• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अपने को अधिकाधिक सुविस्तृत बनाते चलें
    • शरीर का करुणार्द्र उपयोग
    • ब्रह्माण्ड एक चैतन्य शरीर
    • वरिष्ठता (kahani)
    • गहरे उतरें चमत्कारी अद्भुत का दर्शन करें
    • Quotation
    • मानवी एकता के लिए प्रयत्नशील रहने में ही हमारा कल्याण है
    • पृथ्वी और सूर्य, आत्मा और परमात्मा आदर्श पति पत्नी
    • आकृतियों और साधनों का रहस्य
    • निरीह प्राणियों से सीख (kahani)
    • व्यक्ति का समाज के प्रति दायित्व
    • दूरदर्शिता एवं परमार्थ परायणता की बुद्धिमानी
    • दुर्बल मनःस्थिति पर पड़ने वाले आघात और उनकी प्रतिक्रिया
    • Quotation
    • जीवन साधना के तीन सूत्र
    • देने की नीति अपना (kahani)
    • लम्बे समय तक जवान रहा जा सकता है
    • Quotation
    • क्या अगली शताब्दी में हमें प्यासे मरना पड़ेगा
    • एन्ड्रु जैक्सन (kahani)
    • अस्त व्यस्त एवं असंबद्ध विचार करने की मानसिक बर्बादी
    • सूर्य चन्द्र ग्रहण और उनमें सन्निहित तथ्य
    • भाग्य की नहीं पुरुषार्थ की प्रधानता (kahani)
    • अतीन्द्रिय शक्ति विकास के प्राचीन और नवीन प्रयोग
    • विलक्षण और असाधारण प्रतिभा (kahani)
    • सद्विचारों पर ही समुन्नत जीवन की संभावनायें आधारित हैं।
    • प्रोटीन प्राप्ति के लिये माँसाहार आवश्यक नहीं
    • प्राण जाय पर वचन न जाई
    • नारी उत्कर्ष के लिए निवारक और विधेयक कार्यक्रमों की आवश्यकता
    • हृदय रोग एवं रक्तचाप का कारण और निवारण
    • सौन्दर्य(kahani)
    • अपनों से अपनी बात - हम सब संगठन सूत्र में बँध ही जायं
    • “सृष्टि-स्वर्ग”
    • “सृष्टि-स्वर्ग” (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अपने को अधिकाधिक सुविस्तृत बनाते चलें
    • शरीर का करुणार्द्र उपयोग
    • ब्रह्माण्ड एक चैतन्य शरीर
    • वरिष्ठता (kahani)
    • गहरे उतरें चमत्कारी अद्भुत का दर्शन करें
    • Quotation
    • मानवी एकता के लिए प्रयत्नशील रहने में ही हमारा कल्याण है
    • पृथ्वी और सूर्य, आत्मा और परमात्मा आदर्श पति पत्नी
    • आकृतियों और साधनों का रहस्य
    • निरीह प्राणियों से सीख (kahani)
    • व्यक्ति का समाज के प्रति दायित्व
    • दूरदर्शिता एवं परमार्थ परायणता की बुद्धिमानी
    • दुर्बल मनःस्थिति पर पड़ने वाले आघात और उनकी प्रतिक्रिया
    • Quotation
    • जीवन साधना के तीन सूत्र
    • देने की नीति अपना (kahani)
    • लम्बे समय तक जवान रहा जा सकता है
    • Quotation
    • क्या अगली शताब्दी में हमें प्यासे मरना पड़ेगा
    • एन्ड्रु जैक्सन (kahani)
    • अस्त व्यस्त एवं असंबद्ध विचार करने की मानसिक बर्बादी
    • सूर्य चन्द्र ग्रहण और उनमें सन्निहित तथ्य
    • भाग्य की नहीं पुरुषार्थ की प्रधानता (kahani)
    • अतीन्द्रिय शक्ति विकास के प्राचीन और नवीन प्रयोग
    • विलक्षण और असाधारण प्रतिभा (kahani)
    • सद्विचारों पर ही समुन्नत जीवन की संभावनायें आधारित हैं।
    • प्रोटीन प्राप्ति के लिये माँसाहार आवश्यक नहीं
    • प्राण जाय पर वचन न जाई
    • नारी उत्कर्ष के लिए निवारक और विधेयक कार्यक्रमों की आवश्यकता
    • हृदय रोग एवं रक्तचाप का कारण और निवारण
    • सौन्दर्य(kahani)
    • अपनों से अपनी बात - हम सब संगठन सूत्र में बँध ही जायं
    • “सृष्टि-स्वर्ग”
    • “सृष्टि-स्वर्ग” (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1975 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


नारी उत्कर्ष के लिए निवारक और विधेयक कार्यक्रमों की आवश्यकता

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 28 30 Last
महिला जागरण अभियान का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है, उसे भारत की आँधी जनसंख्या को गहरे गर्त से-सडांद भरे दलदल से निकाल कर उस धरातल तक ऊँचा उठाना है जिस पर कि आज का प्रगतिशील मानव रह रहा है और कल का सुसंस्कृत कार्यक्षेत्र की जो कल्पना करते हैं उसकी ऊँचाई हिमालय जितनी, गहराई समुद्र जितनी प्रतीत होती है। राजसत्ताओं को अपने देशवासियों की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, शिक्षा संचार, यातायात, न्याय आदि के क्षेत्र में थोड़े से उत्तरदायित्व निबाहने पड़ते हैं। इन क्षेत्रों में से भी अधिकाँश की व्यवस्था निजी क्षेत्रों में ही बनती रहती है। महिला जागरण अभियान को इतना बड़ा कार्य करना है जिसे अन्य क्षेत्रों में प्रगति के लिए होने वाले सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के-सम्मिलित प्रयत्नों के समतुल्य कहा जा सके।

स्पष्ट है कि इस अभियान का महायुद्ध दो मोर्चों पर लड़ा जाना है। एक है निवारक, दूसरा विधायक। प्रतिबन्धित, पराधीनता के अभिशाप ने अनेकानेक दुखद अवाँछनीयताएँ नारी के गले बाँध दी है। शारीरिक दृष्टि से वह पुरुष की तुलना में कहीं अधिक दुर्बल और रुग्ण है। बौद्धिक दृष्टि से शिक्षा के अभाव ने उन्हें आवश्यक जानकारियों से भी वंचित कर दिया है। कूप मण्डूक से अधिक अच्छी स्थिति उनकी हो ही नहीं सकती जिनके लिए ज्ञानार्जन स्रोत अवरुद्ध हो गये हैं। मानसिक दृष्टि से दुर्व्यवहार सहते-सहते वह अपेक्षाकृत अधिक अनुदार और असहिष्णु बन गई है। संयुक्त परिवार निभ नहीं पा रहे हैं, पेड़ से टूटे पतों की तरह लोग अलग-अलग करके एकाकी जीवन जीने के लिए-पक्षियों की तरह अलग-अलग घोंसले बनाने के लिए विवश हो रहे हैं। संयुक्त परिवार में जो प्रगति, सन्तुष्टि और निश्चिन्तता रह सकती है, उसका अनुभव अब कदाचित ही किसी को होता है। कई महिलाएँ घर में रहकर स्नेह सौजन्य का आनन्द ले नहीं पातीं। वे मनोमालिन्य, कलह और झंझट खड़े किये रहती है और अन्ततः दुखी होकर लोगों की अलग घर बनाने पड़ते हैं। इसमें अन्य कारण कम और स्त्रियों की अनुदारता असहिष्णुता मूल्य कारण होती है।

सामाजिक दृष्टि से पिछड़ी नारी अधिक संकोची और व्यवहार शून्य पाई जायगी। उस पर अन्ध-विश्वासी आसानी से सवार हो जाते हैं। भूत-पलीत, कल्पित देवी-देवता, जादू-टोना, आये दिन उन्हें वास देते रहते हैं और समय तथा पैसा खर्च कराते रहते हैं। पण्डे, पुजारी, ज्योतिषी, साधुबाबा, ओझा, अपना शिकार उन्हें ही बनाते हैं और तरह-तरह के डर तथा प्रलोभन दिखाकर उन्हीं का शोषण करते हैं। कीमती वस्त्र, आभूषणों की, सजधज के लिए श्रृंगार सामग्री की फरमाइशें आये दिन खड़ी करती रहती है। ओछा व्यक्तित्व ही ऐसे भोंडे प्रदर्शनों के लिए लालायित रहता है। यदि वे हीन भावनाओं से ग्रसित न होती तो शालीनता और सुसंस्कारिता के प्रतीक स्वच्छता और सादगी से भरे परिधान ही उन्हें पर्याप्त प्रतीत होते। तब वह अनावश्यक अपव्यय न होता जो आज फैशन के नाम पर पानी की तरह बहता चला जा रहा है।

सामाजिक कर्त्तव्यों और उत्तरदायित्वों का बोझ भी मनुष्य पर होता है इसका कभी आभास तक उन्हें नहीं मिलता-इस तरह सोचने की आदत भी नहीं है। घर के पुरुष यदि किसी सामाजिक कार्य में समय या पैसा खर्च करें तो सबसे पहले घर की नारियों का ही विरोध असहयोग सामने आता है। वे सोचती है पैसा कमाने के बाद का बचा हुआ समय घर के कामों में-घर के लोगों के लिए लगाना चाहिए। समाज सेवा में अपने को क्या मिलता है-अपना क्या लाभ है। हमें अपने मतलब से मतलब रखना चाहिए। अपने सुख-दुख की बात सोचनी चाहिए। दूसरों के झंझट में पड़ने या दूसरों के लिए कुछ करने की अपने को क्या आवश्यकता? व्यक्तिवादी चिंतन से बाहर की बात सोचना उनके लिये कठिन है क्योंकि कभी सामाजिकता की-सामाजिक कर्तव्यों की आवश्यकता उपयोगिता के बारे में उन्हें कभी जताया समझाया ही नहीं गया। जब वे घर के लोगों को रोकती हैं तो स्वयं तो उस दिशा में कुछ करेंगी ही क्या? यही कारण है कि जिनके पास अवकाश की बहुलता है वे नारी उत्कर्ष के कार्यों में कोई भाग नहीं लेतीं। उस दिशा में उनका तनिक भी उत्साह नहीं होता। निरर्थक कामों में किसी प्रकार समय तो काटेंगी, पर अपने वर्ग को दयनीय दुर्दशा से उबारने के लिये थोड़ा भी प्रयास न करेंगी। कारण एक ही है कि उन्हें सामाजिक कर्तव्यों की बात सुनने समझने का अवसर ही नहीं मिला।

आर्थिक दृष्टि से हर नारी पराधीन है। स्वयं तो वह सीधे कुछ कमाती नहीं, पिता के घर से भी जो मिलता है, उस पर ससुराल वालों का अधिकार हो जाता है। स्त्री धन के नाम पर कभी आड़े वक्त काम आने के लिये उन्हें जेवर मिलते थे। पर अब इस घोर महंगाई में जब घर का खर्च ही नहीं चलता-आभूषण बनाने वालों ने आधा असली, आधा नकली की नीति अपनाली है-बैंक में धन रखना सुरक्षित समझा जाने लगा हैं-जेवर पहनना फूहड़पन का चिह्न बन गया है तो वह सब भी चला गया-चला जा रहा है। कभी होली, दिवाली कुछ मिल जाता हो तो उतने ही पैसे उनके बक्से में पड़े होते हैं। धन रखने का शौक सबको है तो उन्हें भी हो सकता है ऐसी दशा में घर खर्च से काट छाँट-पत्तियों की जेब की तलाशी में कुछ हाथ लग जाय उतना ही उनका होता है। वे नौकरी करें तो भी जो मिले पिता या पति का परिवार छीन लेता है। जहाँ तक व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति का प्रश्न है कि आड़े समय के लिये उनके पास क्या कुछ हैं? तो अधिकाँश नारियों को तो खाली हाथ ही पाया जायेगा। इस अर्थ युग में सर्वथा खाली हाथ रहने वाला अपने को कितना असहाय-असुरक्षित अनुभव करेगा यह कहने की नहीं, अनुभव करने की बात है।

अनुदान, अनवरत, प्रतिदान कुछ नहीं। यदि कुछ है तो वह निंदा तिरस्कार भर है। न कभी अवकाश-न विश्राम-न विनोद। निरन्तर नुक्ताचीनी, दोषारोपण, डाँट-डपट, यदि ये कडुए घूँट न पिये जा सके तो गाली, पिटाई, धमकी, भर्त्सना, बहिष्कार परित्याग से लेकर प्राण हरण तक के दण्ड मौजूद है।

कुरीतियों को अपनाये रहने में उनका आग्रह कम नहीं। विवाह के बाद सन्तान जल्दी न हो तो उनकी बेचैनी देखते ही बनती हैं। घर, पड़ौस की औरतें उन नव-वधुओं पर व्यंग बाण छोड़ती ओर अभागी कहती देखी जाती है। कन्या की गरिमा यों पुत्र से कहीं अधिक हैं, पर कन्या और पुत्र का भेदभाव पुरुषों की अपेक्षा नारियों में ही अधिक पाया जाता है। दैनिक व्यवहार में वे लड़कों को दुलार से लेकर सुविधा-साधनों तक अधिक देती हैं और लड़कियों को कम। जबकि यदि पक्षपात करना ही आवश्यक हो तो अपनी जाति का-लड़कियों का ही करना चाहिये। तथाकथित देवी-देवताओं की पूजा पत्री में ढेरों खर्च कराने का आग्रह उन्हें ही रहता है। लड़के के विवाह में अधिक दहेज पाने का-कम दहेज लाने पर वधू को तिरस्कृत करने में पुरुषों से अधिक उत्साह घर की स्त्रियों में ही देखा जायेगा। तीज-त्यौहारों पर बहू के घर से बेकार की चीजें मंगाने के-और बेटी के घर अगड़म-झगड़म भेजने के-अलन-चलन उन्हीं के सामने प्रतिष्ठा का प्रश्न बनकर खड़े रहते हैं। सन्डे-मुस्टंडे, ढोंगी बाबाओं के हाथों ठगे जाने का भोलापन उन्हीं में देखा जायेगा। पुत्र का वरदान पाने के लिये-पति को वश में करने के तन्त्र मन्त्रों पर विश्वास करने से लेकर-लड़कियां जनने पर सिर पीटते हुए उन्हीं को देखा जायेगा। बाँझ बहू को घर से विशाल देने और दूसरा विवाह करने के लिये बेटे को प्रोत्साहित करने में सास को ही प्रधान भूमिका निभाते देखा जायेगा। पर्दा प्रथा पर पुरुषों का जितना आग्रह होता है घर की स्त्रियाँ उससे कहीं अधिक जोर देती है।

यह कुछ थोड़े से उदाहरण है जिनके आधार पर यह अनुभव किया जा सकता है कि नारी की स्थिति कितनी दयनीय हैं, इन अवाँछनीयताओं की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उन्हें उखाड़ने में काफी श्रम करना पड़ेगा। नारी की तीन चौथाई शक्ति इन्हीं कुचक्रों में नष्ट होती रहती है। वे अपने लिये या परिवार के लिये कुछ कर सकें इसका प्रश्न तो तब उठेगा जब उनकी स्थिति उस योग्य हो। जो कुछ इस स्थिति में भी उनके पास बचा है, वह सारे का सारा इन्हीं छिद्रों में होकर रिसता, टपकता रहता है। इन अवाँछनीयताओं को यदि रोका जा सकता होता तो उनकी क्षमताएं कदाचित इस योग्य होती कि प्रगति की दिशा में-कुछ कदम उठ सकते। उनका, परिवार का तथा समाज का कुछ भला हो सकता।

निवारक प्रयत्न करने की कितनी अधिक आवश्यकता है, इसे विचारशील सहज ही समझ सकते हैं। निषेध, विरोध, उन्मूलन के लिये कितना बड़ा क्षेत्र सामने पड़ा है। अनुचित को रोकना उचित के बढ़ाने के साथ-साथ ही जुड़ा हुआ है। महिला जागरण अभियान को इसके लिये घनघोर और व्यापक प्रयत्न यह करने पड़ेंगे कि प्रस्तुत अनुपयुक्त परिस्थितियों को जड़-मूल से उखाड़ फेंकने के लिये क्या किया जाये? किस प्रकार किया जाये? अनुभव एवं साधन के अनुसार निवारक कार्यक्रमों में हेर-फेर होता रहेगा, पर उस दिशा में साहसपूर्ण द्रुतगामी कदम उठाने अवश्य पड़ेंगे। उसमें जनशक्ति, चिन्तन शक्ति एवं साधन शक्ति जुटाने से लेकर झोंकने तक की तैयारी युद्ध स्तरीय योजना जैसी करनी पड़ेगी।

दूसरों मोर्चा ‘विधायक’ है। निवारण एकाँगी है। कंटीली झाड़ियां साफ की जायें सो ठीक हैं, पर उनके स्थान पर खेत या बगीचा भी तो बोया, उगाया जाना चाहिए। दुर्गुण हटा दिये सो ठीक पर उनके स्थान पर सद्गुणों को भी तो स्वभाव में सम्मिलित किया जाना चाहिये। चोरी की रोकथाम हो गई सो ठीक-पर आर्थिक उन्नति के लिये उपार्जन के साधन भी तो बढ़ने चाहिये। शत्रुओं के आक्रमण को निरस्त कर दिया गया, पर इतने से ही तो देश सुखी नहीं होगा, उसके लिये उत्पादन बढ़ाने एवं प्रगति के अनेक साधन भी तो जुटाने पड़ेंगे। ठीक यही बात नारी उत्कर्ष के महान लक्ष्य की पूर्ति के संबंध में भी लागू होती है। निवारक प्रयत्न का पहला पहिया बनाने के साथ-साथ विधायक प्रयासों का दूसरा पहिया भी विनिर्मित होना चाहिये। दोनों जब तक तैयार न हो जायेंगे गाड़ी पर वजन लादने और सवारी करने का समग्र स्वप्न साकार नहीं हो सकता।

विधायक प्रयत्नों में वे सभी कार्यक्रम आते हैं जिनसे नारी की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक, आर्थिक, सामाजिक स्थिति को सुधारा जा सके। इस अभिवर्धन पर ही तो उसकी समर्थता का विकास निर्भर है। क्षयग्रस्त रोगी के शरीर से रोग कीटाणुओं को नष्ट कर देना ही पर्याप्त नहीं, लंबे समय की रुग्णता ने उसकी काया को जीर्ण-शीर्ण, दुर्बल दयनीय बनाकर रख दिया उस अस्थिपंजर को पुनः रक्त माँस युक्त बनाने के लिये उपयुक्त आहार’-विहार की व्यवस्था बनानी होगी ताकि खोई हुई शक्ति को पुनः अर्जित करने का उसे अवसर मिल सके। नारी जागरण के लिये इस प्रकार की असंख्य विधेयात्मक रचनात्मक प्रवृत्तियों का सृजन करना होगा जिनकी ‘बैसाखी’ का सहारा पाकर उसे खड़ा होने और चलने में सुविधा हो सके।

सरकार ने हरिजनों को कई प्रकार के अतिरिक्त संरक्षण तथा विशेष सुविधायें दूसरों की तुलना में अधिक मात्रा में दी है। इसका कारण यह है कि जिन्हें इतने लंबे समय से पिछड़ी स्थिति में डालकर रखा उस समाज को अतिरिक्त सुविधायें देकर अपने पाप का प्रायश्चित करना चाहिये। दूसरों की तुलना में अधिक तीव्रता से प्रगति कर सकने के सुविधा साधन मिलें तभी वे पिछड़ेपन से छूटकर समान स्थिति में पहुँच सकेंगे। यह तर्क न्याय संगत है। ठीक इसी न्याय की अपेक्षा नारी समाज भी करता है। उसे शिक्षा की, स्वावलंबन की, अनुभव संपादन की, क्रिया कौशल की, अधिकाधिक सुविधायें मिलनी चाहिये ताकि उसे भी अपने पिछड़ेपन से पीछा छुड़ाने और समान क्षमता संपन्न होकर समर्थ सहयोगी के रूप में-पुरुष की-समाज की प्रगति में योगदान कर सकने की भूमिका निबाहने का अवसर मिल सके।

नारी उत्कर्ष के लिये अवाँछनीय परिस्थितियों का निवारण और अभीष्ट क्षमताओं के संवर्धन की उभयपक्षीय सुविधायें उत्पन्न की जानी चाहिये। महिला कल्याण के लिये निवारक और विधेयक दोनों ही प्रकार के समन्वयात्मक कार्यक्रम बनाये जाने चाहिये।

First 28 30 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अपने को अधिकाधिक सुविस्तृत बनाते चलें
  • शरीर का करुणार्द्र उपयोग
  • ब्रह्माण्ड एक चैतन्य शरीर
  • वरिष्ठता (kahani)
  • गहरे उतरें चमत्कारी अद्भुत का दर्शन करें
  • Quotation
  • मानवी एकता के लिए प्रयत्नशील रहने में ही हमारा कल्याण है
  • पृथ्वी और सूर्य, आत्मा और परमात्मा आदर्श पति पत्नी
  • आकृतियों और साधनों का रहस्य
  • निरीह प्राणियों से सीख (kahani)
  • व्यक्ति का समाज के प्रति दायित्व
  • दूरदर्शिता एवं परमार्थ परायणता की बुद्धिमानी
  • दुर्बल मनःस्थिति पर पड़ने वाले आघात और उनकी प्रतिक्रिया
  • Quotation
  • जीवन साधना के तीन सूत्र
  • देने की नीति अपना (kahani)
  • लम्बे समय तक जवान रहा जा सकता है
  • Quotation
  • क्या अगली शताब्दी में हमें प्यासे मरना पड़ेगा
  • एन्ड्रु जैक्सन (kahani)
  • अस्त व्यस्त एवं असंबद्ध विचार करने की मानसिक बर्बादी
  • सूर्य चन्द्र ग्रहण और उनमें सन्निहित तथ्य
  • भाग्य की नहीं पुरुषार्थ की प्रधानता (kahani)
  • अतीन्द्रिय शक्ति विकास के प्राचीन और नवीन प्रयोग
  • विलक्षण और असाधारण प्रतिभा (kahani)
  • सद्विचारों पर ही समुन्नत जीवन की संभावनायें आधारित हैं।
  • प्रोटीन प्राप्ति के लिये माँसाहार आवश्यक नहीं
  • प्राण जाय पर वचन न जाई
  • नारी उत्कर्ष के लिए निवारक और विधेयक कार्यक्रमों की आवश्यकता
  • हृदय रोग एवं रक्तचाप का कारण और निवारण
  • सौन्दर्य(kahani)
  • अपनों से अपनी बात - हम सब संगठन सूत्र में बँध ही जायं
  • “सृष्टि-स्वर्ग”
  • “सृष्टि-स्वर्ग” (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj