• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • समर्थता का सदुपयोग
    • आदर्शों की कथनी ही नहीं, करनी भी
    • ध्यान-धारणा का प्रभाव— परिणाम
    • पुरुषोत्तम दास की ईमानदारी (कहानी)
    • तत्त्वज्ञान की परम पवित्रता
    • समझदार को जिम्मेदारी दिया (कहानी)
    • देवता बहकाए नहीं जा सकते
    • हिम्मत मत हारो (कहानी)
    • महाप्रज्ञा का दर्शन एवं आराधन
    • चंद्रमा और पृथ्वी (कहानी)
    • पंचप्राणों की पाँच आहुतियाँ
    • कर्म से लगाव (कहानी)
    • भवबंधनों की जकड़न और पीड़ा
    • कार से प्रेम (कहानी)
    • जीवन में सरसता भर देने वाले चार आधार
    • ऋषि अगस्त्य (कहानी)
    • प्रामाणिकता की समर्थ क्षमता
    • देश की महानता (कहानी)
    • काम का वास्तविक स्वरूप— क्रीड़ा-कल्लोल
    • यथार्थता का संकोच (कहानी)
    • ऊर्ध्वगमन की वज्रोली मुद्रा
    • दृश्य देखकर बहुत क्रुद्ध हुए (कहानी)
    • देवताओं का स्वर्ग धरती पर भी
    • धर्मराज युधिष्ठिर (कहानी)
    • मनुष्य की विद्युतशक्ति का उभार एवं सुनियोजन
    • सदुक्ति
    • निंदक नियरे राखिए .....
    • बच्चे, बड़ों से ही सीखते हैं (कहानी)
    • मन में निहित विलक्षण अतींद्रिय सामर्थ्य
    • सब्ज बाग न देखें, यथार्थता से जुड़ें
    • व्यवहार का ज्ञान (कहानी)
    • यह खतरनाक खेल मानवी विशिष्टताओं को नष्ट कर देगा
    • कुंती का समर्पण (कहानी)
    • मस्तिष्क के अविज्ञात का चमत्कार
    • मनुष्य की पहचान का अदृश्य विज्ञान
    • Quotation
    • कामार्त्ता हि प्रकृति कृपणाश्चेतनाचेतनेषु
    • क्या भूत-प्रेतों का अस्तित्व है?
    • मनुष्य का वैभव (कहानी)
    • जागरूकता गंवा न बैठें
    • हैसियत के अनुसार कर्म (कहानी)
    • सद्भावना-संवर्द्धन की पुण्य प्रक्रिया:- अग्निहोत्र
    • ताकत से बड़ी सूझ-बूझ (कहानी)
    • आहार की आध्यात्मिक स्वच्छता
    • अंधेरे भविष्य का एक ठोस कारण
    • पुण्य का फल (कहानी)
    • चेतना और ऊर्जा का भांडागार-सविता देवता
    • सूर्योपासना कब और कैसे?
    • कर्तव्य का फल (कहानी)
    • महाप्रज्ञा के आठ दिव्य अनुदान
    • अपनों से अपनी बात— कुंडलिनी केंद्र की साझीदारी
    • नारद का अभिमान (कहानी)
    • अब फिर से सतयुग आएगा, यह बोल रहा है महाकाल
    • सविता-वंदना
    • सविता-वंदना (कविता)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • समर्थता का सदुपयोग
    • आदर्शों की कथनी ही नहीं, करनी भी
    • ध्यान-धारणा का प्रभाव— परिणाम
    • पुरुषोत्तम दास की ईमानदारी (कहानी)
    • तत्त्वज्ञान की परम पवित्रता
    • समझदार को जिम्मेदारी दिया (कहानी)
    • देवता बहकाए नहीं जा सकते
    • हिम्मत मत हारो (कहानी)
    • महाप्रज्ञा का दर्शन एवं आराधन
    • चंद्रमा और पृथ्वी (कहानी)
    • पंचप्राणों की पाँच आहुतियाँ
    • कर्म से लगाव (कहानी)
    • भवबंधनों की जकड़न और पीड़ा
    • कार से प्रेम (कहानी)
    • जीवन में सरसता भर देने वाले चार आधार
    • ऋषि अगस्त्य (कहानी)
    • प्रामाणिकता की समर्थ क्षमता
    • देश की महानता (कहानी)
    • काम का वास्तविक स्वरूप— क्रीड़ा-कल्लोल
    • यथार्थता का संकोच (कहानी)
    • ऊर्ध्वगमन की वज्रोली मुद्रा
    • दृश्य देखकर बहुत क्रुद्ध हुए (कहानी)
    • देवताओं का स्वर्ग धरती पर भी
    • धर्मराज युधिष्ठिर (कहानी)
    • मनुष्य की विद्युतशक्ति का उभार एवं सुनियोजन
    • सदुक्ति
    • निंदक नियरे राखिए .....
    • बच्चे, बड़ों से ही सीखते हैं (कहानी)
    • मन में निहित विलक्षण अतींद्रिय सामर्थ्य
    • सब्ज बाग न देखें, यथार्थता से जुड़ें
    • व्यवहार का ज्ञान (कहानी)
    • यह खतरनाक खेल मानवी विशिष्टताओं को नष्ट कर देगा
    • कुंती का समर्पण (कहानी)
    • मस्तिष्क के अविज्ञात का चमत्कार
    • मनुष्य की पहचान का अदृश्य विज्ञान
    • Quotation
    • कामार्त्ता हि प्रकृति कृपणाश्चेतनाचेतनेषु
    • क्या भूत-प्रेतों का अस्तित्व है?
    • मनुष्य का वैभव (कहानी)
    • जागरूकता गंवा न बैठें
    • हैसियत के अनुसार कर्म (कहानी)
    • सद्भावना-संवर्द्धन की पुण्य प्रक्रिया:- अग्निहोत्र
    • ताकत से बड़ी सूझ-बूझ (कहानी)
    • आहार की आध्यात्मिक स्वच्छता
    • अंधेरे भविष्य का एक ठोस कारण
    • पुण्य का फल (कहानी)
    • चेतना और ऊर्जा का भांडागार-सविता देवता
    • सूर्योपासना कब और कैसे?
    • कर्तव्य का फल (कहानी)
    • महाप्रज्ञा के आठ दिव्य अनुदान
    • अपनों से अपनी बात— कुंडलिनी केंद्र की साझीदारी
    • नारद का अभिमान (कहानी)
    • अब फिर से सतयुग आएगा, यह बोल रहा है महाकाल
    • सविता-वंदना
    • सविता-वंदना (कविता)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


यह खतरनाक खेल मानवी विशिष्टताओं को नष्ट कर देगा

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 31 33 Last
भावी पीढ़ी कैसी हो? इस संबंध में गत कुछ दशाब्दियों से मनीषी-वैज्ञानिक वर्ग में अच्छा खासा मंथन चलता आ रहा है। एक ओर पदार्थविज्ञानी है, जिनका चिंतन स्थूल धरातल पर चला एवं ऐसे ही निष्कर्ष उन्होंने निकाले भी हैं। बायोटेक्नोलॉजी आज की एक विकसित वैज्ञानिक विधि है, जिसमें नित नए अनुसंधान हो रहे हैं। पादप-वनस्पति एवं जीव−जंतु वर्ग से आरंंभ हुआ यह शोधक्रम अब मानव को भी एक स्थूल संसाधन मानते हुए उसे बदलने की— आने वाली पीढ़ी को बलिष्ठ बनाने की दिशा में अग्रसर हो रहा है। दूसरी ओर अध्यात्म के सौम्य प्रतिपादनों के पक्षधर मनीषीगण हैं, जो वंशानुक्रम विज्ञान का पूरा सम्मान करते हुए भावी पीढ़ी में संस्कारों के समावेश द्वारा पीढ़ी परिवर्तन की चर्चा करते हैं। वे मानवी नस्ल के साथ पशुओं की तरह प्रयोग किए जाने का समर्थन नहीं करते, अपितु विचार-संस्कार-स्वभाव को बदले जाने की आवश्यकता पर बल देते हैं।

अब अनुवांशिक इंजीनियरिंग में कोशिकाओं पर ऐसे प्रयोग किए जा चुके हैं कि किसी भी पुरुष के शरीर के अंग से निकाली गई कोशिकाओं के नाभिकीय द्रव्य- डी.एन.ए. तथा आर.एन.ए. को यदि स्त्री गर्भाशय में स्थापितकर निषेचित किया जाए, तो वह अपने ही समान अन्य कोशिकाओं को जन्म देती चली जाएगी और कायपिंड के विभिन्न अंग अवयवों का निर्माण होने लगेगा। अमैथुनी सृष्टि की संभावनाओं को बलवती बनाने वाले ये प्रयोग अब कल्पना या 'साइंस फिक्शन' तक सीमित नहीं रहे, अपितु यौन स्वच्छंदता के पक्षधर स्वयंसेवकों पर किए भी जा चुके हैं। 'डेविड रोरविक' जो कि अपने एक ऐसे ही प्रयोग के कारण बहुचर्चित रहे हैं, अपनी रिपोर्ट में कितना सही हैं, यह तो वही जानते हैं; क्योंकि वे इन चिकित्सकों व उस एशियाई महिला को वैज्ञानिक के समक्ष प्रस्तुत करने में असफल रहे ,जो प्रयोग साक्षी माने जाते हैं। फिर भी एक बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न अभी भी अनुत्तरित है कि बायोटेक्नोलॉजी का यह खेल मानवता का विनाश तो नहीं कर बैठेगा?

कृत्रिम जीवकोशों के आधार पर क्या कुछ परिवर्तन मानव जाति में किए जा सकते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में ब्रिटेन के जीवविज्ञानी जेम्स डेनियल ने कहा है कि,"अगले दिनों कृत्रिम जीवकोश बनाने में सफलता मिलने के बाद निकट भविष्य में ही यह संभव हो जाएगा कि मनुष्य की डिजाइन की हुई मानव आकृतियाँ सृजी जा सकें।" वे यह संभावना भी व्यक्त करते हैं कि, " अब ऐसे मनुष्यों को ढालना भी संभव हो जाएगा, जो अन्य ग्रहों में जीवनयापन कर सकें।" उनका कहना है कि, "इस बायोतकनीकी-प्रक्रिया में न तो रतिक्रिया आवश्यक है और न कृत्रिम गर्भाधान का आश्रय लेना ही। मनुष्य शरीर की हर कोशिका में वे तत्त्व मौजूद हैं जो गर्भस्थापन के लिए उत्तरदायी है। यदि इस कोशिकाद्रव्य को सही स्थान पर पहुँचाया जा सके तो गर्भ-स्थापना का उद्देश्य पूरा हो सकेगा।" पर एक बात वे और कहते हैं कि, "यंत्र-मानवों की तरह मानव आकृति तैयार की जा सकती है, पर प्रकृति पर विज्ञान का कोई नियंत्रण नहीं है। हो सकता है, वे मात्र रोबोट हों अथवा विनाश की ओर ले जाने वाले रक्तबीज से उपजे असुर।"

इसमें कोई संदेह नहीं कि बायो-इंजीनियरिंग के जीन-यांत्रिकी-प्रयोग जानवरों एवं पादपों की नई- नई किस्में उपलब्ध कराने में सफल रहे हैं। डी.एन.ए. केमीस्ट्री में परिवर्तन के द्वारा मॉलीक्युलर बायोलॉजी के इन प्रयोगों से जींस की कलमें बनाने (क्लोनिंग) में वैज्ञानिकों को अभूतपूर्व सफलता मिली है। एक और बड़ी उपलब्धि, जो वैज्ञानिक हासिल कर सके हैं, वह है— एक जीव के ग्रोथ हारमोन के लिए उत्तरदायी जींस का दूसरे के डी.एन.ए. के साथ प्रत्यारोपण। इस प्रयोग को मानव पर जब लागू किया गया तो इस रिकाम्बीनेट डी.एन.ए. टेक्नोलॉजी द्वारा मधुमेह के रोगियों में इंसुलिन पैदा करने वाले जीन्स आरोपित करने में सफलता मिली। यद्यपि ये प्रयोग सीमित स्तर पर हुए हैं, पर इनसे लगता है कि अगले दिनों जब यह प्रयोग अधिक सस्ता एवं व्यापक स्तर पर होने लगेगा तो संभवतः मधुमेह जैसी और भी जटिल अनुवांशिकीय व्याधियों से मनुष्य को मुक्ति मिल जाए। कार्य कठिन है, समय साध्य भी, पर इस रोग से ग्रसित व्यक्तियों के लिए आशा की एक किरण भी जागी है। इस जीन प्रत्यारोपण के प्रयोग को छोड़कर अन्यान्य प्रयोग असफल रहे हैं। देखा यह गया है कि जब बेहतर नस्लों के उत्पादन हेतु क्रास-बीडिंग अथवा अमीनो एसिड प्रत्यारोपण के प्रयोग किए गए, तो नई नस्लें तो विकसित हुईं, पर इनकी जीवनीशक्ति— रोगों से जूझने की सामर्थ्य एवं गुणवत्ता अत्यंत घटिया पाई गईं। भारत में गाय पर किए गए प्रयोग एवं अमेरिका जैसे मांसाहार प्रधान देश में सुअरों पर किए गए प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकला कि इससे कमजोर प्रकृति की नस्लें जन्मती हैं, उनमें मूलभूत विशेषताएँ विद्यमान नहीं पाई जातीं।

अब ये प्रयोग मनुष्य की विभिन्न व्याधियों के निवारणार्थ, जो मूलतः आनुवांशिकीय हैं, के प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही 'वैस्ट मैटेरियल' से प्रोटीन या उच्च कोटि के खाद्य पदार्थ पैदा करने के प्रयोग भी हो रहे हैं, पर विडंबना यह है कि इन्हें किया तृतीय विश्व के देशों में जा रहा है। संभावना यह उठती है कि मानव पर किए गए इन प्रयोगों से हो सकता है, नई असाध्य व्याधियाँ जन्मने लगें अथवा जीवनीशक्ति की दृष्टि से कमजोर व घटिया पीढ़ियाँ पैदा हों अथवा कोई ऐसा पदार्थ जन्म लेने लगे, जो घातक सिद्ध हों। कृषि, चिकित्सा, विज्ञान एवं इंडस्ट्रीज के क्षेत्र में ऐसे प्रयोग एक सीमा में किए जाएँ, तो ही मानव जाति के लिए कोई लाभप्रद निष्कर्ष निकल सकते हैं। कुछ प्रयास जो इस दिशा में किये गए व जनसाधारण की जानकारी में लाए गए, वे तो डराते हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध के माध्यम से व्यापक संहार करने वाला नस्लवाद का समर्थक हिटलर इस क्षेत्र में प्रथम व्यक्ति माना जाता है। जिसने नीत्से की परिकल्पना को साकार करने के लिए शुद्ध आर्य नस्ल का व्यापक प्रचार किया एवं ऐसे वैज्ञानिकों को प्रश्रय दिया, जो प्रयोग कर सकते हों। हिटलर ने सभी जर्मन तथा यूरोपवासियों के मन में यह धारणा बिठाई थी कि जर्मनी को ही समूचे संसार पर शासन करने का अधिकार है; चूँकि वह शुद्ध आर्य नस्ल है। उसने कमजोर जर्मनों का बंध्याकरण करने, यहूदियों को पूरी तरह नष्ट करने व विवाहेतर यौन प्रसंगों द्वारा बलिष्ठ व मेधावी बच्चों को जन्म देने की बात पर जोर ही नहीं दिया, उसे लागू भी किया। ऐसा कहा जाता है कि हिटलर के चिकित्सक डॉ. जोसेफ मेंजेले ने तो यहाँ तक प्रयास किया था कि जर्मनी का बच्चा-बच्चा हिटलर की प्रतिकृति बने। दुर्भाग्य से समय से पूर्व हिटलर का पतन हो गया, पर डॉ. मेंजेले हिटलर की कोशिकाओं का नमूना लेकर भाग गया। कुछ दिन बवेरिया में छिपा रहकर अर्जेंटाइना, पैराग्वे आदि स्थानों में पहुँचा व अपने प्रयोग जारी रखा। इरालेविन नामक लेखक की पुस्तक 'ब्वायज फ्राम ब्राजील' नामक पुस्तक में लिखा है कि मेंजेले ने हिटलर की कोशिकाद्रव्य द्वारा रेड इंडियन जाति की 94 औरतों के गर्भ में भ्रूण स्थापित किए, जिनसे इतने ही बच्चे पैदा हुए। वे बच्चे हू-ब-हू हिटलर की प्रतिलिपि हैं व प्रत्येक की आयु चौबीस वर्ष की हो चुकी है। यह कहाँ तक सही है, कोई नहीं जानता; क्योंकि किसी ने इन बच्चों को नहीं देखा ,पर एक संभावना का पता तो लगता है, जो दानवी विभीषिका का आभास देती है।

ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों प्रकाश में आया है, जिसमें "सरोगेट मदर" के रूप में प्रख्यात न्यूजर्सी (अमेरिका) की मेरीबेथ व्हाइटहेड नामक महिला ने नौ माह तक कृत्रिम गर्भाधान द्वारा एक डॉक्टर दंपत्ति के भ्रूण को अपने गर्भ में पालकर, एक लड़की को जन्म देकर उसे मूल माता-पिता को देने से मनाकर दिया। यह बच्ची मार्च में एक वर्ष की हो जाएगी। वह चूँकि मामला कोर्ट में चला गया है। एक बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न सबके सामने लग गया है कि बेबी एम. नाम से प्रख्यात इस बालिका को किराए की माँ के रूप में जन्म देकर श्रीमती व्हाइटहेड ने क्या गलत काम किया है? दूसरी ओर डॉ. विलियम र्स्टन, जो कि एक बायोकेमिस्ट व उनकी पत्नी एलिजाबेथ शिशुरोग विशेषज्ञ है, कहाँ तक सही हैं, जो 10 हजार डॉलर की कीमत पर कृत्रिम गर्भाधान द्वारा दूसरी महिला के गर्भाशय को किराए पर लेकर उससे जन्मी बच्ची पर अपना अधिकार जता रहे हैं । गतवर्ष बच्ची 'सारा' (बेबी एम.) को जन्म देने के बाद पहले से ही 2 बच्चों की माँ 29 वर्षीय मेरीबेथ व्हाईटहेड रो पड़ीं, जब उनसे बच्ची लेने र्स्टन-दंपत्ति गए। उसकी भाव-विह्वलता देख उन्होंने उसे दो हफ्ते अपने पास रखने का आश्वासन दिया; पर पुनः पहुँचने पर उसे जिस स्थिति में पाया, उससे लगा कि उसका 9 माह तक गर्भ में रही बालिका से जो भावनात्मक लगाव है, उस नाते वह बच्ची को देना नहीं चाहती, बदले में सारी राशि उसने लौटा दी। स्टर्न-दंपती तो बच्ची चाहते थे, अतः उन्होंने पुलिस की मदद ली एवं जब वे बच्ची लेने पहुँचे तो उसे लेकर व्हाइटहेड-दंपती पिछले दरवाजे से भाग चुके थे। उन्हें फ्लोरिडा में गिरफ्तारकर मुकदमा चालाया गया, जो अभी सुनवाई के लिए न्यूजर्सी के सुपीरियर कोर्ट जज हार्वे साकेवि के पा पहुँचा है। वे मार्च के अंत तक अपना निर्णय दे चुके होंगे। तब तक बेबी एम. र्स्टन-दंपत्ति के पास रहेगी, मात्र सप्ताह में दो बार दो-दो घंटों के लिए उसे श्रीमती व्हाइटहेड अपने पास रख सकेंगे।

इस विवाद ने कई मुद्दों पर विचार करने के लिए इस प्रगतिशील कहे जाने वाले देश के मनीषियों को विवश कर दिया है। 'टाइम' पत्रिका (19 जनवरी 1987) में 'बायोएथीक्स' का मुद्दा उठाते हुए रिचार्ड लोकायो, ऐगर फ्रैकलीन एवं रसेल लेविट लिखते हैं कि." क्या इस प्रक्रिया को प्रश्रय देकर हम माँ व बच्चे के मध्य स्नेह-संबंधों से खिलवाड़ नहीं कर रहे?" इसे एक “‘बेबी इंडस्ट्री” नाम देते हुए उन्होंने कहा कि' "गर्भावस्था की तोहमत से बचने के लिए धनिकों द्वारा क्या यह निर्धनों का शोषण नहीं है?" मिशिगन के नार्मन रॉबिन्स लिखते हैं कि, "नवजात शिशु को 'सामान' या ‘संपत्ति’ नहीं माना जाना चाहिए। इससे तो गरीबों में 'प्रोफेशनल ब्रीडर' बनने की ललक जागेगी एवं इससे मानवी गरिमा को बड़ी ठेस पहुँचेगी।" उनका अंदाज है कि, "ठेके के आधार पर गर्भाशय किराए पर लेने की प्रक्रिया 1976 के आस-पास आरंभ हुई, तब से अभी तक मात्र अमेरिका में ऐसे 500 बच्चे जन्म ले चुके हैं। ऐसे एक दर्जन केंद्र अमेरिका में काम कर रहे हैं, जो संतानहीन दंपत्तियों को किराए की महिलाओं से मिलाते व गर्भाशय में कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा उपलब्ध कराते हैं।" वे कहते हैं कि, "तकनीकी प्रगति ने हमें किस स्थिति में पहुँचा दिया है कि हम संवेदनाहीन बच्चा पैदा होने की प्रक्रिया को मशीनीकरण के समकक्ष मानने लगे हैं।"

वैज्ञानिक जैवयांत्रिकी एवं कृत्रिम गर्भाधान के इन प्रयोगों के समय यह भूल जाते हैं कि दांपत्य जीवन की सरसता ही उन्हें एकदूसरे के लिए वफादार बनाती है और परस्पर सघन सहयोग की मनःस्थिति उत्पन्न करती है। यदि बच्चे गाजर-मूली की तरह किसी भी दुकान से खरीदे जा सकें तो दांपत्य जीवन की नींव हिल जाएगी और बच्चों में पूर्वजों के प्रति श्रद्धा या कर्त्तव्यपालन का कोई भाव शेष न रहेगा।

इससे भी बड़ी बात है— सृष्टि में भिन्नता की विलक्षणता, जिससे परस्पर प्रतिस्पर्धा की आगे बढ़ने की भावना जन्म लेती है। संत चोर को लज्जित करता है और चोर संत से अपने परिवर्तन की प्रेरणा प्राप्त करता है। जब सभी एक जैसी प्रकृति के होंगे तो पीढ़ियाँ बलिष्ठ या सुंदर भले ही हों, वे विलक्षणताएँ जीवित न रहेंगी, जो मानव जाति के वर्चस्व को बढ़ाती हैं।

इसलिए इन प्रयासों को भी अणु विस्फोट की तरह खतरनाक मानकर उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। प्रयोगशाला की सीमा तक ही यह प्रयास सीमित रखना हो, तो परिणाम अन्य पशु-पक्षियों पर प्रयोग करके देखे जा सकते हैं।

First 31 33 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • समर्थता का सदुपयोग
  • आदर्शों की कथनी ही नहीं, करनी भी
  • ध्यान-धारणा का प्रभाव— परिणाम
  • पुरुषोत्तम दास की ईमानदारी (कहानी)
  • तत्त्वज्ञान की परम पवित्रता
  • समझदार को जिम्मेदारी दिया (कहानी)
  • देवता बहकाए नहीं जा सकते
  • हिम्मत मत हारो (कहानी)
  • महाप्रज्ञा का दर्शन एवं आराधन
  • चंद्रमा और पृथ्वी (कहानी)
  • पंचप्राणों की पाँच आहुतियाँ
  • कर्म से लगाव (कहानी)
  • भवबंधनों की जकड़न और पीड़ा
  • कार से प्रेम (कहानी)
  • जीवन में सरसता भर देने वाले चार आधार
  • ऋषि अगस्त्य (कहानी)
  • प्रामाणिकता की समर्थ क्षमता
  • देश की महानता (कहानी)
  • काम का वास्तविक स्वरूप— क्रीड़ा-कल्लोल
  • यथार्थता का संकोच (कहानी)
  • ऊर्ध्वगमन की वज्रोली मुद्रा
  • दृश्य देखकर बहुत क्रुद्ध हुए (कहानी)
  • देवताओं का स्वर्ग धरती पर भी
  • धर्मराज युधिष्ठिर (कहानी)
  • मनुष्य की विद्युतशक्ति का उभार एवं सुनियोजन
  • सदुक्ति
  • निंदक नियरे राखिए .....
  • बच्चे, बड़ों से ही सीखते हैं (कहानी)
  • मन में निहित विलक्षण अतींद्रिय सामर्थ्य
  • सब्ज बाग न देखें, यथार्थता से जुड़ें
  • व्यवहार का ज्ञान (कहानी)
  • यह खतरनाक खेल मानवी विशिष्टताओं को नष्ट कर देगा
  • कुंती का समर्पण (कहानी)
  • मस्तिष्क के अविज्ञात का चमत्कार
  • मनुष्य की पहचान का अदृश्य विज्ञान
  • Quotation
  • कामार्त्ता हि प्रकृति कृपणाश्चेतनाचेतनेषु
  • क्या भूत-प्रेतों का अस्तित्व है?
  • मनुष्य का वैभव (कहानी)
  • जागरूकता गंवा न बैठें
  • हैसियत के अनुसार कर्म (कहानी)
  • सद्भावना-संवर्द्धन की पुण्य प्रक्रिया:- अग्निहोत्र
  • ताकत से बड़ी सूझ-बूझ (कहानी)
  • आहार की आध्यात्मिक स्वच्छता
  • अंधेरे भविष्य का एक ठोस कारण
  • पुण्य का फल (कहानी)
  • चेतना और ऊर्जा का भांडागार-सविता देवता
  • सूर्योपासना कब और कैसे?
  • कर्तव्य का फल (कहानी)
  • महाप्रज्ञा के आठ दिव्य अनुदान
  • अपनों से अपनी बात— कुंडलिनी केंद्र की साझीदारी
  • नारद का अभिमान (कहानी)
  • अब फिर से सतयुग आएगा, यह बोल रहा है महाकाल
  • सविता-वंदना
  • सविता-वंदना (कविता)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj