• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • समर्थता का सदुपयोग
    • आदर्शों की कथनी ही नहीं, करनी भी
    • ध्यान-धारणा का प्रभाव— परिणाम
    • पुरुषोत्तम दास की ईमानदारी (कहानी)
    • तत्त्वज्ञान की परम पवित्रता
    • समझदार को जिम्मेदारी दिया (कहानी)
    • देवता बहकाए नहीं जा सकते
    • हिम्मत मत हारो (कहानी)
    • महाप्रज्ञा का दर्शन एवं आराधन
    • चंद्रमा और पृथ्वी (कहानी)
    • पंचप्राणों की पाँच आहुतियाँ
    • कर्म से लगाव (कहानी)
    • भवबंधनों की जकड़न और पीड़ा
    • कार से प्रेम (कहानी)
    • जीवन में सरसता भर देने वाले चार आधार
    • ऋषि अगस्त्य (कहानी)
    • प्रामाणिकता की समर्थ क्षमता
    • देश की महानता (कहानी)
    • काम का वास्तविक स्वरूप— क्रीड़ा-कल्लोल
    • यथार्थता का संकोच (कहानी)
    • ऊर्ध्वगमन की वज्रोली मुद्रा
    • दृश्य देखकर बहुत क्रुद्ध हुए (कहानी)
    • देवताओं का स्वर्ग धरती पर भी
    • धर्मराज युधिष्ठिर (कहानी)
    • मनुष्य की विद्युतशक्ति का उभार एवं सुनियोजन
    • सदुक्ति
    • निंदक नियरे राखिए .....
    • बच्चे, बड़ों से ही सीखते हैं (कहानी)
    • मन में निहित विलक्षण अतींद्रिय सामर्थ्य
    • सब्ज बाग न देखें, यथार्थता से जुड़ें
    • व्यवहार का ज्ञान (कहानी)
    • यह खतरनाक खेल मानवी विशिष्टताओं को नष्ट कर देगा
    • कुंती का समर्पण (कहानी)
    • मस्तिष्क के अविज्ञात का चमत्कार
    • मनुष्य की पहचान का अदृश्य विज्ञान
    • Quotation
    • कामार्त्ता हि प्रकृति कृपणाश्चेतनाचेतनेषु
    • क्या भूत-प्रेतों का अस्तित्व है?
    • मनुष्य का वैभव (कहानी)
    • जागरूकता गंवा न बैठें
    • हैसियत के अनुसार कर्म (कहानी)
    • सद्भावना-संवर्द्धन की पुण्य प्रक्रिया:- अग्निहोत्र
    • ताकत से बड़ी सूझ-बूझ (कहानी)
    • आहार की आध्यात्मिक स्वच्छता
    • अंधेरे भविष्य का एक ठोस कारण
    • पुण्य का फल (कहानी)
    • चेतना और ऊर्जा का भांडागार-सविता देवता
    • सूर्योपासना कब और कैसे?
    • कर्तव्य का फल (कहानी)
    • महाप्रज्ञा के आठ दिव्य अनुदान
    • अपनों से अपनी बात— कुंडलिनी केंद्र की साझीदारी
    • नारद का अभिमान (कहानी)
    • अब फिर से सतयुग आएगा, यह बोल रहा है महाकाल
    • सविता-वंदना
    • सविता-वंदना (कविता)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • समर्थता का सदुपयोग
    • आदर्शों की कथनी ही नहीं, करनी भी
    • ध्यान-धारणा का प्रभाव— परिणाम
    • पुरुषोत्तम दास की ईमानदारी (कहानी)
    • तत्त्वज्ञान की परम पवित्रता
    • समझदार को जिम्मेदारी दिया (कहानी)
    • देवता बहकाए नहीं जा सकते
    • हिम्मत मत हारो (कहानी)
    • महाप्रज्ञा का दर्शन एवं आराधन
    • चंद्रमा और पृथ्वी (कहानी)
    • पंचप्राणों की पाँच आहुतियाँ
    • कर्म से लगाव (कहानी)
    • भवबंधनों की जकड़न और पीड़ा
    • कार से प्रेम (कहानी)
    • जीवन में सरसता भर देने वाले चार आधार
    • ऋषि अगस्त्य (कहानी)
    • प्रामाणिकता की समर्थ क्षमता
    • देश की महानता (कहानी)
    • काम का वास्तविक स्वरूप— क्रीड़ा-कल्लोल
    • यथार्थता का संकोच (कहानी)
    • ऊर्ध्वगमन की वज्रोली मुद्रा
    • दृश्य देखकर बहुत क्रुद्ध हुए (कहानी)
    • देवताओं का स्वर्ग धरती पर भी
    • धर्मराज युधिष्ठिर (कहानी)
    • मनुष्य की विद्युतशक्ति का उभार एवं सुनियोजन
    • सदुक्ति
    • निंदक नियरे राखिए .....
    • बच्चे, बड़ों से ही सीखते हैं (कहानी)
    • मन में निहित विलक्षण अतींद्रिय सामर्थ्य
    • सब्ज बाग न देखें, यथार्थता से जुड़ें
    • व्यवहार का ज्ञान (कहानी)
    • यह खतरनाक खेल मानवी विशिष्टताओं को नष्ट कर देगा
    • कुंती का समर्पण (कहानी)
    • मस्तिष्क के अविज्ञात का चमत्कार
    • मनुष्य की पहचान का अदृश्य विज्ञान
    • Quotation
    • कामार्त्ता हि प्रकृति कृपणाश्चेतनाचेतनेषु
    • क्या भूत-प्रेतों का अस्तित्व है?
    • मनुष्य का वैभव (कहानी)
    • जागरूकता गंवा न बैठें
    • हैसियत के अनुसार कर्म (कहानी)
    • सद्भावना-संवर्द्धन की पुण्य प्रक्रिया:- अग्निहोत्र
    • ताकत से बड़ी सूझ-बूझ (कहानी)
    • आहार की आध्यात्मिक स्वच्छता
    • अंधेरे भविष्य का एक ठोस कारण
    • पुण्य का फल (कहानी)
    • चेतना और ऊर्जा का भांडागार-सविता देवता
    • सूर्योपासना कब और कैसे?
    • कर्तव्य का फल (कहानी)
    • महाप्रज्ञा के आठ दिव्य अनुदान
    • अपनों से अपनी बात— कुंडलिनी केंद्र की साझीदारी
    • नारद का अभिमान (कहानी)
    • अब फिर से सतयुग आएगा, यह बोल रहा है महाकाल
    • सविता-वंदना
    • सविता-वंदना (कविता)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अंधेरे भविष्य का एक ठोस कारण

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 44 46 Last
भविष्योत्तर पुराण में घोर कलियुग के पिछले दौर का ऐसा वर्णन किया गया है, जिसमें परिस्थितियाँ अनेक दृष्टीयों से प्रतिकुलाना भारी कष्टदायक और पतन-पराभव से युक्त होंगी। मनुष्य पहले मानसिक दृष्टि से दुर्बल, रुग्ण और अपंग-असमर्थ जैसा होगा। उसके साथ ही उसके चिंतन का स्तर भी अधोगामी होगा। खींच-निराशा से उद्विग्न रहेगा और पुरुषार्थ की दिशा धारा छल प्रपंच, पाखंड, अनाचार जैसी दुष्प्रवृत्तियों में निरत रहने की रहेगी। नीति-मर्यादाओं को वह तोड़ चुका होगा और वर्जनाओं का ध्यान न करते हुए ऐसे कुकृत्यों में संलग्न रहेगा जिनके दुष्परिणाम उसे हाथों-हाथ भोगने पड़े। यह विपन्नता दूरदर्शिता का अभाव हो जाने के कारण होगी, मनुष्य बाहर से बौना, मानसिक दृष्टि से छोटा और व्यवहार में खिलौनामात्र बनकर रह जाएगा आदि-आदि।

इसके अतिरिक्त भी ऐसी अनेक भविष्यवाणियों का उल्लेख है, जिनमें व्यक्ति और समाज के अधःपतन का डरावना रूप प्रस्तुत किया गया है।

संप्रति संसार की वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा कुछ लगता नहीं। सब ओर प्रगति का माहौल है। सबमें ऊँचा उठने, आगे बढ़ने की योजनाएँ बन और कार्यांवित हो रही है। इसका लाभ कितने ही क्षेत्रों में प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर भी हो रहा है। शिक्षा बढ़ रही है। उपार्जन की क्षमता में भी क्रमश: बढ़ोतरी ही हुई है। विज्ञान ने जहाँ विनाशकारी साधनों में अपना कौशल नियोजित किया है, वहाँ उसने सुविधा-साधनों के अंबार खड़े करने में भी कमी नहीं रहने दी। साज-सज्जा के ऐसे उपाय-उपचार विनिर्मित हुए हैं, जिनका उपयोग करने पर मनुष्य अधिक सुंदर और आकर्षक दिख पड़ता है। मनोरंजन के पुराने साधन तो नहीं रहे; पर उनके स्थान पर नए सरंजाम जुट गए हैं । सिनेमा का विस्तार-क्षेत्र समाचारपत्रों की संयुक्तशक्ति से कहीं आगे हैं। जितने लोग पत्र-पत्रिकाएँ पकाते हैं, उससे कहीं अधिक वे सिनेमा देखते है। बड़े-बड़े लोगों के लिए ऊँचे स्तर का विनोद करने के लिए क्लबों की भरमार है। घटिया लोग अश्लील कामुकता के चित्र-विचित्र स्वरूपों का रसास्वादन करते हैं। ब्लू फिल्मों व साहित्य का आश्रय लेते हैं।

यह तथाकथित प्रगति गाथा उसकी अपेक्षा अधिक प्रत्यक्ष है, जैसी भविष्योत्तर पुराण में भयावह संभावनाओं को चित्रण करते हुए बताई गई है। प्रश्न उठता है कि इन परस्पर विरोधी प्रतिपादनों में से अधिक विश्वस्त किसे माना जाए? खासतौर से तब जब कि मस्तिष्क की जटिलताएँ सुलझाने के लिए कंप्यूटर बाजार में आ रहे हैं। श्रमशक्ति बचाने के लिए पुराने ढर्रे को स्वचालित मशीनों से दस कदम आगे बढ़कर ऐसे यंत्रमानवों का निर्माण हो रहा है, जो कठिन कार्यों को भी सरलतापूर्वक करके रख देते हैं। न उन्हें खाने की सोने की, आवश्यकता है और न वेतन वृद्धि संबंधी कोई माँग। स्वास्थ्य सुविधाओं तथा अस्पतालों का विकास विस्तार हो रहा है। इससे रोगों से निपटने और दुर्बल अंगों को हटाकर उनके स्थान पर नयों का प्रत्यारोपण भी अब एक सामान्य बात हो गई है। ऐसी दशा में कैसे माना जाए कि अगले दिनों मानवी भविष्य तमस् से घिरा हुआ है। पतन की घड़ी निकट आ रही है।

यहाँ एक ऐसा कारण भी है ;जो दृश्यमान प्रगति को खोखला एवं छलावे स्तर का बताता है। संकेत उन छोटी समझी जाने वाली विकृतियों की ओर है, जो आकार में लघु होते हुए भी प्रहार क्षमता में किसी दैत्य-दाव से कम नहीं। वे चुपके-चुपके प्रवेश करती है, जड़े जमाती और तब हटती है, जब पूरी तरह सर्वनाश कर देती है। मजबूत शहतीरों में घुन लग जाते है तो बाहर से न दिख पड़ने पर भी भीतर ही भीतर कतरव्यौंत करते रहते हैं, जिससे उसकी सुदृढ़ता धूलि में मिल जाए और पता तब चले जब बह बाहर से सही दिखते रहने पर भी खोखलेपन के दबाव से धराशाई हो चले। तपेदिक स्तर के विषाणु एवं कैंसर के जीवकोश भी ऐसे खतरनाक होते हैं। वे खुली आँखों से दिख नहीं पड़ते; पर भीतर ही भीतर अपनी वंशवृद्धि करते रहते हैं, जीवनीशक्ति को चाटते रहते हैं और अकालमृत्यु के लिए अपने शिकार को विवश कर देते हैं।

भविष्यपुराण के अविश्वस्त लगने वाले कथन के अगले ही दिनों फलित होने वाले कारणों में से कुछ ऐसे हैं जो बताते है कि तथाकथित प्रगति की तुलना में अवगति की दौड़ कहीं अधिक है और वह अब, तब में बाजी मारने ही जा रही है।

ऐसे अनेक कारणों में प्रगति का एक सशक्त प्रतिरोधी है। युवापीढ़ी के भविष्य को अंधकारमय बना देने वाला नशा जो दिन-दूनी, रात-चौगुनी गति से समझदारों से लेकर ना समझो तक को अपने चंगुल में फँसाता जा रहा है। उसके दुष्परिणाम तत्काल तो सामने नहीं आते; पर कुछ ही दिनों में ऐसी भयावह परिणति प्रस्तुत करने लगते हैं, जिनकी पकड़ मजबूत हो जाने पर प्राण बचाने का कोई उपाय शेष नहीं रह जाता। इस कुटेव को पहले मनुष्य अपनाता है, पीछे वह स्वयं अपने मेजबान को इतनी मजबूती से पकड़ती है कि उस चंगुल से छूट पड़ना कठिन जान पड़ता है। असंभव जैसा हो जाता है।

इनके अतिरिक्त अधिक अदृश्य एवं अधिक अविज्ञात स्थिति एक और है। वह है संतान का स्वास्थ्य, बुद्धिबल और सत्साहस का बुरी तरह गिर जाना। नशेबाजों और बिना नशा पीने वालों की संतानों का दीर्घकालीन सतर्कतापूर्वक सर्वेक्षण किया गया, तो प्रतीत हुआ कि नशेबाज वर्ग द्वारा उत्पादित संतति में शारीरिक और मानसिक दृष्टि से अनेक दोष-दुर्गुण पाए गए। समयानुसार बढ़ते रहने पर वे उन्हें किशोरावस्था से लेकर तरुणाई की परिधि में प्रवेश करते-करते बुरी तरह अपने को शिकंजे में कस लेते हैं। इनके चिंतन पर अनाचार ही छाया रहता है। इस कारण उनसे मानवी गरिमा के अनुरूप कुछ किए जाने की आशा नहीं की जा सकती।

बीज का जैसा स्तर होता है वैसी ही पौध उत्पन्न होती है। सड़े-घुने बीज से अंकुर निकलते हैं वे गए गुजरे ही होते हैं। नस्ल बिगड़ने का यही कारण है और सुधारने के लिए बीज में सुधार करना भी। नशेबाजों की पीढ़ियों की पीढ़ियाँ किस प्रकार मिटती चली जाती हैं इसका प्रयोग छोटे जानवरों को नशे की आदत डालकर देखा गया। उनकी हर पीढ़ी छोटी, रुग्ण, अशक्त और अल्पजीवी होती चली गई थी। उसमें समझदारी भी कम थी। यही हाल उन मनुष्यों के वंशजों का भी होता है, जो नशा पीकर अपने शरीर का ही नहीं, प्रजनन क्षेत्र को भी विषाक्त कर लेते हैं और यह क्रम चलते रहने पर उत्तरोत्तर पीढ़ियों का क्रम इतना गिरता जाता है, जिससे न उनका व्यक्तिगत जीवन सही रह पाता है और सामाजिक स्तर। पतन बढ़ता रहे तो नाव की तली में होने वाले छेद की तरह उसे पूरी तरह डुबोकर ही रहता है। इस आधार पर भविष्योत्तर पुराण में अगले दिनों के संबंध में आशंकाएँ व्यक्त की गई हैं, उनमें बहुत कुछ सार एवं तथ्य प्रतीत होता है।

First 44 46 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • समर्थता का सदुपयोग
  • आदर्शों की कथनी ही नहीं, करनी भी
  • ध्यान-धारणा का प्रभाव— परिणाम
  • पुरुषोत्तम दास की ईमानदारी (कहानी)
  • तत्त्वज्ञान की परम पवित्रता
  • समझदार को जिम्मेदारी दिया (कहानी)
  • देवता बहकाए नहीं जा सकते
  • हिम्मत मत हारो (कहानी)
  • महाप्रज्ञा का दर्शन एवं आराधन
  • चंद्रमा और पृथ्वी (कहानी)
  • पंचप्राणों की पाँच आहुतियाँ
  • कर्म से लगाव (कहानी)
  • भवबंधनों की जकड़न और पीड़ा
  • कार से प्रेम (कहानी)
  • जीवन में सरसता भर देने वाले चार आधार
  • ऋषि अगस्त्य (कहानी)
  • प्रामाणिकता की समर्थ क्षमता
  • देश की महानता (कहानी)
  • काम का वास्तविक स्वरूप— क्रीड़ा-कल्लोल
  • यथार्थता का संकोच (कहानी)
  • ऊर्ध्वगमन की वज्रोली मुद्रा
  • दृश्य देखकर बहुत क्रुद्ध हुए (कहानी)
  • देवताओं का स्वर्ग धरती पर भी
  • धर्मराज युधिष्ठिर (कहानी)
  • मनुष्य की विद्युतशक्ति का उभार एवं सुनियोजन
  • सदुक्ति
  • निंदक नियरे राखिए .....
  • बच्चे, बड़ों से ही सीखते हैं (कहानी)
  • मन में निहित विलक्षण अतींद्रिय सामर्थ्य
  • सब्ज बाग न देखें, यथार्थता से जुड़ें
  • व्यवहार का ज्ञान (कहानी)
  • यह खतरनाक खेल मानवी विशिष्टताओं को नष्ट कर देगा
  • कुंती का समर्पण (कहानी)
  • मस्तिष्क के अविज्ञात का चमत्कार
  • मनुष्य की पहचान का अदृश्य विज्ञान
  • Quotation
  • कामार्त्ता हि प्रकृति कृपणाश्चेतनाचेतनेषु
  • क्या भूत-प्रेतों का अस्तित्व है?
  • मनुष्य का वैभव (कहानी)
  • जागरूकता गंवा न बैठें
  • हैसियत के अनुसार कर्म (कहानी)
  • सद्भावना-संवर्द्धन की पुण्य प्रक्रिया:- अग्निहोत्र
  • ताकत से बड़ी सूझ-बूझ (कहानी)
  • आहार की आध्यात्मिक स्वच्छता
  • अंधेरे भविष्य का एक ठोस कारण
  • पुण्य का फल (कहानी)
  • चेतना और ऊर्जा का भांडागार-सविता देवता
  • सूर्योपासना कब और कैसे?
  • कर्तव्य का फल (कहानी)
  • महाप्रज्ञा के आठ दिव्य अनुदान
  • अपनों से अपनी बात— कुंडलिनी केंद्र की साझीदारी
  • नारद का अभिमान (कहानी)
  • अब फिर से सतयुग आएगा, यह बोल रहा है महाकाल
  • सविता-वंदना
  • सविता-वंदना (कविता)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj