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Magazine - Year 1981 - Version 2

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धरती से लोक लोकान्तरों का आवागमन मार्ग

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First 21 23 Last
पृथ्वी के अतिरिक्त इस अन्तरिक्ष में अनेकानेक ग्रह-उपग्रहों, निहारिकाओं, आकाश-गंगाओं के अस्तित्व के सम्बन्ध में सभी जानते हैं। यह पदार्थ पिंडों की बात हुई। इसके अतिरिक्त एक और मान्यता भी प्रचलित है- लोक-लोकान्तरों के संबंध में। मान्यता है कि धरती पर रहने वाले जीवधारियों की तरह निकृष्ट एवं उत्कृष्ट स्तर के प्राणी कहीं अन्यत्र भी रहते हैं। उन निवास स्थानों को ‘लोक’ कहा जाता है। धरती, आसमान, पाताल के तीन लोक भी सर्वविदित हैं। इन्हें ऊपर, नीचे और मध्यवर्ती स्थान स्पेस भी कहा जा सकता है। ऊपर स्वर्ग अर्थात् श्रेष्ठ स्तर के देव जीव धारी। नीचे नरक अर्थात् निकृष्ट स्तर के दैत्य जीवधारी। धरती तो मनुष्य की है ही। इन तीन वर्गों में विभाजित समुन्नत जीवधारियों के निवास स्थान का ऊहापोह पौराणिक परम्परा में इसी प्रकार होता रहा है। पशु-पक्षी, कृमि-कीटक वर्ग के प्राणी इसके अतिरिक्त हैं।

तीन लोकों की तरह सात लोकों की भी चर्चा है। भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः और सत्यम् के नाम से सात लोकों का वर्णन किया जाता रहा है। उनके अधिष्ठाता सप्तऋषि माने जाते हैं। इस्लाम धर्म में भी सात आसमान हैं। ईसाई, बौद्ध, पारसी, यहूदी आदि धर्मों में भी प्रकारान्तर से ऐसे लोक-लोकान्तरों की मान्यता है जहाँ-वहाँ के स्थायी प्राणी तो बसते ही हैं, मनुष्य लोक के प्राणी भी भले-बुरे कर्मों का फल पाने के लिए वहाँ जाते और बसते रहते हैं।

देखना यह है कि क्या ग्रह-नक्षत्रों की तरह इस ब्रह्माण्ड में कहीं लोक-लोकान्तरों का भी अस्तित्व है? और यदि है तो उसके अस्तित्व एवं क्रिया-कलाप का स्वरूप क्या हो सकता है? क्या मरने के बाद ही प्राणी वहाँ पहुँचते हैं अथवा जीवित अवस्था में भी वहाँ का आवागमन हो सकता है? पुराणों में देवर्षि नारद के बार-बार विष्णुलोक में सशरीर आते-जाते रहने की चर्चा है। अर्जुन, दशरथ देवताओं के आमन्त्रण पर उनकी सहायता करने देवलोक में गये थे। मेनका स्वर्ग लोक से धरती पर आयी थी और विश्वामित्र के साथ रहकर एक कन्या को जन्म देने के उपरान्त वापिस चली गई थी। इसी प्रकार समय-समय पर अन्य देवताओं के धरती पर आने और मनुष्यों की सहायता करने के प्रसंगों से धर्मों का कथा-साहित्य भरा पड़ा है। देखना यह है कि इसमें कुछ तथ्य भी है या ऐसे ही यह कथा-कल्पनाओं की उपन्यास उपाख्यान जैसी मनगढ़न्त भर है।

थियोसोफी ने मनुष्य शरीर में विद्यमान सात सूक्ष्म परतों को सात लोक कहा है। उस मान्यता के अनुसार यह ब्रह्माण्डव्यापी आयाम भी होने चाहिए। लम्बाई, चौड़ाई, गहराई के तीन आयाम सर्वविदित हैं। इसके अतिरिक्त ‘होलोग्राफी’ जैसे आविष्कारों से अब चतुर्थ, आयाम भी सिद्ध हो चुका है। आइन्स्टीन के अनुसार टाइम, स्पेस और कांजेशन भी तीन अन्य आयाम हैं। अध्यात्मवेत्ता इसी ब्रह्माण्ड में लोकों की संगति स्थूल, सूक्ष्म, कारण की तरह अधिक व्यापक एवं अधिक सूक्ष्म स्तर की उन परिस्थितियों को लोक कहते हैं। जिनमें चेतन सत्ता को भी अपना अस्तित्व बनाये रहने तथा काम करने, अनुभूति लेने का अवसर मिलता है। आकाश में वायुमण्डल की, तरंगों की, ऊर्जा की परतें उपलब्ध होती हैं। लोकों की भी चेतना-जगत की ऐसी ही परतें होना चाहिए। इस प्रकार की अनेकों संगतियाँ लोक सत्ता के समर्थक बुद्धिजीवी अपने-अपने ढंग से बिठाते रहते हैं।

देखना यह है कि विज्ञान के आधार पर लोक-लोकांतरों की परम्परागत मान्यता के साथ संगति खाने वाली कोई तुक बैठती है या नहीं? इस संदर्भ में उड़न-तश्तरियों की बात बहुचर्चित है। आसमान से जमीन पर आने वाले किन्हीं यानों की, उनसे उतर कर कुछ हलचल करने वाले प्राणियों की आश्चर्यजनक और कौतूहलवर्धक अनेकानेक घटनाएँ पिछले दिनों चर्चा का विषय रही हैं। उपलब्ध प्रमाणों में सार देखकर अमेरिका सरकार ने इस सम्बन्ध में एक उच्चस्तरीय जाँच आयेगा भी बिठाया था। घटनाओं को उसने तथ्यपूर्ण तो माना पर यह निष्कर्ष अनिर्णीत ही छोड़ दिया गया कि वे घटनाएँ किस प्रकार घटीं। विज्ञान की कसौटी पर जो कारण सही सिद्ध हो सकते थे वे मिल नहीं सके और अध्यात्म मान्यता के आधार पर जिस प्रकार की संगति बैठ सकती थी उसे अपनाया नहीं गया। अस्तु समय-समय पर दृश्यमान होती रहने वाली उड़न-तश्तरियों और उनकी समझदार प्राणियों जैसी गतिविधियों का अस्तित्व अभी भी रहस्यमय बना हुआ है।

विज्ञान ने इन्हीं दिनों कुछ नये आधार ऐसे पाये हैं जिनके आधार पर आकाशस्थ पदार्थ पिंडों की ही तरह ऐसे अदृश्य लोकों के सम्बन्ध में पता चलता है। जिसमें मनुष्य जैसे प्राणियों के निवास की सम्भावना का आधार बनता है। वहाँ से आवागमन का मार्ग भी धरती पर हो सकता है। इस संदर्भ में भी कुछ ठोस तथ्य सामने आये हैं और वे ऐसे हैं, जिन्हें ऐसे ही मजाक में नहीं उड़ाया जा सकता।

इस प्रसंग में पृथ्वी पर एक “ब्लैकहोल” के अस्तित्व का होना, कभी रहस्य भर था, पर अब यह माना जाने लगा है कि प्रकृति के अगणित कौतूहलों में से एक यह भी है। भयावह होते हुए भी उसकी सत्ता प्रत्यक्ष प्रमाण की तरह सामने है।

पिछले दिनों वारमूडा त्रिकोण के क्षेत्र में ऐसी अगणित घटनाएँ घटी हैं जिसमें अनेकों जलयान, वायु-यान अपने यात्रियों समेत अदृश्य हो गए। डूबने या दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका के आधार पर अत्यधिक श्रम साध्य एवं व्यय साध्य खोजें की गईं, पर ऐसा कोई पता न चला जिससे यह जाना जाता कि वे सब कहाँ समा गये। इस रहस्य पर से लम्बे अनुसंधानों के उपरान्त यह पता चला है कि उस क्षेत्र में अनन्त ब्रह्माण्ड के साथ जुड़ा हुआ- पुच्छल तारे के स्तर का कोई “ब्लैक होल” है। ब्लैक होल अर्थात् ऐसा पोला भँवर जो दिखाई तो नहीं देता पर अपने क्षेत्र से गुजरने वालों को ऐसे ही निगल जाता है। जैसे कि लंका वाली सुरसा किसी भी नभचर को अपने स्थान पर बैठे-बैठे खींचती और निगलती रहती थी।

इस संदर्भ में अधिक विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए पिछले दिनों घटी कुछ घटनाओं का विवरण जान लेने की आवश्यकता पड़ेगी जो कुछ समय रहस्यमय रहने के उपरान्त अब एक गम्भीर अन्तरिक्षीय शोध का विषय बन गयी है।

30 जनवरी 1945 को लन्दन में ‘स्टार-टाइगर’ नामक हवाई जहाज ‘किंगस्टन’ जा रहा था। वारमूडा हवाई अड्डे पर उसे ईंधन लेना था। जहाज में 25 यात्री और 6 कर्मचारी थे। हवाई जहाज के कैप्टन ‘ब्रियन मैकमिलन’ थे जो द्वितीय विश्वयुद्ध में ‘रॉयल एयर फोर्स’ में 3000 घंटों से अधिक उड़ान किए हुए थे।

वारमूडा से पहले के हवाई अड्डे ‘एजोर्स’ पर आँधी-तूफान के संकेत मिलने पर कैप्टन ने वहीं ईंधन की सभी टंकियों को पूरी तरह भर लिया जिससे रास्ते में आँधी द्वारा भटक जाने पर भी ईंधन की कमी न हो।

रात्रि 12 बजे से 3:15 बजे के बीच इस हवाई जहाज ने वारमूडा हवाई अड्डे से रेडियो संपर्क किया। हवाई जहाज से वारमूडा की दूरी के अनुसार कंट्रोल टावर ने बताया कि वारमूडा पहुंचने का समय 3:56 ए.एम. की बजाय 5:00 ए.एम. होगा। यह विलम्ब विपरीत तेज हवा के द्वारा हवाई जहाज को घसीटे जाने के कारण होने की सम्भावना थी। इसके तुरन्त बाद वह हवाई जहाज गायब हो गया।

इस दुर्घटना के बाद इंग्लैण्ड की ‘ब्रिटिश मिनिस्ट्री ऑफ सिविल एविएशन’ ने ‘कोर्ट ऑफ इनवेस्टीगेशन’ नियुक्त किया। इसके प्रमुख मि. लारेन्स कुशे ने कहा- ‘आज तक जाँच-पड़ताल के लिए दी गई समस्याओं में यह समस्या सर्वाधिक जटिल एवं रहस्यमय है।’ उन्होंने आगे कहा- ‘‘स्टार-टाइगर हवाई जहाज गायब होने का रहस्य सर्वदा के लिए रहस्य ही रहेगा।”

ब्रिटिश मिनिस्ट्री द्वारा इस घटना के कारणों की खोज के लिए कुछ उठा न रखा गया। फिर भी किसी प्रकार की कोई जानकारी न मिल सकी। ‘कोर्ट ऑफ इन्वेस्टीगेशन’ ने निम्न विभिन्न पक्षों पर जाँच कराई-

(1) यान्त्रिक संरचना की कमियाँ

(2) मौसम सम्बन्धी विपत्तियाँ

(3) ऊँचाई की भूलें

(4) इंजनों की असफलता

इस हवाई जहाज में 1760 हार्सपावर के चार इंजन लगे थे। चार में से किन्हीं दो इंजनों के द्वारा वह अच्छी तरह उड़ान कर सकता था। इंजन में कोई कमी होने पर खतरे के संकेत मिलने की स्वसंचालित व्यवस्था थी।

इसके अतिरिक्त आग लगना, रेडियो फेल्योर, हवाई जहाज पर नियन्त्रण न होना और ईन्धन की कमी (परिस्थितियों को देखते हुए) जैसी कोई सम्भावना नहीं थी।

कोर्ट ने यह भी बताया कि वायुमण्डल में उस समय कोई ऐसा गम्भीर परिवर्तन नहीं हुआ न कोई विद्युतीय तूफान था। इस घटना के तुरन्त बाद 48 घन्टों तक इतना तीव्र आँधी-तूफान चलता रहा कि उसकी हवाई-शोध को स्थगित कर देना पड़ा। ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि उस समय पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति में अति तीव्र परिवर्तन हुआ होगा। अन्य आयामों के बारे में भी विचार किया जा सकता है।

इस घटना के लगभग एक वर्ष बाद 17 जनवरी 1949 को ‘स्टार-टाइगर’, ‘कासिस्टर प्लेन’, ‘स्टार एरियल’, ‘किण्डली-फील्ड’ वारमूडा हवाई अड्डे से 8:41 ए.एम. पर किंगस्टन के लिए रवाना हुआ। उड़ान शुरू करने के 1 घण्टे बाद हवाई जहाज के पायलेट कैप्टन जे. मैक्फी की ओर से रेडियो संकेत मिले कि वह अपने रास्ते पर ठीक प्रकार चला जा रहा है। उसके तुरन्त बाद उससे संदेश मिलना बन्द हो गए और वह अदृश्य हो गया।

इसकी जाँच के लिए समुद्री एवं हवाई बेड़ों का सशस्त्र जहाजी दस्ता पाँच दिन तक लगा रहा। फिर भी उसका कोई अवशेष चिन्ह न मिला ‘स्टार-एरियल’ की दुर्घटना का करण अभी तक अज्ञात है।

यह इसी शताब्दी की घटनाएँ हैं जिन्होंने वैज्ञानिकों के मामले को गम्भीर समझने, अधिक खोज-बीन करने और किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए बाधित किया है। इससे पूर्व पिछली शताब्दी में भी ऐसी ही अनेकों ज्ञात-अविज्ञात घटनाएँ होती रही हैं जिनका करण समझ में न आने पर उन्हें दैवी दुर्विपाक मान लिया गया और रहस्य कहकर किसी प्रकार मन समझा लिया गया। ऐसी घटनाओं में से कुछ इस प्रकार हैं।

सन् 1800 ई. की 20 अगस्त को ‘यू.एस.एस. पिकरिंग’ नामक जलयान जो ‘न्यू कैसिल’ से ग्वाडेलोय जा रहा था, गायब हो गया जिसमें 90 जहाज के कर्मचारी थे।

अगस्त 1800 में दूसरा जहाज जिसका नाम था यू.एस.एस. इन्सर्जेण्ट 340 यात्रियों सहित वारमूडा त्रिकोण में लापता हो गया।

इसी प्रकार अक्टूबर 1814 में ‘यू.एस.एस. वास्व’ नामक जलयान जिसमें 140 कर्मचारी थे वारमूडा में गायब हो गया।

सन् 1840 में ‘रौसेली’ नामक मालवाहक जलयान में से सबके सब कर्मचारी गायब हो गये। केवल कुछ क्षुधा पीड़ित बिल्लियाँ और कनारी चिड़ियों के कुछ पिंजड़े रह गए। बहुमूल्य सामान सब ज्यों का त्यों पड़ा रहा। “रौसेली” नामक जहाज को बचाने के लिए “नासो” नामक जहाज से बाँधकर खींचा गया तो दोनों का कहीं नामो निशान भी न रहा।

अप्रैल 1974 में एक 54 फीट लम्बी ‘साबा बैंक’ नामक नाव कैरिबियन समुद्र में परिभ्रमण के लिए जा रही थी (जो सुरक्षा के आधुनिकतम उपकरणों से सुसज्जित थी) नासो और मियामी के बीच अदृश्य हो गयी। उसका आज तक कोई पता न चला।

सारा समुद्र तट ‘कोस्ट-गार्ड’ की ओर से खोज डाला गया। यात्रियों के सम्बन्धियों ने नाव की जानकारी देने वाले को इनाम की मोटी रकम घोषित की। इसके बावजूद भी कोई नहीं मिली।

जनवरी 1921 में गन्धक ले जाने वाला ‘हेविट’ नामक जहाजी बेड़ा ‘सेबिन पास टेक्सास’ से रवाना हुआ लेकिन अपनी मंजिल बोसृन तक कभी न पहुँच सका। मात्र उसका अन्तिम सन्देश फ्लोरिडा के ‘जुपिटर’ नामक टापू के पास एक दूसरे जहाज पर सुना गया। 1921 के प्रथम तीन महीनों में ही ऐसे 10 भारी जहाज इस वारमूडा ट्रैंगिल में ही गायब हो गए।

जुलाई 1973 में इसी स्थान के समीप 63 लम्बी मछली पकड़ने की याँत्रिक बोट साफ मौसम में भी गायब हो गयीं। नाव किंगस्टन से जमैका की 80 मील की समुद्री यात्रा पर थी। उसमें 40 आदमी थे। उसका कुछ पता न चला केवल टूटे-फूटे टुकड़े पाये गए।

फरवरी 1972 में एक 572 फुट का ‘बी.ए. फाग’ नामक टैंकर मैक्सिको की खाड़ी की यात्रा पर जा रहा था। ‘गाल्वेस्टन’ के दक्षिण में कहीं गायब हो गया। नियत समय पर न पहुँच पाने के कारण उसकी खोजबीन करने पर मात्र पोत का भग्नावशेष और उसमें बुरी तरह फँसकर मरे कर्मचारियों के शव हाथ लगे।

यह सब कहाँ समा गये? इसका उत्तर विज्ञान ने अन्तरिक्ष में ऐसे ‘ब्लैक होलों’ का अस्तित्व खोज कर दिया है जो मात्र अदृश्य आकाशीय भँवर ही नहीं वरन् लोक-लोकान्तर तक जाने वाली गुप्त सुरंगों का काम भी देते हैं।

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