
मधु वर्षा किसने की?
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सन् 1858 भारतवर्ष में प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम (गदर) के नाम से विख्यात है। यही वर्ष कैलीफोर्निया की नापाकाउन्टी स्टेट में एक ऐसे आश्चर्य के लिए विख्यात है जिसने देववाद की यथार्थता का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत कर लाखों लोगों को विस्मृत कर दिया।
27 अगस्त। कई दिन से बादल घुमड़ रहे थे पर वर्षा नहीं हो रही थी और तब एकाएक बूंदें गिरनी प्रारम्भ हुई। वर्षा से बचाव के लिए लोग जल्दी-जल्दी घरों में छिपने लगे। तो भी कुछ लोग जो बाहर जंगल में काम कर रहे थे वे जल्दी ही घर नहीं पहुँच सके घर तो पहुँचे पर देर से भीगते हुए पहुँचे।
बरसात का पानी सिर से पाँव तक बह रहा था कुछ बूंदें एक चरवाहे के ओठों पर लगी पानी क्या था पूरा शर्बत अब उसने अपनी हथेली आगे कर दी और पूरा चुल्लू पानी इकट्ठा कर पिया-तो आश्चर्य में डूब गया क्योंकि वह पानी नहीं वास्तव में शर्बत था। ठीक वैसा ही जैसा कि चीनी घोल कर शर्बत बनाया जाता है।
एक चरवाहे को ही नहीं, कई किसानों, कुछ अध्यापकों और शहर के अनेक लोगों को भी एक साथ ही अनुभव हुआ कि आज जो पानी बरस रहा है वह सामान्य वर्षा से बिल्कुल भिन्न है अर्थात् पूरे नापाकाउन्टी क्षेत्र में बरसे जल में भरी-पूरी मिठास थी ऐसा नहीं कोई हलका मीठापन रहा हो।
बात की बात में चर्चा सारे क्षेत्र में फैल गई। जो जहाँ था उसने वहीं वर्षा का जल पीया और पाया कि उस दिन की बरसात में मिश्री घोली हुई थी।
पुराणों में ऐसी कथाएँ बहुतायत में पढ़ने को मिलती हैं जिनमें यह बताया गया होता है कि किसी देवता ने किसी भूखे-प्यासे व्यक्ति को आकाश से भोजन भेजा, सवारी भेजी, वाहन भेजे, सहायताएं प्रस्तुत की। भूखे-प्यासे, उत्तेक को देवराज इन्द्र ने अन्न-जल दिया था अश्विनी कुमार आकाश मार्ग से देव औषधि लेकर च्यवन ऋषि के पास आये थे और उन्हें अच्छा किया था ग्राह से गज की रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र भगवान की अदृश्य सहायता के रूप में उतरा था, भगवान राम को ‘विरथ’ देख इन्द्र ने अपने रथ भेजा था, द्रौपदी की सहायतार्थ कृष्ण भगवान ने उसकी साड़ी को योजनों लम्बा कर दिया था। बाईबल में ऐसे वर्णन आते हैं जब महाप्रभु ईसा को देवताओं ने देव भोग भेजे थे। इन कथाओं में बहुत सा अंधविश्वास भी हो सकता है पर विज्ञान और तथ्य भी कम नहीं हो सकता। प्रस्तुत घटना इस बात का प्रमाण है कि विशाल ब्रह्माण्ड में ऐसी शक्तियों का अस्तित्व असंभव नहीं जो पदार्थ के परमाणुओं को अदृश्य सहायता के रूप में प्रकट कर देने की क्षमता न रखती हों। योग सिद्धियों का मूल सिद्धान्त भी यही है कि जो कुछ व्यक्त है, दृश्य है, वह सब सूक्ष्म अव्यक्त से एक क्रम व्यवस्था द्वारा उभर रहा है संकल्प सत्ता में वह शक्ति है जो उस क्रमिक नियम को भी बदल सकती है और उसके स्थान पर आश्चर्य-अजूबे प्रस्तुत कर सकती है।