
स्थूल प्रकृति भी विलक्षण कौतुकमय
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मनुष्य अपनी सीमित सामर्थ्य और थोड़ी-सी वैज्ञानिक प्रतिभा के बल पर सृष्टि के रहस्यों को सुलझाने का दावा करा है। निस्संदेह मानवी सभ्यता ने पहले की अपेक्षा हजार गुनी प्रगति की है और कल्पना-सी समझनी जाने वाली उपलब्धियाँ अर्जित की हैं, परन्तु सृष्टि, रहस्य या प्रकृति की लीला सम्पूर्ण रूप से उसकी समझ के बाहर ही है। फिलहाल अभी तो उन्हें नहीं ही समझा जा सका है। आगे कभी समझ पायेगा कि नहीं यह कहना भी मुश्किल है।
जब यह दावा किया जाता है कि प्रकृति जिन नियमों के अधीन होकर काम करती है और उन नियमों को जान लिया गया है तो बरबस ही प्रकृति उन विचित्रताओं की ओर ध्यान जाता है जो उन नियमों से सर्वथा हट कर साकार होती है।लगता है प्रकृति इन विचित्रताओं को प्रस्तुत कर मनुष्य के दम्भपूर्ण दावे का उपहास करती हों। इस प्रकार की विचित्रताओं में से कुछ इस प्रकार है।
मैड्रिड (स्पेन) के एक गाँव केखरा डिव्यू ट्रेगों में हर सन्तान पाँच से अधिक अंगुलियों वाली होती है। यह तो सर्वविदित है और हर कही देखा जा सकता है कि मनुष्य के दोनों हाथों और दोनों पैरों में पाँच-पाँच अंगुलियां होती हैं। किसी-किसी के हाथ में अपवाद स्वरूप छः अंगुलियाँ भी होती है परन्तु इस गाँव के सभी व्यक्ति पाँच से अधिक अंगुलियों वाले है। किसी-किसी की सात सात आठ-आठ अंगुलियां भी होती है।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस प्रकार की असामान्यता निकटतम सम्बन्धियों में विवाह करने पर आनुवांशिकता के कारण ही विकसित हुई है। किन्तु फ्रैंक फोर्ट (जर्मनी) की एक महिला ग्रीटले मेयर के मुँह में दो जीभ थीं। वह बोल नहीं सकती थी। आज तक कभी किसी की दो जीभ नहीं हुई, अतएव इसे किसी प्रकार की अनुवाँशिक घटना नहीं माना जा सकता। ई॰ सन् 1955 में शांशी के गवर्नर लिप चुंग की दोनों आँखों में दो-दो पुतलियाँ होने का उल्लेख इतिहास का कहीं कोई उदाहरण नहीं पाया जाता।
टोरकोईग (फ्रांस) में 1793 में एक बालिका पैदा हुई जिसका नाम क्लीमेंट। क्लीमेण्ट के केवल एक ही आँख थी वह भी वह भी मस्तिष्क के बीचों बीच उस स्थान चेहरे के दूसरे स्थान, गाल की तरह सपाट थे। वह पूरी आयु तक जीवित रहीं। आज्ञाचक्र के स्थान पर आँख होने से उसे कोई अतीन्द्रिय या दूरदर्शन की क्षमता तो नहीं मिली थी परन्तु वह एक ही आँख से सब कुछ देख लेती थी और उसका सारा जीवन भी सामान्य हो रहा।
हैप्पी टैक्सास (अमेरिका) में एक बच्चा ऐसा पैदा हुआ जिसके कान थे ही नहीं मता पिता को इस विचित्र बालक के जीवित रहने की आशा नहीं थी परन्तु वह पूरी उम्र तक जीवित रहा। कान न देकर प्रकृति ने उसके मुँह को ही श्रवणेन्द्रिय बना दिया। वह किसी की भी आवाज को मुँह से सुन सकता था। जब कोई बात कर रहा होता या कोई आहट लेनी होती तो वह मुँह खोल कर दूसरे लोगों की तरह सुन लेता। उस व्यक्ति का नाम था डिकएलेन। अपने समय का एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ भी रहा था।
अफ्रीका के काफीर मैजियर्स का फ्रैक्वायस डाविलो एक ऐसा व्यक्ति था जिसकी खोपड़ी में 13-13 इंच लंबे सींग थे। ल्हासा में आज भी ऐसे अनेकों लोग हैं।
यह विलक्षणता केवल मनुष्यों तक ही सीमित हो ऐसी बात भी नहीं हैं। जीव जगत में भी अपनी विशेषताओं के साथ-साथ ऐसी अनेक अगणित आश्चर्य-जनक बातें देखी गयी है जिसका कारण समझ में नहीं आता। सील मछली सम्भवतः अब तक देखी गयी मछलियों में सबसे बड़ी है। यह मछली कुल डेढ़ मिनट में अपनी नींद पूरी कर लेती है।
‘काडफिश मछली एक ही मुँह को होती है। लेकिन कैलीफोर्निया के भिड़वे सिटी में लारेंस प्रिसली नामक व्यक्ति ने एक ऐसी काडफिश पकड़ी जिसके दो मुँह थे। ग्लास स्नेक’ सर्प को जरा-सा छू लिया जाय तो वह टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। इंग्लैण्ड में एली नाम स्थान में एच. जी. बोडेन नामक एक व्यक्ति के पास एक मुर्गी के अण्डे से ऐसा चूजा निकाल जिसके चार पैर थे। वह चारों पैर से चलता था।
कटर पिलर नामक एक ऐसा कीड़ा भी इसी धरती पर पाया जाता हैं जो एक अवधि तक तो कीड़ा रहता है पर उस अवधि के बाद प्यूपा स्टेज में आते ही एक पौधे में बदल जाता है। वनस्पति जगत और मानवीय चेतना में जीवन चेतना की समानता का संभवतः यह सबसे बड़ा उदाहरण है।
ग्रीन्सवर्ग इण्डियाना में वाल्टर रेडेलमेन में पास एक ऐसी भेड़ थी जिसकी पीठ के ऊपरी हिस्से पर कुछ भाग में नियमित रूप से घास उगा करती थी, शेष में ऊन। यह घास भेड़ को खिला दी जाती है। पैसिफिक सागर में रेड कायर फिश (मछली) के शरीर से आग की लाल लपटें निकलती हैं। इसी कारण इसका नाम रेडफायर (लाल अग्नि कहा) जाता है। यही मछली पानी की सतह से ऊपर उड़ भी सकती है और कौवे की तरह काँव-काँव भी बोलती है। जब यह बोलती है तो अनजान व्यक्तियों को कौवा बोलने का भ्रम होता हैं
व्रिस्टल निवासी राबर्ट व्हिटमोर ने एक बार ऐसी मछली पकड़ी जिसकी आँखों पर प्रकृति ने ही चश्मा लगा रहा था। यह चश्मा कोई दुकान पर बना हुआ नहीं था, बल्कि या बिल्कुल उसी तरह का। लेन्स के स्थान पर पारदर्शी झिल्ली लगी हुई थी और उसका फ्रेम जीवित रेशों से बना था, जैसे वह चश्मा उसकी के शरीर से उगा हो। उस जाति की अन्य मछलियाँ तो पूर्णतया सामान्य ही रहती है। परन्तु उसी मछली के आँखों पर चश्मा क्यों विकसित हुआ?
यह सभी जानते हैं कि सिर को धड़ से अलग कर देने पर कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। कुछ जीव जन्तु ऐसे होते भी है जिन्हें काट दिया जाय तो वे एक के दो हो जाते हैं और अपनी-अपनी दिशाओं में चल पड़ते है। पर मुर्गी के बारे में तो ऐसा हर्गिज नहीं देखा गया है। 12 नवम्बर 1904 की बात है- साल्ट स्टेमेरी मिक (अमेरिका) में एक घटना घटी। बोल वेदर होटल के मालिक हर्बर्ट ह्यूज ने पकाने के उद्देश्य से एक मुर्गी का सिर काटा। अभी वह सिर एक ओर रख हो रखा था कि शेष धड़ वहाँ से भाग निकला। मुर्गी का वह सिर रहित धड़ न केवल चलता था वरन् पंख भी फड़फड़ाता और पंजे से कोई चीज पकड़ कर बैठ भी जाता। बोलने के लिए गर्दन ऊँची करने की ठीक वैसी ही हरकत करता जैसे कोई जीवित मुर्गी करती है।
इस दृश्य को देखने के लिए दो सप्ताह से भी अधिक समय तक हजारों लोग आते रहे। उसके फोटो उतारे गये, समाचार पत्रों ने यह समाचार छापा, मूवी चित्र लिये गये। होटल मालिक ने पहले तो इसे पकाने के उद्देश्य से मार डालना चाहा पर यह मुर्गी जब उसके लिए भी अनूपा हो गयी। सिरंज के माध्यम से उसके शरीर में खाना पहुँचाया जाता रहा। इस तरह वह 17 दिन तक जीवित रहीं। संभवतः वह अभी और जीवित रहती पर एक दिन एक लापरवाह नौकर के हाथ से छूट कर हवा पाइप उसकी गर्दन पर गिर पड़ा और उसके प्राण पखेरू उड़ गये।
मनुष्य अभी स्थूल प्रकृति के रहस्यों को ही नहीं समझ पाया है तो यह किस आधार पर कहा जा सकता है, सूक्ष्म चेतना नाम की कोई शक्ति सत्ता नहीं है। उन आश्चर्यों का आधार क्या है? विज्ञान यह अभी नहीं समझ पाया है तो सूक्ष्म चेतना की वास्तविकता समझने और नकारने का क्या आधार है?