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Magazine - Year 1980 - Version 2

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Language: HINDI
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उद्दण्डता नहीं, सौम्य सज्जनता ही श्रेयस्कर

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सामान्य गति से सुव्यवस्थापूर्वक चलने वाले सभी क्रिया-कलाप सन्तोषजनक परिणाम उत्पन्न करते हैं। उतावली, उत्तेजना, आवेश और अस्त-व्यस्तता अपनाने पर लगता तो यह है कि शक्ति और आकाँक्षा का भरपूर उपयोग किया जा रहा है और जो करना है उसे तुर्त-फुर्त निपटाया जा रहा है। ऐसी उत्तेजना बरतते और उतावले दिखते असंक्ष्यों पाये जाते हं। कितनी ही घटनाएं भी ऐसी होती है जिनमें आवेश की प्रचण्डता का परिचय मिलता है। इतने पर भी उससे संबंधित व्यक्तियों की अभीष्ट प्रयोजन की तथा कर्त्ता की उत्तेजना के इस असंतुलन में मात्र हानि ही हानि होती है।

सामर्थ्य का होना एक बात है और उसका सदुपयोग दूसरी। सामर्थ्य की उपलब्धि में कई परिस्थितिजन्य सुअवसर भी कारण हो सकते हैं किन्तु सदुपयोग में तो मात्र व्यक्ति की निजी दूरदर्शिता ही काम देती है। थोड़े से साधनों का सदुपयोग करके क्रमिक प्रगति करने वाले और अन्ततः सफलता के उच्च शिखर पर जा पहुँचने वाले असंख्यों उदाहरण अपने ही आस-पास उपलब्ध हो सकते हैं। इतिहास के पृष्ठ तो इसी प्रतिपादन की साक्षी देते-देते नहीं अघाते। सन्तुलन, सुव्यवस्था और क्रमिक गतिशीलता ही सफलता के लक्ष्य तक पहुँचाने वाला अवलम्ब है। इसमें धैर्य अपनाना पड़ता है। निष्ठापूर्वक अनवरत साधना में सलग्न रहने वोल ही आगे बढ़ते और ऊंचा उठते हैं।

उत्तेजना में शक्ति का प्रदर्शन तो रहता है, पर साथ ही अव्यवस्थाजन्य अनर्थ का प्रतिफल भी सामने आता है। भवुक लोग बिना विचारे किसी आकषर्ण पर टूट पड़ेते हैं और आगा-पीछा नहीं सोचते। फलतः वे बुधा ठगे जाते हैं अथवा लालच के कुचक्र में भारी हानि उठाते हैं। इसके विपरीत आकर्षणों का महत्व समझते हुए भी सन्तुलित मन से हित-अहित की नाम-तौल करते हैं और विपत्ति में फंसने से बच जाते हं। जबकि भावुक आतुरता से पछताते और बेमौत मरते देखा जाता है।

क्रोध के आवेश में होने वाले अनर्थों द्वारा अपनी तथा दूसरों की अपार क्षति होती है। हत्या और आत्महत्या की अगणित घटनाओं के पीछे प्रायः बहुत ही उथले कारण होते हैं। प्रमुखता आवेश की रहती है। आवेश में उद्विग्न मनुष्य विक्षिप्त जैसा हो जाता है और क्या करना क्या न करना इसका निर्णय करने वाली विवेक बुद्धि से हाथ धो बैठता है। विग्रहों के पीछे प्रायः ऐसी ही मनःस्थिति काम करती है। जिनमें मल्ल युद्ध अनिवार्य हो गया हो ऐसे अवसर कदाचित ही कभी आते हैं। आयेदिन प्रस्तुत होने वाले झंझट ऐसे होते हैं उन्हं बुद्धिमत्तापूर्वक आसानी से सुलझाया जा सकता है। इसी प्रकार कई संकट ऐसे होते हैं जिन्हें हंसते-हंसते हटाया, टाला या सहा जा सकता है। किन्तु आवेशग्रस्त व्यक्ति उन्हें तिल का ताड़ बनाते और किंकर्तव्य विमूढ़ होकर ऐसा कदम उठाते हैं जो प्रस्तुत संकट से भी अधिक अनर्थकारी सिद्ध होता है।

आवेश की तुलना नदियों में पड़ने वाले भंवर तथा हवा में उठने वाले तूफान चक्रवात से की जा सकती है। सामान्यतः प्रवाहमान जल जब स्वाभाविक गति से बहता है तो सुखद भी होता है और सुन्दर भी लता है। किन्तु जब वह अन्धड़ की तरह उफनता और समुद्री लहरों की तरह उछलता है तो उससे विनाशलीला ही विनिर्मित होती है। आतंक सदा डरावना ही होता है। वह दूसरों को कष्ट देता है और स्वयं उद्दण्डों की तरह भर्त्सना सुनता और दुःखद स्मृतियाँ अपने पीछे छोड़ता है।

वायु मण्डलीय चक्रवातों एवं नदी, समुद्र में पड़ने वाले भंवरों की प्रचण्ड शक्ति से सभी परिचित हैं। समय-समय इनके द्वज्ञरा असीम क्षति उठानी पड़ती है। इनकी चपेट में आने वाले जहाज के बचने की सम्भावना कम ही रहती है। अच्छे से अच्छा तैराक भी इन भंवरों में पड़ कर निकल पाने में असमर्थ होते हैं। नाविकों, गोताखोरों का सर्वाधिक भय इन भंवरों से ही होता है।

वायु मण्डलीय चक्रवात दो प्रकार से बनते हैं। वायु राशि के भंवर में केन्द्र भाग मं जब वायदाव कम होता है तो हवाएं बाहर से भीतर की ओर चक्राकार बहने लगती है। दूसरे प्रकार के चक्रवात जिन्हं प्रतिचक्रवात कहते हैं प्रक्रिया उल्टी है। वायु के भंवर के केन्द्र में हवा का दवाब अधिक तथा बाहर की कम होता है। इसमें हवा चक्रवात रुप में केन्द्रमुखी नह होकर बाहर की ओर चलती है। ये दोनों प्रकार के चक्रवात खतरनाक होते हैं। इनकी प्रचण्ड शक्ति का अनुमान आये हुए तूफानों से मिलता है। मार्च 68 दिल्ली और वजीरावाद के बीच रोशनआरा पार्क के निकट एक बवण्डर उठा जिसने बस और ट्रक जैसे भारी वस्तुओं को हवा में शेर के समान उछाल दिया। दुघटना का चपेट में आये हुए व्यक्तियों ने आँखों देखी घटना का वर्णन किया। उक्त बवण्डर के प्रभ्श्राव से स्कूटर, कुर्सिया उड़कर छतों पर जा चढ़ीं। सड़क पर जा रही बस तीन मीटर ऊपर तूफान में हवा में उड़ते गुब्बारे जैसी जा रही थी। तिनके के समान अनेकों व्यक्ति उड़े नगे। मकान की पक्की छतें टीन की पतरों के समान उड़ गईं। पेड़ निर्जीव लाश की तरह गिरने लगे। कुछ मिनटों के लिए इस क्षेत्र में प्रकृति का ताँडव दृश्य दिखाई पड़ने लगा। लगभग दो करोड़ रुपये की क्षति हुई और अनेकों व्यक्तियों की जानें गई। पिछले दिनों आन्ध्र में आये समुद्री तूफान में भी चक्रवातों की प्रचण्ड शक्ति ही प्रमुख कारण थी। जिसके फलस्वरुप हजारों व्यक्ति काल के गर्भ में समा गये। असीम सम्पति नष्ट हुई।

किन्ही-किन्हीं स्थानों पर तो ये चक्रचसत पाँता ख्नस काते है। इन स्थानों की इस विशेषता के कारण उन्हं साइक्लोन क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। अटलाँटिक महासागर में बरमूड़ा और फ्लोरिडा के बीच त्रिशंकु आकार का एक ऐसा ही क्षेत्र है। वज्ञानिकों ने जहाजों को इस क्षेत्र से निकलने के लिए वर्जित कर रखा है। सन् 45 से लेकर अब तक इस स्थान में सौ से भी अधिक जलपोत तथा कई विमान देखते ही देखते आँखों के सामने से लुप्त हो गये। हजारों व्यक्ति अब तक इस क्षेत्र में लुप्त हो चुके हैं। न तो जलपोतों, वायुयानों का कोई अवशेष मिल सका है न ही गुम हुए व्यक्तियों का। यह रहस्यमय क्षेत्र अब भी वैज्ञानिकों के लिए आर्श्चयजनक बना हुआ है। निरंतर चलने वाले साइक्लोन का कारण नहीं ज्ञात हो सका है।

सामर्थ्य हवा में आर पानी में मौजूद हे। जड़ ग्रह-नक्षत्र भी अपनी गतिशीलता का परिचय देते हैं। परमाणुओं के नन्हें से घटक अपनी शक्ति से सभी को चकित किये हुए हैं। फिर मनुष्य जैसे सचेतन की क्षमता को कम कैसे आँका जा सकता है।

आवश्यक नहीं कि इस सामर्थ्य का परिचय आवेश, आक्रोश या उत्तेजना में दिया जाय। ऐसे उद्धत्त प्रदर्शन वायु मण्डल में अपना आतक दिखाने वाले चक्रवातों की तरह होते हैं जिन्से लाभ किसी का कुछ नहीं होता मात्र विनाश की विभीषिका ही प्रस्तुत होती है। पानी के भंवर दर्शकों एवं नाविकों पर अपनी भयानकता की छाप छोड़ सकते हैं, पर अन्ततः उनका न तो अपना कुछ भविष्य होता है और न किन्ही दूसरों के लिए कोई स्मरण रखने योग्य अनुदान।

समर्थता का चक्रवातों और भंवरों की तरह उद्धत प्रदर्शन तो किया जा सकता है, पर इस आतंकवादी अनाचार से व्यवस्था उत्पन्न करने और खलनायकों की तरह घृणास्पद बनने में लाभ कुछ नहीं। उद्धत नहीं सज्जन ही श्रेयाधिकारी होते हैं।

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Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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Language: HINDI
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