Magazine - Year 1973 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
श्री पुरुषोत्तमदास टण्डन (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
हिन्दी भाषा के प्रसार से सम्बन्धित एक मुद्दे पर श्री गाँधी जी और श्री पुरुषोत्तमदास टण्डन मतभेद हो गया। गाँधी जी कहते थे-हिन्दी वह भाषा है जो देवनागरी और फारसी दोनों लिपियों में लिखी जाती है” टण्डन जी इस पक्ष में थे कि- “हिन्दी वह भाषा है जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है “ देवनागरी के पक्ष में तमाम महाराष्ट्र ने गाँधी जी का तीव्र विरोध किया। फलस्वरूप पहले वाली परिभाषा रद्द कर दी गई और दूसरी परिभाषा ही प्रस्ताव में पारित हो गई।
इस बात को लेकर गाँधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन से इस्तीफा दे दिया और उसके स्थान पर “ हिन्दुस्तानी प्रचार सभा “ की स्थापना कर उसमें उन्हीं आदमियों को सदस्य बनाया जो हिन्दी के साथ उर्दू के भी पक्षपाती थे। प्रसार कार्य के लिए गाँधीजी के प्रभाव के कारण एक बैठक में आये एक को छोड़कर बाकी सभी सदस्यों ने गाँधीजी को अपना समर्थन देना स्वीकार कर लिया। किन्तु टण्डन जी की अनुपस्थिति के कारण गाँधी जी को इतना व्यापक समर्थन भी सन्तुष्ट नहीं कर सका।
गाँधी जी ने टण्डन जी को पत्र लिखकर अपनी व्यथा प्रकट की ओर उनसे आगामी बैठक में उपस्थिति होने का आग्रह किया। उनका यह विशेष पत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के मन्त्री श्रीनाथ सिंह टण्डन जी के पास पहुँचें, उन्हें आशा थी कि टण्डन जी बापू का आग्रह ठुकरायेंगे नहीं टण्डन जी ने पत्र ध्यान से साथ पढ़ा, गाँधीजी के प्रति उन्होंने हार्दिक श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा-आप गाँधीजी से कह देना कि उन्हें आवश्यकता पड़े तो अपना शरीर काटकर एक सेर माँस उन्हें दे सकता हूँ किन्तु अपनी आत्मा का हनन करना मेरे लिये सम्भव नहीं है और वे हिंदुस्तानी प्रचार सभा में गये ही नहीं गाँधीजी ने यह सुना तो उनके मुख से यही निकला कि मैं बहुमत की उपेक्षा कर सकता हूँ किन्तु यदि किसी का हृदय परिवर्तन नहीं कर सकता तो वह कार्य मेरे लिये असम्भव हैं, यह कहकर उन्होंने हिन्दुस्तानी प्रचार सभा से भी सम्बन्ध तोड़ लिया।