
चंद्रमा और पृथ्वी (कहानी)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
आत्महत्या पर उतारू एक वैज्ञानिक साहस के अभाव में वैसा न कर सका तो घर छोड़कर वैरागी हो गया।
वह उस वैरागी के साथ रहने लगा जो शांति का जीवन जी लेने के बाद संन्यासी बना था। एक दिन दोनों में विवाद छिड़ा। विषय था चंद्रमा का अंत। पहले ने कहा— "वह दिन दूर नहीं जब चंद्रमा धरती पर गिरेगा और चकनाचूर हो जाएगा।" दूसरे ने कहा— "नहीं ऐसा नहीं हो सकता। जब चाँद-सितारे न तो बीमार पड़ते हैं और न खीजते हैं, तो मरेंगे क्यों?"
समाधान के लिए पुराने परिचित वैज्ञानिकों की गोष्ठी बुलाई गई। उनमें से एक ने कहा— "चंद्रमा पृथ्वी से 3,89,000 किलो मीटर दूर है।" व्यास है — कुल 3500 किलोमीटर। अगर गिरेगा तो उसकी रफ्तार 11 कि.मी. प्रति सेकेंड से अधिक न होगी। जब तक वह गिरेगा तब तक हममें से कोई जीवित नहीं रहेगा। इसलिए चिंता करना ठीक नहीं।
दूसरे वैज्ञानिक ने कहा— "सभी ग्रहगोलक एकदूसरे के साथ बँधे हुए हैं। नियम-मर्यादा पर चलते हैं, फिर गिरने जैसी आशंका क्यों की जाए?" एक तीसरा वैज्ञानिक बोला— "ईसा से 1200 वर्ष पूर्व से लेकर अब तक हुए 8000 सूर्यग्रहणों और 5200 चंद्रग्रहणों की गणना मैंने की है। चंद्र-सूर्य अपना रास्ता सहज ही बदलने वाले नहीं हैं।"
एक अन्य वैज्ञानिक ने कहा— "चंद्रमा ने पृथ्वी के निकट आने की गलती की, तो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण एक बड़ा टुकड़ा तोड़कर अपनी जेब में रख लेगा और दूसरे छोटे को एक पतंग की तरह छितरायी कक्षा में उड़ने देगा।"
गोष्ठी के वैज्ञानिकों की बात सुनकर दोनों वैरागियों ने अपनी-अपनी बात का समर्थन माना और वे अपने-अपने कामों में शांतिपूर्वक लग गए।