Magazine - Year 1973 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
हीरा बनें या कोयला यह अपनी मर्जी की बात है।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक ही पदार्थ विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार का बन जाता है। मूल तत्त्व में विशेष अन्तर न होने पर भी परिस्थितियों ऐसा कुछ कर देती हैं जिससे उसके स्वरूप, गुण एवं मूल्य में जमीन आसमान जितना अन्तर उत्पन्न हो जाय।
कार्बन को ही लें। वही अमुक तापमान पर हीरा बन जाता है और बहुमूल्य होता है। पर यदि वैसी परि-स्थितियाँ न मिलें तो सामान्य स्तर में ही बना पड़ा रहने के कारण उसकी उपयोगिता जलाऊ कोयले के रूप में नगण्य ही रह जाती है। काजल भी उसी का एक रूप है। इसे थोड़ा अच्छी स्थिति में रहना पड़े तो हीरे जैसा उपयोगी न सही, कोयले की अपेक्षा कहीं अधिक उपयोगी और मूल्यवान बन जाता है।
हीरा कार्बन का सर्वोत्तम शुद्ध रूप है। ग्रेनाइट उसका निखरा रूप है। फिर कोयला इसके बाद काजल, कोयले भी कई तरह के होते हैं। लकड़ी के मुलायम कोयले जो चौका चूल्हे को हलकी फुलकी आवश्यकता पूरी करते हैं। पत्थर के कोयले जो कलकारखाने और भट्ठियों के काम आते हैं। हड्डी का कोयला जो गन्ने के रस का मैल साफ करने जैसे रासायनिक काम में आते हैं।
ग्रेनाइट कार्बन का दूसरा स्फटिकीय स्वरूप है। यह नरम हल्का, रबादार और चमकीला होता है। सीलोन, कनाडा, साइबेरिया आदि देशों में यह पाया जाता है। सीसे की पेन्सिल बनाने, चिकनी मिट्टी की प्याली बनाने, मशीनों को चिकना करने में इसका प्रयोग किया जाता है। बिजली के कुछ उपकरणों में भी यह काम में आता है।
कोयलें की चर्चा ऊपर की जा चुकी है। काजल उन पदार्थों को जलाने से बनता है जिनमें कार्बन की अधिकता होती है। तारपीन का तेल, पिच, पेट्रोलियम, कपूर तेल, लकड़ी कोयला आदि जलाने से काजल बनता है और उसका उपयोग काले रंग के रूप में विविध संमिश्रणं के साथ किया जाता है।
सभी मनुष्य यों एक ही स्तर के है। उनकी शरीर संरचना एक ही प्रकार की है चमड़ी के रंग एवं आकृति में जलवायु के भेद से अन्तर पड़ता है पर प्रकृति का निर्धारण एक ही स्तर का हुआ है। इतने पर भी उनके गुण कर्म स्वभाव में जमीन आसमान जितना अन्तर पाया जाता है। कोई कीट पतंगों जैसा तुच्छ, और पशुओं जैसा पिछड़ा जीवन जीते हैं और कितनों की गरिमा इतनी बढ़ी-चढ़ी होती है कि अपने प्रभाव से वातावरण में भारी हेर फेर परिवर्तन कर सके। सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों में अपने ही समान स्थिति में घसीट ले जाने की क्षमता कितनों में ही होती है, वे स्वयं ही नहीं गिरते उठते वरन् अपने साथियों को भी अपनी ही तरह गिराते उठाते हैं।
मनुष्य मनुष्य के बीच पाया जाने वाला यह अन्तर न तो अकस्मात् होता है, न जन्मजात ही है और न उसमें भाग्य, भगवान का कोई हस्तक्षेप है। परिस्थितियों मनुष्य को बनाती बिगाड़ती हैं-गिराती उठाती है। उन परि-स्थितियों का सृजन हर व्यक्ति अपनी उत्कंठा आकांक्षा और रीति नीति के आधार पर कर सकता है। करता है।
हम चाहें तो यथास्थिति स्वीकार करके कार्बन के उपेक्षणीय स्तर पर पड़े रहे। कोयला बनकर जलते रहें अथवा काजल की तरह अपनी कालिमा से दूसरों को भी काला बनायें। प्रगतिशील मनुष्य ग्रेनाइट की तरह अपने कर्म कौशल का परिचय देते हैं और उन्नति की उपलब्धियों से स्वयं लाभान्वित होते हैं दूसरों के काम आते हैं। सबसे श्रेष्ठ वे हैं जिन्होंने ऊँचा तापमान स्वीकार किया-तप साधना से अपने को हीरे की तरह बहुमूल्य बनाया जहाँ रहे वहाँ का यश गौरव बढ़ाया। अपनी पसंदगी की ऐसी ही कोई स्थिति लोग जान अनजान में स्वयं ही चुनते हैं। तद्नुरूप वैसे ही उठते गिरते हैं।