
Magazine - Year 1972 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
छिपा हुआ धन-नया प्रमाण सनातन दर्शन
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
“4 वर्ष का एक नन्हा बालक अपने पिता से बोला-पिता जी मुझे बन्दूक खरीद दीजिये शिकार खेलने का मन करता है।” पिता ने सोचा लड़के ने किसी को ऐसा कहते हुये सुना होगा। बच्चे अनुकरणशील होते हैं बात याद रही आयी होगी सो उसने बन्दूक की माँग कर दी। स्नेह में आकर-कुछ बहलाने की दृष्टि से कह दिया-बेटा! मेरे पास इतने रुपये कहाँ है? जो तुम्हें बन्दूक खरीद दूँ।
लड़के ने पहले जैसी स्वाभाविक मुद्रा में कहा-पिताजी! पैसों की चिन्ता मत कीजिये मैंने बहुत से रुपये जमीन के अन्दर छिपाकर रखे हैं आप चाहें तो मेरे साथ पिलखाना गाँव चलें-वहाँ मैं अपने गढ़े रुपये निकालकर दे सकता हूँ।
घटना शाहजहाँपुर (उ.प्र.) जिले की और वहाँ से 12 मील दूर एक छोटे-से गाँव गाहरा की है जो कुछ समय पूर्व अखबारों में भी प्रकाश में आई थी और जो पुनर्जन्म की वास्तविकता से संबंध रखती है और गीता के “वासाँसि जीर्णानि यथा विहाय...............” अर्थात् जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर उसी प्रकार नया चोला धारण करती रहती है जैसे कोई मनुष्य पुराने कपड़े उतार कर फेंक देता है और नये सिले-सिलाये कपड़े पहन लेता है”-वाले सनातन दर्शन का प्रत्यक्ष प्रतिपादन करती है।
यह कोई नई बात नहीं थी। गाहरा ग्राम का यह लड़का अपने पिता पुत्तूलाल पासी को पहले भी कई बार कह चुका था कि पिताजी मैं तो पिलखाना का लोहार हूँ मेरी स्त्री है, बच्ची हैं, मेरे भाई का नाम दुर्गा है मेरी ससुराल काँजा गाँव में है। पिता अपने बेटे की बात सुनता और भारतीय मान्यताओं के अनुरूप अनुभव भी करता कि बच्चा हो सकता है पूर्व जन्म में सचमुच ही पिलखाना में रहा हो। इस घटना से उसे यह सीख मिलनी चाहिये थी कि जब आत्मा अमर है तब फिर नाशवान् शरीर की सुविधाओं तक ही जीवन के बहुमूल्य क्षणों को क्यों केन्द्रित किया जाये। सर्व समर्थ आत्मा को प्राप्त करने की साधनायें क्यों न की जायें किन्तु पुत्तूलाल पासी ठहरा अनपढ़-अशिक्षित ग्रामीण उसमें इतना विवेक कहाँ से आये जबकि आज के इतने बुद्धिमान लोग ही शरीर की क्रियाओं आवश्यकताओं से भिन्न अतिवाहिक क्रियाओं, आवश्यकताओं की स्पष्ट अनुभूति करते हैं फिर भी न तो आत्म-सत्ता को मानते ही हैं न उसे प्राप्त करने का प्रयत्न ही करते हैं जो जानते और मानते भी हैं वह आत्म-विश्वास और आत्म-निर्माण के झूठे और परम्परावादी कोरे कर्म-काण्ड से हटकर योग साधनाओं की वैज्ञानिक प्रक्रियायें अपनाने का साहस भी तो नहीं कर पाते तब फिर पुत्तूलाल को ही दोष क्यों दिया जाये। वह हमेशा बच्चे की पुरानी स्मृतियों को टालता ही रहा।
किन्तु जब उसने धन गढ़े होने की बात कही तो कौतूहल वश कहिये या लालच में वह बच्चे को पिलखाना ले गया। वहाँ उसने अपनी पत्नी को पहचान लिया, पुत्री को पहचान लिया। यद्यपि घर का कई स्थानों पर पुनर्निर्माण हो चुका है तथापि वह अपने कमरे में गया और वह धन जो उसने पूर्व जन्म में गाड़ा था बता दिया। उसके पूर्व जन्म के भाई दुर्गा ने वहीं सबके सामने खोदा और सचमुच ही गड़ा हुआ धन पाकर आश्चर्यचकित हो गया। बच्चे से कई प्रश्न पूछे गये जो उसने सच-सच बता दिये यह प्रमाणित हो गया कि वह दुर्गा का भाई ही है पर इससे अधिक किसी ने प्रेरणा ली क्या? दुर्गा और उसके परिवार वालों को छिपा धन मिल गया, पुत्तूलाल और दूसरों को दिलचस्प तमाशा देखने को मिल गया और बच्चा था जो उसी तरह तड़फड़ा कर रह गया जिस तरह हर अज्ञानग्रस्त आत्मा शरीर नष्ट हो जाने के समय बहुमूल्य मानव-जीवन यों ही व्यर्थ गँवा देने के लिये तड़फड़ाती हुई संसार से विदा हो जाती है।
बच्चे ने अन्य रिश्तेदारों के पते भी बताये, नाम बताये वह सब सच पाये गये। उसने कहा - जब मैं बीमार था तब मेरे लिये एक नई धोती और एक नया कुर्ता आया था वह मैं पहन नहीं पाया था वह अमुक बक्से में रखे थे। घर वालों ने वह बक्सा खोला तो सचमुच जैसी उसने बताई थी वैसी धोती और वैसा ही नया कुर्ता रखा हुआ मिल गया। पर उस बेचारे को वह नया कुर्ता भी नहीं मिल सका, मिल भी जाता तो बेचारा उनका उपयोग भी तो नहीं कर पाता। उसी तरह खाली हाथ अपनी उस नई जन्मभूमि में लौट आया जिस तरह जिन्दगी भी कहीं से भी छल-कपट और अनीतिपूर्वक बटोरने वाले लोग मृत्यु के समय खाली हाथ लौट जाते हैं संचित कमाई की एक पाई भी तो साथ नहीं जाती, हाँ पाप-की, कुसंस्कारों की गठरी अवश्य लद जाती है सिर पर, और जीवात्मा इसी प्रकार बोझ ढोती फिरती रहती है। अपने शाश्वत और सनातन लक्ष्य सच्चिदानन्द की प्राप्ति वाले लक्ष्य से विमुख सारा संसार ही पुत्तूलाल पासी के लड़के की भाँति अज्ञान में भटक रहा है और सब कुछ देखकर भी कुछ समझता नहीं कि किसलिए संसार में आये थे और कर क्या रहे हैं।