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Magazine - Year 1988 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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शोध अनुसंधान की प्रगति एवं-भावी संकल्पनाएँ

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आस्था संकट की विभीषिका से मोर्चा लेने हेतु अखण्ड-ज्योति ने अति महत्वपूर्ण दायित्व ब्रह्मवर्चस को सौंपा है। प्रत्यक्षवादी चिन्तन ने जिस नास्तिकता एवं अनैतिकता को जन्म दिया है। उसे तर्कों तथ्यों प्रमाणों तथा वैज्ञानिक प्रयोगों के निष्कर्षों के माध्यम से निरस्त किया जाना एक ऐसा भागीरथ कार्य था। जिसे प्रत्यक्ष कर दिखाना असम्भव नहीं तो दुष्कर अवश्य कहा जाएगा। यह भी अपने प्रकार का इस युग का समुद्र मंथन है। अध्यात्म तत्व ज्ञान रूपी देव शक्ति और भौतिकी पदार्थ विज्ञान रूपी असुर शक्ति में ताल मेल कैसे बैठे यह सबसे बड़ा असमंजस है। दो विपरीत ध्रुवों पर चलती हुई मानी जाने वाली शक्तियों में परस्पर सहयोग की स्थिति कैसे बनायी जाय? इस ऊहापोह को सुलझाने हेतु ही ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की स्थापना हुई।

आग और पानी दोनों अपने आप में शक्तिशाली हैं व एक दूसरे के विरोधी भी। आग पानी को नहीं टिकने देती एवं पानी आग को बुझा कर रहता है। किन्तु इसी पानी को जब आग के सहयोग से गर्म किया जाता है तो वह वाष्प पैदा होती है जिसकी शक्ति असीम होती है जिसकी सामर्थ्य से भीमकाय लौह इंजिन चल पड़ता है। अध्यात्म और विज्ञान की स्थिति भी प्रायः इसी प्रकार की है। यदि अध्यात्म अनुशासनों व्याप्त वचनों शास्त्र प्रमाणों को आधुनिक विज्ञान की भाषा में समझाया जाय उनकी प्रासंगिकता का तर्क सम्मत विवेचन किया जाय तो कोई कारण नहीं कि आधुनिक पीढ़ी आस्तिकतावादी दर्शन की अवहेलना करे। यही दृष्टिकोण सामने रखकर ब्रह्मवर्चस ने अपने तीन लक्ष्य चुने। इनमें पहला है यही विचार पद्धति से अरोग्य एवं कौशल का अभिवर्धन।

मनःक्षेत्र से भ्रांतियां विकृतियाँ मिटाने हेतु तर्कों तथ्यों का संकलन भी उपरोक्त प्रयोजन के अंतर्गत आता है विचारशक्ति संकल्पबल को योग साधनाओं से समन्वित कर मानसोपचार कर पाना भी सम्भव है। आधुनिक यंत्रों के प्रयोगों द्वारा प्रत्यक्ष यथासम्भव तथा परोक्ष रूप से तर्कों एवं प्रतिपादनों के माध्यम से यह प्रमाणित करने का प्रयास यहाँ किया गया है कि मानवी–काया में सन्निहित अभूतपूर्व सम्भावनाओं विलक्षण क्षमताओं को ध्यानयोग-.... एवं क्रियायोग की विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा जगा पाना सम्भव है। योग साधना एवं तप .... के साथ जुड़े विभिन्न तथ्यों जिनका वर्णन शास्त्रों में होता रहा है का वैज्ञानिक अनुसंधान एवं उपलब्ध यंत्रों द्वारा प्रत्यक्षीकरण इसी शोध श्रृंखला को आगे बढ़ाता है। इस प्रयोजन हेतु सूक्ष्म शरीर की महता बनाने वाले प्रभामण्डल अदृश्य किन्तु प्रभावशाली प्राण विद्यूत्परिकर को किसी सीमा तक विज्ञान सम्मत ढंग से प्रमाणित किया जा सकता है यह ब्रह्मवर्चस की शोध का महत्वपूर्ण अंग है।

