
विद्या का सच्चा अधिकारी (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक सन्त धर्मशास्त्रों के गहन अध्ययन में निरंतर लगे रहते थे। रात हो या दिन, वे निरंतर अपनी साधना में तन्मय रहते। एक बार आधी रात में उनके दीपक का प्रकाश धुँधला पड़ गया। कई दिनों के निरन्तर अध्ययन-मनन से सन्त भी थके हुए थे। उन्होंने ग्रन्थ बन्द किया और लेट गये।
स्वप्न में उन्होंने देखा विद्या की देवी सरस्वती कह रही है “वत्स! मैं तेरी साधना से बहुत प्रसन्न हूँ। अब तुझे कठोर परिश्रम नहीं करना होगा। मैं तुझे सभी विद्याओं का दान देने आयी हूँ।”
सन्त ने सिर झुकाया और कहा -”माँ, धृष्टता क्षमा करें। अभी मुझमें समस्त विद्याओं को पाने की पात्रता नहीं आयी है। निरन्तर अध्ययन-मनन से ही यह पात्रता सम्भव है। इसके लिये परिश्रम और तपस्या चाहिए। अपात्र के पास विद्या कभी सफल नहीं हुआ करती।”
सन्त का उत्तर सुनकर देवी प्रसन्न होकर बोली ‘मैं तेरी परीक्षा ले रही थी। उसमें तू खरा उतरा। तू वास्तव में विद्या का सच्चा अधिकारी है। तुझसे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। जो इच्छा हो वह माँग ले।’
सन्त ने उत्तर दिया ‘देवि! आप इतना ही वरदान दीजिये कि मेरा दीपक सदैव तेल से भरा रहे। उसके प्रकाश में मैं निरंतर अध्ययन करता रहूँ। ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में आने वाले कष्टों से मैं विचलित न होऊं। मैं निरन्तर ज्ञानार्जन की साधना में जुटकर विद्या का सच्चा अधिकारी बनुँ।