
असन्तुलन का तूफानी निराकरण
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सर्दी-गर्मी का सन्तुलन जब कभी बिगड़ता है तो उसे सुधारने-संभालने के लिए आँधी-तूफान उठते हैं। सीधी चाल से उल्टी स्थिति को सीधा नहीं किया जा सकता, इसलिए प्रकृति उसे सुधारने के लिए आँधी-तूफान खड़े करती है।
समाज की व्यवस्थितिः और भावना का सन्तुलन जब तक बना रहता है, तब तक जन-जीवन सामान्य रीति से चलता रहता है, पर जब विकृतियाँ स्थिति को गड़बड़ा देती हैं और अवांछनीयता असहनीय हो जाती हैं तो ऐसे आन्दोलन अभियान फूट पड़ते हैं, जिसे सामयिक-क्रान्ति कह सकते हैं।
समय-समय पर यही होता रहा है और यही होता रहेगा। भगवान का, देवदूतों का महामानवों का अंतरण इसीलिए होता है। युग-पुरुष विकृतियों को निरस्त करने के लिए जन्म लेते हैं और अपने साथ आँधी-तूफान लेकर आते हैं। धर्म की ग्लानि, अधर्म का अभ्युत्थान जब असह्य हो जाता है और साधुता का परित्राण, दुष्कृत्यों का विनाश करने के बिना और कोई रास्ता शेष नहीं रह जाता तो फिर युग-परिवर्तन जैसे तूफान अभियान खड़े होते हैं।
आँधी और तूफान जब आते हैं तो जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर देते हैं और धन-जन की भारी क्षति करके रख देते हैं। वे किसी के रोके रुकते भी नहीं। साइक्लोन, टाइफाने, हरीकेन स्तर के आँधी-तूफानों को इतिहास ऐसी विडंबनाओं से भरा हुआ है, जिसे देखने से ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे मनुष्य के भयंकर तम शत्रुओं में गिन जाने योग्य हैं।
साइक्लोन वर्ग के अन्धड़ के साथ तेज वर्षा भी होती है। इसकी ध्वंसात्मक शक्ति अत्यन्त तीव्र रहती है। जब साइक्लोन की गति 75 मील प्रति घण्टा से ऊपर चली जाती है, तब उसे झंझावात या हरीकेन कहते हैं। इनकी औसत क्षमता दस हजार करोड़ अश्व-शक्ति जितनी मानी जाती है। जब गति ओर भी आगे बढ़कर 200 मील प्रति घण्टा हो जाती है तो उसे ‘बवंडर’ या ‘टोर्नाडो’ कहते हैं। इस स्थिति में समुद्र और बादल परस्पर मिले हुए दिखाई देते हैं। रेगिस्तानी क्षेत्र में इसी आधार पर बालुका-स्तम्भों की सृष्टि होती है।
वायु-विशेषज्ञ सरफ्राँसिस वोफार्ट ने वायु के विभिन्न स्वरूपों और स्तरों के अनुरूप उसे 12 भागों में विभाजित किया है। उनके अनुसार प्रथम वर्ग की शुद्ध हवा काम-एयर प्रति घण्टा एक मील की चाल से चलती है दूसरी हल्की हवा लाइट-एयर की गति एक से तीन मील की गति से चलती है। लाइट बीज की चाल चार से सात मील होती है। इसका स्पर्श त्वचा पर अनुभव होता है और पेड़ों के पत्ते हिलते हैं। जेन्टल ब्रीज की चाल तेरह से अठारह मील होती है, यह धूलि उड़ाने की क्षमता रखती है। फ्रेश-ब्रीज छोटे पेड़ों को हिला डालती है, पानी में हिलोरें उठती हैं, भंवर पड़ते हैं। यह 19 से 24 मील की चाल से चलती है। 75 मील की चाल से आगे वाले बवंडर या तूफान जो भी कर गुजरे वह कम है।
गर्मी और सर्दी का असन्तुलन हवा का घनत्व और चाप घटाता बढ़ाता है। जलीय-वाष्प हवा से हल्का होने के कारण वायु के सन्तुलन में गड़बड़ी उत्पन्न करता है। फलस्वरूप विभिन्न स्तर के आँधी-तूफान उठ खड़े हुए हैं।
जिस क्षेत्र में सन्तुलन बिगड़ेगा उसी में आँधी उठेगी। जहाँ जितना अवरोध खड़ा होगा, वहाँ उसी अनुपात से तूफान उठेगा। सामान्य सुधार क्रम जब कारगर नहीं होते। तब ढीठता और उच्छृंखलता का बढ़ता हुआ उपद्रव उसी स्तर के क्रान्ति-अभियानों से दबता है, इस तथ्य को आँधियाँ आये दिन हमें बताती-जताती रहती हैं।