Magazine - Year 1965 - Version 2
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Language: HINDI
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आश्विन का शिविर एवं अभ्यास-सत्र
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अगला शिविर आश्विन सुदी प्रतिपदा से पूर्णिमा तक ता. 26 सितम्बर से 10 अक्टूबर तक पन्द्रह दिन का होगा। इस अवधि में नवरात्रि, विजय दशमी और शरद पूर्णिमा के तीन पर्व भी पड़ते हैं। इन दिनों 24 हजार गायत्री पुरश्चरण, गायत्री तपोभूमि में रहकर करना अन्यत्र कहीं भी अनुष्ठान करने की अपेक्षा कहीं अधिक फलदायक सिद्ध हो सकता है। इस बीच में अर्ध चान्द्रायण व्रत भी चल सकता है। 7 दिन भोजन क्रमशः घटाना 1 दिन निराहार और 7 दिन भोजन क्रमशः बढ़ाना इस प्रकार अर्ध चांद्रायण व्रत हो सकता है। पूर्ण चान्द्रायण व्रत का जो लाभ, महत्व और पुण्य है उसका आधा तो इस अर्ध चान्द्रायण व्रत से भी मिल सकता है। कहना न होगा कि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक व्यथा-बाधाओं के निवारण में चान्द्रायण व्रत जादू जैसा प्रतिफल उत्पन्न करने वाला सिद्ध होता है। इन्हीं 15 दिनों में मथुरा तथा समीपवर्ती वृन्दावन, गोकुल, महावन, दाऊजी, गोवर्धन, नन्दगाँव, बरसाना आदि देखने का ठेके की बस में प्रबन्ध करा दिया जाता है, जिससे समय और किराये की काफी बचत हो जाती है।
इन 15 दिनों में धर्म प्रचारक का संक्षिप्त पाठ्य-क्रम भी पूरा कराया जायगा। (1) सात दिन में कही जा सकने वाली गीता सप्ताह कथा, (2) सत्यनारायण कथा, (3) षोडश संस्कारों के क्रिया विधान, (4) पर्वों को मनाने की धार्मिक कर्मकाण्ड, (5) युग निर्माण योजना को कार्यान्वित करने का मार्ग दर्शन, (6) समुन्नत और सुविकसित जीवन व्यतीत करने की कला सिखाने के लिये संजीवन विद्या का प्रशिक्षण। यह सभी जानकारियाँ व्यवहारिक रूप से दी जायेंगी। इस प्रशिक्षण के आधार पर कोई भी प्रतिभावान व्यक्ति अच्छा धर्मोपदेशक बन सकता है।
जो व्यक्ति उपरोक्त विषयों का अभ्यास भी करना चाहें उन्हें 4॥ महीने मथुरा रहना होगा। इसी अवधि में उन्हें काम चलाऊ संगीत भी सिखा दिया जायगा ताकि वे एक अच्छे भजनोपदेशक बन कर सम्मानपूर्ण आजीविका भी कमा सकें और युग परिवर्तन की भूमिका सम्पादन करने का श्रेय प्राप्त कर सकें। 4॥ महीने का यह अभ्यास क्रम 22 सितम्बर आश्विन सुदी 1 से आरम्भ होकर माघ सुदी पूर्णिमा 5 फरवरी तक चलेगा। इस अवधि में शिक्षार्थियों को आश्विन और माघ के दो शिक्षण शिविरों में रहने का भी लाभ मिल जायगा।
शिक्षा पूर्णतया निःशुल्क है। छात्रों के लिये निवास, जल, रोशनी, सफाई आदि का समुचित प्रबन्ध है। पर भोजन व्यय शिक्षार्थियों को स्वयं ही करना चाहिये। कई छात्र मिलकर पका लेते हैं तो बहुत सस्ते में काम चल जाता है। जो छात्र आर्थिक दृष्टि से वस्तुतः असमर्थ होंगे उन्हें 15) मासिक छात्रवृत्ति भी भोजन के लिये देने का प्रबन्ध किया जा रहा है।
कई व्यक्ति गायत्री तपोभूमि में आकर संस्कार कराने के लिये इच्छुक रहते हैं। उनके लिये भी वही समय उपयुक्त हैं। बच्चों के नामकरण, अन्न प्राशन, मुँडन, विद्यारम्भ, बड़ों के यज्ञोपवीत तथा वानप्रस्थ, गर्भवती महिलाओं के पुँसवन संस्कार जिन्हें कराने हों वे भी नवमी, दशमी या शरद पूर्णिमा को आस-पास आवें। कुछ दिन प्रवचन लाभ करने एवं तीर्थ यात्रा करने का भी इसी अवसर पर उन्हें लाभ मिल जायगा।
आश्विन के 15 दिवसीय शिक्षण शिविर में तथा 4॥ महीने के अभ्यास-सत्र में जिन्हें आना हो उन्हें 25 सितम्बर को ही मथुरा पहुँच जाना चाहिये और अपने आने की पूर्व सूचना देकर स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिये। बिना स्वीकृति के किसी को भी नहीं आना चाहिये। स्थान सीमित है आने के इच्छुक अधिक रहते हैं इसलिये स्वीकृति लेकर आने का ही नियम बना दिया गया है।