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Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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कामार्त्ता हि प्रकृति कृपणाश्चेतनाचेतनेषु

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मनुष्य जितना विलक्षण एवं दैवी क्षमताओं से सुसंपन्न है, उतना ही वह विचित्र, विकृत एवं कुरूप भी है। एक तस्वीर के दोनों ही पहलू होते हैं। मनुष्य के अंत में छिपा नर-पशु जितना ही उसके नियंत्रण के बाहर होता जाता है, उतनी ही उसकी कुरूपता बहिरंग जीवन में दृष्टिगोचर होती जाती है।

बहुपुरुषों से भोग करने वाली स्त्री को वेश्या कहते हैं और उसी से मिलता-जुलता शब्द उस पुरुष के लिए भी प्रयुक्त होता है, जो विषय-लोलुपता के वशीभूत होकर अनेक उपपत्नियों की तुक बिठाता रहता है। मध्यकालीन अनीतियुग में इस प्रकार का घोषित व्यभिचार चल पड़ा, जिसमें एक ही घर में अनेक उपपत्नियाँ रहती थीं। राजा-सामंतों से चलकर तथाकथित बड़े आदमियों तक यह प्रथा व्यापक होती गई। आज भी यह प्रचलन किसी न किसी रूप में जिंदा है।

उन दिनों उच्छृंखल कामुकता के अतिरिक्त अपनों की संख्या अधिक बढ़ाने और उनके कारण एक प्रकार की पारिवारिक सेना जमा करने का भी लाभ संभवतः ऐसे लोगों की दृष्टि में रहा हो। उस काल में बहुपत्नियों और बहुसंतानों का विवरण ज्ञात करके दाँतों तले उँगली दबानी पड़ती है।

व्यसनों में सबसे आकर्षक और उत्तेजक है— कामुकता। इंद्रिय रसों में मायाचार को सर्वप्रमुख माना गया है। मनुष्य उसी में सबसे अधिक रस-लोलुपता अनुभव करता है। गृहस्थ जीवन के लिए पति-पत्नी का युग्म पर्याप्त है। जीवन की बहुमुखी समस्याओं का समाधान और प्रगति का अभीष्ट आयोजन करने के लिए दो पहिए की गाड़ी की तरह इन्हीं के सहारे गाड़ी खिंच जाती है। इसी में परंपरा एवं औचित्य का निर्वाह है।

पुरुषों में अनेक विवाह करने वाले और अपने जीवनकाल में आश्चर्यजनक संख्या में वंशज छोड़ मरने वालों में मोरक्को के बादशाह शरीफी की बीबियाँ कितनी थीं, इसकी तो कुछ गणना न हो सकी; क्योंकि आज शादी कल तलाक; इस पर भी हरम भरा रहता था। मात्र वंशजों की गिनती की जा सकी। वे नाती-पोतों समेत 325 थे। इनसे भी बाजी मारने वाले मध्य अफ्रीका के बोलोका गोहान थे, जिनके वंशज 650 गिने गए। उनकी पत्नियों की गणना कभी भी नहीं की जा सकी।

यों अफ्रीका के आदिवासियों में प्रत्येक संपन्न नीग्रो बहुपत्नियाँ रखते हैं। पत्नियाँ भी अपने को भाग्यवान मानती हैं। सब मिल-जुलकर ढेरों जमीन घेर लेते हैं और एक कबीला बनाकर लड़ाई-झगड़े का मुकाबला मिल-जुलकर कर लेते हैं। वहाँ मजदूर किराए के नहीं मिलते। घर के जितने अधिक लोग हों, उतनी ही आमदनी बढ़ती है और उस खुशहाली को अच्छा समझा जाता है। आज भले ही आबादी इतनी बढ़ गई हो कि कहीं पैर रखने, कब्र में उन्हें मरणोपरांत गाड़ने योग्य जमीन भी नहीं है, यह प्रचलन वहाँ बखूबी चलता रहा है। लगभग यही स्थिति अफगानिस्तान व उत्तर-पश्चिमी सीमांत पाकिस्तान की भी है।

हिंदुस्तान में उत्तराधिकारी पुत्र होने की लालसा से ही कई-कई विवाहों की परंपरा समकालीन युग से चली आ रही है। इतने पर भी कन्या जन्मने पर वह मनोकामना भी पूरी नहीं हो पाती। तंजौर के राजा का कोई पुत्र न था, सो उसने एक ही सप्ताह में 17 शादियाँ की। फिर भी उन्हें कोई पुत्र न हुआ और अंततः राजगद्दी अंग्रेजों के हाथ में चली गई।

मिस्र के राजा फरॉओह द्वितीय ने 77 वर्ष तक राज्य किया। उसके 60 लड़के और 59 लड़कियाँ थीं। मंदिर की दीवार पर इन सब बच्चों की मूर्तियाँ उसने खुदवाई थीं।

बहुप्रजनन में स्त्रियों ने भी बाजी मारने का प्रयत्न किया है। चिली की एक महिला गोंसाल्बीज मेरी जब तक जीवित रही तब तक उसके जीवनकाल में नाती-परपोते समेत 124 लड़के और 16 लड़कियाँ हो चुकीं थीं। सबसे अधिक संतानें पैदा करने का श्रेय शुया (मास्को) की श्रीमती फिओडोर वैसील्येव (1707 से 1782 ई. तक) को जाता है, जिसकी 69 संतानें थीं। वे अपने पति की दो पत्नियों में से एक थीं। 27 बार वह गर्भवती हुईं, जिसमें 16 जुड़वाँ, सात तिकड़ीयाँ (ट्रीपलेट्स) एवं चार चौकड़ियाँ (क्वाडुप्लेट्स) थीं। इनमें से 67 बच्चे जीवित रहे। सॉन एण्टोनिओ (चीलि) की लिओण्टीना एल्बीना आज के समय की सबसे अधिक संतानों को जन्म देने वाली महिला है, जिसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज है। इन्होंने 1981 में अपनी पचपनवीं संतान को जन्म दिया है। ये 1925 में जन्मी थीं और इनका विवाह 1943 में जिरार्डो सेकण्डा अल्बीना से हुआ। 5 इनके ट्रीपलेट्स हुए हैं। अभी ‘केवल’ 24 लड़के एवं 16 लड़कियाँ इनकी जीवित हैं। वे बताते हैं कि उनकी 11 संतानें चिली आने से पहले अर्जेण्टाइना में एक भूकंप में दबकर मर गईं। 1720 में मरीं एलीजाबेथ जॉन मॉट (वारविक शायर) को इंग्लैंड में सबसे अधिक (42) संतानें पैदा करने का श्रेय प्राप्त है।

प्रायः 45 वर्ष की आयु में स्त्रियों का मासिकधर्म बंद हो जाता है और तब तक औसत 4-5 बच्चे जनने के बाद स्त्रियाँ प्रसव बंद कर देती हैं; पर ये रिकार्ड ऊपर वर्णित ये महिलाएँ तोड़ चुकी हैं व शरीरविज्ञानियों को चुनौती देती हैं। चिकित्सा जगत के इतिहास में ब्रिटेन की एलन एलीस का नाम देखने को आता है, जिसने 75 वर्ष की आयु में 15 मई 1776 को, जो उनकी शादी का छियालीसवाँ साल था, अपने तेरहवें बच्चे को जन्म दिया था, जो जन्म के तुरंत बाद मर गया। पोर्टलैण्ड ऑरिगोन की रुथएलिस किसलर ने 57 वर्ष की आयु में 18 अक्टूबर 1856 को अपनी लड़की सूजन को जन्म दिया था। प्राकृतिक रूप में तेजी से एक साथ तीन बच्चों को जन्म देने का रिकार्ड श्रीमती जेम्स डक (मेक्फिस) के नाम दर्ज है, जिन्होंने 1977 में 2 मिनट में यह कर दिखाया। डॉ. जेनारो मोण्टेनियो (रोम) ने 22 जुलाई 1971 को 35 वर्षीय एक महिला के गर्भाशय से 10 मादा एवं 5 नर बच्चों के भ्रूण मृतावस्था में निकाले। समझ में नहीं आता, एक साथ इतने भ्रूण छोटे से गर्भाशय में कैसे पल एवं विकसित हो गए।

देखा जाए तो पशुओं की तरह कामसेवन कर बच्चे पैदा करना सरल है; किंतु बहुत स्त्रियों का और उनके बच्चों का लालन-पालन कितना कठिन है, इसे भुक्तभोगी ही जानते हैं। उनके लिए धनसंग्रह करने के लिए अनीतिपूर्ण तरीके अपनाने पड़ते हैं, जिसके लिए वे किसी भी सीमा तक जाने को तैयार रहते हैं। जिन्हें बच्चों के उत्तरदायित्त्वों का कुछ भान है, वे उन्हें अपने समान सुयोग्य बनाने का प्रयत्न भी करते हैं।

ट्यूम्स बरी के डॉ. बेंजामीन के आठों पुत्र डॉक्टर बने। विक्टर शीनन का पूरा परिवार पादरी था। उनके चारों भाई, तीनों भतीजे व चारों लड़के पादरी बने। इसी प्रकार वेल्स के विल्सन परिवार में जन्मे पाँचों भाई पादरी बने, उनके नाम से पाँचों गिरजे बने। उन्हें दफनाया भी एक ही जगह गया।

समझदार लोगों की बात दूसरी है, जो अपनी संतानों को संस्कार भी देते हैं व भली प्रकार पालते भी हैं। अन्यथा जिस प्रकार बहुत बच्चे जनने वाले जानवरों की संतान “स्ट्रगल फॉर एक्जीस्टेन्स’ के लिए भूखों मरती हैं या जिस-तिस की शिकार बन जाती है, उसी प्रकार मनुष्यों द्वारा बहुत बच्चे जनने पर उनकी भी वैसी ही दुर्गति होती है। वैसे एक साथ अधिक बच्चे जनने का रिकार्ड पेंसिलवानिया की लीलाकुतिया ने स्थापित किया था। जिसने एक बार में 23 बच्चे जने। रीजेण्ट फार्म लंदन के एमहर्स्ट के पालतू कुत्ते जिमी ने पिता बनने का पंजीकृत रिकार्ड 2414 पिल्लों का स्थापित किया था। 600 इसके अतिरिक्त थे, जो पंजीकृत नहीं हुए। ओपोसम ऑस्ट्रेलिया का एक प्रख्यात जानवर है, जिसकी अनगिनत संतानें होती हैं। माँ के पास दूध हेतु पहुँचने के संघर्ष में तीन-चौथाई मर जाते हैं या माँ के ऊपर चढ़कर उसे घुटन से मार देते हैं। मनुष्य को भी यदि अपना इसी प्रकार उपहास कराना है और बच्चों को विपत्ति में, स्वयं को संकट में धकेलना हो तो बात दूसरी है। नहीं तो समझदारी तो यही कहती है कि यौनाचार पर अंकुश रखा जाए, उच्छृंखलता से बचा जाए एवं संयमजन्य शक्ति द्वारा उस लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया जाए, जिसके लिए मानवयोनि मिली है।

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