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Magazine - Year 1975 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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लम्बे समय तक जवान रहा जा सकता है

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किस प्राणी की कितनी आयु होनी चाहिए ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि शरीर विकास में जितना समय लगता है उससे छह गुने समय तक उसे जीना चाहिए। अमेरिका मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डा0 एडवर्ड एल॰ बोर्त्ज ने इसकी पुष्टि में अनेक प्राणियों की आयु का प्रमाण सहित उल्लेख दिया है। वे कहते हैं कि मनुष्य 25 वर्ष की आयु में अपना पूर्ण विकास कर लेता है अस्तु उसे 150 वर्ष जीना चाहिए।

लेकिन ऐसा होता क्यों नहीं ? इसके कुछ कारण इस प्रकार गिनाये जा सकते हैं। थका मोटा हृदय शरीर में उतना रक्त नहीं फेंक पाता जितना कि उसे तरोताजा बनाये रखने के लिए आवश्यक है। 50 की आयु तक पहुँचता है, पसलियाँ और छाती की हड्डियां कड़ी हो जाती हैं अस्तु लचीलापन घट जाने से फेफड़ों से उतनी साँस नहीं ली जाती जितनी कि आवश्यक हैं आयु वृद्धि के साथ-साथ गुर्दों की क्षमता ढलती उम्र में आधी रह जाती है। नसों और नाड़ियों के कम्पन 20 प्रतिशत घट जाते हैं। इस सबका निष्कर्ष यह है-आदमी साठ वर्ष तक पहुँचते-पहुँचते सूखना आरम्भ कर देता है। उसमें पानी की मात्रा घट जाती है फलस्वरूप जीवित कोशाणुओं में मुरझायापन बढ़ता जाता है। कैल्शियम की कमी से हड्डियां कठोर और कमजोर होती चली जाती है। यह सूखापन ही बुढ़ापा है। बुढ़ापा मृत्यु का सहोदर भाई है। बुढ़ापे के चिन्ह जितने ज्यादा स्पष्ट हों तो आदमी मौत के नजदीक उसी तेजी से बढ़ता चला जायगा।

बुढ़ापे में मस्तिष्क की कोशाएँ भी अकड़ जाती हैं और स्मरण शक्ति, निर्णय शक्ति और आत्म-नियन्त्रण शक्ति तीनों ही घट जाती है। सीखने की क्षमता चली जाती है और जो कुछ सीखा जाता है उसी का दुराग्रह स्वभाव का अंग बन जाता है। कृपणता, चिड़चिड़ापन, सन्देह स्वादेन्द्रिय और कामुकता सम्बन्धी विकृत भटकाव बुढ़ापे में अधिक उभरते हैं। युवावस्था में इन पर काबू पाना सरल हैं, पर बूढ़ा आदमी अपने को कदाचित ही सँभाल सुधार पाता है।

डा0 सी0 वार्ड क्रेम्पटन का कथन है बुढ़ापा कैलेंडर के आधार पर नहीं ‘क्षति’ के आधार पर आता है। रक्त की विषाक्तता-कोशाओं की कठोरता, मानसिक तनाव और भोजन का ठीक तरह हजम न होना यह चार कारण है जो मृत्यु को स्वाभाविक समय की अपेक्षा कहीं जल्दी बुलाकर सामने खड़ी कर देते हैं। क्रेम्पटन का कथन है बुढ़ापा यकायक नहीं, किश्तों में आता है। कुछ अंग शिथिल पड़ जाते हैं, उनका दबाव दूसरों पर पड़ता है और वे भी लड़खड़ाने लगते हैं। इसी प्रकार पूर्ण मौत आने से पहले आंशिक मौत किन्हीं भीतरी अवयवों की होने लगती है।

हमें जल्दी मौत के मुंह में धकेलने वाला सबसे अधिक दोष आहार सम्बन्धी नियमों के व्यतिक्रम का है। हम वह खाते हैं जो नहीं खाना चाहिए-उतना खाते हैं जितना पचा नहीं सकते। भूल देखने में जरा सी मालूम पड़ती है, पर उसके परिणाम बहुत ही घातक होते हैं। स्वाद के प्रलोभन में फंसकर आहार सम्बन्धी मर्यादाओं का उल्लंघन करना अन्ततः बहुत ही महँगा पड़ता है। शिकागो विश्व विद्यालय ने चूहों को कम भोजन देकर तथा उन्हें सप्ताह में आधे दिन का उपवास कराकर यह निष्कर्ष पाया कि हर घड़ी मुंह चलाने वाले चूहों से वे अधिक स्वस्थ रहे। कार्नेल की भोजन प्रयोगशालाओं ने यह घोषित किया है कि अधिक पोषक और अधिक विटामिन युक्त कीमती भोजन की अपेक्षा मध्यम श्रेणी के लोगों द्वारा अपनाया जाने वालो सस्ता भोजन जल्दी पचता है और अधिक पोषण देता है। कोलम्बिया विश्व-विद्यालय के प्राध्यापक प्रो0 हेनरी क्लेग शरकन ने चूहे और खरगोशों को चिकनाई युक्त भोजन देकर यह निष्कर्ष निकाला कि वे मोटे तो जरूर हो गये, पर उनकी स्फूर्ति जाती रही। चिकनाई में रहने वाला ‘कोलेस्टेरोल’ नाडियों के भीतरी भाग में जकड़न पैदा करता है। यदि इस जकड़न से बचा जा सके तो मनुष्य 70 वर्ष की उम्र में पूरा जवान रह सकता है।

जार्जटाउन विश्व-विद्यालय के शोध विभाग ने अपने शोध प्रतिवेदन में बताया है। अभिभावक बच्चों को किशोरावस्था में प्रवेश करने तक स्वास्थ्य संबंधी सतर्कता बरतें। किशोरों में यह आकाँक्षा जग पड़े कि वे जल्दी नहीं मरना चाहते। अधेड़ व्यक्ति शक्ति क्षय के संबंध में अधिक मुस्तैदी बरतें तो कोई कारण नहीं कि मनुष्य बीमारियों से घिरा पड़ा रहे ओर पूरी सौ का होने ये पहले ही काँच केर जाय। शरीर एक सुकोमल यन्त्र है इसे सावधानी के साथ प्रयोग में लाया जाये तो देर तक सही काम देता रहेगा किन्तु यदि अनाड़ी और उद्दण्ड बालकों की तरह उससे खिलवाड़ की जाय तो फिर उस जीवन से जल्दी ही पिण्ड छुड़ाया जा सकता है जो नितान्त बहुमूल्य होते हुए भी हमारे लिये कूड़ा-कबाड़ा मात्र बना हुआ है। जिन लोगों ने इन बातों का ध्यान रखा है और अपनी जिंदगी को महत्वपूर्ण समझते हुए उसे बुद्धिमत्तापूर्वक प्यार किया है उन्हें प्रकृति ने खुले हाथों दीर्घजीवन का उपहार दिया है।

पं0 जवाहरलाल नेहरू अस्सी के करीब ही जा पहुँचे थे, पर उन्होंने न कभी अपने को वृद्ध कहा और न किसी को कहने दिया।

यूनानी नाटककार सोफोक्लीज ने 90 वर्ष की आयु में अपना प्रसिद्ध नाटक ‘आडीपस’ लिख था। अंग्रेजी कवि मिल्टन 44 वर्ष की उम्र में अन्धे हो गये थे। इसके बाद उन्होंने सारा ध्यान साहित्य रचना पर केन्द्रित कर दिया 50 की उम्र में उन्होंने ‘पैराडाइज लास्ट’ लिखा। 62 वर्ष में उनका ‘पैराडाइज रीगेन्ड’ प्रकाशित हुआ। जर्मन कवि गेटे ने अपना ग्रन्थ ‘फास्ट’ 80 वर्ष की आयु में पूरा किया। 92 वर्ष का अमेरिकी दार्शनिक जानडेवी अपने क्षेत्र में अन्य सभी विद्वानों में अग्रणी था।

अंग्रेजी राजनीति का इतिहास जिनने पढ़ा है वे ग्लेस्टन का नाम अवश्य जानते होंगे। उसने अपना प्रायः सारा ही जीवन राजनीति की सेवा में लगाया और अच्छी लोकप्रियता प्राप्त की। 70 वर्ष की आयु में उन्होंने राज्य का उत्तरदायित्व संभाला और तीसरी बार भी जब वे प्रधान मंत्री बने तब उनकी आयु 79 वर्ष की थी, आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में होमर पर उनका भाषण अत्यन्त शोध पूर्ण माना जाता है वह उन्होंने 80 वर्ष की आयु में दिया था। बुढ़ापे में भी वे चैन से न बैठे। 84 वर्ष की आयु में उन्होंने ‘ओडेसी आफ हारस’ ग्रन्थ की रचना की।

आठवीं जर्मन सेना का सेनापतित्व पालवान हिन्डैन वर्ग को जब सौंपा गया तब वे 67 वर्ष के थे। 78 वर्ष की आयु में वे पार्लमेन्ट के अध्यक्ष चुने गये। वे 87 वर्ष की आयु तक जिये तब तक उसी अध्यक्ष पद पर प्रतिष्ठित रहे।

हैनरीफिलिप मिटेन जब फ्राँस के प्रधान मंत्री बने तब वे 84 वर्ष के थे। उसी देश की नेशनल असेम्बली के अध्यक्ष स्टवर्ड हैरियो 79 वर्ष की आयु में चुने गये। 84 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हुआ, तब तक वे उस पद का बड़ी योग्यतापूर्वक निर्वाह करते रहे।

लायड जार्ज ब्रिटेन के मूर्धन्य राजनेता रहे हैं। 75 वर्ष की आयु में भी उनकी कार्य शक्ति नौजवानों जैसी थी। चर्चिल ने द्वितीय महायुद्ध काल में जब इंग्लैण्ड का प्रधान मंत्री पद संभाला तब वे 80 वर्ष के थे। जनरल मेक आर्थर 73 वर्ष की आयु में 45 वर्ष जैसे सक्रिय थे। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति सिगमन 80 वर्ष की आयु में भी पूरी तरह क्रियाशील पाये गये थे।

भारत के राजनेताओं में से जिन्हें महत्वपूर्ण पदों का उत्तरदायित्व संभालना पड़ा उनमें अधिकाँश 60 वर्षों से ऊपर के रहे हैं।

महान साहित्यकार जार्ज वनर्डिशा की 93 वीं वर्षगाँठ मनाई गई तो उनने बताया कि इन दिनों वे इतना अधिक लिखते हैं जितना कि 40 वर्ष की आयु में भी नहीं लिख पाते थे। दार्शनिक वेनैदित्तों क्रोचे 80 वर्ष की अवस्था में भी नियमित रूप से 10 घण्टे काम करते थे। उनने दो पुस्तकें तब पूरी की जब वे 85 वर्ष के थे। बटेन्ड रसैल को जब नोबेल पुरस्कार मिला तब वे 78 वर्ष के थे। मारिस मैटर लिंक का देहावसान 88 वर्ष की आयु में हुआ। मरने के दिनों ही उनकी अन्तिम पुस्तक दि एवाट आफ सेतुवाल’ प्रकाशित हुए जिसे उनकी रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ब्रिटेन के प्रख्यात पत्र ‘डेली एक्सप्रेस’ के संचालक लार्ड वीवन वर्क लगभग 80 वर्ष की आयु तक पहुँचते हुए भी अपने दफ्तर में जम कर दस घंटे बैठते थे।

अमेरिका के प्रख्यात तेल व्यवसायी अरब पति राक फेलर पूरे 100 वर्ष जिये। उन्हें कभी बेकार समय गुजारते नहीं देखा गया। एक दूसरे व्यवसायी कोमोडोर विन्डरविट ने 70 वर्ष की आयु में व्यापार क्षेत्र में प्रवेश किया और दस वर्ष के भीतर ही वे सफल उद्योगपतियों की श्रेणी में जा पहुँचे। मोटर उत्पादक हैनरी फार्ड 82 वर्ष की आयु में भी उतने ही चुस्त पाये जाते थे। जितने कि जवानी में वे थे।

दार्शनिक ‘कैन्ट’ को साहित्यिक ख्याति 74 वर्ष की आयु में मिली जब उसकी ‘एन्थ्रो पोलोजी’ ‘मेटा फिजिक्स आफ ईथिक्स” और स्ट्राइफ आफ फैकल्टीज’ प्रकाश में आई। गेटे की महत्वपूर्ण कृति ‘फास्ट’ उन्होंने 80 वर्ष की आयु में पूरी की थी। टैनीसन ने अपना प्रख्यात ग्रन्थ ‘क्रासिंग दी वार’ 83 वर्ष की आयु में पूरा किया था। होब्स ने 88 वर्ष की उम्र में ‘इलियड’ का अनुवाद प्रकाशित कराया था। चित्रकार टीटान का विश्व विख्यात चित्र ‘बैटिल आफ लिमान्टो’ जब पूरा हुआ तब वे 98 वर्ष के थे।

अमेरिका की सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री ‘दादी रेनाल्डस’ ने पाश्चात्य जगत में बहुत ख्याति प्राप्त की है। उनकी फिल्म समूची जीवन साधना का ही एक छोटा अंग है। पैंसठ साल की उम्र में वे चार बच्चों की माँ और दर्जनों नाती-पोतों की दादी बन चुकी थीं। तब उन्हें उत्साह उठा कि जो शिक्षा उन्होंने प्राप्त कर रखी है वह कम हैं उन्हें सफल जीवन जीने के लिये अधिक विद्या उपार्जित करनी चाहिये। सो वे कालेज जाने लगी और 69 साल की उम्र में कैलीफोर्निया विश्व विद्यालय की स्नातिका बन गई। इसके बाद उन्होंने हालीवुड का दरवाजा खटखटाया। जिस आत्म-विश्वास के साथ वे बातें करती थी उसे देखकर डायरेक्टरों ने उन्हें छोटा काम दे दिया। उनके परिश्रम मधुर स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व ने उस क्षेत्र में बढ़-बढ़ कर काम करने के अवसर दिया अस्तु उन्होंने लगातार तेरह वर्षों तक प्रख्यात फिल्मों में काम किया।

82 वर्ष की उम्र में वे एक विद्वान शरीर -शास्त्र से यह परामर्श लेने गई कि उनके पेट का माँस थुलथुल हो गया है यह कसा हुआ कैसे हो सकता है। डाक्टर गेलार्ड हाजर ने उपचार बताये तद्नुसार उनका पेट भारमुक्त हो गया। साथ ही डाक्टर ने उसकी इतनी लंबी आयु और चुस्ती के कारण पूछा तो उनने बताया कि आहार संबंधी सतर्कता-व्यायाम में नियमितता और जीवन के पति आशावादी दृष्टि कोण ही उनकी वृद्धावस्था को जवानी स्तर को बनाये रहने में समर्थ हुआ है। वे जिंदगी को प्यार करती हैं और हर दिन को बहुत ही आनंद का रसास्वादन करते हुए जीना चाहती हैं। मोटे तौर से यही हैं उनकी वृद्धावस्था को जवानी की स्थिति में बनाये रहने वाले कारण।

रूस का दक्षिणी भाग जार्जिया स्टालिन की जन्म-भूमि थी। काकेशस पर्वत मालाओं से घिरा हुआ यह क्षेत्र शतायु लोगों का भण्डार माना जाता है। इस क्षेत्र में 100 से भी कम आयु में मरने वालों की संख्या बहुत कम होती है। अधिक तर तो लंबी उम्र तक जीने वाले लोग ही पाये जाते हैं इस छोटे से क्षेत्र में सर्वेक्षण करने पर पाया गया कि 2100 व्यक्ति ऐसे हैं, जो 125 वर्ष की आयु पार चुके यह लोग 100 वर्ष की आयु में ही इतने भी सक्रिय पाये जाते हैं जितने कि आमतौर से लोग 40-45 वर्ष की उम्र में होते हैं।

इस क्षेत्र का एक किसान मखमूद ईवाजोव 150 वर्ष का था। उसके 23 बेटी-बेटे थे। पोते पर पोते 150 इस प्रकार उसका अकेले का परिवार 175 आदमियों का बन गया उसकी सबसे छोटी लड़की 120 वर्ष की थी।

इसी प्रकार अबखाजिया क्षेत्र का मामसीर नूट नामक मजूर मृत्यु के समय 150 वर्ष का था। टेल्से एविजिवे नामक महिला 180 वर्ष की होकर मरी दाघेस्तान पहाड़ी की तलहटी में बसे एक छोटे गाँव में रहने वाला गड़रिया लिडयोव पझाक 156 को होकर मरा। उसके भाई भी ऐसे ही दीर्घजीवी थे, एक लूवा 123 वर्ष और दूसरा पैलेडी 120 वर्ष तीसरी बहिन जीनिया 114 वर्ष। वज्रोव पहाड़ी क्षेत्र का निवासी शिराली मुस्लीमोव को दीर्घ जीवन के सिलसिले में अधिक ख्याति मिली हैं। वह 158 वर्ष की आयु में अपने घोड़े पर चढ़कर तेल दौड़ का आनन्द लेता था।

इस क्षेत्र में इतने अधिक दीर्घजीवी क्यों होते हैं इसका पता लगाने के लिये शरीर शास्त्री ईवान वेसीलेविन के नेतृत्व में एक दल बहुत समय तक इस क्षेत्र में भ्रमण करके आवश्यक जानकारियाँ एकत्रित करता रहा। दलने जो रिपोर्ट दी उसमें बताया गया कि ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में ऑक्सीजन से अधिक उपयोगी एक प्राण वायु होती हैं ओजोन ऊँचे स्थानों में उसकी मात्रा नीचे स्थान की अपेक्षा कही अधिक होती है अस्तु वहाँ के निवासी इस विशिष्ठ प्राण वायु का लाभ उठाकर दीर्घ जीवी बनते हैं। दूसरा कारण है कठोर श्रम। तीसरा सादा जीवन और प्रकृति के अनुरूप भोजन। चौथा कारण है अन्त तक हंसी खुशी का जीवन, तनावों का अभाव, सौम्य सरल सामाजिकता। इन थोड़ी सी सुविधाओं के कारण ही इतनी लंबी आयु जी लेते हैं। गहरी नींद वहाँ सभी लोग सोते हैं। कोई किसी को तब तक सोने से नहीं जगाता जब तक कोई भारी विपत्ति ही सामने आकार खड़ी न हो जाय। परिवार में वृद्धजनों की अपेक्षा नहीं होती, उन्हें समुचित सम्मान दिया जाता है। उन्हें मौत की प्रार्थना कभी नहीं करनी पड़ती। परिस्थितियाँ जरूर कठोर श्रम करने और अभावग्रस्तता जैसी होती हैं, फिर भी उनने अपने को उसी में संतुष्ट एवं प्रसन्न रहने की मनःस्थिति में ढाल लिया है।

रूसी वैज्ञानिक वोगोमोलेत्स का कथन है कि आदमी यदि 60-70 वर्ष पार कर चुका हो तो उसे फिर यही सोचना चाहिये कि उसने अभी आधी उम्र ही भोगी है इतने ही वर्ष उसे और जीवित रहना है। बुढ़ापा एक प्रकार की बीमारी है, अस्तु उसका इलाज भी अन्य रोगों की चिकित्सा की ही तरह किया जा सकता है।

दार्शनिक एडवर्डस् का कथन है उम्र को वर्षों से नहीं स्वास्थ्य और स्वभाव के आधार पर आँकना चाहिये। संसार में अनेकों ऐसे शक्ति हुए हैं जिन्होंने आयु के प्रभाव को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया और मृत्यु पर्यंत युवावस्था को अक्षुण्ण बनाये रखा।

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस 50 वर्ष की आयु के पश्चात लिखना आरंभ किया। रवीन्द्र नाथ टैगोर 90 वर्ष की आयु तक अपने लेखन कार्य में संलग्न रहे।

गाँधी जी ने सन् 1932 में एक विदेशी पत्रकार को उत्तर देते हुए कहा था, “मैं 63 वर्ष का जरूर हो गया पर मुझे कभी खयाल भी नहीं आता कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ। जिस आदमी को ऐसा लगेगा वह पाठशाला के एक विद्यार्थी की तरह कैसे उर्दू का अध्ययन करेगा और कैसे बंगला तमिल, तेलगू पढ़ने के सपने देखेगा?”

जवानी का उम्र से विशेष संबंध नहीं वह वृद्धावस्था में भी बनी रह सकती हैं और छोटी आयु में भी विकसित हो सकती है। बचपन, जवानी, और बुढ़ापे का संबंध आयु से भी कुछ तो है ही पर उसकी धुरी मनुष्य के चिन्तन पर टिकी हुई है यदि कम उम्र का व्यक्ति अपने आपको प्रौढ़ समझे और तद्नुरूप उत्तरदायित्व ओढ़े तो वह प्रौढ़ों की भूमिका प्रस्तुत कर सकता है। इसके विपरीत उपेक्षा और अवसाद से जवानी बुढ़ापे में बदल सकती हैं। बुढ़ापे में जवान भी रहा जा सकता है यह सब कुछ मनुष्य के साहस, उत्साह, श्रम, उत्तरदायित्व निर्वाह और दृष्टिकोण पर निर्भर है। कम आयु में परिष्कृत व्यक्तित्व का परिचय देने वाले मूर्धन्य व्यक्तियों की संख्या भी संसार में कम नहीं रही है।

आदि शंकराचार्य 32 वर्ष की आयु तक पहुँचने से पूर्व ही अपना विशाल साहित्य निर्माण ओर चारों धामों की स्थापना कार्य पूरा कर चुके थे। 16 वर्ष यदि लग्न पूर्वक किसी दिशा में जुटा दिये जाये तो उतना कर गुजरना किसी के लिये भी संभव हो सकता है जो आदि शंकराचार्य ने किया।

ब्लेज पास्कल ने ज्यामिती पर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक लिखी और 16 वर्ष की आयु में उसने गणना यंत्र ‘एडिंग मशीन’ का आविष्कार विल्वर राइट और आर्विल राइट बीस और तीस वर्ष की आयु के बीच ही वायुयान बना कर उस पर उड़ने का परीक्षण करने लगे थे। शक्ति चालित हवाई उड़ान भरने का लक्ष्य जब उन लोगों ने पूरा करके संसार को आश्चर्य चकित कर दिया तब आर्बिल की आयु 32 वर्ष सिल्वर की आयु 36 साल थी।

सन्त ज्ञानेश्वर ने अपनी प्रख्यात पुस्तक 15 वर्ष की आयु में लिखी थी। सिंगमंड फायड ने 26 वर्ष की आयु में मनोविज्ञान शास्त्र का प्रामाणिक ढाँचा संसार के सामने प्रस्तुत कर दिया था। चार्ल्स डार्विन ने अगणित जीव-जातियों का अध्ययन करके जब विकासवाद का क्रम बद्ध आधार खड़ा किया, तब उनकी आयु 27 वर्ष की थी। विज्ञान के महापंडित अर्ल्वट आइन्स्टाइन ने 15 वर्ष की आयु में ही न्यूक्लिड न्यून्टन और स्थिनोजा के सिद्धान्तों में प्रकाण्ड प्राप्त कर लिया था। जब वे 26 वर्ष की आयु के निकट पहुँचे तो उन्होंने सापेक्षता सिद्धान्त की रूप रेखा प्रस्तुत करके विज्ञान जगत में हलचल मचा दी थी।

