
घटनाओं का स्वरूप घटने से पहले ही बन जाता है।
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मौसम का पता लगाने वाले यन्त्र तो अभी कुछ दशाब्दियों पूर्व निर्मित हुए हैं जिनके द्वारा आगामी 24 घंटों अथवा उससे कुछ अधिक समय का मौसम ज्ञात किया जा सकता है परन्तु इससे पहले भी लोग मौसम का पूर्वानुमान लगा लेते थे। वह पूर्वानुमान इतना सटीक बैठता था कि लोग उसी आधार पर खेत जोतने की तैयारियाँ करने लगते थे। मौसम अनुसंधान शालाओं द्वारा प्रसारित सूचनायें आज भी सीमित क्षेत्रों में ही पहुँच पाती हैं। परन्तु दूर दराज गाँवों में बसे आधुनिक सभ्यता और साधनों से कोसों दूर लोग पशु-पक्षियों की हरकतों को देखकर मौसम का अनुमान लगाते हैं तथा उसी आधार पर जुताई बुआई की तैयारियाँ करने हैं।
पशु पक्षियों को बहुत-सी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। कहा जाता है कि कोई मकान गिरने वाला होता है और उसमें कोई बिल्ली रह रही होती है तो बिल्ली अपने बच्चों को उसमें से पहले ही निकाल लेती है। देहाती मरघट में जहाँ कभी-कभार कोई मुर्दा जलता है यदि कोई सियार लौटता दिखाई देता है तो गाँव के लोग समझने लगते हैं कि निकट भविष्य में ही कोई मरने वाला होता है। जब कुत्ते एक साथ मिलकर ऊँचे स्वर में रोने लगते है तो बताया जाता है कि उस गाँव में चोरी, डकैती, बीमारी, कलह, अग्निकाण्ड जैसे उत्पात होने वाले हैं।
कहा नहीं जा सकता कि ये मान्यतायें कहाँ तक सत्य हैं। परन्तु इन मान्यताओं के आधार में निहित तथ्य अवश्य सत्य पाये जाते है। वह तथ्य यह है कि जो घटनायें हमें आज घटती हुई दिखाई देती हैं उनके बीच अतीत के गर्भ में बहुत पहले ही विकसित हो चुके होते हैं। मकान का गिरना उसी समय दिखाई पड़ता है जबकि उसके टुकड़े जमीन पर गिरते दिखाई देते हैं परन्तु वास्तव में उसके गिरने की सूक्ष्म प्रक्रिया बहुत पहले से ही आरम्भ हो चुकी होती है कोई मनुष्य कितना ही आकस्मिक मरता हुआ जान पड़े परन्तु उसके मरने की प्रक्रिया काफी समय पहले शुरू हो चुकी होती है। यह प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार आरम्भ होती है जिस प्रकार किसी बच्चे का जन्म आज होता हुआ दिखाई दे परन्तु उसका गर्भाधान नौ-सवा नौ महीने पहले हो चुका होता है।
हमारी दृष्टि की पकड़ में वह घटनाक्रम तभी आता है जब वह दिखाई देता है अन्यथा घटनाओं की सम्भावना के बीज बहुत पहले ही पड़ चुके होते है। कई जीव जन्तुओं में इन बीजों का अंकुरण पहचानने की सामर्थ्य होती है। मुर्गे को सूर्य की प्रथम किरण का आगमन होते ही जबकि पूर्व के आकाश पर लालिमा छाने ही लगती है सूर्योदय की सम्भावना का पता लग जाता है। कितने ही अंधेरे और बंद स्थानों पर रखे जाने पर भी मुर्गे को निश्चित समय पर बांग देते हुए देखा जा सकता है। समुद्र में जब बादल बनना आरम्भ ही होते है तभी उन स्थानों पर मोर एक विशेष स्वर के साथ कूकने लगते हैं जहाँ कि वर्षा होती है। जब मोर खूब कूकने लगता है तो किसान समझ लेता है अब वर्षा शीघ्र ही होने वाली है। रूस के दक्षिणी भाग में एक ऐसी चिड़िया पाई गयी है जो भूकम्प आने के हफ्तों पहले उस स्थान दिखाई देना बन्द हो जाती है। अर्थात् उसे भूकम्प आने का आभास हो जाता है, जबकि आधुनिकतम विकसित यन्त्र भी भूकम्प की चेतावनी दो-तीन दिन से अधिक समय पहले नहीं दे पाते।
कई बार मनुष्यों में भी इस प्रकार आने वाली घटनाओं का आभास होता है। इधर पिछले कुछ वर्षों से तो परावेत्ताओं ने पूर्वाभास की घटनाओं को लेकर ‘प्रीर्कोग्नीशन’ के नाम से परामनोविज्ञान का नया ही अध्याय खोला है। लेकिन इस बात का पता नहीं लगाया जा सकता कि पूर्वाभास का करण क्या है? डा. पुहरिच ने लिखा है कि- “एलन बैधन नामक एक अमरीकी को राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या का पूर्वाभास एक सप्ताह पूर्व ही हो गया था। बैधन ने कैनेडी की हत्या से एक सप्ताह पहले सपने में देखा था कि वे एक हॉल के रास्ते बहुत से युवकों के साथ एक पार्टी में जा रहे है तभी गोली चलती है और कैनेडी गिर पड़ते हैं। बैधन-जो एक उच्च शिक्षण संस्थान में प्राध्यापक था, इस स्वप्न को देख कर चिंतित हो गया। उसने अपना यह स्वप्न लिखकर स्वप्नों पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों के पास भेजा तथा’ लिखा कि यदि वे चाहें तो इस बात की सूचना राष्ट्रपति को दे दें। किन्तु प्राध्यापक की चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया गय और सप्ताह भर बाद ही जून 1968 को राष्ट्रपति कैनेडी की गोली मारकर हत्या कर दी गयी।”
डा. पुहरिच अमेरिका के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक हैं तथा उन्होंने वर्षों तक अतींद्रिय ज्ञान की विभिन्न धाराओं का अध्ययन किया है। अब्राहम लिंकन द्वारा अपनी मृत्यु का पूर्वाभास स्वप्न में होने की घटना तो सर्वविदित ही है। कहा जाता है कि इस प्रकार पूर्वाभास देने वाले स्वप्न आकस्मिक संयोग अथवा भयभीत अचेतन मन की कल्पनायें ही होती हैं जो कभी-कभी सत्य भी हो जाती है। लेकिन ऐसी भी कई घटनायें हैं जिनके सम्बन्धित व्यक्तियों से पूछे जाने पर भावी घटनाओं का यथा तथ्य चित्रण कर दिया। ऐसे कई भविष्यवक्ता विश्वख्याति प्राप्त कर चुके हैं। जीन डिक्सन, पीटर, हरकैम्स, प्रो. हेटार जैक एंडरसन आदि भविष्यवक्ता इसी श्रेणी के है।
“टाइम्स ऑफ इण्डिया” के 23 मई 1967 के अंक में एक रेल दुर्घटना के विवरण के साथ-साथ राजस्थान विश्वविद्यालय के परामनोविज्ञान विभाग द्वारा किये गये अध्ययन का समाचार भी प्रकाशित हुआ था। जयपुर की एक सामान्य गृहस्थ महिला श्रीमती रत्नमणि जैन के बारे में “टाइम्स ऑफ इण्डिया” के संवाददाता को यह सूचना मिली कि उन्हें पूर्वाभास के अनेक अनुभव होते रहने है वह 16 मई 67 को उनके निवास स्थान पर पहुँचा। संवाददाता ने विभिन्न बातों पूछने के बाद यह पूछा कि वे किसी ऐसे पूर्वाभास की सूचना दें जो इस समय घटित नहीं हुआ है। यह पूछा जाने पर श्रीमती जैन ने अपने एक पूर्वाभास के अनुभव का वर्णन करते हुए कहा-एक रेल दुर्घटना होने वाली है। दुर्घटना काफी भयंकर होगी और उसमें 50 से भी अधिक व्यक्ति मारे जायेंगे। गाड़ी स्टेशन पर बहुत तेज स्पीड से आयेगी और किसी चीज से टकरा जाने के कारण इंजिन टेढ़ा हो जायेगा-लाइन में कोई गड़बड़ होने के कारण ही यह दुर्घटना होगी-दस दिन के अन्दर-अन्दर या इससे भी पहले यह दुर्घटना होगी-तथा दुर्घटना बम्बई-दिल्ली रेल मार्ग के बीच किसी स्टेशन पर घटेगी।”
संवाददाता ने श्रीमती जैन के पूर्वाभास को तत्काल अपनी डायरी में नोट कर लिया तथा इस विवरण को अन्तर्देशीय पत्र में लिखकर जोधपुर भेज दिया। अन्तर्देशीय पत्र पर इसीलिए कि उस पर लगी डाक की छाप से बाद में तिथि सम्बन्धी कोई शंका नहीं रह जाती। यही नहीं प्रतिनिधि ने अपने कई मिलने जुलने वाले व्यक्तियों को भी इस पूर्वाभास की सूचना देदी। छठवें दिन ही प्रातः रेडियो द्वारा प्रस्तावित तथा लगभग सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित बम्बई दिल्ली मार्ग पर घटी एक रेल दुर्घटना के समाचार शब्दशः पूर्वाभास के विवरण से मिलते-जुलते पाये गये। दुर्घटना में 62 व्यक्ति मारे गये थे। ट्रेन का इंजन लाइन की गड़बड़ी से गलत बन्द पटरी पर आ गया था और रेत के टीले से टकराकर टेढ़ा हो गया था। गाड़ी तेज स्पीड से आ रही थी और इस दुर्घटना के परिणामस्वरूप जान, माल की काफी क्षति हुई।
स्वप्नों के माध्यम से तो एक नहीं सैकड़ों पूर्वाभास की दुर्घटनाओं के विवरण मिलते हैं। इन पूर्वाभासों के कारण कई बार लोग लाभान्वित भी होते हैं। स्वप्न और परामनोविज्ञान के सम्बन्धों की कड़ियाँ मिलाने और इन क्षेत्रों के शोध करने हेतु गठित हालैण्ड की डच सोसायटी फार साइकिक रिसर्च ने इस दिशा में बहुत छानबीन की है। इस सोसायटी की फाइलों में एक ऐसे सामान्य व्यक्ति का प्रकरण भी मौजूद है जिसके पास किसी भी प्रकार की पराशक्ति या अलौकिक शक्ति होने की कोई सम्भावना नहीं थी।
नवम्बर 1947 में उक्त डंच नागरिक ने स्वप्न में कई बार 3....84 का अंक देखा। बार-बार उसकी आँख कुल जाती और बारबार उसे यह अंक दिखाई देता। परेशान होकर वह आधी रात को बिस्तर में ढूंढ़ बैठा और वह अंक याद करने के लिए उसने कई बार उसे रटा। सोकर जब उठा तो उसे अंक भली भाँति याद था।
पहले तो वह उस अंक को लेकर परेशान रहा। फिर एक बार स्वप्न ने ही उसकी समस्या का समाधान किया। वहीं अंक 3784 उसने उच राज्य लाटरी के मार्च 38 वाले ड्राफ्ट के टिकट पर अंकित देखा। अगले दिन ही वह अपने शहर के लाटरी सेण्टर पर गया और वहाँ से डल नम्बर वाला टिकट खरीद लिया। मार्च 48 में उसी टिकट पर प्रथम पुरस्कार मिला। स्वप्न यदि दामित वासनाओं की अभिव्यक्तियां ही है तो उसक्ति की चेतना पर यह पूर्वाभास कैसे पहुँचा और कैसे उसने इसका लाभ उठाया।
कोई आश्चर्य नहीं कि पूर्वाभास की घटनायें भविष्य में आने वाली विपत्तियों से सतर्क करते अथवा सामने प्रस्तुत अवसरों से लाभ उठाने के लिए हो घटती हो। यह तो तय है कि सूक्ष्म जगत में कोई भी परिवर्तन स्थल जगत में घटित होने से पहले ही घटने लगता है। यह बात और है कि उन परिवर्तनों को देखने समझने में हमारी चेतना असमर्थ हो। जब कभी चेतना में वह आभास कौंधता है तो घोर अंधियारी रात में यकायक चमक उठी बिजली के प्रकाश में दिखाई पड़ने वाली सोने की गठरी के समान सुखद सौभाग्य बन जाता है। संसार के प्रख्यात धनपति और सोने की खान के स्वामी विनफील्ड स्ट्राटन के साथ बिल्कुल इसी तरह की घटना घटी।
विनफील्ड स्ट्राटन अपने व्यवसाय में सब कुछ गंवा कर अपने साथी के साथ क्षति की खोज में कीलेरेडौ झरने के पराधाए पर सोया हुआ था। घटना 4 जुलाई 1891 की है। स्वप्न में उसने देखा कि वह जहाँ सोया है वही से बैटिल पहाड़ की ओर चल पड़ा है। उसने स्वप्न में ही पहाड़ों पर एक स्थान पर खोदना आरम्भ किया। थोड़ा आरम्भ किया। थोड़ा ही खोदने पर उसने सोने का एक बहुत बड़ा भण्डार प्राप्त कर लिया। स्वप्न इतना स्पष्ट था कि उसे यह सब कुछ जागृत स्थिति में ही घटित हुआ अनुभव होने लगा। स्वप्न में देखे गये रास्ते भर वह तत्काल चला बढ़ा तथा देखे! हुए स्थान पर उसने थोड़ा-सा खुरचा भर था कि सोना झलक आया। इस प्रकार स्ट्राटन के हाथ जो सोने की पत्रिका खदान मिली वह संसार में दूसरे नम्बर की खदान हैं।
कौन-सी घटनायें, भावनायें, संवेदनायें, अनुभूतियाँ पूर्वाभास होती हैं यह अलग विषय है। लेकिन इतना निश्चित है कि जो कुछ हम आज घटित होता देखते है वह सूक्ष्म जगत में काफी पहले ही घटित हो चुका होता है। कुछ लोग उसी समय उन घटनाओं को ट्रान्समीटर की तरह पकड़ लेते है। किन्हीं किन्हीं को यह खमता पूर्व जन्मों के संचित शुभ संस्कारों परिणामस्वरूप मिलती हैं और कोई कोई व्यक्ति उन्हें इसी जन्म में योग तप द्वारा आवे अपने कणय कस्मपों को माँज धोकर प्राप्त करते हैं। भारतीय धर्मशास्त्रों में इस प्रकार की सैकड़ों घटनाओं के उल्लेख मिलते हैं। वाल्मीकि रामायण के सम्बन्ध में तो प्रख्यात है कि बाल्मीकि ने पूर्ण पहले ही लिखकर रख दी थी और लव−कुश उसे गाते हुए राम के अश्वमेध यज्ञ में पहुँचे थे।
यह सामर्थ्य प्राप्त करना दुरूह नहीं है। अपनी चेतना को इतना निर्मल, निष्कलुष बना दिया जाय कि उसमें रंचमात्र भी विकार न रह पाये तो बहुत ऊँचाई उड़ते हुए विमान की भाति मीलों दूर उखड़ी लई पटटिप को देख कर-तेज गति से दौड़ आ रही रेल गाड़ी के दुर्घटना ग्रस्त होने का अनुमान लगाया जा सकना ही आवश्यकता अपनी चेतना से स्तर को अभीष्ट ऊंचा उठाने की हैं।