
विलुप्त सभ्यता के पुनरोदय की सम्भावना
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आज वैज्ञानिक इस बात को एकमत से स्वीकार करने लगे हैं कि वस्तुसत्य यानी जगत का यथार्थ स्वरूप विराट और जटिल है। उसके अनेक पहलू हैं। विज्ञान इनमें से एक है। इन विभिन्न पहलुओं में परस्पर विरोध नहीं, पूरकता हैं।
वैज्ञानिक चिन्तक हिंशलवुड आइन्स्टाइन के इस मत के पूर्ण समर्थक, थे कि अंतर्जगत में प्राणिमात्र में एकात्मता है। इस बार अपने एक मित्र द्वारा इस रहस्यवाद की खिल्ली उड़ाये जाने पर वे गम्भीर हो गये और बोले-”आन्तरिक जगत की वास्तविकता का खंडन वस्तुतः आसपास की सम्पूर्ण सत्ता को ही अस्वीकार करने के समान है। तर्काभास द्वारा उस वास्तविकता को झुठलाया नहीं जा सकता।”
वस्तुतः विश्वव्यापी चेतना’प्रवाह एक यथार्थ हैं और उसी का अंश हमसे से हर एक में विद्यमान होने से उस प्रवाह से मुक्त रूप में जुड़ सकना हर एक के लिये सम्भव है। यह सम्भावना प्रत्यक्ष प्रमाण बनकर भी सामने आती ही रहती है। योग-साधना तो उसका सुनिश्चित मार्ग है ही। कई बार इसे जीवन में बिना किसी योग-साधना के भी कुछ व्यक्तियों में यह सामर्थ्य विकसित देखी-पाई जाती है। जिससे जहाँ उनके पूर्व जन्म में सम्पन्न विकास का पता चलता हैं, वही मनुष्य के भीतर सन्निहित दिव्यचेतना का भी प्रमाण मिलता है।
टी. लोवसांग रम्पा ने अपनी पुस्तक “थर्ड आई” में व्यक्ति की दिव्य-दर्शन को सामर्थ्य की प्रक्रिया विवेचित की है। डेनियल चार ने “स्वर्गीय खजाने की खोज” में अपनी निजी दिव्य अनुभूतियों का प्रामाणिक विवरण दिया है। गोविन मैक्सवेल ने तो अपनी शोधों द्वारा यह निष्कर्ष प्रतिपादित किया हैं कि अतीत और भविष्य की अनुभूति की कुछ सामर्थ्य अनेक लोगों में होती है। किन्तु अधिक जानकारी और अभ्यास-मार्गदर्शन के अभाव में उनकी वह क्षमता अविकसित ही रही आती है। जिन लोगों में यह क्षमता अधिक विकसित होती है। उनके ही बारे में लोग जान पाते है। आश्चर्यजनक रूप से सही भविष्य-कथन करने वाले लोग ऐसे ही अधिक विकसित अतीन्द्रिय सामर्थ्य वाले होते रहे हैं।
ऐतिहासिक-राजनैतिक घटनाक्रमों की अचूक भविष्यवाणियों के लिये प्रो. कीरो, प्रो. हरार, जूल बर्न, जीन डिक्सन, जोरार्ड क्राइसे, एण्डरसन आदि प्रसिद्ध रहें हैं। दो प्रख्यात भविष्यवक्ता ऐसे भी हुए, जिन्होंने वैज्ञानिक खोजों से सम्बन्धित भविष्यवाणियाँ कीं और जो उस समय की वैज्ञानिक प्रगति के निष्कर्षों की दृष्टि से अविश्वसनीय मानी गई। किन्तु कालाँतर में वही सत्य सिद्ध हुई।
जोनाथन स्विफ्ट ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “गुलीवर भ्रमण-कथा” में लिखा कि “मंगल ग्रह के दो चन्द्रमा हैं। और वे उसके चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इनमें से एक की चाल दूसरे से दुगनी है।” उस समय यह बात निरी कल्पना मानी गयी। उसके डेढ़ सौ वर्ष वाद सन् 1877 में वाशिंगटन की ‘नेशनल आब्जर्वेटरी’ की शक्तिशाली दूरबीन ने यह तथ्य नोट किया कि वास्तव में मंगल ग्रह के दो चन्द्रमा और और एक की गति दूसरे से दूनी है। तब लोग चकित रह गये कि उस साधनहीन जानेथन ने इतने वर्षों पूर्व यह सही बात कैसे जान ली?
ऐसे ही एक चमत्कारी दिव्यदर्शी थे एडगर कायसी जो अब से 33 वर्ष पूर्व सन् 1945 में मरे। एडगर कायसी “निद्रालीन देवदूत” के रूप में प्रसिद्ध थे। क्योंकि वे गहरी निद्रा की स्थिति में ये भविष्यवाणियाँ करते थे। विशेष बात यह है कि नींद से जगने के बाद खुद कायसी को याद नहीं रहता था कि उन्होंने क्या कहा है? इसीलिये उनकी प्रसिद्धि बहुत विलम्ब से हुई। बचपन में वे यदा-कदा सोते समय विलक्षण बातें बड़बड़ा उठते थे। तब माँ-पिता अधिक ध्यान नहीं देते थे। बड़े होने पर उनकी इस क्षमता का पता चला। परा मनोविज्ञान में रुचि रखने वाले अध्येताओं ने उनकी इन भविष्यवाणियों को नोट किया। इन परामनोवैज्ञानिकों के अनुसार एडगर कायसी नींद में इस तरह बोलते जाते थे, मानों वे कुछ स्पष्ट लिखा देख रहे हैं और पढ़ते जा रहे हैं। कुछ लोगों के अनुसार वे अपने ही अंतर्मन में संचित जन्म-जन्मान्तरों की स्मृतियों को दुहराते जाते थे। अस्तु वे भविष्य कथन एडगर कायसी की “रीडिंग” के रूप में नोट किये गये।
प्रारम्भ में एडगर कायसी ने आत्मसम्मोहन का कुछ अभ्यास किया। वे “आटो सजेशन’ द्वारा गहरी निद्रा में चले जाते और जानकारी देने लगते। अनेक रोगियों के रोग के जटिल कारण और सरल उपचार उन्होंने इस स्थिति में कई बार बताये। सैकड़ों रोगों और मनोरोगी कायसी की इस करामात से लाभान्वित होकर स्वस्थ हो गये। बाद में कायसी इस प्रकार की भविष्यवाणियाँ भी करने लगे। विज्ञान, पुरातत्व, राजनीति, समेत सामाजिक गतिविधियों के अनेक क्षेत्रों के बारे में उन्होंने अतीत और भविष्य सम्बन्धी अनेक बातें बतलाई।
अणुबम के निर्माण की सर्वप्रथम भविष्यवाणी एडगर कायसी ने ही की थे। यद्यपि वे वैज्ञानिक नहीं थे। इस प्रकार अमरीका में जातीय दंगे भड़क उठने की उनकी भविष्यवाणी भी अक्षरशः सत्य निकली, यद्यपि न वे इतिहास के अध्येता थे, न समाजशास्त्री। दो अमरीकी राष्ट्रपतियों की हत्याओं की उनकी भविष्यवाणी भी जोन डिक्सन और जूल बर्न की ही तरह की थी और सत्य सिद्ध हुई।
जापान और अमरीका में युद्ध होने जर्मनी की पराजय होने जैसी अनेक राजनैतिक भविष्यवाणियाँ तो अन्य प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं से मिलती-जुलती ही हैं। पर कायसी की इन सबसे पृथक भविष्यवाणियाँ की हैं, जो उनके अतीत-कथन से भी जुड़ी हैं। मय-सभ्यता के बारे में उन्होंने बताया था कि यह एक अति समृद्ध सभ्यता रह चुकी हैं। इनका-सभ्यता के विवरण भी उन्होंने सर्वप्रथम प्रस्तुत किये। बाद में, पुरातात्त्विक अनुसंधानों से ये विवरण प्रामाणिक सिद्ध हुए। सुनेरियन सभ्यता का कालपात्र गढ़े होने की बात भी कायसी ने कही थी। कई वर्षों बाद निपुर खंडहरों से 60 हजार मिट्टी की पट्टियाँ खुदाई के समय प्राप्त हुई; जिनमें सुमेरियन सभ्यता का ज्ञान-विज्ञान अंकित था।
इसी प्रकार कायसी ने अपनी निद्रावस्था के कथन में बताया कि आज से कई हजार वर्ष पूर्व धरती पर एक अति विकसित सभ्यता थी। उस समय विज्ञान आज से कई गुना विकसित था। ब्रह्मांड की यात्रा में समर्थ अन्तरिक्षयानों का प्रचुरता से प्रयोग होता था आणविक ऊर्जा के उपयोग से अनेकों लाभ लिये जाते थे, लेजर किरणों मेजर किरणों की उपयोगिता भी उन्हें ज्ञात थी। साथ ही दिव्यदर्शन, दूरानुभूति, दूसरों के मन की बात जान लेने, इच्छा-शक्ति से वस्तुओं और व्यक्तियों को प्रभावित कर सकने आदि तरह-तरह की अतीन्द्रिय क्षमताओं से लोग सम्पन्न होते थे।
एडगर का कथन था कि जल-प्रलय के समय वह सभ्यता समुद्र में समा गई। इसके बारे में एडगर ने भविष्य के जो कथन किये थे वे और भी विस्मयकर थे। उनका कहना था कि उस सभ्यता के ब्रह्माण्डीय संचार, केन्द्रों में से एक था पोसीडिया जो अतलांतिक महासागर के तट पर था। 1968 में अतलांतिक सभ्यता का पुनः उत्थान होगा। सर्वप्रथम ‘पोसीडियो केन्द्र का कुछ अंश प्रकट होगा। धीरे-धीरे उस सभ्यता के अनेक प्रमाण धरती पर मिलने लगेंगे। तीस वर्षों के भीतर ये प्रमाण अत्यधिक स्पष्ट रूप से और प्रचुर परिमाण में सामने आयेंगे। इसी बीच दुनियाँ के अनेक हिस्सों में व्यापक प्राकृतिक उथल−पुथल होगी। कई हिस्से जल में डूब जायेंगे। पुरानी सभ्यता नये रूप में उदित होगी। मनुष्य में देवत्व का उदय होगा और धरती पर फिर स्वर्गीय वातावरण पनपेगा। समृद्धि और विकास भौतिक भर न रहकर आध्यात्मिकता से भी जुड़ेगा। वर्तमान की विषमताएं तथा विकृतियाँ आधार से नष्ट हो जायेंगी।
जहाँ तक जल, प्रलय से किसी विकसित सभ्यता के अवसान की बात है; विश्व के तमाम प्राचीन साहित्य में धार्मिक पुट देकर इसका वर्णन यहाँ तक किया गया पढ़ने को मिलता है। भूगर्भ शास्त्रियों को भी यही मत हैं कि पृथ्वी के विशेष खंड टूट, टूट कर समय-समय पर जलमग्न होते रहे है। भूगर्भवेत्ता डा. ट्रिकलर ने हिमालय के आसपास के ध्वंसावशेषों का अध्ययन किया और पाया कि जलप्रलय की घटना सत्य है। यूनानी साहित्य, और बेबीलोनिया के साहित्य में भी जलप्लावान की चर्चा मिलती है। यूनानी पुराकथा के अनुसार डयूकालियन और उसकी पत्नी पैरहा का विनाश करने के लिये जीयस ने भीषण जलवृष्टि द्वारा नो दिन तक पृथ्वी को पानी में डुबाये रखा। अन्त में जब पति-पत्नी ने बलि दी; तब जीयस प्रसन्न हुआ और उन्हें संतान का वर दिया।
बाइबिल में भी जल-प्रलय होने का वर्णन है। उसके अनुसार जल देवता ‘नूह’ कुछ साथियों के साथ नौका में नौ महीने घूमते रहें। दसवें महीने के पहले दिन से जल कम होना शुरू हुआ। सुमेरियन और चीनी ग्रन्थों में भी जल-प्लावन की चर्चा है। प्राचीन भारतीय साहित्य में भी जल-प्रलय का स्थान-स्थान पर वर्णन मिलता है। अतः एडगर कायसी द्वारा वर्णित जल-प्रलय की बात तो विस्मयकारक नहीं है।
आश्चर्य की अधिकता एडगर की मृत्यु के 23 ‘वर्ष’ बाद उभरी। सन् 1968 में पोसीडिया के एक भाग के प्रकट होने की भविष्यवाणी उसने की थी। ठीक इसी वर्ष अतलांतिक समुद्र के बहामा-विमिनी वारमूडा क्षेत्र में कुछ विचित्र निर्माणों का पता चला। कायसी ने पोसीडिया का जो वर्णन किया है, वह इसी वारमूडा क्षेत्र का ही वर्णन है। उस वर्ष इस क्षेत्र में ऐसे अवशेष पाये गये, जिनसे स्पष्ट हुआ कि वे किसी विकसित प्राचीन सभ्यता के बन्दरगाह या प्लेटफार्म रहे होंगे। सैकड़ों टन भारी चट्टानें किस प्रकार किन साधनों से लायी गई होंगी और उनको विशिष्ट आकृतियों में ढालने वाली वास्तुकला कितनी समृद्ध रही होगी, इसकी कल्पना भी विस्मय से भर देती है।
एक विचित्र बात यह है कि एडगर कायसी द्वारा वर्णित इसी क्षेत्र में वह बहुचर्चित वारमूडा त्रिकोण हैं, जहाँ से अब तक पचासों जलयान और अन्तरिक्षयान गायब होकर अज्ञात लोक में खो चुके हैं। अब तक अनेक वैज्ञानिक इस तथ्य का रहस्य खोज निकालने का प्रयास कर चुके हैं कि जलयानों ओर वायुयानों के इस क्षेत्र में रहस्यमय लोप का कारण क्या है? परन्तु अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं प्राप्त हो सहा है। एक बात अब तक बराबर देखी गई है कि वारमूडा त्रिकोण से लुप्त समुद्री जहाजों और हवाई जहाजों का एक कण भी ढूंढ़े नहीं मिलता। जबकि हजारों व्यक्तियों और आधुनिकतम साधन-सम्पन्न यन्त्रों-विमानों के द्वारा हर घटना के तत्काल बाद चारों ओर चप्पा-चप्पा छान मारा गया है। आये दिन होने वाली ये घटनाएं कुछ लोगों के अनुसार समुद्र के गर्भ में दबी समृद्ध सभ्यता के कर्णाधारों का करिश्मा है। वे लोग समुद्र के गर्भ में रहकर भी अपने ज्ञान-विज्ञान के कारण जीवित और सक्रिय हैं तथा वही लोग हमारे जहाजों-विमानों का अपहरण करते रहते है। जबकि कुछ अन्य लोगों को धारण है कि किसी अन्य गुट के अतिविकसित लोग जो उड़न ‘तश्तरियों द्वारा इस पृथ्वी का निरीक्षण करने आते रहते हैं, वे ही अपने परीक्षण के लिये ये अपहरण करते हैं और उन्हें किन्हीं कारणों से वारमूडा-त्रिकोण ही अपने लिए उपयुक्त प्रतीत होता है।
तथ्य क्या है, यह शायद अगले दिनों सामने आ सकें। वहरलाल एडगर कायसी ने अपनी भविष्यवाणी में न तो कभी भी यह कहा कि समुद्र के नीच दबी सभ्यता के वाहक प्राणी अभी भी जीवित है और न ही कभी यह कहा कि विमानों के अपहरण का उनसे सम्बन्ध हो सकता है। कायसी ने तो सिर्फ यह बताया कि (1) कभी एक अतिविकसित सभ्यता धरती पर थी। (2) जल-प्रलय के समय यह सभ्यता अतलांतिकसागर के तल में समा गई। (3) 1968 से उसके कुछ साक्ष्य प्राप्त होने लगेंगे। ये तीन ही बातें अब तक के घटनाक्रमों और अनुसन्धानों से सही लगने लगी है। 1968 में उस विकसित सभ्यता के खंडहर मिलने शुरू हुए।
अब प्रतीक्षा है कायसी की भविष्यवाणी के अगले चरण चरितार्थ होने की। उसके अनुसार (1) अगले दिनों उस विकसित सभ्यता के विश्वभर में स्थान-स्थान पर प्रमाण सामने आयेंगे। (2) इसी बीच दुनियाँ भर में प्राकृतिक उत्पात होंगे, कई भाग जलमग्न हो जायेंगे और अनेक क्षेत्र क्षत−विक्षत हो जायेंगे। (3) उसी प्राचीन सभ्यता का पुनः उदय होगा। आध्यात्मिक मूल्यों क प्रतिष्ठा होगी। मानवीय प्रज्ञा के नये आयाम सामने आयेंगे। एक अभिनव युग-शक्ति का उदय होगा और अंततः धरती में चारों ओर सुख-शान्ति के स्वर्गीय वातावरण की अभिवृद्धि होगी। इसे ही अतल समुद्र में समा गयी उस समृद्ध संस्कृति का पुनरोदय कहा जा सकता है।
एडगर कायसी के अब तक सही सिद्ध हुए भविष्य-कथन जहाँ अगले समय से संबंधित कथनों के सत्य हो सकने की सम्भावना उपस्थित करते है, वहीं मानवीय चेतना की विलक्षण सामर्थ्य भी प्रस्तुत करते हैं। आखिर कायसी अतीत और भविष्य के इन घटना प्रवाहों को बिना आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों और प्रयासों के कैसे जान सका?
अन्तश्चेतना का क्षेत्र भौतिक-विज्ञान से भिन्न है, उसका विरोधी नहीं। तभी तो अन्तश्चेतना द्वारा जाने गये तथ्यों की पुष्टि अन्ततः विज्ञान से भी होती है। अतलांतिक सभ्यता का उदय विज्ञान और अध्यात्म के मिलन का परिणाम होगा यही सम्भावना व्यक्त की जा सकती है।