Magazine - Year 1973 - Version 2
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Language: HINDI
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विवेकयुक्त दूरदर्शी बुद्धिमत्ता ही श्रेयस्कर है।
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बुद्धि का अनुदान हमें इसलिए मिला है कि उस कसौटी पर खरे खोटे की परख करते रहें और जो उचित एवं उपयोगी है उसी को स्वीकार-अंगीकार करें। मन का काम इच्छा करना है। यह इच्छाएँ समीपवर्ती व्यक्तियों, घटनाओं एवं परिस्थितियों के आधार पर उत्पन्न होती है। आस-पास के सुखी समृद्ध लोग जो करते हैं उसी को करने दुहराने से अपने को भी वैसा ही बड़ा बनने की बात सूझती है। अनुकरण संसार का सबसे सरल कार्य है। तोता, मैना भी उच्चरित शब्दों को दुहराना सीख जाते हैं। बन्दर तक मदार की बताई नकल उतारने लगता है। और अनगढ़ मन बड़े कहलाने वालों की नकल उतारता है और दूसरों ने जिस भी सरल तरीके से सफलता पाई हो उसी के लिए ललचाता है। मनमर्जी पर चलने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि जो सोचा जा रहा है उसमें किंचित् लाभ के अतिरिक्त कहीं कोई भयानक हानि तो छिपी नहीं पड़ी है।
बुद्धि का काम है कि वह उन आवरणों को उठाकर दूरगामी परिणामों को देखें और यह निर्णय करे कि हमारे लिए आत्यन्तिक लाभ का मार्ग कौन सा है। कि जो आकर्षक होता है वह हितकर नहीं होता और जो हितकर होता है उसमें आकर्षण नहीं रहता। कभी-कभी हितकर और आकर्षक का समन्वय भी होता है, पर वह होता कम ही है।
मन की माँग है कि अधिक सरल के साथ अधिक सुविधा पाने की राह अपनाई जाय और इसमें यदि अनौचित्य अपनाना पड़ता हो तो उससे झिझकना नहीं चाहिए। मन की आतुरता तत्काल बढ़ी-चढ़ी सुविधा सफलता प्राप्त करने में रहती है, पर यह सम्भव है नहीं हर महत्त्वपूर्ण प्रयोजन समयसाध्य और श्रमसाध्य है। उसके लिए उपयुक्त साधन जुटाने के लिए उपयुक्त प्रयत्न अनवरत तत्परता पूर्वक करना पड़ता है। अधीर मन का बचपन इसके लिए सहमत नहीं होता फलतः वह रोज नये घर-घरौंदे बनाता बिगाड़ता रहता है। कितने महत्त्वाकाँक्षी व्यक्ति अपनी इसी बाल चंचलता के कारण अनेकों श्रेयस्कर प्रयासों को अपनाने के साथ ही दफनाने का भी उपक्रम करते रहते हैं और अन्ततः विविध प्रयासों के असफल होने की सूची देखते दिखाते दुर्भाग्य का रोना रोते रहते हैं।
हमें चंचल मन की बचकानी-बाल प्रवृत्ति नहीं अपनानी चाहिए। अनगढ़ मन का नेतृत्व स्वीकार नहीं करना चाहिए वरन् दूरदर्शी सद्बुद्धि का आश्रय लेना चाहिए और अपने चिन्तन को व्यवस्थित बनाने के लिए विवेकशीलता अपनानी चाहिए। दूसरे लोग अनीति मूलक गति विधियाँ अपनाकर भी क्षणिक सफलताएँ प्राप्त कर लेते हैं पर अन्त में उस कुमार्गगामिता का दुष्परिणाम भी कम नहीं भोगते । किसी भी बुद्धिमान और दूरदर्शी व्यक्ति को यह राह नहीं अपनानी चाहिए।
जीवन के बहुमूल्य क्षण इसलिए नहीं है कि दुष्प्रवृत्ति के दुष्परिणामों को अनुभव करने के उपरान्त जानें। उन्हें विवेक बुद्धि के आधार पर ही जान समझ लेना चाहिए और ऐसी रीति-नीति अपनाने का निर्णय करना चाहिए जिससे इस सुरदुर्लभ जीवन सम्पदा का श्रेष्ठतम सदुपयोग हो सके। भौतिक सम्पदाओं की तुलना में सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों की विभूतियों को जो श्रेष्ठ ठहरा सके और उन्हीं के उपार्जन की प्रेरणा दे सकें वही सद्बुद्धि सराहनीय है। जिस विवेक के आधार पर आतुरता पर नियन्त्रण रखा जा सके और महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए धैर्य और साहस के साथ अनवरत श्रम करने का उत्साह उत्पन्न हो सकें वही वन्दनीय है। सत् को ही स्वीकार करने वाले विवेक के साथ जुड़ी हुई सद्बुद्धि का आश्रय लेकर ही सच्चे अर्थों में सफल जीवन जिया जा सकता है।