वैज्ञानिक क्षेत्र की कितनी ही प्रतिभाएँ ऐसी हुई हैं जिन्होंने छोटी उम्र में ही अविस्मरणीय आविष्कार किये थे। एली ह्रिटवी ने 28 वर्ष की आयु में कपास ओटने की मशीन का आविष्कार किया। चार्ल्स मार्टिन हाल ने 23 वर्ष की आयु में विद्युत संश्लेषण द्वारा एल्युमिनियम उत्पादन की नई विधि पेटेन्ट कराई। जेम्स वाट ने 25 वर्ष की आयु में भाप इंजन की कल्पना की और 33 वर्ष का होने तक काम में आ सकने योग्य इंजन बना डाला। सैम्युअल कोल्ट ने 16 वर्ष की आयु में रिवाल्वर का लकड़ी का मॉडल बनाया। पीछे उसे धातु का बनाया और 21 वर्ष की आयु में गोली चलाने में पूरी तरह सफल रिवाल्वर बना कर तैयारी कर दी।

कला क्षेत्र में भी ऐसे कितनी ही प्रतिभाएँ हुई हैं जिनने छोटी आयु में ही अपनी प्रतिभा का परिचय देना आरंभ कर दिया। माइक्लेंजेली ने 17 वर्ष की उम्र में ‘सेन्टर का युद्ध’ नामक प्रतिमा बनाई। 26 वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते उसने पियेक्त और वाक्स मूर्तियां गढ़कर कला क्षेत्र में अपने लिए अति सम्मानास्पद स्थान प्राप्त कर लिया। लुड विग फान बीठोफेन का प्रथम संगीत ग्रन्थ तब प्रकाशित हुआ तब वह मात्र 13 वर्ष का था। 23 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते तो वह संगीत संसार में मूर्धन्य कलाकार गिना जाने लगा। रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रथम कविता पुस्तक तब छपी जब वे 16 वर्ष के उस प्रथम कृति की भी उस समय के साहित्य मर्मज्ञ भूरि-भूरि प्रशंसा की थी।

ब्रिटेन के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और राजनेता बेजा डिजराइली कहते थे-जिसने जवानी गंवादी उसके लिये और कुछ बचा ही नहीं।’ उनका अभिप्राय यह था महत्वपूर्ण कार्य कर गुजरने की क्षमता केवल युवावस्था में ही होती हैं। बुढ़ापे में तो किसी बंधे बंधाये ढर्रे लकीर पीटते रहना भर ही संभव होता है।

सिकन्दर महान 20 साल की आयु में सिंहासनारूढ़ हुआ ओर 27 वर्ष की आयु तक उसने दिग्विजय करली महात्मा गाँधी जब दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे थे तब वे 24 वर्ष के थे।

ऐलेग्जेण्डर ग्राहम बेल ने 20 वर्ष की आयु में टेलीफोन आविष्कार पर प्रयत्न आरंभ किये और 29 वर्ष की में उसने सफल टेलीफोन यंत्र को पेटेन्ट करा लिया ‘बिजली का मतदान यंत्र’ पेटेन्ट कराने वाला वैज्ञानिक केवल 21 वर्ष की आयु का है यह देखकर लोग आश्चर्य चकित रह गये।

अल्पायु में प्रौढ़ता का परिचय देने वाले और वृद्धावस्था में यौवन को अक्षुण्ण रखने में सफल उपरोक्त उदाहरणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मानसिक सतर्कता ओर जीवन यापन में सुव्यवस्था बन रह कर हम सुदृढ़ निरोग और हंसता-हंसाता और महत्वपूर्ण जीवन सरलता पूर्वक जी सकते हैं।

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