
जीव-जन्तु मनुष्य से कम सम्वेदनशील नहीं
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विचारशीलता के क्षेत्र में मनुष्य चेतन जगत का नेतृत्व करता है, किन्तु उससे भी महत्वपूर्ण जो चीज है जिसके आधार पर मानवी गरिमा एवं श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया गया है वह है भाव-संवेदनाएं। यह वह आचार है जो मनुष्य को सृष्टि का, प्राणि-जगत का मुकुट मणि बनाती है। संवेदनाओं से रहित व्यक्ति बौद्धिक क्षेत्र में चाहें जितना आगे बढ़ जाय किन्तु अपनी गरिमा बनाये रख पाने में असमर्थ ही सिद्ध होता है।
समझा यह जाता है भाव संवेदनाओँ की पूँजी परमात्मा ने मात्र मनुष्य को ही दी है किन्तु यह सोचना भूल है। उसने अपने अन्य जीवों को भी यह विशेषता प्रदान की है जिससे वे अपने छोटे से पारिवारिक जीवन को सरस एवं उपयोगी बनाये रख सके। न्यूनाधिक रूप में यह गुण प्रत्येक प्राणी में देखा जाता है। कभी-कभी खूँखार जीवों की संवेदना को देखकर आश्चर्य चकित रह जाना पड़ता है। दो विरोधी प्रवृत्तियां एक चेतना में केन्द्रीभूत होते देखकर बुद्धि भ्रमित हो जाती है और श्रद्धा से उस सृजेता के समक्ष मस्तक झुक जाता है। जुलाई सन् 1951 लन्दन में एक प्रदर्शनी आयोजित हुई। विभिन्न प्रकार के जंगल जानवर लाये गये थे। उनमें अधिकाँश माँसाहारी जीव थे। एक दिन एक ऐसी घटना घटित हुई जिसने सभी लोगोँ का ध्यान आकर्षित किया। एक युवा दम्पत्ति अपने नन्हे कुत्ते को लिए शेर के कटघरे के सामने खड़े होकर उसकी गतिविधियों का आनन्द ले रहे थे। इतने में उनका कुत्ता किसी प्रकार कटघरे के सीकचों के बीच से होकर भीतर पहुँच गया। शेर ने उसे देखकर दहाड़ लगायी तथा उसकी ओर बढ़ा। दहाड़ को सुनकर कुत्ता भयभीत हो गया तथा पिंजरे के एक कोने में जाकर चित्त होकर लेट गया। अपने पैरों को इस प्रकार ऊपर उठा लिया जैसे जीवन-दान की याचना कर रहा हो। उसकी आँखें से कातरता टपक रही थी। कौतूहल वर्धक एवं लोभ हर्षक दृश्य को देखने के लिए बाहर भीड़ बढ़ती जा रही थी। उसको यह विश्वास हो चला था कि कुछ ही क्षणों में शेर उसको खा जायेगा।
शेर कुत्ते की ओर बढ़ा, उसके पैर पकड़कर उलट दिये। उछलकर कुत्ता अपने छिले पैरों पर पूँछ दबाये बैठ गया। शेर उसको सूँघने लगा। कुछ देर पश्चात अपने सिर को इधर-उधर हिलाया। लगता था कुत्ते की कातर दृष्टि उसको चेतना को प्रभावित कर रही हो। सभी देखकर विस्मित रह गये शेर कुछ ही क्षणों बाद कुत्ते को उसी प्रकार चाटने लगा जैसे गाय अपने बछड़े को। शेर के मालिक ने उसे खाने के लिए माँस के टुकड़े फेंके तो उसने उन टुकड़ों को और भी छोटा करके कुत्ते के सामने डाल दिया। कुत्ते का भी भय जाता रहा तथा वह निर्भीक भाव से टुकड़ों को खाने लगा।
सायंकाल जब शेर लेट गया तो वह भी उसके पंजों पर अपना सिर रखकर सो गया। उस दिन बाद शेर ने कुत्ते के ऊपर कभी आक्रमण नहीं किया। दोनों साथ प्रेम से खाते तथा अपने हाव-भाव द्वारा परस्पर स्नेह का आदान-प्रदान करते। प्रदर्शनी में सर्वाधिक आकर्षण एवं मर्म स्पर्शी दृश्य यह बना रहा। कुत्ते के मालिक ने शेर के मालिक से अपने जानवर की माँग की तथा पिंजड़े से निकालने के लिए अनुरोध किया। किन्तु कुत्ते को बाहर निकालने के सारे प्रयास असफल सिद्ध हुए। जैसे ही कोई उसे निकालने के लिए आगे बढ़ता शेर गरजते हुए अपनी नाराजगी प्रदर्शित करता।
कहते हैं कि दोनों सालभर तक साथ-साथ घनिष्ठ मित्र के समान बने रहे। एक बार कुत्ता बीमार पड़ा तथा मर गया। शेर पर उसकी मृत्यु का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि खाना-पानी छोड़कर उसके शोक में सातवें दिन वह भी मर गया।