दूसरा प्रयोजन है-पदार्थ में छिपी ऊर्जा के चेतन पक्ष का कारण शक्ति का उभार एवं विकास। यह प्रक्रिया के सम्बन्ध में जनमानस में बड़ी भ्रान्तियाँ है। अन्नादि तथा दूध-घी को अग्नि में डालकर नष्ट कर देने का आक्षेप याजकों पर लगाया जाता है। जबकि शास्त्रोक्त पद्धति विशुद्ध वनौषधि यजन की है जिसमें सुनिश्चित ताप मान पर औषधियाँ की सूक्ष्म चेतन सत्ता को उभारा जाता है वाष्पीभूत स्थिति में औषध घटकों द्वारा मानवी काया मन सूक्ष्मशरीर एवं समीपवर्ती वायु मण्डल तथा पर्यावरण को प्रभावित किया जाता है, गिने चुने प्रसंगों में नाम मात्र के अन्न की आवश्यकता पड़ती है वह भी चरु निर्माण हेतु जो यज्ञाग्नि में पकाया जाता है। इस प्रक्रिया से संबंधित विभिन्न पक्षों का विज्ञान सम्मत प्रस्तुतीकरण ब्रह्मवर्चस की प्रयोगशाला में किया गया है। साथ ही सूक्ष्मीकृत औषधियाँ पौधों से यह जानने का प्रयास किया जा रहा है कि व्यक्ति की जीवनी शक्ति एवं मनोबल को यह किस प्रकार बढ़ाती है? अस्वस्थ को सदस्य एवं स्वस्थ को दीर्घायु निरोग बनाने वाली अमृतोपम वनौषधियाँ पदार्थगत ऊर्जा के कारण पक्ष के विकसित होने की परिणाम स्वरूप ही अपनी प्रतिक्रियाएँ दिखाती है। इस परिप्रेक्ष्य में वैज्ञानिक शोध नूतन पीढ़ी के सृजन आत्मबल सम्पन्न मानवों के निर्माण हेतु आध्यात्मिक दृष्टि से भी जरूरी है।

तीसरा प्रसंग है-यंत्र शक्ति से भी बढ़कर मंत्र शक्ति की प्रभाव क्षमता का अन्वेषण। जैसे स्थूल काया का ईंधन भोजन एवं जल है इसी प्रकार सूक्ष्म शरीर का ईधन वाक शक्ति है। मंत्र शक्ति की शब्द ब्रह्म-साधना द्वारा न केवल सूक्ष्म काय संस्थान को प्राणाग्नि रूपी कुण्डलिनी संस्थान एवं चक्र-उपत्यिकाओं को अपितु भाव संवेदनाओं को प्रभावित कर वाँछित परिवर्तन ला पाना संभव है। शब्द शक्ति की महता को विज्ञान ने स्वीकारा है एवं अब विभिन्न रोगों के निदान में अल्ट्रासाउण्ड तथा चिकित्सा में भी इनका लेसर की तरह प्रयोग होने लगा है। मंत्र शक्ति एवं यज्ञ ऊर्जा के मिलन से एकाकी अथवा सामूहिक मंत्रोच्चारण से मंत्रगायन अथवा विभिन्न रागों में सूक्तों के प्रयोग से क्या कुछ परिवर्तनकाय पिण्ड एवं सूक्ष्म वातावरण में संभव है यह एक महत्वपूर्ण शोध प्रसंग है। संगीत चिकित्सा मंत्र चिकित्सा को पूर्णतः विज्ञान सम्मत सिद्ध करने के लिए यह अनिवार्य है कि इनकी प्रभाव क्षमता को आधुनिक यंत्रों के माध्यम से मापा जाये। वनस्पतियों जीव−जंतुओं मानव−शरीर एवं मन तथा वातावरण में ये कम्पन क्या किस सीमा तक परिवर्तन लाते है इसे प्रमाणित किया जाये। यही प्रक्रिया ब्रह्मवर्चस् की प्रयोगशाला में अपनाई जा रही है।

अभी तक प्रयोगशाला का विस्तार क्रम चल रहा है व आगे भी वह अनवरत गति से चलता रहेगा। विज्ञान ने जितनी तेजी से पिछले दिनों प्रगति की है इलेक्ट्रोनिकी एवं कंप्यूटर साईंस ने जिस तरह प्रौद्योगिकी को कायाकल्प कर दिखाया है उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। आज इन्हीं सब का सहारा लेकर अपनी बात को प्रामाणिक ढंग से कहना होगा। ध्यानयोग-मानसोपचार प्रक्रिया यज्ञ विज्ञान एवं वनौषधि प्रयोग द्वारा सूक्ष्मीकृत पदार्थ ऊर्जा से चिकित्सा एवं शब्दशक्ति की प्रभाव सामर्थ्य का विश्लेषण करने हेतु विभिन्न जटिल उपकरण देश-विदेश से मंगाकर लगाये गये है जिनका संचालन उच्चस्तरीय वैज्ञानिकों की एक टीम करती हैं। इन उपकरणों में प्रमुख है - रक्त के विभिन्न रसायनों-एन्जाइम्स को विश्लेषण करने वाला स्पेक्ट्रोफोटोमीटर फोटोकेलोरी मीटर जीवनीशक्ति के लिए उत्तरदायी इम्युनोग्लोबुलीन्स का मापन करने वाला इलेक्ट्रोफोरेसिस उपकरण एवं जीवाणु-विषाणुओं पर प्रभाव देखने हेतु इन्वयुबेटर-ओवन विभिन्न प्रकार के माइक्रोस्कोपों से युक्त एक परिपूर्ण माईक्रोबायोलाँजी विंग। शरीर व मन की विद्युत तंरगों के मान हेतु एक चार चैनल का पाँलीग्राफ यहाँ पर है जिससे मस्तिष्क का “इलेक्ट्रोएनसेफलो ग्राम” (ई.सी.जी.) हृदय का इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ई.सी.जी.) हृदय की ध्वनियाँ का फोनोकार्डियोग्राम तथा श्वास की गति हेतु सेन्सर-ये चारों एक साथ रिकार्ड किये जा सकते है। साधना उपचारों वनौषधि सेवन अग्निहोत्र शब्द शक्ति एवं नादब्रह्म का क्या प्रभाव मनुष्य के सूक्ष्म संस्थान पर पड़ रहा है यह मंत्र पर देखा जा सकता है। चारों चैनल पर ई ई जी भी लिया जाता है साथ ही त्वचा का प्रतिरोध, मनोभावों का त्वचा विद्युत पर प्रभाव (जी. एस. आर.) मापन भी इससे किया जा सकता है। अलग से दो इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम मशीनें और है जिसके द्वारा माँनीटर पर हृदय विद्युत एवं कार्यक्षमता का व्यायाम शिथिलीकरण एवं ध्यानस्थ स्थिति में आकलन किया जाता हैं .... फोटोग्राफी द्वारा न्यूरान्स तथा अन्यान्य जीव कोशों में विद्यमान डी.सी. पोटेन्शियल्स को नापने की व्यवस्था भी संस्थान में शीघ्र की जा रही है।

स्पायरोग्राफ द्वारा श्वास संस्थान पर एवं फेफड़ों की रक्त शोधन क्षमता पर प्राणायाम आदि उपचारों का साधना के पूर्व बाद में मान कर तुलनात्मक अध्ययन किया जाता हैं। साइकोमेट्री के लगभग पन्द्रह उपकरणों तथा मनोआध्यात्मिक प्रश्नावली के माध्यम से बुद्धिलब्धि (आई.क्यू.) एकाग्रता की शक्ति इल्युजन रिएक्शन टाइम एप्टीट्यूड व्यक्तिगत विश्लेषण स्मरण शक्ति के साधना उपचारों के पूर्व एवं बाद मापन किये जाने एवं हर साधक को अनुकूल साधनाएं एवं वनौषधि सम्बन्धी परामर्श दिया जाता है।

