
सौ हाथों से कमाकर हजार हाथों से बाँटना ही तो जीवन है (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
समुद्र तट पर हवाखोरी करते हुए पर्यटक को प्यास लगी। क्षितिज को अपने अंक में समेटती उत्तुंग लहरों की ओर उसकी दृष्टि गई तो बड़ा सन्तोष हुआ। सोचा निकट ही तो अपार जलराशि है इससे तो असंख्य व्यक्तियों की पिपासा शान्त हो सकती है। उसके पग जलराशि की ओर बढ़ने लगे।
पानी से भरी अंजलि मुख तक पहुँची ही थी कि दूसरे क्षण ही सारा पानी मुख से बाहर आ गया। थू थू करता हुआ वह दो कदम पीछे हट गया। उसने अपनी लम्बी दृष्टि उदधि के वक्षस्थल पर बिखेरते हुए कहा−’कैसी विडम्बना है? सागर तट पर पर्यटक प्यासा का प्यासा ही रह गया। ऐसी विशालता भी किस काम की जो साधारण से व्यक्ति को एक अंजुलि जल भी न दे सके। इससे तो क्षेत्रीय नदियाँ कहीं श्रेष्ठ हैं जो क्षुद्रता के नाम पर कलंकित की जाती हैं। क्षुद्र होकर भी सरिता का जल मीठा है और विराट होकर भी इस उदधि का जल खारा।
पर्यटक का स्वर वातावरण में फैल गया। तभी पीछे से किसी ने कहा—’सागर तो केवल लेना जानता है। वह अपनी विशालता के मद में ही सदैव चूर रहता है। नदियाँ पर्वतराज से इस हाथ लेती हैं तो उस हाथ सदैव देने को तैयार भी रहती हैं। सौ हाथों से कमाकर हजार हाथों से बाँटना ही तो जीवन है। समुद्र इस तथ्य को जानकर भी अनजान है। उसने कितनी ही सरिताओं के विरह अश्रुओं को पीकर अपनी प्यास बुझाई है इसीलिये उसका जल ही नहीं जीवन तक खारा हो गया है।