
जीवन जड़ तत्वों का उत्पादन नहीं है।
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जड़ में जीवन पाया जाता है यह ठीक है। यह भी ठीक है कि जीवन सत्ता द्वारा पड़ का संचालन होता है। किन्तु यह मान्यता सही नहीं कि जड़ से जीव की उत्पत्ति होती है जीवन जड़ता की एक स्फुरणा मात्र है। अधिक से अधिक यह कह सकते हैं कि जीवन की स्फुरणा से जड़ तत्वों में हलचल उत्पन्न होती है और वह अचेतन होने के बावजूद चेतन दिखाई पड़ता है। मूल सत्ता जड़ की नहीं चेतना की है। चेतना से जड़ का संचालन परिवर्तन परिष्कार हो सकता है किन्तु जड़ में न तो जीवन उत्पन्न करने की शक्ति है और न उसे उत्पन्न प्रभावित करने में समर्थ है। चेतन जड़ का उपयोग उपभोग कर सकता है। यही ब्रह्म विद्या की मान्यता परख की कसौटी पर खरी उतरती है।
यह सिद्धान्त एक प्रकार से अकाट्य ही है कि जीवन से जीवन की उत्पत्ति है। निर्जीव से जीव नहीं बनता है। कृत्रिम जीवन उत्पन्न करने के लिए पिछले दिनों जो सफलता पाई गई है उसकी व्याख्या अधिक से अधिक यही हो सकती है कि विकसित जीवन स्तर को विकसित जीवन में परिष्कृत किया गया। अभी ऐसा सम्भव नहीं हो सका कि निर्जीव तत्व को जीवित स्तर का बनाया जा सके। संभवतः ऐसा कभी भी न हो सकेगा।
जीवन अविनाशी है। वह सृष्टि के आरम्भ में पैदा हुआ और अन्त तक बना रहेगा। स्थिति के अनुसार परिवर्तन होना स्वाभाविक है। क्योंकि इस जगत का प्रत्येक अणु परिवर्तित होता है हलचलों के कारण ही यहाँ तरह तरह की जन्मने बढ़ने और मरे की गतिविधियाँ दृश्यमान होती है। हलचल रुक जाय तो उसकी विकल्प प्रलय जड़ नीरवता ही हो सकती है। जीवन भी हलचलों से प्रभावित होता है और वह जन्मता बढ़ता और मरता दीखता है। स्थूल काया की तरह सूक्ष्म कोशिकाएँ भी जन्मती बढ़ती और मरती है फिर भी उनके भीतर का मूल प्रवाह यथावत बना रहता है। एक से दूसरे स्थान में एक से दूसरे रूप में स्थानान्तरण होता दीखता है। यह हलचलों का केन्द्र है। इसी में सृष्टि की शोभा विशेषता है। इतना सब होते हुए भी जीवन की मूल सत्ता यथावत अक्षुण्ण बनी रहती है। उसका बहिरंग की बदलता है। अन्त रंग की मूल प्रकृति की अविनाशी सत्ता ही कहा जा सकता है। उसके अस्तित्व को कोई चुनौती नहीं दे सकता भी नहीं।
अति आदिम अवस्था में एक कोषीय प्राणी द्विखण्डित होकर दो कोषों अर्थात् दो जीवों में विखण्ड हो जाता है। इन जीवों की न कोई माता होती है न पिता। क्योंकि एक कोष के दो में बंट जाने से प्रथम कोष का अस्तित्व ही नहीं रह जाता। फिर इन नवीन कोषों का भी विखण्ड होता है। इस प्रकार अतीत काल से लेकर अद्यावधि जीवनी शक्ति का अखण्ड स्रोत प्रवाहित होता आया है और वह जीव सत्ता अविनाशी बनी हुई है।
एक कोष का विखण्डन होने पर जिस नवीन जी की उत्पत्ति होती है। उसमें कोई नवीनता नहीं होती प्रथम कोष की ही तरह वे नये कोश भी होते हैं। किन्तु मैथुन द्वारा उत्पन्न प्राणियों में दो जीवों की सम्मिश्रित विशेषता कोषों को दो भागों में बाँटा जा सकता है। (1) देहकोष साइटोप्लाज्म (2) बीजकोष जर्म प्लाज्म पर नारी के बीजकोषों के संयोग से भ्रूणकोष उत्पन्न होते हैं। इसी एक भ्रूणकोष से सहस्रों कोष उत्पन्न होते हैं। इसमें कुछ बीजकोष होते हैं कुछ जीवकोष।
वैज्ञानिक बाइजमैन के अनुसार देहकोषों में तो परिवर्तन होते रहते हैं पर बीजकोषों में परिवर्तन नहीं होता बीजकोष से देहकोष की उत्पत्ति होती है देहकोष लिए यह सम्भव नहीं कि वह बीजकोष उत्पन्न कर सके बीजकोषों के द्वारा नित्य नूतन परिपूर्ण देह बनती रहती है। वह प्रवाह सन्तानों में चला जाता है। सब प्रकार जीवन अजर अमर बना रहता है। जीव विज्ञानी वाल्टर ने अपने वंशानुक्रम ग्रन्थ में आत्मा की अमरता के सिद्धान्त को लगभग इसी स्तर पर प्रतिपादित किया है जिस प्रकार कि भारतीय अध्यात्म की मान्यता रही है।
मानव में जड़ पदार्थों का जितना अंश है उसका मूल्याँकन उपहासास्पद है। वह तुच्छ और नगण्य है। कायिक विश्लेषण से जो कुछ सामने आता है उसका कोई मूल्य नहीं। हमारी देह में 65 प्रतिशत पानी 16 प्रतिशत प्रोटीन 14 प्रतिशत चर्बी 5 प्रतिशत खनिज और 10 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होता है। माँस शरीर में 42 प्रतिशत है। उसमें तीन चौथाई पानी और एक चौथाई प्रोटीन जैसे दूसरे पदार्थ है। इन सबका आर्थिक या रासायनिक मूल्यांकन किया जाय तो वह दस रुपये से भी कम बैठेगा।
अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य की शारीरिक शक्ति स्वरूप है। शक्ति के हिसाब से एक औसत घोड़ा औसत मनुष्य की तुलना में 22 गुना अधिक शक्तिशाली होता है। दीर्घजीवन की दृष्टि से भी वह कितने ही जीवों से बहुत पीछे है। संसार में सबसे दीर्घजीवी मनुष्य जिगली सिस्लिमाव नामक रूप के अजरवेजान गांव में रहता है। संसार में सबसे लम्बा मनुष्य जीककर्ल है। जिसकी ऊँचाई 9 फुट 7 इंच है। सबसे भरी डैनियल लैम्बर्ट है जिसका भार 760 पौंड है। यह सब आंकड़े आश्चर्यजनक है। पर इससे क्या अकेली ह्वेल मछली ही हाथी से पाँच गुनी बड़ी और भारी होती है। ह्वेल साधारणतया 8200 पौंड की होती है।
जीवों में मनुष्य अद्भुत है। उसकी अन्तःचेतना में ऐसी विशेषताएँ पाई जाती है जो जीव विज्ञान की सामान्य मर्यादाओं और मान्यताओं का विलक्षण ढंग से अतिक्रमण करती है। ऐसा अन्य प्राणियों में नहीं होता वे एक सीमा तक ही अपने वंश के निर्धारित स्तर का उल्लंघन करते हैं पर मनुष्य की विशेषताएँ जब उभरती है तो सारे नियम कानून तोड़कर रख देती है और ऐसे अद्भुत प्रमाण उत्पन्न करती है कि जीव विज्ञानी दांतों तले उंगली दबाये रह जाते हैं और उसे सृष्टि का अद्भुत एवं अनुपम रचना कह कर अपना समाधान करते हैं।
चार्ल्स स्टिन मेज जब 16 वर्ष का था तभी उनका वजन 585 पौण्ड था। उसके भार में असाधारण रूप से वृद्धि होती चली गई। 28 वर्ष का होने तक उसका वजन 740 पौण्ड हो गया। उसकी खुराक आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती जाती थी। मरने से पूर्व तो वजन की वृद्धि और भूख में अद्भुत उभार किया गया। वह कहता था यह खाऊ पन और वजन बढ़ना ही मेरी मौत का कारण बनेंगे। सचमुच ऐसा ही हुआ था केवल 15 दिन में उसका भार 70 पौण्ड बढ़ गया और उतना खाया कि खिलाने वाले चकित रह गये। यह अति वृद्धि ही दो सप्ताह में ही उसे मौत के मुँह में घसीट ले गई।
अमेरिका के मान्टेऐलो में जन्मा एक बालक राबर्ट अर्ल ह्यूजेस अपने जन्म समय में ही 11 पौण्ड का था। वह 32 वर्ष का होकर सन 1958 में मरा तब तक उसका वजन 1041 पौण्ड हो गया था। उसी देश में फ्लोरा नामक एक नीग्रो महिला मृत्यु के समय तक 840 पौण्ड की हो चुकी थी। संसार की सबसे पतली और हलकी महिला मैक्सिको की लूसिया जेरट है जो 20 वर्ष की उम्र में 13 पौण्ड की थी।
संसार में लम्बे व्यक्तियों में इलनोइस प्रान्त के एल्टन नामक स्थान में जन्मे राबर्ट पशिंग वैदली थे। वे 1940 में 22 वर्ष की उम्र में मरे तब तक उनकी लम्बाई 8 फुट 10 इंच पहुँच चुकी थी वजन 491 पौण्ड । इससे पूर्व फिनलैंड का कैथानूस नामक व्यक्ति लम्बाई का कीर्तिमान स्थापित कर चुका था। वह 9 फुट 4 इंच का था। उसकी हड्डियां अभी भी लन्दन म्यूजियम नीदरलैण्ड में सुरक्षित हैं।
यह तो वृद्धि कील बात हुई अब छोटे और हलके रह जाने की बात लीजिए। 26 फरवरी 1846 में जन्मी राजकुमारी पोलिन कद में दृष्टि से बहुत छोटी थी वह 9 वर्ष की होकर मरी तब तक केवल 24 इंच ऊँची हो पाई थी। इटली की कैरोलिन क्राचमी भी 9 वर्ष की उम्र तक 20 इंच ऊँची ही हो पाई थी आस्ट्रिया की राजकुमारी कोली वारी 25 वर्ष की आयु में मरी। तब तक वह 27 इंच बढ़ पाई थी वजन 5 किलोग्राम थी।
जातियों में की दृष्टि से अफ्रीका के रुआण्डा वुरुण्डी के कुछ कबीलों की लम्बाई 6 से 7 फुट तक ही होती है इसके विपरीत अण्डमान निकोबार के आदिवासी 4 फुट से ऊँचे नहीं उठते काँगो के बौने लोग तो इससे भी छोटे 3-4 फुट तक ही पाये जाते हैं।
कुछ दिन पूर्व समाचार पत्रों में भारत की एक अद्भुत महिला समाचार छपा थे बनारस के गंगाघाट पर बस्तर जिले की एक आदिवासी महिला भिक्षावृत्ति करके अपना गुजारा करती थी। उसकी उम्र 22 वर्ष की थी, पर इतना ही आयु में उसकी लम्बाई 9 फुट 1 इंच पहुँच गई। लम्बाई के साथ साथ उसकी खुराक भी बढ़ी वह ढाई किलो चावलों के बना भात खा लेने पर ही क्षुधा तृप्त कर पाती थी उसके गरीब पति के लाए इतना आहार जुटा सकना सम्भव न रहा तो वह बनारस गंगा किनारे उसे छोड़ गया ताकि किसी प्रकार अपना पेट पालन कर सके।
मनुष्य पशु वर्ग का प्राणी माना जाता है पर मस्तिष्क की दृष्टि से उसने सबको पीछे छोड़ दिया है। हाथी का मस्तिष्क उसे शरीर का 600 वाँ भाग की होता है। पर मनुष्य के दिमाग का भार उसके शरीर का 60 वाँ भाग है। इतना भारी विस्तृत और विकसित मस्तिष्क अन्य किसी जीव का नहीं होता।
उसकी मस्तिष्कीय संरचना विलक्षण है। उसकी सूक्ष्मता इतनी बारीकी और इतनी संवेदनशीलता अन्य किसी प्राणी में नहीं पाई जाती। मस्तिष्क विद्या के ज्ञाता उसमें फीलिंग, कान्सनैस, परशेप्शन, आइडिया, जेनरलाइ जेशन, इरिटेविलिटी आदि क्षमताएँ इतनी अधिक विकसित देखते हैं जितनी कि किसी प्राणी में नहीं पाई जाती। ये शरीर विश्लेषण की दृष्टि से इस मस्तिष्क संस्थान को नर्व फाइवर्स और नर्वसैल का मज्जा घटक मात्र कह सकते हैं रासायनिक दृष्टि से उसे माँस पिण्ड भर कहा जा सकता है। पर चेतनात्मक दृष्टि से उसकी संवेदनशीलता और सूक्ष्मता ऐसी है जिसे प्राणि जगत के अन्य किसी के साथ नहीं तोला जा सकता।