वनौषधियों की शुद्धा–शुद्ध परीक्षा, क्वाथ निर्माण, जल द अल्कोहल सत्व बनाने हेतु चार कमरों की एक पृथक प्रयोगशाला शान्तिकुँज में है। इनका चूर्ण रूप में व वाष्प रूप में प्रयोग होता है। वाष्पीकृत वनौषधियों का याजक के शरीर व मन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है इसे जाने के लिए अति संवेदनशील सेंसर उपकरणों द्वारा विभिन्न आँकड़े एकत्र किये जाते है। तदनुसार यज्ञोपचार पद्धति का निर्धारण होता है। यज्ञ प्रक्रिया के विज्ञान पक्ष की पूरी जानकारी देने वाली सर्वांगपूर्ण प्रयोगशाला ब्रह्मवर्चस की यज्ञशाला के साथ विनिर्मित की गयी है। यज्ञ धूम्रों का विश्लेषण कर वाष्पीभूत औषधि घटकों का जी.एल.सी. एवं तीन अन्य गैस एनालाइजर्स द्वारा विश्लेषण, यज्ञाग्नि की तीव्रता (लक्स), स्पेक्ट्रम एवं रेडियेशन का मापन इस प्रयोगशाला की विशेषताएं हैं। यज्ञ प्रक्रिया को विज्ञान सम्मत ढंग से इस रूप से समझाने वाली विश्व की यह एकमात्र प्रयोगशाला है।

शब्दशक्ति एवं संगीत प्रक्रिया का जीव जन्तुओं (मछली एवं गिनीपिग), पौधों तथा मनुष्य पर प्रभाव बताने वाली एक नयी प्रयोगशाला के समीप बनायी गयी है। आँसीलोस्कोप, मैग्नेटिक, डिस्क रिकार्डर डेसीबल मीटर जैसे उपकरण यहाँ लगाये गये है जिनसे मंत्र व संगीत ध्वनि के विभिन्न आयामों का मापन सम्पन्न होता है। इनका मानवी काया जो प्रभाव पड़ता है, उसे विभिन्न सेंसर्स शरीर पर लगाकर रक्त चाप, तापमान, रक्तप्रवाह, नाड़ी की गति एवं हृदय की मस्तिष्क की-विद्युत देखने के लिए तीन अत्याधुनिक उपकरण मँगाये गये है। एक आय.बी.एम. (पी.सी.) कम्प्यूटर इन यंत्रों के साथ जोड़ा गया है व पूरा कक्ष वातानुकूलित बनाया गया है। आकृति-संरचना का प्रभाव जानने हेतु एक पिरामिड भी इस कक्ष में बनाया गया है।

ब्रह्मवर्चस की प्रयोगशाला ही नहीं इसका ग्रन्थालय स्वयं में इतना परिपूर्ण है कि विश्वभर में हो रहे शोध-कार्यों को यहाँ नियमित आने वाली विज्ञान व दर्शन-मनोविज्ञान की पत्रिकाओं से जाना जा सकता है। सभी विधाओं के विश्वकोश सहित लगभग बारह हजार पुस्तकें इस ग्रन्थालय में है।

जिस स्वयंसेवी समर्पित भावना से कार्यकर्ता यहाँ क्रियाशील है, जो कार्य अब तक बन पड़ा है व जो आगे की योजना है उसे देखते हुए यह आशा बलवती होने लगी है कि इन सीमित साधनों से ही विज्ञान व अध्यात्म के समन्वय को सार्थक कर दिखाया जा सकेगा। तर्कों तथ्यों के संकलन तो अखंड-ज्योति पत्रिका में छपते ही रहते ह अब वैज्ञानिक निष्कर्षों को भी क्रमशः इसमें प्रकाशित किया जाता रहेगा, ताकि जन मानस इस प्रयोग पुरुषार्थ से लाभान्वित हो सके।

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