
“शान्ति कुँज” से प्रेषित सूचनाएँ।
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(1) छः महीने के वानप्रस्थ शिक्षण-शिविर का पहला सत्र तारीख 20 जनवरी, 1974 से आरम्भ होगा। जिन्हें स्वीकृति दी जा चुकी है, उन्हें 19 जनवरी की शाम तक शान्ति-कुँज पहुँच जाना चाहिए। जिन्हें स्वीकृति नहीं मिली है, उन्हें अगले सत्र के लिए प्रतीक्षा करनी चाहिए। स्थान सीमित होने से सभी आवेदन कर्ताओं का एक ही सत्र में सम्मिलित हो सकना सम्भव नहीं।
(2) छः महीने की वानप्रस्थ-शिक्षा दो भागों में विभक्त है। (1) सैद्धान्तिक (2) व्यावहारिक। सैद्धान्तिक प्रशिक्षण तीन महीने का है, जो शान्ति-कुँज में होगा। व्यावहारिक-शिक्षा कार्य-क्षेत्र में मिलेगी। इसके लिए उन्हें युग-निमार्ण शाखा-संगठनों में विविध गतिविधियों का संचालन करने के लिए भेजा जायेगा।
(3) कनिष्ठ वानप्रस्थों की शिक्षा दो महीने की कर दी गई है। वह 25 अप्रैल से आरम्भ होगी। एक महीना सैद्धान्तिक-शिक्षण शान्ति-कुँज में होगा और एक महीना शाखा-संगठनों में व्यावहारिक-प्रशिक्षण के लिए जाना पड़ेगा। जिन्हें स्वीकृति मिल जाय, उन्हें 24 अप्रैल तक हरिद्वार पहुँच जाना चाहिए।
(4) प्रत्यावर्तन सत्र 15 जनवरी को बन्द कर दिये जाएँगे। इसके पश्चात् जून-जुलाई दो महीने चलेंगे। इन सत्रों में भी मात्र स्वीकृति-प्राप्त साधकों को ही आना चाहिए। स्त्री, बच्चे, पड़ोसी, मित्र आदि साथ लेकर नहीं चलना चाहिए। शान्ति-कुँज में मात्र साधकों के ही ठहरने की व्यवस्था है।
(5) इस वर्ष हरिद्वार का कुम्भ-मेला है। फरवरी मार्च, अप्रैल प्रायः तीन महीने चलेगा। ऐसी प्रचण्ड भीड़ में जान-माल का भारी खतरा रहता है। अपनी ओर से ऐसी भगदड़ में आने के लिए किसी को भी सलाह नहीं दी गई है। उन दिनों शान्ति-कुँज वानप्रस्थ-शिक्षार्थियों से पूरी तरह भरा रहेगा। कुम्भ-स्नानार्थियों के लिए ठहरने आदि की यहाँ तनिक भी गुँजाइश नहीं रहेगी। यह बात भली प्रकार नोट कर ली जानी चाहिए।
(6) शान्ति-कुँज में अभी प्रत्यावर्तन, वानप्रस्थ आदि के प्रशिक्षण-सत्र चल रहे हैं। जो थोड़ा सा स्थान यहाँ बना है, वह इन शिक्षार्थियों के लिए ही कम पड़ता है। तीर्थ-यात्रियों पर्यटकों तथा दर्शन, परामर्श के लिए आने वालों के लिए धर्मशाला-स्तर की व्यवस्था तनिक भी नहीं है। इसलिए स्वीकृति प्राप्त शिक्षार्थियों के अतिरिक्त अन्य परिजन यहाँ ठहरने की योजना बनाकर नहीं चलें। धर्मशाला में ठहरें और मध्याह्नोत्तर दो से पाँच के बीच में ही विचार-विमर्श परामर्श के लिए आवें। अन्य समय यहाँ अन्य कार्यों की व्यस्तता रहती है।
(7) सभी जीवन्त युग-निर्माण शाखा-संगठनों को परामर्श दिया गया है कि वे अपने-अपने यहाँ मई, जून, जुलाई इन तीन महीनों में पन्द्रह-पन्द्रह दिन के नव-निमार्ण शिक्षण-शिविरों की व्यवस्था करें। उसमें प्रातः 5 से तक सदस्यों एवं कार्यकर्ताओं का शिक्षण होगा और रात्रि को 7 से 10 तक जनता के शिक्षण सभा-सम्मेलनों के रूप में होगा।
मध्याह्नोत्तर जन-संपर्क के क्रिया-कलाप करेंगे। इसी अवधि में चार दिन का गायत्री-यज्ञ भी सम्पन्न होगा। पूरी योजना पाक्षिक युग-निमार्ण में छप चुकी है। इस आधार पर सभी जीवन्त शाखा-संगठनों को अभी से अपने यहाँ के कार्यक्रमों का समय निर्धारित कर लेना चाहिए। उनमें शान्ति-कुँज से प्रशिक्षित दो वानप्रस्थ भी पहुँचेंगे।
इस वर्ष छुटपुट यज्ञ-आयोजन न करके शाखाएँ अपनी पूरी शक्ति से शिविर-सम्मेलन की सुव्यवस्थित योजना को ही अधिकतम सफल बनाने के लिए कटिबद्ध हों। उसी की तैयारी करें। इस अवधि में बसन्त-पर्व का एक आयोजन तारीख 28 जनवरी, सोमवार को सम्पन्न कर लेना पर्याप्त होगा। वह तो इस मिशन का सर्वोपरि पर्व है।
इस अंक के साथ अधिकाँश सदस्यों का चंदा समाप्त हो जाता है। कृपया नये वर्ष का चन्दा अविलम्ब भेजें। अंक उतने ही छपते हैं, जितने निश्चित ग्राहक होते हैं। देर से चन्दा भेजने पर बीच के अंकों से ग्राहक बनना पड़ता है ओर वर्ष की फाइल अधूरी रह जाती है। जिनका चंदा बीच के किसी महीने में समाप्त होता है वे सज्जन भी वर्ष के शेष महीनों को चंदा भेजकर अपना हिसाब ‘जनवरी से दिसम्बर’ का ठीक कर लें।