
चान्द्रायण तप साधना सत्र
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कल्मष कुसंस्कारों के परिशोधन एवं प्रसुप्त आत्म-शक्तियों के जागरण में चान्द्रायण साधना का अत्यधिक महत्व माना गया है। शान्तिकुंज के नव निर्मित गायत्री तीर्थ में यह सत्र इसी कार्तिक पूर्णिमा-11 नवम्बर से प्रारम्भ होंगे और भविष्य में निरन्तर चलते रहेंगे। यह दो प्रकार के होंगे (1) एक महीने के जो पूर्णिमा से पूर्णिमा तक सवा लक्ष गायत्री अनुष्ठान सहित (2) दस-दस दिन के लघुचान्द्रायण 24 हजार अनुष्ठान सहित। हर महीने 1 से 10, 11 से 20 और 21 से 30 तक। सभी परिजनों को परामर्श है कि जिन्हें जब आना हो शीघ्र आवेदन पत्र भेजकर अपना स्थान सुरक्षित करालें।
यह पाठ्यक्रम किसे कितना रुचा और किसने उससे क्या लाभ उठाने के संबंध में सोचा तथा क्या कदम उठाया इसकी जाँच पड़ताल भी परीक्षा पद्धति से होगी। पाठ्य सामग्री अखण्ड-ज्योति के जिस अंक में पूर्ण होगी, उसी में दो का एक प्रश्न पत्र छाप दिया जायेगा और उत्तर कापियाँ आने पर परामर्श के अतिरिक्त मान्यता प्राप्त साधकों से उन्हें पंजीकृत कर लिया जायेगा। ताकि आदान-प्रदान एवं मार्गदर्शन का सिलसिला उस वर्ग की स्थिति जमा लेने पर सरलतापूर्वक चलाया जाता रहे।
समझा जाना चाहिए कि सितम्बर अंक प्रकाशित पत्राचार विद्यालय का अब परिवर्तित रूप उपरोक्त अंकों को पाठ्यक्रम बनाकर प्रशिक्षण देने का हो गया है। प्रज्ञा पुत्रों के लिए प्रज्ञा अभियान पत्रिका का अक्टूबर, नवम्बर का संयुक्ताँक उस आवश्यकता की पूर्ति कर देगा। आत्मप्रगति का मार्गदर्शन- दिसम्बर, जनवरी, फरवरी के अंकों में मिलेगा। आवश्यक हुआ तो मार्च में भी वह पाठ्य सामग्री छप सकती है। इन अंकों को भी पाठ्यक्रम माना जायेगा और जिन्हें अपना विश्लेषण पर्यवेक्षण कराना हो वे अन्तिम अंक में छपे प्रश्न पत्र की उत्तर कापी भेजकर आवश्यक परामर्श प्राप्त करते रहने का पथ-प्रशस्त कर सकते हैं। पंजीकरण का प्रमाण पत्र उन्हें भी भेजा जायेगा।
सितम्बर अंक में पत्राचार विद्यालय के छात्रों के लिए बारह लिफाफों में से प्रत्येक पर पचास पैसे का टिकट और पचास पैसे की मुद्रित सामग्री का खर्च देने की बात कही गई थी। बारह लिफाफों के लिए बारह रुपये का वजन पड़ता था। उसे परिजनों ने प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया है और कितनों ने ही बारह-बारह रुपये के मनीआर्डर भेज दिये हैं। किन्तु परिवर्तित व्यवस्था के अनुसार अब किसी अतिरिक्त खर्च की व्यवस्था नहीं रही। जो प्रश्न पत्रों के उत्तर भेजेंगे उन्हें परामर्श, निष्कर्ष, प्रमाण पत्र देने का जो खर्च पड़ेगा उसे मिशन ही उठा लेगा। इस प्रकार अब किसी शिक्षार्थी पर किसी अतिरिक्त व्यय भार पड़ने की बात नहीं रही।
जिनके बारह रुपये आ चुके हैं वे उसे वापस मंगा सकते हैं या अखण्ड-ज्योति के अगले वर्ष के चन्दे में जमा कर सकते हैं। भेजने वालों की जैसी मर्जी होगी तुरन्त वैसा ही प्रबन्ध कर दिया जायेगा।
यह सामयिक व्यवस्था क्रम जान लेने के अतिरिक्त समस्त परिजनों को यह बात नोट करनी चाहिए कि यह पत्राचार प्रक्रिया इन दिनों नितान्त आवश्यक हो गई है। प्रस्तुत पाठ्य सामग्री एवं प्रेरणा ऐसी है जिसकी उपेक्षा करने वाले समय निकल जाने पर यही कहते रहेंगे कि उनने भूल की। बिना किसी खर्च के इस आदान-प्रदान का लाभ उठाया ही जाना चाहिए। वस्तुतः इस पर मिशन और उसमें सम्बद्ध आत्मीय जनों के बीच इस आधार पर एक नई श्रृंखला आरम्भ होती है। और जिज्ञासा तथा पात्रता का अधिक विवरण मिलने पर वह सिलसिला चल पड़ता है जिसे अन्तरंग स्तर का आदान-प्रदान कहा जा सके।