की लालसा से हड्डी के साथ अपने ही जबड़ों का रक्त चूसने में जो दुर्दशा कुत्ते की होती है वही दशा अनीति द्वारा लाभ उठाने वालों की होती है। इस प्रकार के मार्ग का अनुसरण करने की कोई बुद्धिमान और दूरदर्शी मनुष्य आकाँक्षा नहीं कर सकता। करुणा वृत्ति, उदारता और अन्तः प्रेरणा पूर्वक किया हुआ थोड़ा सा कार्य भी फलदायक और सुखकारी होता है। सच्चाई का एक कण भी इतना स्वादिष्ट होता है कि उसकी तुलना मनों बनावट से नहीं हो सकती। नकली फल देखने में सुन्दर भले ही लगें किन्तु उनमें कोई स्वाद नहीं होगा।

इस युग में लोगों के दुःख बहुत बढ़ गये हैं इसका कारण यही है कि नकलीपन लोगों की नस-नस में समा गया है। खाद्यान्न से लेकर जीवनोपयोगी सभी वस्तुओं में नकलीपन दिखावा और मिलावट बेहद बढ़ी है। बढ़िया-बढ़िया कपड़ों से लिपटे हुये शरीर को उघाड़ कर देखें तो हड्डियाँ ही दिखाई देंगी। असंयम के कारण सूखे चेहरों पर कलई पोतने से आज तक किसी को सुन्दरता मिली है? हमारे जीवन का प्रत्येक अंग केवल दिखावट मात्र रह गया है। भीतर ही भीतर असंतोष, अशान्ति और अभाव का घुन उसे खाये जा रहा है इसी लिये आज लोग इतने दुःखी दिखाई पड़ रहे हैं।

आत्मीयता का गहरा प्रेम-सम्बन्ध जैसा पहले दिखाई देता था अब वह स्वप्न हो गया है। मित्रता और प्रेम भी लोग स्वार्थ वश करते हैं। शिष्टाचार वश अपने माता-पिता को रोटी देकर ही लोग अपने कर्त्तव्य की इति-श्री समझ लेते हैं। उनके कष्टों को, दुःखों और परेशानियों को मिटाने की रुचि भला किसमें है? हृदय में कायरता, मन में मैल, विचारों में वासना भरी पड़ी है इसीलिये अब उस जमाने जैसी मातृ भक्ति , भ्रातृत्व तथा गुरुनिष्ठा का पूर्णतया अभाव-सा हो गया है।

सच्चाई आत्मोत्थान की प्रमुख आवश्यकता है। हमारे जीवन में सादगी और सरलता को प्रचुर स्थान मिलना चाहिये। हम जो कुछ करें उसे आत्मिक लाभ की दृष्टि से करें तो लाभ की सम्भावनायें अधिक रहेंगी। सच्ची निष्ठा सदैव ही फलदायक होती है। गुणों को जीवन-व्यवहार में फैलना चाहिये उनका दिखावा नहीं किया जाना चाहिये तभी समाज में सत्प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता है।

“करना कम दिखावा अधिक” यह ओछे व्यक्तित्व का लक्षण है। लोगों को धार्मिक अश्रद्धा न हो जाय इस दृष्टि से शुभ कर्मों का दिखावा न करें तो ही अच्छा। धर्म और सदाचार के नाम पर बाह्य प्रदर्शन करने की अपेक्षा तो साधारण जीवन जीते रहना अच्छा है। इससे कम से कम विचार विद्रूप तो नहीं उत्पन्न होगा और समाज में गलत परम्परा को स्थान तो नहीं मिलेगा।

असली-नकली के संमिश्रण के कारण परिस्थिति ऐसी बन गई है कि धर्म के नाम पर जो कार्य किये जाते हैं, उनमें पुण्यों के साथ पाप भी हो जाते हैं। आज नकली की मात्रा असली से अधिक हो गई है इसलिये धर्म के नाम पर जो कुछ किया जाता है, उसमें पुण्य का भाग कम और पाप का अधिक होता है, शुभ कर्म के नाम पर जो कुछ करते हैं वह दिखावे के कारण कुछ फलित नहीं हो पाते। फूटे पेंदे वाले घड़े का पानी जिस तरह से बह जाता है। शुभ कर्मों का शुभ फल भी दिखावे के छेद से रिस जाता है फलतः अपना किया हुआ थोड़ा सा श्रम भी निरर्थक चला जाता है। हमें अच्छे कर्मों से प्राप्त होने वाली शान्ति, सुख और संतोष से वंचित न रहना पड़े इसमें लिये जो कुछ करें वह अन्तः प्रेरणा से करें, निष्ठापूर्वक करें। प्रशंसा प्राप्त करने की भावना से किये गये शुभ कर्मों का कोई लाभ नहीं होता।

First 23 25 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • परमात्म-प्रेम से सम्पन्न जीवन ही धन्य है।
  • भगवान आपके अन्दर सोया है, उसे जगाइये
  • अमर हो तुम, अमरत्व को पहचानो
  • सेवा ही सच्ची भगवद्भक्ति है।
  • गाथा इस देश की, गाई विदेशियों ने
  • ब्राह्मणत्व जागेगा तो राष्ट्र जागेगा
  • मनुष्य जीवन की विभूति श्रद्धा
  • मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
  • अनासक्ति कर्म योग का तत्वज्ञान
  • दुख से डरिये नहीं उसका सामना कीजिये
  • धर्म का स्वरूप और उपयोग
  • Quotation
  • मधु-संचय
  • मधु-संचय (Kavita)
  • उठो, उठो (Kavita)
  • भौतिक जग के सुख (Kavita)
  • कलि में छिपा पराग (Kavita)
  • चेतनता के संस्पर्शों (Kavita)
  • जीवन का यह ध्येय नहीं है (Kavita)
  • तुम जगाते रहे हो (Kavita)
  • असन्तुष्ट रहें न विक्षुब्ध; जिन्दगी हँस-हँस कर जियें
  • Quotation
  • मन स्वस्थ तो शरीर स्वस्थ
  • शुभ कर्म दिखावे के लिये नहीं, अन्तः प्रेरणा से करें
  • समय का सदुपयोग करिये, यह अमूल्य है।
  • बड़ों के सम्मान में भूल न करें
  • छोटी-सी बुराई से भी सावधान रहें
  • आरोग्य रक्षा के तीन प्रहरी
  • बालकों का विकास इस तरह होगा।
  • मानव समाज को अखण्ड-ज्योति परिवार का अभिनव उपहार
  • समय दान सब के लिए अति सरल है।
  • एक घंटा समय और एक आना नित्य हमें देना ही चाहिए
  • आश्विन का शिविर एवं अभ्यास-सत्र
  • शाखा सम्मेलन और हमारा दौरा
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj