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Magazine - Year 1973 - Version 2

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गेहूँ का सदुपयोग-रोग और दुर्बलता विनाशक

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दैनिक जीवन में सीधे साधे ढंग से काम आने वाली वस्तुओं का महत्त्व हम भूल जाते हैं और कभी-कभी मिलने वाली, अजनबी तथा महँगी वस्तुओं को नियमित समझ कर अपनाने के लिए दौड़ते हैं।

गेहूँ को ही लीजिये वह रोज खाये जाने वाला अभ्यस्त अत्र है। पर उसका महत्त्व भी हम कहाँ समझते हैं और कहाँ उसका सदुपयोग करते है? गेहूँ का छिलका जिसे भूसी या चोकर कहा जाता है आमतौर से उसे छानकर फेंक देते हैं। और यह भूल जाते हैं कि उनमें बहुमूल्य जीवन तत्त्व विटामिन और खनिज-मिनिरल भरे होते हैं। एक आदमी के आटे में जितना चोकर निकलता है उतने में बाज़ार से खरीदे जाने वाले एक रुपया मूल्य से अधिक के विटामिन और मिनिरल होते हैं। यदि चोकर समेत रोटी खाई जाय तो पौष्टिक तत्त्व खरीदने के लिए औषधि विक्रेताओं का दरवाजा खटखटाने और रंग-बिरंगी शीशिया खरीदने में जेब खाली न करनी पड़े

एक दिन रात पानी में भिगोकर यदि गेहूँ खाया जाय तो उसमें सूखे गेहूँ की अपेक्षा तीन गुने अधिक पोषक तत्त्व बढ़ जाते हैं। गेहूँ की महत्ता के सम्बन्ध में कुछ दिन पूर्व डॉ० एन॰ विरामोर ने पुस्तक लिखी हैं। नाम है-Why Suffer? Answar what grass manna मूल्य तीस रुपया है। उसे निसर्गोपचार आश्रम, उसली कंचन (पूना) से प्राप्त किया जा सकता है।

इस पुस्तक में लेखिका ने गेहूँ की नव अंकुरित घास के रस में की अत्यधिक प्रशंसा का है और लिखा है-संसार में कोई रोग ऐसा नहीं जिसे इस घास के उपयोग से अच्छा न किया जा सकता हो। उन्होंने इसे बुढ़ापा दूर करने वाली महत्त्वपूर्ण पुष्टाई भी बताया है और उन अनुसंधानों का विवरण दिया है जिनमें कठिन रोगों पर इस रस के उपयोग से विजय प्राप्त की गई। वे इसे ‘हरे रक्त’ की उपमा देती है और कहती है यह रस मानव रक्त से 40 प्रतिशत मेल खाता है।

इस रस को बनाने की विधि इस प्रकार है-एक दर्जन मिट्टी के गमले या ऐसे ही कोई चौड़े बर्तन ले लीजिये। उनमें खाद और मिट्टी भर दीजिए। इनमें अच्छे किस्म का गेहूँ बो दीजिए। थोड़ा पानी डालिये और छाया में किसी बरामदे में इन गमलों को रख दीजिए। तीन-चार दिन में अंकुर उग आयेंगे और आठ-दस दिन में वे सात-आठ इंच बढ़ जायेंगे।

इनमें से 30-40 पौधे पहले दिन जड़ सहित उखाड़ लें। जड़ को काट कर फेंक दीजिए। बाकी घास को धोकर सिल पर थोड़े पानी के साथ पीस लीजिए। इससे लगभग आधे गिलास ठण्डाई जैसा रस बन जाएगा इसे छानकर पिया जाय। सुबह शाम दोनों समय यह रस पीना चाहिए। यह हर मर्ज की औषधि का काम देगा और पोषण में किसी कीमती फल के रस से कम उपयोगी सिद्ध न होगा। रस न निकालना हो तो उस घास के छोटे टुकड़े काटकर सलाद की तरह अथवा साग-सब्जी में मिलाकर खाये जा सकते हैं।

इस घास को सात-आठ इंच से बड़ा नहीं होने देना चाहिए। बड़े होने पर उनकी उपयोगिता घट जाती है। एक दर्जन गमलों की जरूरत इसीलिए पड़ती है कि जिस गमले से घास उखाड़ी गई है उसमें उसी दिन नया गेहूँ बो दिया जाय। इस प्रकार इन अंकुरों का ऐसा फेर बना रहे कि वे नियमित रह सकते हैं। रस ज्यादा देर नहीं रखा रहना चाहिए। धारोष्ण दूध की तरह उसकी उपयोगिता तुरन्त पीस छानकर पीने में ही है। दो घण्टा भी रखा रहने दिया जाय तो उसकी उपयोगिता नष्ट हो जाएगी हाँ, घास इतनी जल्दी खराब नहीं होती वह एक दो दिन रखी रहने भी दी जा सकती है।

दूसरा लाभप्रद प्रयोग यह लिखा है-आधा कप गेहूँ धोकर किसी साफ बर्तन में दो कप पानी में भिगो दीजिए इसे बारह घण्टे बाद निकालिये और छानकर सुबह शाम दो बार पीजिए। गेहूँ का दलिया बना कर खायें।

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