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Magazine - Year 1979 - March 1979

Media: TEXT
Language: HINDI
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जो मौत से लड़े और अन्ततः विजयी हुए*******

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जीने की अदम्य आकाँक्षा मानव की अमूल्य संपदा है। इसका महत्व एवं गरिमा को समझने वाले आस्थावान भयंकर परिस्थितियों में भी जीवन से निराश नहीं होते। आये हुए संकट को चीरते हुए अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखने में सफल होते हैं परिस्थितियाँ ऐसे जीवट सम्पन्न व्यक्तियों के समक्ष नत-मस्तक होती हैं।

घटना ग्यारह वर्ष पूर्व की है। कनाडा का एक पायलट राबर्ट गाउची अपनी नियमित उड़ान उत्तर ध्रुव से फोर्ट स्मिथ को भर रहा था। अब तक वह अपने जीवन काल में 6000 घण्टे की उड़ान भर चुका था। उत्तरी ध्रुव के शून्य से 60 नीचे वाले तापमान क्षेत्र में उड़ान भरने का अभ्यस्त यह अनुभवी पायलट अन्य दिनों की तरह 2 फरवरी 1967 को कैंब्रीज नामक ग्राम में कुछ अधिकारियों को उतार कर अकेला वापसी यात्रा पर रवाना हुआ, कुछ ही दूर आगे बढ़ने पर उसे बर्फीले तूफान का सामना करना पड़ा। लाचार उसे विमान बर्फ की सतह पर ही उतारना पड़ा। प्रतिकूल मौसम के कारण एक मात्र सहायक कम्पास एवं, खो जाने पर ढूँढ़ने में मदद करने वाले यंत्र ने भी काम करना बन्द कर दिया। बर्फीले तूफान में किसी अन्य के सहयोग की आशा नहीं थी क्योंकि जिस मार्ग से वह उड़ रहा था, वह आम हवाई मार्ग नहीं था। उसके पास राशन की मात्रा मात्र इतनी थी कि किसी प्रकार 20 दिन जीवित रहा जा सके।

दो दिन स्लीपिंग बैग में सोते रहने के उपरान्त तीसरे दिन तूफान कम पड़ने पर उसने बर्फ में से सहायता के लिए 150 फीट ऊँचे अक्षर अंकित किए जिससे ऊपर उड़ने वाला कोई विमान उन्हें देख सके परन्तु तीव्र हवा के कारण बनाये गये निशान मिट गये। भीषण ठंड में मौत के बीच झूलते हुए भी ‘गाउची’ ने जीवन के प्रति आशा नहीं छोड़ी।

इसी बीच उसे ढूंढ़ने वायुसेना का खोजी दस्ता 3 फरवरी से 17 फरवरी तक लगातार पेट्रोलिंग करता फिरा किन्तु उसको ढूँढ़ नहीं पाया। अन्ततः निराश होकर वायु सेवा ने उम्मीद छोड़ दी तथा अपने शोक संदेश गाउची के पत्नी तक पहुँचा दिये।

राबर्ट 28 दिन तक थोड़ा-थोड़ा राशन खाकर मृत्यु से संघर्ष करता रहा। एक दिन उसने एक विमान के गुजरने की आवाज सुनी। रोमाँचित होकर वह बाहर आया तथा हवा में रायफल से एक फायर किया जिससे विमान चालक उसकी स्थिति जान सकें। दुर्भाग्य ने उसका साथ यहाँ भी नहीं छोड़ा, विमान सीधे निकल गया। ऐसा ही 40 वे व 45 में दिन भी हुआ।

बर्फीले पहाड़ में 55 दिन उसे रहते व्यतीत हो चुके थे फिर भी साहसी पायलट अपना मनोबल यथावत् बनाये रहा 56 वे दिन एक लाल विमान उसके 2000 फीट ऊपर से गुजरा यह सौभाग्य ही था कि डूबते सूरज की किरणों के प्रकाश से राबर्ट की चमक ऊपर जा रहे उसके दो साथियों को दिखाई दे गये। वे वापस लौटे तथा विमान से उतर कर ‘राबर्ट’ की ओर कदम बढ़ाये। राबर्ट ने अपने साथियों से हँसते हुए कहा, “क्या तुम्हारे विमान में एक यात्री की जगह है?”

किसी भी व्यक्ति के लिए उस बर्फीले पहाड़ पर मृत्यु को चुनौती देते हुए इतने दिन तक जीवित रहना तथा वापस लौट आना एक आश्चर्य ही है। किन्तु जीवन की गरिमा एवं सर्वोपरिता स्वीकार करने वाले के लिए कुछ भी असम्भव नहीं हैं।

जीने की उत्कृष्ट इच्छा मनुष्य को कठिनाइयों में भी शक्ति एवं प्रेरणा का संचार करती है ऐसे व्यक्ति संकटकाल में भी रास्ता ढूँढ़ निकालते हैं। चीनी नाविन ‘पुनलिम’ का भीषण समुद्री तूफान में 133 दिन जीवक जीवित रहना तथा सकुशल वापस चले आना जिजीविषा का ही परिचायक है। घटना इस प्रकार है- ‘पुनलिम’ एक छोटा जहाज तारपिंडों को लेकर जा रहा था। आकस्मिक समुद्री तूफान के कारण तारपिंडों का सन्तुलन कायम नहीं रह सका तथा उलट गया। नाविक लिम ने तारपिंडों से टूटे एक लकड़ी के तख्ते को पकड़ लिया। समुद्री लहरों के थपेड़ों के साथ वह तख्ते पर बहता रहा। मानवी संरचना इतनी दुर्बल नहीं है कि छोटे मोटे संकटों के सामने घुटने टेक दे। उनसे संघर्ष करने की पर्याप्त शक्ति उसमें भरी है। जिजीविषा को दुर्बल न पड़ने दिया जाय तो मौत सदृश दिखायी देने वाली विपत्तियों को पार कर सकना कुछ अधिक कठिन नहीं दिखता अन्दर की शक्ति ने ‘पुनलिम’ का पथ प्रशस्त किया।

जीवित रहने के लिए ‘लिम’ ने समुद्री मछलियों को लकड़ी के तख्ते पर से ही पकड़ना आरम्भ किया। वर्षा के पानी एवं मछलियों से पेट की ज्वाला शान्त रखकर वह मृत्यु से निरंतर संघर्ष करता रहा। इस प्रकार लहरों के बीच बहता हुआ वह ब्राजील पहुँचा। ब्राजील वासियों की ओर से इस साहसी नाविक का स्वागत करते हुए पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी ‘नोवेल वेकर’ ने इस एक आश्चर्यजनक घटना पर ‘पुनलिम’ को उसके प्रचण्ड साहस के लिए पारितोषिक प्रदान किया।

अपनी गरिमा का अनादर करने वाले भाग्य के भरोसे बैठे रहते तथा परिस्थितियों का रोना रोते रहते हैं। अपनी वर्तमान निकृष्ट परिस्थितियों का कारण समाज एवं ईश्वर को बताते हैं जबकि जीवन की सर्वोपरिता को स्वीकार करने वाले अपनी असामान्य क्षमता को पहचानते हैं तथा ईश्वर प्रदत्त जीवन उपहार का सदुपयोग करते हुए निरन्तर आगे बढ़ते जाते हैं ऐसे व्यक्तियों के समक्ष परिस्थितियाँ बाधक नहीं होतीं। सामान्य घटना क्रमों एवं अभावों के कारण अपन मानसिक सन्तुलन नष्ट करते रहने वालों के लिए ‘वेल्जियम’ निवासी ‘चार्ल्स फेलू’ का जीवन वृतान्त अधिक प्रेरणास्पद होगा। ‘चार्ल्स फेलू’ का जीवन वृतांत अधिक प्रेरणास्पद होगा। ‘चार्ल्स फेलू’ सन् 1830 में बिना हाथों के पैदा हुआ तथा 70 वर्ष तक जीवित रहा। हाथों के अभाव में भी उसने पैर द्वारा पेंटिंग चित्रकारी कला सीखना आरम्भ किया तथा निरन्तर अभ्यास एवं लगने से प्रसिद्ध चित्रकार बना। सदा प्रसन्नचित्त, रहने वाले इस चित्रकार की प्रशंसा तत्कालीन राजा, महाराजा सभी करते थे। ‘फेलू के अन्दर से प्रवाहित उत्साह, प्रेरणा एवं प्राण शक्ति से निराश व्यक्ति प्रेरणा लेते। राजाओं द्वारा हाथ मिलाये जाने पर वह अपने पैरों को आगे बढ़ देता था।

शारीरिक अक्षमता मनुष्य के विकास में बाधक नहीं हो सकती। अन्तरात्मा की शक्ति का मूल्याँकन करने वाले शरीर से अपाहिज होते हुए भी ‘जानी’ के समान प्रेरणा के स्त्रोत बनते है। 23 अगस्त 1910 को ‘वाल्टीमोर’ सिटी में एक दम्पत्ति से जुड़वा बच्चे पैदा हुए। उनमें एक बच्चा सामान्य था किन्तु दूसरे के कमर के नीचे का हिस्सा नहीं था। जीवन के प्रति अदम्य उत्साह एवं प्रेम के कारण यह बच्चा न केवल जीवित रहा अपितु विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न बना। 14 वर्ष की आयु में उसने हाई-स्कूल पास किया। असामान्य विद्वता के कारण ‘जानी’ का नामाँकन सीधे ग्रेजुएट कक्षा में हो गया। कालेज का अध्ययन समाप्त करने के उपरान्त भी उसमें सीखने की प्रवृत्ति सदा बनी रही। परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार को कलाओं में वह निपुण बन गया। जानी अब एक एक्सपर्ट ड्राइवर ड्राफ्टमैन, संगीत मास्टर, के रूप में पूरे वाल्टीमोर शहर में विख्यात है। असम्भव समझी जाने वाली कला जिसे पैरा द्वारा ही सीखा जा सकता है, मैं तैराकी, डांसिंग, रस्सी पर चलना, वेसवाल टैग खेल में विशेषता प्राप्त कर जन सामान्य को आश्चर्य चकित कर दिया। अपने जीवन काल में ‘जानी’ कभी भयंकर रोग से ग्रसित नहीं हुआ। सदा स्वस्थ, प्रसन्न एवं सन्तुष्ट रहने वाला यह विलक्षण व्यक्ति सदा दूसरों के आकर्षण का केन्द्र बना रहा। उसके संपर्क में आने वाले सहज ही प्रेरणा प्राप्त करते। प्रकृति एवं परिस्थितियों को चैलेंज करते हुए इस व्यक्ति ने विश्व के समक्ष अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया तथा यह सिद्ध कर दिया कि जीवन से असीम प्रेम करने वालों के समक्ष शारीरिक एवं परिस्थितिजन्य अवरोध बाधक नहीं हो सकते।

मनुष्य जीवन ईश्वर का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ उपहार है। इसकी गरिमा को समझने तथा उसका सदुपयोग करने वालों ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करते है और दूसरों को प्रेरणा के केन्द्र बनते है।

First 11 13 Last


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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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March 1979
Type: TEXT
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