
श्रद्धांजलि पर्व इस तरह मनायें
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अखण्ड-ज्योति मिशन का जन्म दिन-बसन्त पंचमी’ है। वहीं गुरुदेव का अध्यात्मिक ‘जन्मदिन’ है। युग-निमार्ण आन्दोलन का श्रीगणेश भी उसी दिन हुआ। गुरुदेव के जीवन की प्रत्येक महत्वपूर्ण प्रक्रिया इसी पर्व से प्रारम्भ हुई है। गायत्री-तपोभूमि का निमार्ण , आर्ष-साहित्य का सृजन’। हिमालय-यात्रा विश्व-व्यापी विचार-क्रान्ति अभियान’ जैसी-न जाने कितनी हलचलें उन्होंने इसी पर्व से आरम्भ की हैं। हर वर्ष उन्होंने अपने अगले वर्ष का कार्यक्रम इसी दिन बनाया है और प्रत्येक ‘परिजन’ को वैसा करने के लिए कह है।
अखण्ड-ज्योति परिवार’ और युग-निमार्ण परिवार’ के प्रत्येक सदस्य के लिए यह परम-पुनीत प्रेरणा-पर्व है। इसे हर साल उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। इस वर्ष भी उसे भाव-भरो श्रद्धा के साथ, परिपूर्ण उल्लास के साथ मानना चाहिए।
सामूहिक रूप से छोटे-बड़े सम्मेलन विचार-गोष्ठी प्रवचन, संगीत, कविता-सम्मेलन गायत्री-यज्ञ प्रभात-फेरी दीपदान आदि के कार्यक्रम बसन्त-पंचमी को रखे जा सकते हैं। बसंत-पंचमी इसी वर्ष 28 जनवरी, सोमवार की है। जहाँ एक दिन से अधिक के कार्यक्रम सम्भव हों, वहाँ उस तरह की व्यवस्था बनानी चाहिए, और उनके सम्पन्न होते ही प्रकाशनार्थ विवरण-रिपोर्ट भेजनी चाहिए। जहाँ सामूहिक रूप से सम्भव न हो-वहाँ व्यक्तिगत रूप से अपने परिवार के बीच श्रद्धांजलि का घरेलू आयोजन कर लेना चाहिए। नितान्त एकाकी हो-तो भी उस दिन 11 माला गायत्री मन्त्र का विशेष जप, एक समय का उपवास, 48 दीपकों तथा 48 अगरबत्तियों की वेदी पर पुष्पाञ्जलि जैसे निजी आयोजन कर लेने चाहिए। स्वभावतः किसी न किसी रूप में श्रद्धा अभिव्यक्ति किये बिना हम में से कोई भी रहना न चाहेगा। किसे क्या करना है-इसकी रूप-रेखा अभी से अपने मस्तिष्कों में स्थिर रहनी चाहिए और उसकी अभी से तैयारी की जानी चाहिए।
गुरुदेव के शरीर एवं व्यक्तित्व का जितना महत्व है, उससे कही अधिक उनके मिशन, प्रकाशन, प्रतिपादन एवं प्रेरणा का ह। असल में उनका असली स्वरूप इन प्रेरणाओं में ही देखा-समझा जाना चाहिए। कहना न होगा कि वे अभी भी अपनी निजी लेखनी से अखण्ड-ज्योति-को प्यार किये बिना गुरुदेव के प्रति सद्भावना अधूरी और एकांकी ही रह जाती है। अखण्ड-ज्योति पढ़ना-गुरुदेव को पढ़ना है और उसका प्रसार करना-उनके जीवन-प्राण नव-निमार्ण मिशन का पोषण करना है। इस तथ्य को जितनी अच्छी तरह से समझ लिया जाय-उतना ही उत्तम है। बसन्त-पर्व पर श्रद्धांजलि का श्रेष्ठतम माध्यम यह है कि इन दिनों अधिक से अधिक सदस्य ‘पत्रिका’ के बनाये जाएँ। अभी लगभग डेढ़ महीना शेष है, तब तक प्रयास करके हमें अधिक से अधिक सदस्य बनाने में जुट जाना चाहिए। बसन्त-पर्व पर किसकी सदस्य-संवर्द्धन श्रद्धांजलि कितनी बढ़ी-चढ़ी होती है, इसकी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हमें पूरे जोश और उत्साह के साथ चलानी चाहिए।
पत्रिकाएँ उतनी ही छपती हैं, जितने सदस्य हैं। देर से चन्दा भेजने वालों को बीच के महीनों से ही ग्राहक बनाया जाता है, उनकी फाइल अधूरी रह जाती है। इसलिए अपना तथा अन्य सदस्यों का चन्दा यथासम्भव जल्दी ही मनीआर्डर, पोस्टर-आर्डर अथवा बैंक-ड्राफ्ट से भेजने का प्रयत्न करें। ग्राहकों से चंदा वसूल करने के लिए प्रामाणिक परिजनों के पास रसीद-बहियां भेजी जा सकती हैं, जिन्हें आवश्यकता हो मंगा लें। सभी भाषाओं में युग-निमार्ण पत्रिकाएँ गायत्री-तपोभूमि से निकलती हैं। ‘अखण्ड -ज्योति कार्यालय’ घीया मण्डी में हैं। दोनों संस्थानों के हिसाब अलग हैं। इसलिए दोनों के पत्र-व्यवहार एवं पैसा भेजने की व्यवस्था अलग-अलग ही करनी चाहिए।