• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन और उसकी परिभाषा
    • योग का प्रयोजन और प्रतिफल
    • श्रद्धा अन्तः जीवन की एक प्रबल शक्ति
    • दिशाओं को नमस्कार (kahani)
    • हिमालय की छाया-गंगा की गोद में ब्रह्मवर्चस साधना
    • कुण्डलिनी जागरण और चक्र वेधन
    • Quotation
    • आत्म बोध और तत्त्व बोध की दैनिक साधना
    • साधना की सफलता में आसन की उपयोगिता
    • Quotation
    • प्राणायाम प्राणशक्ति बढ़ाने का वैज्ञानिक आधार
    • कुण्डलिनी योग और अजपा गायत्री
    • Quotation
    • हंस योग की शास्त्रचर्चा
    • खेचरी मुद्रा और रसानुभूति
    • खेचरी मुद्रा की प्रतिक्रिया और उपलब्धि
    • ऊर्ध्वगमन का अभ्यास शक्तिचालनी मुद्रा द्वारा
    • त्राटक साधना से दिव्य दृष्टि की जागृति
    • अनाहत नाद ब्रह्म की साधना ओंकार के माध्यम से
    • तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
    • Quotation
    • दुष्कर्मों की निवृत्ति प्रायश्चित्त से ही सम्भव है।
    • तीर्थयात्रा हर किसी के लिये हर स्थिति में सम्भव!
    • ब्रह्मवर्चस् साधना का भावी उपक्रम
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीवन और उसकी परिभाषा
    • योग का प्रयोजन और प्रतिफल
    • श्रद्धा अन्तः जीवन की एक प्रबल शक्ति
    • दिशाओं को नमस्कार (kahani)
    • हिमालय की छाया-गंगा की गोद में ब्रह्मवर्चस साधना
    • कुण्डलिनी जागरण और चक्र वेधन
    • Quotation
    • आत्म बोध और तत्त्व बोध की दैनिक साधना
    • साधना की सफलता में आसन की उपयोगिता
    • Quotation
    • प्राणायाम प्राणशक्ति बढ़ाने का वैज्ञानिक आधार
    • कुण्डलिनी योग और अजपा गायत्री
    • Quotation
    • हंस योग की शास्त्रचर्चा
    • खेचरी मुद्रा और रसानुभूति
    • खेचरी मुद्रा की प्रतिक्रिया और उपलब्धि
    • ऊर्ध्वगमन का अभ्यास शक्तिचालनी मुद्रा द्वारा
    • त्राटक साधना से दिव्य दृष्टि की जागृति
    • अनाहत नाद ब्रह्म की साधना ओंकार के माध्यम से
    • तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
    • Quotation
    • दुष्कर्मों की निवृत्ति प्रायश्चित्त से ही सम्भव है।
    • तीर्थयात्रा हर किसी के लिये हर स्थिति में सम्भव!
    • ब्रह्मवर्चस् साधना का भावी उपक्रम
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1977 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


ब्रह्मवर्चस् साधना का भावी उपक्रम

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 23 25 Last
गायत्री उपासना के तीन चरण है-(1) नित्य कर्म, सन्ध्या वंदन (2) संकल्पित अनुष्ठान पुरश्चरण (3) उच्चस्तरीय योग साधना। नित्य कर्म को अनिवार्य धर्म कर्तव्य माना गया है। आये दिन अन्तःचेतना पूरे वातावरण के प्रभाव से चढ़ते रहने वाले ड़ड़ड़ड़ अंकुश लगता है।

संकल्पित पुरश्चरणों से प्रसुप्त चेतना उभरती है और फलतः साधक ओजस्वी, मनस्वी, तेजस्वी बनता है। साहस और पराक्रम की अभिवृद्धि आत्मिक एवं भौतिक क्षेत्र में अनेकानेक सफलताओं का पथ-प्रशस्त करती है। विशेष प्रयोजनों के लिए किये गये पुरश्चरणों की सफलता इसी संकल्प शक्ति के सहारे उपलब्ध होती है जिसे प्रतिज्ञाबद्ध, अनुशासित एवं आत्म निग्रह के विभिन्न नियमोपनियम के सहारे सम्पन्न किया जाता है।

नित्य कर्म को स्कूलों की प्राथमिक और पुरश्चरणों को माध्यमिक शिक्षा कहा जा सकता है। जूनियर, हाईस्कूल, मैट्रिक-हायर सेकेन्डरी का प्रशिक्षण माध्यमिक विश्वविद्यालय की पढ़ाई का क्रम आरम्भ होता है। इसे उच्चस्तरीय साधना कह सकते हैं। योग और तप स्तर के साधकों को क्रियान्वित होते हैं। योग में जीव चेतना को ब्रह्म चेतना से जोड़ने के लिए स्वाध्याय, मनन से लेकर ध्यान धारणा तक के अवलम्बन अपनी मनःस्थिति के अनुरूप अपनाने पड़ते हैं। विचारणा, भावना एवं आस्था की प्रगाढ़ प्रतिष्ठापना इसी आधार पर सम्भव होती है। तपश्चर्या के औजारों से जमे हुए कुसंस्कारों को उखाड़ना पड़ता है। तप की अग्नि में तपा कर आत्मसत्ता में आर्द्रता उत्पन्न करना और उसे देवत्व के साँचे में ढालना सम्भव होता है। योग को सृजनात्मक और तप को शोधनात्मक ध्वंसात्मक प्रक्रिया कह सकते हैं। योग को जल और तप की अग्नि की संज्ञा दी जा सकती हैं दोनों के समन्वय से भाप बनती है और उसके बादल बनने से लेकर रेलगाड़ी चलने जैसे असंख्य प्रयोजन हो सकते हैं। उपयोगिता के संवर्धन की तरह अवांछनीयताओं का निवारण भी आवश्यक है। धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश दोनों के समन्वय से ही परिपूर्ण धर्म तत्त्व सामने आता है। उनमें से किसी एक को ही अपनाया जाय तो अपूर्णता ही बनी रहेगी। बिजली के दोनों तार मिलने पर ही तो विद्युत धारा प्रवाहित होती है। आत्मिक प्रगति के लिए योग और तप का अन्योऽन्याश्रित सम्बन्ध है। ज्ञान और कर्म की तरह इस युग्म का भी समन्वय रहना चाहिए। गाड़ी के दोनों पहिये सही होने पर ही सर्वतोमुखी प्रगति रथ गतिशील होता है।

आत्मिक प्रगति के लिए प्रचलित अनेकानेक उपायों और विधानों में गायत्री विद्या अनुपम है। भारतीय तत्त्ववेत्ताओं ने आत्म विज्ञानियों के प्रधानतया इसी का अवलम्बन लिया है और सर्वसाधारण को इसी आधार को अपनाने का निर्देश दिया है। भारतीय धर्म के दो प्रतीक है। शिखा और यज्ञोपवीत दोनों को गायत्री की ऐसी प्रतिमा कहा जा सकता है। जिसकी प्रतीक धारणा को अनिवार्य धर्म चिह्न बताया गया है। मस्तिष्क दुर्ग के सर्वोच्च शिखर पर गायत्री रूपी विवेकशीलता की ज्ञानध्वजा ही शिखा के रूप में प्रतिष्ठापित की जाती। यज्ञोपवीत की गायत्री का कर्म पक्ष-यज्ञ संकेत है। उसकी तीन लड़े गायत्री के तीन चरण और नौ धागे इस महामन्त्र के नौ शब्द कहे गये है। उपासना में संध्या वन्दन नित्य कर्म है। वह गायत्री के बिना सम्पन्न नहीं होता। चारों वेद भारतीय धर्म और संस्कृति के मूल आधार है और उन चारों की जन्म दात्री वेदमाता गायत्री है। वेदों की व्याख्या अन्यान्य शास्त्र पुराणों में हुई है इस प्रकार आर्ष वांग्मय के सारे कलेवर को ही गायत्रीमय कहा जा सकता है। गायत्री और भारतीय धर्म संस्कृति को बीज और वृक्ष की उपमा दी जा सकती है।

यह सर्वसाधारण के लिए भारतीय संस्कृति के-विश्व मानवता के प्रत्येक अनुयायी के लिए सर्वजनीन प्रयोग उपयोग हुआ। गायत्री के 24 अक्षरों में बीज रूप में भारतीय तत्त्व ज्ञान के समस्त सूत्र सन्निहित है। इस महामन्त्र के विविध साधना उपचारों में तपश्चर्या को श्रेष्ठतम आधार कहा जा सकता है। उनमें बाल, वृद्ध रोगी, नर-नारी शिक्षित अशिक्षित सभी के लिए छोटे-बड़े प्रयोग मौजूद हैं सरल से सरल और कठिन से कठिन ऐसे विधानों का उल्लेख हैं। जिन्हें हर स्थिति का व्यक्ति अपनी-अपनी स्थिति एवं पात्रता के अनुरूप अपना सकता है।

यह सर्वजनीन सर्वसुलभ उपचार चर्चा हुई। गायत्री की उच्चस्तरीय साधना से धर्म शास्त्र विकसित होकर ब्रह्म विद्या का तत्त्वदर्शन बन जाता है। वैदिक दक्षिण मार्ग यही हैं। इसके सामान्य और असामान्य दो पक्ष हैं। एक कामकाजी लोगों का गृहस्थोपयोगी चरित्र निष्ठा एवं समाजनिष्ठा का नैतिक सामाजिक प्रशिक्षण । विरक्त स्तर अपनाने वाले साधु ब्राह्मण स्तर के महामानवों के लिए उदात्त विश्व हित के अनुरूप आत्म-विस्तार एवं लोककल्याण का तत्त्वदर्शन । यह चिन्तन प्रक्रिया हुई। शक्ति संवर्धन के लिए व्यक्तिगत जीवन में इन्द्रिय निग्रह एवं मनोनिग्रह के द्वारा अपव्यय के छिद्र बन्द किये जोते हैं। दुष्प्रवृत्तियों का उन्मूलन कर सकने योग संकल्प साहस शौर्य एवं पराक्रम उभारना पड़ता है। ड़ड़ड़ड़ तप इसी धुरी के इर्द-गिर्द परिभ्रमण करते हैं। दूसरों की सहायता कर सकने, वातावरण को सुधारने ड़ड़ड़ड़ अवांछनीयताओं को निरस्त करने के लिए भागीरथ दधिची, च्यवन, विश्वमित्र जैसे और विशिष्ट तप करने पड़ते हैं। उनमें उग्रता लानी हो, और संघर्ष उन्मूलन की विशिष्ट आवश्यकता पड़ जाती हैं। उसके लिए उग्र उपचारों का अवलम्बन लेना पड़ता है। ऐसी उग्रता का समावेश तन्त्र साधनाओं में मिलता है। ड़ड़ड़ड़ और निगम दक्षिण ओर वाम मार्ग दोनों ही अपने-अपने ढंग से अपने-अपने उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। ब्रह्मास्त्र, ब्रह्म दण्ड, ब्रह्मास्त्र एवं ब्रह्म तेज का उल्लेख उपयोग प्रायः ऐसे ही प्रयोजनों के लिए होता रहा हैं। गायत्री साधना यों प्रकृतिः सौम्य सतोगुणी हैं, पर आवश्यकतानुसार उसका उपयोग अवांछनीयताओं के उन्मूलन में प्रतिरोध शक्ति की तरह सुरक्षात्मक प्रयोजनों के लिए भी किया जा सकता है।

गायत्री विद्या का ड़ड़ड़ड़ गायत्री उपासना का प्रचारात्मक और साधनात्मक प्रयोग और भी एक बड़ा प्रयास सामूहिक रूप से करने की दृष्टि से ही गत वर्ष साधना धर्मानुष्ठानों के इतिहास में अभूत पूर्व ही समझा जाना चाहिए। एक लाख नैष्ठिक साधकों द्वारा पूरे एक वर्ष तक नियमित एवं अनुशासित रूप से जो सामूहिक गायत्री जप हुआ। इस वर्ष उसका उत्तरार्ध सम्पन्न किया जा रहा हैं। छोटे-छोटे हजारों गायत्री यज्ञों के साथ बड़े-बड़े युग निर्माण सम्मेलनों को जोड़कर नवयुग का सन्देह सुनाने तथा उपयुक्त वातावरण बनाने की दृष्टि से इसे अपने ढंग की अनोखी प्रक्रिया ही समझा जाना चाहिए।

विश्वास किया जाना चाहिए कि साधना स्वर्ण जयन्ती वर्ष अनुपम सामूहिक गायत्री महा पुरश्चरण के सत्परिणाम भी अनोखे ही होंगे। राजनीति के क्षेत्र में जो काली घटाएँ छा गई थीं उन्हें टालने और लोकतन्त्र का सदुपयोग होने की प्रकाश किरणें सामने आई हैं। इसके अतिरिक्त जन-जीवन तथा सामूहिक वातावरण में उत्साह भरे सुख परिवर्तनों की आशा बँध रही हैं। उज्ज्वल भविष्य का अरुणोदय प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है। इन सम्भावनाओं के अनेक कारणों का एक कारण ऐसी सामूहिक परिचर्याओं को भी समझा जा सकता है जैसी कि साधना स्वर्ण जयन्ती वर्ष के अवसर पर सम्पन्न की गई। ठीक ऐसा ही एक सामूहिक अनुष्ठान हम लोगों ने बंगाल देश की क्रान्ति के अवसर पर भी किया था। उन दिनों भी ड़ड़ड़ड़ सूक्ष्मदर्शियों ने उस सफलता को आध्यात्मिक शक्तियों के चमत्कार रूप में देखा था। आज दृष्टिगोचर हो रहे परिवर्तनों और भावी सम्भावनाओं के पीछे दैवी शक्तियों का अनुग्रह देखा जा सके तो उसे अमृत वर्षा के लिए पृष्ठभूमि बनाने वाले आधारों में एक अपने स्वर्ण जयन्ती वर्ष के अभूतपूर्व महापुरश्चरण को भी एक गिना जा सकता।

उच्चस्तरीय गायत्री उपासना के प्रति उत्साह उत्पन्न करने-उसके कारण और आधार समझाने तथा व्यावहारिक मार्ग दर्शन ड़ड़ड़ड़ की अपनी आकांक्षा बहुत समय से हो रही हैं जब कि जीवन का कार्यकाल बहुत ही स्वल्प रह गया है तब तो यह और भी आवश्यक हो जाता है कि इस आकांक्षा को पूरा करने के लिए कुछ आधार जल्दी ही खड़ा कर दिया जाय। अन्यथा एक अत्यन्त उपयोगी विज्ञान का परिचय और प्रयोग जानने से लोगों को वंचित ही रह जाना पड़ेगा। ड़ड़ड़ड़ साधनाक्रम का शुभारम्भ, ब्रह्मवर्चस आरण्यक का निर्माण इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया हैं साधना स्वर्ण जयन्ती वर्ष की इसे महानतम स्मृति एवं उपलब्धि कहा जाय तो उसमें तनिक भी अत्युक्ति न होगी।

उच्चस्तरीय गायत्री उपासना दो पक्ष है। एक सावित्री दूसरी कुण्डलिनी। सावित्री की प्रतिमाओं में पाँच मुख चित्रित किये गये है। यह मानवी चेतना के पाँच आवरण है। इन्हें पाँच आवरण कह सकते हैं। जिनको उतरते चलने पर आत्मा का असली रूप प्रकट होता है। इन्हें पाँच कोष-पाँच खजाने भी कह सकते हैं। अन्तः चेतना में एक से एक बढ़ी-चढ़ी विभूतियाँ प्रसुप्त अविज्ञात स्थिति में छिपी पड़ी है। इन्हें जगाने पर अंतर्जगत के पाँच देवता जग पड़ते हैं और उनकी विशेषताओं के कारण मानवी सत्ता देवोपम स्तर पर पहुँची हुई जगमगाती हुई दृष्टिगोचर होने लगती है। चेतना में विभिन्न प्रकार की उमंगें उत्पन्न करने का कार्य प्राण, ड़ड़ड़ड़ । अग्नि, वरुण, वायु अनन्त और पृथ्वी यह पाँच तत्त्व, पाँच देवता ही काय-ड़ड़ड़ड़ बिखरे पड़े दृश्यमान पदार्थों और अदृश्य प्रवाहों का संचालन करते हैं। समर्थ चेतना इन्हें प्रभावित करती है। इस विज्ञान को तत्त्व साधना अथवा परतन्त्र विज्ञान’ कहा गया हैं। ड़ड़ड़ड़ उपासना से चेतना पंचक और पदार्थ पंचक के दोनों ही क्षेत्रों को समर्थ परिष्कृत बनाने का अवसर मिलता है। सावित्री साधना यही है। इसका देवता सविता है। सावित्री और सविता का युग्म है। इस उपासना में सूर्य को प्रतीक और तेजस्वी परब्रह्म को ड़ड़ड़ड़ सर्वोपरि शक्ति है।

उच्चस्तरीय गायत्री उपासना की दूसरी प्रक्रिया है कुण्डली। इसे जड़ और चेतन को परस्पर बाँधे रहने वाली सूत्र ड़ड़ड़ड़ प्रकारान्तर से यह प्राण प्रवाह है ड़ड़ड़ड़ की समस्त हलचलों का संचालन करता ड़ड़ड़ड़ और नर नारी अपनी जगह पर अपनी स्थिति में ड़ड़ड़ड़ भी अपूर्ण हैं। इन दोनों को समीप लाने और ड़ड़ड़ड़ में एक अविज्ञात चुम्बकीय शक्ति काम करती रहती है। इसी के दबाव से युग्मों का बनना और प्रजनन क्रम चलना सम्भव होता है। उदाहरण के लिए इस नर और नारी के बीच घनिष्ठता उत्पन्न करने वाले चुम्बकीय धारा प्रवाह को कुण्डलिनी की एक चिनगारी कह सकते हैं। प्रकृति और पुरुष को घनिष्ठ बनाकर उनसे सृष्टि संचार की विभिन्न हलचलों का सरंजाम खड़ा करा लेना इसी ब्रह्माण्ड व्यापी कुण्डलिनी का काम है। व्यक्ति सत्ता में भी काया और चेतना की यहीं तक है कि मस्तिष्कीय विभूतियाँ उत्पन्न होने पर बिजली के झटके पूर्ण अपूर्ण निद्रा उत्पन्न करने वाले उपचार किये जाय मानसिक चिकित्सा के नाम पर कुछ संकेत निर्देश देने की भी परिपाटी है। यह सब अपूर्ण है। मानसिक रोगों में अनैतिक एवं अवांछनीय इच्छाओं लिप्साओं और मान्यताओं को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए और स्वस्थ शरीर की तरह स्वस्थ मस्तिष्क के लिए एक ऐसा समूचा शास्त्र विकसित किया जाना चाहिए जिसमें शिक्षण ही नहीं उपचार भी सम्मिलित हो। योग साधना के कुछ चरण एकाग्रता, ध्यान के सहारे प्रयोग में आने लगे है और उनसे तनाव, रक्त चाप, अनिद्रा जैसे मानसिक रोगों पर अनुकूल प्रभाव देखा जाता है। आवश्यकता इस मानसोपचार को आध्यात्मिक साधनाओं के सहारे इस सीमा तक विकसित करने की है कि उन्मादों एवं सनकों को ही नहीं विकृत चिन्तन प्रवाह एवं अभ्यस्त कुसंस्कारों का परिशोधन भी सम्भव हो सके। चिन्तन और चरित्र को परिष्कृत बना सकने में समर्थ साधना पद्धति ही उपचारात्मक मन शास्त्र कह सकते हैं। विश्व के मूर्धन्य मनोविज्ञानवेत्ता मात्र विवेचनाएँ और व्याख्याएँ कर सके है उसके एक कदम आगे बढ़ कर हमें विकृतियों के निराकरण का कारगर उपाय भी खोजना है। निस्संदेह यह कार्य अब कभी भी सम्पन्न होगा तब उसमें योग साधना के ही आधारों को अपनाना पड़ेगा। मान्यताओं के गहन मर्मस्थल का स्पर्श इसी आधार पर सम्भव हो सकता है। ब्रह्मवर्चस् आरण्यक से इस स्तर की शोधें करने का विचार है। यदि उसमें कुछ कहने लायक सफलता मिली तो समझना चाहिए कि पदार्थ विज्ञान व्यवसाय विज्ञान, शिल्प विज्ञान, शिक्षा विज्ञान-आरोग्य विज्ञान की ही तरह यह अध्यात्म अवलंबी मनोविज्ञान भी विश्व मानव की सर्वोपरि आवश्यकता को पूर्ण कर सकने में समर्थ होगा। इस सफलता के पीछे हम समग्र मानव जाति की एक असाधारण अनुदान दे सकने की आशा अपेक्षा कर सकते हैं।

ब्रह्म वर्चस आरण्यक का नियमित साधना प्रशिक्षण सम्भवतः 1 जुलाई से चलाने की बात सोची गई थी पर इमारत बनने में विलम्ब होने के कारण सम्भवतः वह तिथि कुछ और आगे टलेगी एक कमरे में एक साधक एकान्त चिन्तन मौन आहार तप प्रत्याहार धारणा ध्यान निदिध्यासन, सहित जप हवन वस्तु, मुद्रा, प्राणायाम जल के नाम पर मात्र गंगाजल का उपयोग त्राटक आदि की साधनाएँ साधक की व्यक्तिगत स्थिति को देखते हुए पृथक् पृथक् बताई जायेंगी। हर साधक का एक जैसा क्रम न रहने से उन्हें सामूहिक कराया न जाएगा वरन् हर साधक की साधना उसी की स्थिति के अनुरूप होगी और प्रतिक्रिया को गम्भीरतापूर्वक देखते हुए आवश्यकतानुसार परिवर्तन किये जाते रहेंगे यह सब नये आरण्यक आश्रम में ही सम्भव है। शान्ति कुँज में चल रहें ब्रह्म वर्चस सत्र तो उसकी पूर्वभूमा मात्र है। आरण्यक बन तो रहा है पर आर्थिक कारणों से निर्माण की गति धीमी है। जब भी उसमें निवास की स्थिति बन जाएगी तभी उपरोक्त साधना क्रम आरम्भ कर दिया जाएगा तब तक साधकों के नाम नोट किये जाते रहेंगे और आरम्भ होते ही उन्हें बुलाने में प्राथमिकता रखने के आश्वासन भेजे जाते रहेंगे। बन रहे आरण्यक का निर्माण कार्य जिस दिन में साधकों के रहने योग्य बन जाएगा उसी दिन से निर्धारित प्रशिक्षण चलने लगेगा आशा की जानी चाहिए कि उसमें भी अनावश्यक विलम्ब नहीं लगेगा।

ब्रह्म वर्चस् आरण्यक में 100 साधकों के लिए स्थान बनाया गया है। यह अस्पताल में भरती होकर विशेष उपचार की तरह है। अपने से सम्बद्ध परिवार में 1 लाख तो वे नैष्ठिक साधक ही है जिनने गत वर्ष स्वर्ण जयन्ती साधना में सम्मिलित रहने का व्रत निबाहा इससे कई गुने वे लोग है जो प्रतिज्ञा बद्ध रूप से तो नहीं पर साधना के नियमित रूप से साधना करते हैं। विचार यह है कि इन्हें भी ब्रह्म वर्चस साधना का आभास कराया जाय। अन्यथा वे पीछे कभी हरिद्वार आते तो रहेंगे, पर वैसा स्वच्छ मार्ग दर्शन शायद कठिन पड़े। इधर हमारी भी इच्छा है कि जिस प्रकार गायत्री साधना की दिशा में प्रोत्साहित करने से लेकर सफल बनाने तक में व्यक्तिगत सहयोग करने में साधकों की सहायता की उसी प्रकार ब्रह्म वर्चस की उच्चस्तरीय साधना में अपना सहयोग सम्मिलित रह सके। इसलिए सोचा यह गया है कि इस अभिनव

*समाप्त*

First 23 25 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जीवन और उसकी परिभाषा
  • योग का प्रयोजन और प्रतिफल
  • श्रद्धा अन्तः जीवन की एक प्रबल शक्ति
  • दिशाओं को नमस्कार (kahani)
  • हिमालय की छाया-गंगा की गोद में ब्रह्मवर्चस साधना
  • कुण्डलिनी जागरण और चक्र वेधन
  • Quotation
  • आत्म बोध और तत्त्व बोध की दैनिक साधना
  • साधना की सफलता में आसन की उपयोगिता
  • Quotation
  • प्राणायाम प्राणशक्ति बढ़ाने का वैज्ञानिक आधार
  • कुण्डलिनी योग और अजपा गायत्री
  • Quotation
  • हंस योग की शास्त्रचर्चा
  • खेचरी मुद्रा और रसानुभूति
  • खेचरी मुद्रा की प्रतिक्रिया और उपलब्धि
  • ऊर्ध्वगमन का अभ्यास शक्तिचालनी मुद्रा द्वारा
  • त्राटक साधना से दिव्य दृष्टि की जागृति
  • अनाहत नाद ब्रह्म की साधना ओंकार के माध्यम से
  • तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
  • Quotation
  • दुष्कर्मों की निवृत्ति प्रायश्चित्त से ही सम्भव है।
  • तीर्थयात्रा हर किसी के लिये हर स्थिति में सम्भव!
  • ब्रह्मवर्चस् साधना का भावी उपक्रम
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj