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Magazine - Year 1978 - Version 2

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Language: HINDI
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बुद्धिमान होने के कारण मनुष्य सबसे बड़ा नहीं है।

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मनुष्य को परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना कहा गया है। परमात्मा ने उसमें वे सभी विशेषताएँ और क्षमताएँ समाहित कर दी हैं-जिनके आधार पर यह कहा जा सके कि ईश्वर ने अपने इस प्रिय पुत्र पर अपना विशेष प्यार दुलार लुटाया। स्थूल दृष्टि से देखने पर यही दिखाई देता है कि मनुष्य को सर्वसमर्थ शरीर तन्त्र के अलावा बौद्धिक सामर्थ्य का विशेष अनुदान मिला है। लेकिन मनुष्य को प्राप्त हुई शारीरिक सामर्थ्य से अन्य प्राणियों की तुलना की जाय तो कितने ही प्राणी उससे अधिक बलवान और शक्तिशाली सिद्ध होंगे। बौद्धिक सामर्थ्य और सूझबूझ की तुलना में चींटी, कौआ, खरगोश, कुत्ता, बिल्ली आदि कितने ही प्राणी मनुष्य से इक्कीस सिद्ध होंगे।

कहा जाय कि इन सब प्राणियों में सीखने की क्षमता नहीं होती। यह सोचना भी गलत है क्योंकि शरीर रचना में उससे समानता रखने वाले प्राणी उससे अधिक अच्छी तरह सीख समझ सकते हैं। मनुष्य की शरीर संरचना और बौद्धिक सामर्थ्य से निकटतम अनुरूपता रखने वाला प्राणी खोजा जाय तो वह लंगूर ही होगा। लंगूरों की प्रायः तीन श्रेणियाँ बतायी जाती हैं एक-ओरगुटांन, दूसरी-गुरिल्ला और तीसरी श्रेणी में चिंपैंजी आते हैं।

इनमें से भी ओरगुंटान श्रेणी के लंगूर कम होते जा रहे हैं। अब ये केवल इण्डोनेशिया के जंगलों में ही मिलते हैं और बन्दरों की तरह वृक्षों पर एक टहनी से दूसरी टहनी पर कूदते हैं। इनकी भुजाएँ अन्य लंगूरों की तुलना में अधिक लम्बी और सशक्त होती हैं तथा इनके पाँव अन्य लंगूरों की अपेक्षा छोटे और कमजोर। ओरगुण्टान को पकड़कर यदि किसी पिंजड़े में बन्द कर दिया जाय तो चुपचाप उदास मुद्रा में बैठ जाते हैं। जैसे ये अपनी बंधक स्थिति से क्षुब्ध हों और उसको पीड़ा छटपटाहट अनुभव करते हों।

ओरगुंटान के कुछ अधिक विकसित लंगूर है गोरिल्ला। ये प्रचुर संख्या में पाये जाते हैं। सीधे खड़े होने पर 5 फीट के दिखाई देते हैं। अफ्रीका में पाये जाने वाले गुरिल्लों में से कुछ का वजन तो दो क्विंटल तक है। लेकिन ये कभी-कभी ही सीधे खड़े होते हैं।

मनुष्य से सर्वाधिक समीप लंगूर है चिंपैंजी और मनुष्य के रक्त में इतनी समानता पाई जाती है कि कई बार यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि यह आदमी का रक्त है अथवा चिंपैंजी का। यही नहीं चिंपैंजिओं को भी मनुष्य में होने वाले रोगों यथा-यस्पिण्ड पोलियो जैसी बीमारियों का शिकार होता देखा गया है।

चिंपैंजी को एक भाषा ही नहीं मिली है अन्यथा कई मामलों में यह मनुष्य की न केवल बराबरी करता है, वरन् उसे पीछे भी छोड़ देता है। चिम्पैंजी जंगल में अपने आसपास के वायुमण्डल के सम्बन्ध में बहुत अधिक सतर्क रहते हैं। जंगल में जब ये एक दूसरे को पुकारने के लिए किलकारी करते हैं तो मनुष्य के लिए उसकी आवाज कान फाड़ देने वाली सिद्ध होती है। जब इन्हें पकड़कर कहीं रख लिया जाता है और ये नये व्यक्तियों को देखते हैं तो इतनी जोर से चीखते हैं कि इनके रखवालों को कनटोप पहन लेना पड़ता है।

चिंपैंजी मनुष्य के हावभाव और सिखाई जाने वाली बातों का बहुत शीघ्र अनुकरण करने लगते हैं। उनकी प्रकृति का अध्ययन करने वालों में गार्डनर तथा उनकी पत्नी बीट्राइस प्रमुख रही हैं। 11 वर्ष गार्डनर दम्पत्ति ने एक आठ मास के चिंपैंजी को सिखाना आरम्भ किया। चिंपैंजी को बाकायदा नाम भी दिया गया-बाशोई। गार्डनर दम्पत्ति ने बशोई को अमेरिका सांकेतिक भाषा सिखाई जो प्रायः गूँगों, बहरों को सिखाई जाती है। जब वह चिंपैंजी 5 का वर्ष हो गया तो उसे इस भाषा के 132 संकेतों का अच्छी तरह अभ्यास हो गया।

बाशोई के अलावा गार्डनर दम्पत्ति ने 4 और चिंपैंजी वाले जिनमें से एक का नाम भोजा। भोजा अब चित्र भी बनाने लगा है। उसने अपनी प्रतिभा का प्रथम परिचय श्याम पट पर एक चाक से दिया। भोजा प्रायः अपने मानव सम्बन्धियों को चित्र बनाते हुए देखता रहता था। एक दिन भोजा को न जाने क्या सूझी कि उसने चाक उठाया और लगा ब्लैक बोर्ड पर एक डिजाइन बनाने। जब वह डिजाइन बना चुका तो उसने संकेत दिया कि मेरा काम खत्म हो गया है।

यह पूछा जाने पर कि यह क्या है तो भोजा में सांकेतिक भाषा में उत्तर दिया-यह पक्षी है।

सिखाने पर कोई भी व्यक्ति कुछ भी समझ सीख सकता है, परन्तु उसमें जटिलता के अनुसार सीखने समझने की सामर्थ्य में भी अन्तर आ जाता है। उदाहरण के लिए कम्प्यूटर की कार्य प्रणाली इतनी जटिल है कि उसे चलाना हर किसी के बस की बात नहीं होती, परन्तु एक तीन वर्षीय चिंपैंजी लाना कम्प्यूटर चलाने में भी समर्थ है। उसकी विशेषता यह है कि वह अनुसन्धान कर्त्ताओं के प्रश्नों का उत्तर मशीन से मनुष्य चालकों की अपेक्षा अधिक शीघ्रता और कुशलता से उत्तर देता है।

इन घटनाओं को अपवाद भी कहा जाय तो रोजमर्रा के जीवन में चौराहों पर मजमा लगाकर मदारी के इशारों पर खेल दिखा रहे बन्दरों को देखा जा सकता है। अपने मास्टर का इशारा पाकर वे बन्दर कैसे-कैसे आश्चर्यजनक करतब कर लेते हैं, देखते ही बनता है। भालू भी बन्दरों की ही तरह कोई आदत या अभ्यास को तुरन्त ग्रहण कर लेता है। सरकस में तो घोड़े, शेर, बकरी, हाथी तक मनुष्यों से न हो सकने वाले काम सीख लेते हैं और अपने मास्टर के निर्देशन में खेल दिखाकर लोगों को चमत्कृत कर देते हैं।

कहा जा सकता है कि किसी कार्य का अभ्यास करना या बार-बार दोहरा कर उसे सीख लेना बुद्धिमत्ता नहीं है। बुद्धिमानी का अर्थ मौलिक सूझबूझ है जो किसी भी अवसर या घटना विशेष पर तुरन्त निर्णय लेकर अमल में ले आये। इस मौलिक सूझबूझ को प्रत्युत्पन्नमति भी कहा जा सकता है। अन्य प्राणियों में प्रत्युत्पन्नमति नहीं होती। जैसे किसी तोते को रटा दिया जाय कि “डर मत डर मत।” तोता हमेशा यही दोहराता रहे-डर मत डर मत” परन्तु बिल्ली दिखाई देते ही तोता टें-टें करने लगता है। उस समय न इससे उड़ते बनता है न डर मत डर मत का पाठ करते।

आकस्मिक घटनाओं में फँसकर तुरन्त निर्णय लेने की क्षमता तो मनुष्यों में भी बहुत कम होती है। शौर्य, पराक्रम और साहस पर घण्टों भाषण देने वाले लोग स्वयं संकट के समय घबड़ाकर भागते या हड़बड़ाहट में उस संकट को और गम्भीर बनाते देखे गये है। वस्तुतः मनुष्य में जो कुछ बुद्धिमता दिखाई देती है, उसका अस्सी प्रतिशत भाग सीखा और दोहराया गया भर होता है। बार-बार अभ्यास से वह बात उसके दिमाग में डाल दी गयी भर होती है। उदाहरण के लिए चार पाँच वर्ष का होते ही बच्चे को अक्षर ज्ञान कराया जाता है, पाठों को दोहराना और अक्षरों को पहचानना सिखाना जाता है। जो भाषा वह बचपन में सीख लेता है वह उसे आजीवन याद रहती है। इसी प्रकार आदतें, स्वभाव और प्रकृति भी बहुत कुछ दूसरों की देखा−देखी सीखी जाती है।

जिसे मौलिक बुद्धि कहा जा सके, वह क्षमता बहुत कम लोगों में होती है क्योंकि मनुष्य जो कुछ भी सीखता समझता और उस आधार पर सभ्य, समझदार दिखाई देता है वह समाज में रहने के कारण ही हैं। जिस वातावरण में वह रहता है, वह वातावरण उसे अनुरूप बनने के लिए प्रेरित करता है। बचपन से ही उसे सीखना सिखाया जाता है इसलिए वह आगे चलकर बिना सिखाये भी बहुत कुछ सीख लेता है।

मौलिक बुद्धि जैसी कोई चीज न होने पर भी मनुष्य को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए भावनाओं का आधार लिया जा सकता है। मनुष्य में भावनाएँ होती हैं, यही ठीक है, परन्तु पशुओं में भी यह भाव सम्वेदनाएँ होती है और वे मनुष्य से ज्यादा उन्हें अनुभव करते हैं। अन्तर है तो इतना ही कि मनुष्य भावनाओं को व्यक्त कर सकता है और पशु-पक्षी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकते।

भावों की यह अभिव्यक्ति भी मनुष्य अपने परिवार और समाज से ही सीखता है। मनुष्य के संसर्ग में रहने वाले अन्य कई प्राणी, पशु-पक्षी भी अपनी भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करना सीख जाते हैं और उन्हें व्यक्त भी करते हैं। कहा जाता है कि मनुष्य के पास अपने भावों को व्यक्त करने के लिए एक समर्थ और समृद्ध भाषा है। अन्य प्राणियों के पास कोई आधा नहीं है। लेकिन यह एक भ्रम भी हो सकता है कि अन्य प्राणियों के पास भाषा नहीं है। हो तो उन्हें भी देखा जा सकता है। यह बात और है कि मनुष्य उनकी वाणी को सुनता तो है, परन्तु समझ नहीं सकता अथवा मनुष्य ने अपनी भाषा का आवश्यकता के अनुसार अधिक विकास कर लिया और अन्य प्राणी उस क्षेत्र में पीछे रह गये। लेकिन यहाँ आकर मनुष्य को मात खा जानी पड़ती है। कोई मनुष्य आज तक पशु-पक्षिओं की भाषा में बात करने या समझने में समर्थ नहीं हो सका है, जबकि जानवर उसके भाव यहाँ तक कि उसकी भाषा को समझने का अभ्यास बहुत जल्दी कर सकते हैं।

मनःशास्त्र वेत्ता पेटरराक ने एक चिंपैंजी पाला जिसे नाम दिया ‘कोको।’ कोको के सम्बन्ध में राक का दावा है कि वह अपनी भावनाओं को भी व्यक्त कर सकता है। कोको ने 5॥ वर्ष की आयु में सांकेतिक भाषा के 300 वाक्य सीख लिए।

कुछ और मनोवैज्ञानिकों ने कोको की परीक्षा ली तो उसने प्रत्येक व्यवहार की प्रतिक्रिया व्यक्त की और हर्ष उल्लास के साथ खेद व दुःख भी व्यक्त किया।

शरीर, बुद्धि, भावनाएँ उनकी अभिव्यक्ति और भाषा की दृष्टि से मनुष्य का अन्य प्राणियों की तुलना में बढ़ा-चढ़ा होना मात्र एक भ्रम है। यह आभास जरूर होता है कि वह अन्य प्राणियों से बढ़ा-चढ़ा और उन्नत है। सम्भव है यह भ्रम अन्य प्राणियों में भी हो। जिन आधारों पर मनुष्य की श्रेष्ठता सिद्ध की जाती है, वे तो झूठे हैं ही परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि वस्तुतः मनुष्य अन्य प्राणियों के समान ही है। निस्सन्देह मनुष्य अन्य प्राणियों की तुलना में श्रेष्ठ और परमात्मा का सबसे बड़ा पुत्र है। क्योंकि मनुष्य जीवन एक अवसर है जिसमें यह सिद्ध किया जा सकता है कि परमात्मा ने हमें जो वस्तुएँ, जो विशेषताएँ और जो अधिकार दिये हैं उनका हम सदुपयोग कर सकते हैं और अपनी प्रामाणिकता, कर्तव्यपरायणता के आधार पर और अधिक उच्च स्थिति प्राप्त करने के योग्य सिद्ध कर सकते हैं।

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