
दिमाग दूध से बना (kahani)
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कांग्रेस कार्यकारिणी के प्रधान सदस्य परेशान थे। वह रिपोर्ट नहीं मिल रही थी जिसके आधार पर महत्व पूर्ण प्रस्ताव पारित करने के लिए कार्यकारिणी की विशेष बैठक बुलाई गयी थी। स्वतंत्रता आन्दोलन का समय था, जबकि हर कदम ठीक समय पर उठाना अत्यधिक आवश्यक था। बिना आधार के कार्य आगे कैसे बढ़े?
अचानक ध्यान आया कि वह रिपोर्ट महात्मा गाँधी तथा डा. राजेन्द्र प्रसाद पढ़ चुके हैं। राजेन्द्र बाबू वरिष्ठ नेताओं पं. नेहरू, आचार्य कृपलानी, मौलाना आजाद आदि के साथ चर्चा कर रहे थे। उनसे पूछा गया तो बोले ‘हाँ मैं पड़ चुका हूँ और आवश्यक हो तो उसे बोल कर पुनः नोट करा सकता हूँ।
लोगों को विश्वास न हुआ कि इतनी लम्बी रिपोर्ट एक बार पढ़ने के बाद ज्यों की त्यों लिखाई जा सकती है। किन्तु और कोई चारा न था। खोज के साथ-साथ पुनर्लेखन भी प्रारम्भ कर दिया गया।
राजेंद्र बाबू 100 ये अधिक पृष्ठ लिखा चुके तब वह रिपोर्ट भी मिल गयी। कौतूहल वश लोगों ने मिलान किया तो कहीं भी अंतर न मिला। लोग आश्चर्य चकित रह गये। पंडित नेहरू ने प्रशंसा भरे स्वर में पूछा ‘ऐसा आला दिमाग कहाँ से पाया राजेन्द्र बाबू? और देश रत्न की चिर परिचित सोम्य मुस्कान के साथ उत्तर मिला। “ यह दिमाग दूध से बना है अण्डे से नहीं।