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Magazine - Year 1981 - Version 2

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सूर्य कलंकों का अपनी दुनियाँ पर प्रभाव

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First 19 21 Last
अपने सौर मण्डल का केन्द्र सूर्य को माना जाता है। अंतर्ग्रही ही अनुदान पृथ्वी पर सूर्य के माध्यम से ही बरसते हैं, ऐसा विश्वास सदियों से बना हुआ है। आदिकाल से ही सूर्य को जीवन का अधिष्ठाता माना जाता रहा है। सूर्य किरणों से प्रकाश और गर्मी ही नहीं प्राण और जीवन भी सतत् प्रवाहित होता रहता है, जिसे जीव-जन्तु, वृक्ष, वनस्पति प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुरूप ग्रहण करते हैं। थोड़े समय के लिए भी सूर्य अपने अनुदानों की वर्षा बन्द कर दे तो पृथ्वी पर दिखाई पड़ने वाली जीवन की हलचल को समाप्त होते देर न लगेगी।

पृथ्वी की परिस्थितियों, वातावरण, मौसम, वृक्ष वनस्पतियों और प्राणी समुदाय की शारीरिक मानसिक स्थिति पर सूर्य की गति और उसमें समय-समय पर होते रहने वाले परिवर्तनों का असाधारण प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों एवं खगोलविदों की नवीनतम खोज के अनुसार सौर कलंकों (सूर्य धब्बों), का सीधा प्रभाव अन्तर्ग्रही सन्तुलन एवं मानव शरीर और मन पर पड़ता है। जब भी सूर्य धब्बों में वृद्धि होती है प्रकृति में असन्तुलन बढ़ जाता है। जिसकी परिणति प्राकृतिक विक्षोभों और विस्फोटक घटनाक्रमों के रूप में होती है।

अमेरिका के ‘ट्री रिसर्ज सेन्टर’ के निर्देशक प्रो. डगलस ने लम्बे समय तक वृक्ष के तनों पर पड़ने वाले प्रतिवर्ष बर्तुलों का अध्ययन किया। उनका कहना है कि “वृक्ष के बर्तुलों में भूतकाल की घटनाओं का इतिहास अंकित है। टेप रिकार्डर की भाँति वृक्ष सौर मण्डल के परिवर्तनों एवं अन्तर्ग्रही प्रभावों को ग्रहण करते हैं। ‘डगलस के अनुसार एक निश्चित अवधि के बाद घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है। हर ग्यारहवें वर्ष वृक्षों में पड़ने वाले रिंग अन्य वर्षों की तुलना में बड़े होते हैं। इन वर्षों में सूर्य के ये धब्बे सर्वाधिक देखे जाते हैं। सूर्य पर आणविक गतिविधियाँ सबसे अधिक होती हैं। खगोलवेत्ताओं का मत है कि हर ग्यारहवें वर्ष सूर्य में सक्रियता बढ़ जाने से आणविक विस्फोट होता है जिसके कारण सूर्य से रेडियो विकिरण अधिक होता है। प्रो. डगलस का कहना है कि इन वर्षों में रेडियो विकिरण से अपनी सुरक्षा के लिए वृक्ष अपने तनों में मोटा रिंग बनाते हैं।

मौसम एक समय में विश्व के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न पाया जाता है। एक स्थान पर ठंड है तो उसी समय दूसरे स्थान पर गर्मी। प्रो. डगलस ने इस मान्यता के विपरीत एक नये तथ्य का रहस्योद्घाटन किया है कि सम्पूर्ण पृथ्वी पर सूर्य के कारण भी एक विशिष्ट प्रकार का मौसम चलता है जिसे हम नहीं पकड़ पाते किन्तु वृक्ष पकड़ लेते हैं। प्रति ग्यारहवें वर्ष सूर्य धब्बों की वृद्धि से होने वाले परिवर्तनों को वृक्षों के सम्वेदनशील तन्तु पकड़ने में सक्षम होते हैं। ग्यारह वर्षीय चक्रों की भाँति ही एक नब्बे वर्षीय चक्र का भी पता लगा है। ‘इजिप्ट’ के ‘तस्मान’ नामक एक विद्वान ने नील नदी का चार हजार वर्ष का इतिहास लिखा है। चार हजार वर्ष पूर्व वहाँ के लोगों में यह विश्वास प्रचलित था कि नील नदी के पानी के साथ सूर्य की गतिविधियों का घना सम्बन्ध है। चार हजार वर्ष पूर्व वहाँ के सम्राट ने अपने देश के विद्वानों को आदेश दे रखा था कि नील नदी में घटने-बढ़ने वाले जल स्तर का पूरा-पूरा विवरण रिकार्ड करें। तब से लेकर अब तक नील नदी के पानी का रिकार्ड निरन्तर अंकित किया जाता रहा। इसका पूरा विवरण मिश्र के राष्ट्रीय रिकार्ड में क्रमबद्ध रूप से रखा गया है। उस इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि प्रत्येक 90 वर्षों बाद सूर्य कलंकों में असामान्य रूप से वृद्धि होने से सूर्य में भयंकर विस्फोट होता है। विद्युत चुम्बकीय तूफान चलते हैं। रेडियो विकिरण बढ़ जाता है। पृथ्वी पर भयंकर भूचाल आते हैं। इन वर्षों में नील-नदी का जल स्तर या तो असाधारण रूप से बढ़ जाता है अथवा घट जाता है। इस घटना की पुनरावृत्ति हर 90 वर्षों के बाद होती है। वहाँ के विद्वानों का कहना है कि “90 वर्षों की अवधि सन् 1982 से पूरी होने वाली है। यह वर्ष विशेष उथल-पुथल का होगा।’’

माउण्ट विल्सन वेधशाला द्वारा पिछली दशाब्दी में जो सूर्य कलंकों के चित्र लिए गये उससे एक नई जानकारी मिली कि कई सूर्य कलंक पृथ्वी के आकार से 20 या 24 गुना तक बड़े थे। ये पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर गति करते पाये। जब-जब इनकी संख्या में वृद्धि हुई है, तूफान और भू चुम्बकीय आँधियाँ अधिक आते हैं। वैज्ञानिक ‘जॉन एडी’ का कथन है कि सूर्य कलंकों में क्रमिक परिवर्तन धरती के मौसम परिवर्तन का कारण बनते हैं। ग्लेशियर्स का बनना, पहाड़ों पर अधिक बर्फ का जमना आदि घटनाएँ सौर कलंकों से जुड़ी हुई हैं। डा. एडी के अनुसार गत 50 वर्षों में न केवल सूर्य धब्बों में वृद्धि हुई है वरन् हर ग्यारह वर्ष पर उभरने वाले इन धब्बों की संख्या और आकार में (एक हजार से लेकर दस हजार किलोमीटर लम्बी) भी वृद्धि हुई है। इस अभिवृद्धि से प्रकृति प्रकोपों में भी उत्तरोत्तर बढ़ोत्तरी हुई है।

वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य कलंक के 11 वर्षीय और 90 वर्षीय चक्र के साथ महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित होती हैं। पिछले एक दशक से तो सुर्य धब्बों की संख्या में निरन्तर अभिवृद्धि होती चली जा रही है। साथ ही युद्धों, प्रकृति विक्षोभों और विभीषिकाओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है। पिछले दशक के जिन वर्षों में सूर्य धब्बे अधिक देखे गये उन वर्षों में भयंकर हिंसात्मक घटनाएँ’ युद्ध, बाढ़, सूखा, विश्व के मूर्धन्य महापुरुषों की दुःखद परिस्थितियों में मृत्यु आदि की घटनाएँ अधिक हुईं। जिन वर्षों में सूर्य धब्बे सबसे कम देखे गये उसमें विश्व शान्ति एवं स्थिरता बनी रही। पिछले दशक का अध्ययन इसी तथ्य पर प्रकाश डालता है।

सन् 1968 में सूर्य धब्बों की सक्रियता बढ़ने लगी। उसी वर्ष भारत, पाक युद्ध आरम्भ हो गया। विश्व शान्ति प्रयासों के प्रबल समर्थक ‘मार्टिन लूथर किंग’ की हत्या रंगभेद के कारण कर दी गई। सोवियत रूस ने चेकोस्लाविया के बड़े भाग पर आधिपत्य कर लिया।

1969 में भी सूर्य धब्बे अधिक देखे गये। उस वर्ष फ्रांस के सिक्के फ्रैंक का अवमूल्यन 12 प्रतिशत से भी अधिक हो गया। फ्राँस के प्रमुख चार्ल्स डीगल की मृत्यु हो गई। मिश्र के गमाल अब्दुल नासर की मृत्यु से देश पर बज्रपात हो गया। पूर्वी पाकिस्तान (आज बंगला देश) में भयंकर चक्रवात आये जिसमें दस लाख से भी अधिक व्यक्ति अकाल मृत्यु के गर्भ में समा गये।

सन् 1971 में सूर्य धब्बे कम देखे गये। इस वर्ष नये बंगलादेश का उदय हुआ। सन् 1972 में भी सौर कलंकों में कभी रही। फलतः विश्व शान्ति के लिए अनेकों प्रकार के प्रयास किये गये। अमेरिका राष्ट्रपति ने मैक्सिको की यात्रा इसी प्रयोजन के लिए की। पाकिस्तानी तानाशाह भुट्टो ने बंगला देश के राजनेता मुजीबुर्रहमान को लम्बी कैद के बाद बिना किसी शर्त के मुक्त कर दिया। वर्ष 1973, 1974 और 1975 में भी सूर्य धब्बे कम दिखाई पड़े। फलतः विश्व की स्थिति उतनी तनावपूर्ण न रही। सन् 1975 में भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार समझौता हुआ। ईराक और ईरान ने सीमान्त प्रदेशों के झगड़ों को सुलझाने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए। मोजम्बिक देश पुर्तगालियों की 500 वर्ष की दासता से मुक्त हुआ। अमेरिका और रूस के अन्तरिक्ष यात्रियों ने अन्तरिक्ष में परस्पर यान परिवर्तन करके आपसी सौहार्द्र का परिचय दिया। इजराइल ने मिश्र से समझौता करके माउंट सिनाई से अपनी सेना वापिस बुला ली। यह शान्तियुक्त परिस्थितियाँ 1977 तक बनी रही।

सन् 1977 के बाद पुनः तीव्रगति से सूर्य धब्बों में वृद्धि होने लगी। इसी वर्ष ईरान में भयंकर भूकम्प आया। हजारों व्यक्ति उसकी चपेट में आकर मारे गये। पाकिस्तान में गृह युद्ध छिड़ने से भयंकर रक्तपात हुआ। सत्ता की बागडोर जनरल जिया ने संभाली, भुट्टो की गिरफ्तारी हुई। बंगला देश के एक विद्रोह में मुजीबुर्रहमान की परिवार सहित हत्या कर दी गई। अन्य पाँच सौ व्यक्ति भी मारे गये।

सन् 1978 की घटनाएँ और भी अधिक तबाही उत्पन्न करने वाली हुईं। भयंकर बाढ़ से यमुना का पानी अब तक के सभी रिकार्डों को तोड़कर दिल्ली को तबाह कर गया। जनशक्ति और धन शक्ति की भारी क्षति हुई। पश्चिम बंगाल में भी भयंकर बाढ़ आई। भारत में यह वर्ष भारी राजनैतिक उथल-पुथल कर रहा। अफगानिस्तान बोलीविया, मौरीटेनिया, कांमोरोद्वीप समूह, दक्षिणी यमन आदि देशों में युद्ध छिड़े। पोपपाल-6 की मृत्यु हो गयी। उनके स्थान पर नियुक्त दूसरे पोप की भी मृत्यु मात्र 20 दिनों बाद ही हो गई। ग्वाना द्वीप समूह में धार्मिक अन्ध-विश्वास के कारण 900 से भी अधिक व्यक्तियों ने सामूहिक आत्म-हत्या कर ली। इजराइल की प्रथम महिला प्रधानमंत्री गोल्डामेयर की मृत्यु हो जाने से इजराइल और मिश्र के बीच समझौता न हो सका। सन् 1979 में सूर्य धब्बे और अधिक संख्या में देखे गये। ईरान में स्थित अमेरिकी दूतावास पर संकट छा गया। ईरानियों ने अमेरिकियों को बन्धक बना लिया। फलतः दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता ही गया। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर भी इस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा। रूस ने अफगानिस्तान में अपना सैनिक अड्डा जमा लिया। ईरान और ईराक के बीच समझौता टूट गया और सीमान्त झगड़े प्रारम्भ हो गये। ईरान के शाह को राजगद्दी से हटा दिया गया। देश में क्रान्ति हुई जिसमें असंख्यों व्यक्ति मारे गये। भारत में नये रोग ‘ब्रेन फीवर’ (मस्तिष्कीय ज्वर) से हजारों व्यक्तियों की मृत्यु हुई। विभिन्न वस्तुओं के भावों में तीव्र वृद्धि हुई।

वैज्ञानिकों का कहना है कि सूर्य कलंकों में हर वर्ष निरन्तर वृद्धि हो रही है। फलतः प्रकृति विक्षोभ और आपसी तनाव बढ़ते जा रहे हैं। सन् 1980 का वर्ष भी अशांतिमय ही रहा। अमेरिका और ईरान के बीच जिस झगड़े का सूत्रपात 1979 में हुआ वह और भी तीव्र हो गया। रूस की अफगानिस्तान में सैनिक गतिविधियाँ और भी तेज हो गईं। भारत के उत्तरी पूर्वी प्रदेश आसाम में ‘विदेशियों’ के मामले को लेकर अशान्ति बढ़ने लगी। चीन, बंगला देश, पाकिस्तान के विभिन्न स्थानों पर भूकम्प के तेज झटके आये जिसमें हजारों की संख्या में लोग मरे।

ऐसी सम्भावना है कि सन् 1982 तक सूर्य कलंकों में उत्तरोत्तर वृद्धि होगी। 1981 का आरम्भ ही प्रकृति विक्षोभों में हुआ है। विश्व के विभिन्न भागों में मौसम में अप्रत्याशित परिवर्तन रिकार्ड किया गया है। कितने ही स्थानों पर भूकम्प के झटके महसूस किये गये। ईरान और ईराक के बीच बढ़ते हुए तनाव ने अन्ततः युद्ध का रूप ग्रहण कर लिया। अभी भी दोनों के बीच युद्ध जारी है। ईरान में आये भूकम्प से- हजारों व्यक्ति कुछ ही मिनटों में मृत्यु की गोद में जा पहुँचे। बंगला देश में हुए सैनिक विद्रोह में राष्ट्रपति जियाऊर्ररहमान की हत्या कर दी गई। 5 जून 1981 को बिहार के मानसी नामक स्थान के निकट उफनती बागमती नदी में समस्तीपुर वनमरवी यात्री गाड़ी के सात डिब्बों के गिरने से तीन हजार से अधिक व्यक्तियों की जाने गईं।

‘इजिप्ट’ के रिकार्ड के अनुसार सूर्य का ग्यारह और नब्बे वर्षीय चक्र सन् 1982 में पूरा हो रहा है। सूर्य कलंकों में इस वर्ष सर्वाधिक वृद्धि होगी। फलतः मनुष्य जाति को सबसे अधिक प्रकृति प्रकोपों और विभीषिकाओं का सामना करना होगा। शीतयुद्ध तो चल ही रहा है। अगले दिनों विश्वयुद्ध छिड़ने की भी संभावना है।

अन्तर्ग्रही ही असन्तुलन क्यों उत्पन्न होते हैं? ब्रह्माण्ड के सभी जड़-चेतन घटकों का आपसी तारतम्य किस तरह का है? प्रकृति विक्षोभों और अन्तर्ग्रही असन्तुलनों की रोकथाम करना क्या सम्भव है? आदि प्रश्नों का उत्तर उपलब्ध भौतिक जानकारियों के आधार पर नहीं मिलता। इसके लिए प्राचीन ज्योतिष विज्ञान और साधना विज्ञान में खोज-बीन, अध्ययन, अन्वेषण की आवश्यकता होगी। नवीन जानकारियों के साथ-साथ इस प्रयास में असन्तुलनों को दूर करने, प्रकृति विक्षोभों से रोकथाम और सन्तुलन बनाये रखने के महत्वपूर्ण सूत्र हाथ लगने की पूरी-पूरी सम्भावना विद्यमान है।

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