Magazine - Year 1965 - Version 2
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Language: HINDI
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समय का सदुपयोग करिये, यह अमूल्य है।
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मनुष्य-जीवन में रुपये-पैसों से भी अधिक महत्व समय का है। धन का अपव्यय निर्धन बनाता है किन्तु जिन्होंने समय का सदुपयोग करना नहीं सीखा और उसे आलस्य तथा प्रमोद में गँवाते रहते हैं उनके सामने आर्थिक विषमता के अतिरिक्त नैतिक तथा सामाजिक बुराइयाँ और कठिनाइयाँ खड़ी हो जाती हैं। समय का उपयोग धन के उपयोग से कहीं अधिक विचारणीय है क्योंकि उस पर मनुष्य की सुख-सुविधा के सभी पहलू अवलम्बित है। इसलिये हमें अर्थ अनुशासन के साथ-साथ नियमित जीवन जीने का प्रशिक्षण भी प्राप्त करना चाहिये।
शेक्सपियर का यह कथन—”मैंने समय को नष्ट किया और अब समय मुझे नष्ट कर रहा है” अक्षरशः सत्य है। जो समय व्यर्थ में ही खो दिया गया, उसमें यदि कमाया जाता तो अर्थ प्राप्ति होती। स्वाध्याय या सत्संग में लगाते तो विचार और सन्मार्ग की प्रेरणा मिलती। कुछ न करते केवल नियमित दिनचर्या में ही लगे रहते तो इस क्रियाशीलता के कारण अपना स्वास्थ्य तो भला-चंगा रहता। निष्क्रियता रोग से कम नहीं, उससे अनेक बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं, खाली दिमाग शैतानी ही कर सकते हैं। इस तरह समय के अपव्यय से मनुष्य की शक्ति और सामर्थ्य ही घटती है। कहना न होगा कि नष्ट किया हुआ समय मनुष्य को भी नष्ट कर डालता है।
संसार का काल-चक्र भी कहीं अनियमित नहीं। लोक और दिक्पाल, पृथ्वी और दिक्पाल, पृथ्वी और सूर्य, चन्द्र और अन्य ग्रह समय की गति से गतिमान हैं। समय की अनियमितता होने से सृष्टि का कोई काम चलता नहीं। धरती में यही नियम लागू है। लोग समय का अनुशासन न रखें तो रेल, डाक, कल-कारखाने, कृषि-कमाई आदि सभी ठप्प पड़ जायें और उत्पादन व्यवस्था में गति भंग के साथ सामान्य जीवन पर भी उसका कुप्रभाव पड़े। एक तरह से सारी सामाजिक व्यवस्था उथल-पुथल हो जाय और मनुष्य को एक मिनट भी सुविधापूर्वक जीना मुश्किल हो जाय। जिस तरह अभी भली प्रकार सारे क्रिया कलाप कर रहे हैं वैसे कदापि नहीं हो सकते। अतः हमको भी अपनी दिनचर्या को, अपने जीवन कार्यों की आवश्यकतानुसार विभक्त करके उसी के अनुसार कार्य करना चाहिए।
अपने कार्यों का वर्गीकरण (1) स्वास्थ्य (2) धन और (3) सामाजिक सदाचार की दृष्टि से कीजिए और एक दिन के समय को इसी क्रम में बाँट कर अपने लिये एक व्यवस्थित दिनचर्या बाँध लीजिये और उसी के अनुसार चलते रहिये। इसी में आपकी सारी बातों का समावेश हो जाना चाहिए और उसी के अनुरूप जीवन क्रम चलता रहना चाहिये। इससे आप अधिक सुखमय जीवन जी सकेंगे।
वैयक्तिक सुखोपभोग और साँसारिक कार्यों में क्षमतावान् होने के लिए आपका स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। स्वास्थ्य सुखी जीवन की प्रमुख शर्त है, अतः उन सभी नियमों को प्राथमिकता दीजिए जिनसे आपका शरीर और मन स्वस्थ व प्रबुद्ध रहता है। हमेशा सूर्योदय से कम से कम एक घंटा पहले उठा कीजिए और शौच, स्नान आदि से निवृत्त होकर कुछ टहलने या व्यायाम आदि की व्यवस्था बना लीजिये। प्रातःकाल का मुक्त वायु शरीर की शक्ति और पोषण प्रदान करता है, दिन-भर देह स्फूर्ति और ताजगी से भरी रहती है। इस अवसर को गँवाना रोग और दुर्बलता को निमंत्रण देने से कम नहीं। जो तब भी बिस्तरों में पड़े सोते रहते हैं वे प्रातःकालीन ऊषीय-रश्मियों, निर्दोष वायु से वंचित रह जाते हैं और उनका शरीर सुस्त और निस्तेज हो जाता है। वे कोई भी कार्य आधी रुचि से करते हैं तदनुकूल सफलता भी आधी ही मिलती है।
दिन-भर के कार्यों का अनुमानित आकार भी आप बिस्तर से उठते ही बना लीजिए और फिर उसमें परिश्रमपूर्वक लग जाया कीजिए। सफलता के लिए खीझ या परेशानी मन में न आने देकर मस्तीपूर्वक सुबह से शाम तक काम में जुटे रहिये यह क्रियाशील आपको रोगों और दुश्चिन्ताओं से दूर रखेगी। यह याद रखिये कि नियमित समय पर किया हुआ काम पूर्ण रूप से भलीभाँति सम्पन्न होता है और उसके पूरा हो जाने से आन्तरिक उल्लास और प्रसन्नता की वृद्धि होती है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मनोबल तथा आत्मबल भी बढ़ता रहता है। इसी तरह सायंकाल को भी अपने उन सभी कार्यों की समीक्षा करनी चाहिये जो दिन-भर आपने किये हैं। उनमें से कोई ऐसा दीखे जिससे आपके शारीरिक अथवा मानसिक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता हो तो उसे आगे के लिये रोकने या कम करने का प्रयत्न कीजिये।
साराँश यह है कि समय का विभाजन करते समय आप स्वास्थ्य की बात को भी ध्यान में रखिये और उसके प्रति बेपरवाह मत हो जाइये। आप चाहें तो समय के सदुपयोग और व्यवस्थित कार्य प्रणाली द्वारा स्वयं ही स्वस्थ बने रह सकते हैं, कार्यों में इनका दुरुपयोग करके उसे आलस्य में भी खो सकते हैं, पर याद रखिये इस बात का ध्यान जितनी देर बाद में आयेगा अपने आपको आप उतना ही पिछड़ा हुआ अनुभव करेंगे।
यही बात अर्थ उपार्जन के बारे में भी लागू होती है। शुभ और सुखी जीवन के लिये धन बहुत आवश्यक है। आर्थिक विषमता होने से दूसरे दैनिक कार्य भी कठिनाई से चल पाते हैं इसलिये धनोपार्जन के लिये भी समय का उपयोग कीजिए। समय के गर्भ में लक्ष्मी का अक्षय भंडार भरा पड़ा है पर उसे पाते वही हैं जो उसका सदुपयोग करते हैं।
आपको जितना समय कार्यालय में काम करना पड़ता है उतने से ही संतोष नहीं हो जाना चाहिये। अपने लिये कोई अन्य रुचिकर घरेलू उद्योग चुनकर भी अपनी आय बढ़ाने का प्रयत्न होना चाहिये। जापान के नागरिक ऐसा ही करते हैं। वे छोटी मशीनें या खिलौनों के पुर्जे लाकर रख लेते हैं और अपने व्यवसायिक कार्य से फुरसत मिलने पर नियमित रूप से कुछ समय उसमें भी लगाते हैं। इन कार्यों में वे अपने परिवार वालों का भी सहयोग लेते हैं और इस तरह वे अपनी बँधी आय के लगभग बराबर आय पार्ट-टाइम में कर लेते हैं। उनकी खुशहाली का सबसे बड़ा कारण समय का समुचित सदुपयोग ही कहा जा सकता है।
स्वास्थ्य और मनोरंजन के अतिरिक्त जो समय शेष रहता है उसका सदुपयोग समाज-कल्याण के लिये करना चाहिये। समय का अभाव किसी के पास नहीं पर अधिकाँश व्यक्ति उसे बेकार के कार्यों में व्यतीत किया करते हैं। ताश, चौपड़, शतरंज, मटरगस्ती आदि में समय बर्बाद करने से शरीर और मन की शक्ति का पतन होता है। इस समय का सदुपयोग सामाजिक उत्थान के कार्यों में करना हमारा धर्म है।
समय का मूल्य अमूल्य है। उसके समुचित सदुपयोग की शिक्षा ग्रहण करें तो इस मनुष्य जीवन में स्वर्ग का-सा सुखोपभोग प्राप्त किया जा सकता है। आवश्यक है कि अपने समय को उचित प्रकार से दिन-भर के कार्यों में बाँट लें जिससे जीवन के सब काम सुचारु रूप से होते चले जायें। हमें इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिये कि समय ही जीवन है। यदि हमें अपने जीवन से प्रेम है तो अपने समय का सदुपयोग भी करना चाहिये।
हम अपना समय आलस्य और निरर्थक कार्यों में खर्च न करें। आलस्य दुनिया की सबसे भयंकर बीमारी है। आलस्य समस्त रोगों की जड़ है। उसे साक्षात् मृत्यु कहें तो इसमें अत्युक्ति न होगी। अन्य बीमारियों से तो शरीर को छुटकारा भी मिल जाता है किन्तु आलस्य एक प्रकार का जंग है जो सारे मनुष्य जीवन को ही खा डालता है। आलस्य में पड़ कर मनुष्य की क्रिया शक्ति कुँठित होने लगती है जिससे न केवल शरीर शिथिल पड़ता है वरन् आर्थिक आय के साधन भी शिथिल पड़ जाते हैं।
हमारी जीवन व्यवस्था के लिये समय का बहुमूल्य उपहार परमात्मा ने दिया है। इसका एक-एक दिन एक-एक मोती के समान कीमतदार है जो इन्हें बटोर कर रखता है, सदुपयोग करता है वह यहाँ सुख प्राप्त करता है। गँवाने वाले व्यक्ति के लिए समय ही मृत्यु है। समय के दुरुपयोग से जीवनी शक्ति का दुरुपयोग होता है और मनुष्य जल्दी ही काल के गाल में समा जाता है। इसलिए हमें चाहिये कि समय का उपयोग सदैव सुन्दर कार्यों में करें और इस स्वर्ग तुल्य संसार में सौ वर्ष तक सुखपूर्वक जियें।